Wednesday, January 25, 2023

रामजी के ही सहचर- सखी सखाओं का रामसखा सम्प्रदाय---- डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

              (राम सखा बगिया अयोध्या)
            ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। 
           भए समर सागर कहँ बेरे।। 
            मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। 
            भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे।।
                   (राम चरित मानस)
 अपने सहचर सखाओं की प्रशंसा करते हुए श्रीराम गुरुदेव वशिष्ठ से उक्त बचन कहे थे। भक्तमाल के बीसवें छ्न्द में नाभादास ने राम के विशाल सहचर वर्ग को गिनाया है। इसके अलावा अन्यानेक सहचर , बीरों और भक्तों के नाम भी मिलते हैं। कुछ की कुछ - कुछ सूचनाएं भी मिलती है और कुछ का केवल नाम ही मिलते हैं। ये सब सखा किसी ना किसी देवी या देव के अंश से या अर्जित किए हुए कृपा या महान पुण्यों के फल स्वरूप उत्पन्न हुए थे। ब्रह्मा जी के आदेश से इन लोगों ने बानर , रीछ और भक्त गण का शरीर रामकाज के लिए धारण किया था। इनमें अथाह पौरुष और बल था। भगवान इन सबको अपना सखा मानते थे। रावण की मृत्यु के बाद उनके अनुचर सखा गण को रामजी ने आभार सहित अपने - अपने धाम को जाने को कहा था , पर कोई नहीं वापस गया। सभी राम जी के वनवास से वापस आने के अवसर पर सजी- धजी अयोध्या देखने आ गए थे। 
         कंचन कलस बिचित्र संवारे। 
          सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे॥ 
           बंदनवार पताका केतू। 
           सबन्हि बनाए मंगल हेतू।। 
        छः माह तक उन सब की खूब आव - भगत अयोध्या में होती रही। उन्हें उपहार, वस्त्र और आभूषण देकर विदा किया गया।वे राम की छवि अपने हृदय में बसाकर लौट गए ,परंतु कई वीर सखा स्थाई रूप से अयोध्या वासी हो गए। जब रामजी बैकुंठ जा रहे थे तो अपने इन सखा वीरों को रामकोट , अयोध्या और भी मंडल की रखवाली का दायित्व भी दे दिया था।
        श्री रुद्रयामलोक्त अयोध्या महात्म्य के अध्याय 6 श्लोक 30 से 46 के मध्य रामकोट की सुरक्षा में लगे सभी वीरों और सखाओं के स्थान के बारे में विस्तार से जानकारी दिया गया है। इनमे अनेक स्थल तो राम जन्म भूमि न्यास के अधिग्रहण क्षेत्र की सीमा में आते हैं। कुछ को तो न्यास अपनी नई संरचना में स्थान भी दे रहा है। इस सब के अलावा भक्ति भाव में अनेक सन्त और महात्मा प्रभु से समीपता प्राप्त कर भगवान की सखा और सभी भाव से आराधना साधना और पूजा की थी। जिसके उपरान्त सखा और सखी भाव की भक्ति का संचार हुआ था। अयोध्या में अष्ट राम तथा अष्ट जानकी जी सखियों के नाम को आत्मसात करती हुई अनेक मंदिरों की संरचना व अराधना हो रही है।        
सखी- सखा सम्प्रदाय का विस्तार:-
'सखी या सखा भाव का सम्प्रदाय' 'निम्बार्क मत' की एक शाखा है। इस संप्रदाय में भगवान श्रीकृष्ण या राम की उपासना सखी- सखा भाव से की जाती है। कवि नाभादास जी ने अपने 'भक्तमाल' में कहा है कि- "सखी सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण की उपासना और आराधना की लीलाओं का अवलोकन साधक सखीभाव से कहता है। इस संप्रदाय के प्रसिद्द मंदिर वृंदावन मथुरा में श्री बांके बिहारी जी, निधिवन, राधा वल्लभ और प्रेम मंदिर आदि हैं। इसमें माधुर्य भक्ति और प्रेम भक्ति की जाती है ।वृन्दावन और अयोध्या दोनों स्थानों पर प्रेमलक्षणा और राधा भाव का इतना व्यापक प्रभाव किसी काल में पहुँचा था कि राम और सीता को राधा-कृष्ण की छाया में ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया गया और उसी शैली में काव्य-रचना होने लगी। 
 राम-काव्य के सुधी विद्वान् भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। फादर डॉ. कामिल बुल्के भी श्रृंगारी राम-काव्यों के संविधान में- भाव, साधना और शैली- सभी दृष्टियों से श्रृंगारिक कृष्ण काव्य-साधना के प्रभाव को स्वीकार करते हैं। वे हिन्दी साहित्य कोश में लिखते हैं- इस भक्ति पर कृष्ण-राधा संबंध साहित्य का प्रभाव भी पड़ा और बाद में उत्तरोत्तर बढ़ने लगा । रामभक्ति प्रधानतया दास्यभाव की न रह कर कुछ सम्प्रदायों में मधुरोपासना में परिणत हुई। अनुसन्धायकों के अतिरिक्त साहित्य के इतिहासकारों ने भी इस तथ्य को लक्ष्य किया है। आचार्य शुक्ल इनमें अग्रगण्य है। उनके अतिरिक्त आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी अपने इतिहास में इस धारणा की स्पष्ट-घोषणा की है। तदनुसार- 17वीं शताब्दी के बाद भक्ति-साहित्य में सखी-भाव की साधना का प्राधान्य हो गया। इसका प्रभाव रामभक्ति शाखा पर भी पड़ा है। वृन्दावन की भाँति अयोध्या भी सखी सम्प्रदाय के भक्तों का केन्द्र बन गई। राम जी के अभिन्न सहचर सखाओं ने भी राम सखा संप्रदाय की स्थापना करके अपने प्रभु से जुड़ने और उनकी भक्ति को और गहरी बनाने का उपक्रम किया है। राधा कृष्ण की भांति सीताराम की उपासना में सखी भाव में उपासना होती है। स्वामी रामानन्द जी, गोस्वामी तुलसी दास जी, कवि नाभा दास जी और कवि अग्रदास जी इस कड़ी को आगे बढ़ाए हैं। इस माधुर्य उपासना में सखी भाव प्रिया - प्रियतम के प्रेम मिलन के भाव से पूजा और आराधना की जाती है। कन्हैया कभी अपने दोस्त को पीठ पर लाद लेते हैं तो कभी दोस्त के पीठ पर बैठ लेते थे। कभी गेंद के लिए तो कभी फलादि के लिए लड़ते क्रीड़ा करते देखे गए हैं। इसी तरह सीताराम जी की उपासना में भगवान के चारो भाई, हनुमान जी ,भगवान शिव शंकर और भक्त व मित्र का बराबर बराबर का भाव देखने को मिलता है। 
पृथक राम सखा सम्प्रदाय का उद्भव ;-
श्रीमद् सखेंद्र जी निध्याचार्य जी महराज का जन्म विक्रम संवत के आखिरी चरण चैत्र शुक्ल में राम नवमी को जयपुर में एक सुसंस्कृत गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने श्री वशिष्ठ मुनि से गुरु दीक्षा प्राप्त की। राजस्थान में गलिता के आचार्य ने उन्हें रामसखा की उपाधि दी थी। वे दक्षिण के उडीपि कर्नाटक में गये जहां बड़ी तनमयता से गुरु की सेवा की थी। उनका निवास नृत्य राघव कुंज के नाम से प्रसिद्व हुआ था । सखेंद्र जी महाराज को जब लगा कि भगवान राम ने उन्हें अपने छोटे भाई के रूप में स्वीकार कर लिया है। उसी क्षण महाराज जी ने घर छोड़ दिया और विराट वैष्णव बन गए। उनकी जन्मस्थली होने के कारण वे जयपुर छोड़कर अयोध्या पुरी चले गए। अयोध्या आकर उन्होंने सरयू नदी के तट के अलावा एक पर्णकुटी में भगवान को याद करने के लिए जीवन बिताया। राम सखेंदु जी महाराज ने अठारहवीं संवत में राम सखा सम्प्रदाय की स्थापना की थी। सखी सम्प्रदाय तो सनातन काल से ही राम सखा ,राम सखी ,सीता सखी ,कृष्ण सखा ,कृष्ण सखी और राधा सखी आदि विविध रुपों में पुराणों व भक्ति साहित्य में पाया जाता रहा है। राम सखा जी के शिष्य गुरु की तरह निध्याचार्य उप नाम प्रयुक्त करने लगे थे। शील निधि सुशील निधि और विचित्र निधि उनके परम शिष्य थे।
          श्रीमद् सखेंद्र जी महाराज ने माध्य संप्रदाय के आचार्य श्री वशिष्ठ तीर्थ से गुरु दीक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने लिखा है -   
       "मध्य माध्य निज द्वैत मन मिलन द्वार हनुमान।
        राम सखे विद सम्पदा उडुपी गुरु स्थान।।"
रामसखा जी का अयोध्या में आगमन:-
अयोध्या आकर राम सखा जी सरयू नदी के तट पर एक पर्णकुटी में भगवान को याद करते- करते अपना जीवन बिताया। वे प्रभु के दर्शन के लिए सरयू तट पर साधना करने लगे। 
चित्रकूट में आगमन:-
अयोध्या में बेचैनी पूर्ण समय बिताने के बाद, महाराज जी वहां से चित्रकूट चले गए और वहां कामद वन गिरी पर प्रमोदवन में अपनी प्रार्थना जारी रखी। सरयू तट की भांति एक बार फिर यहां राम ने अपने जुगुल किशोर स्वरूप का दर्शन दिया। इसके संबंध में कुछ लाइनें राम सखे इस प्रकार लिखी है -
"अवध पुरी से आइके चित्रकूट की ओर।
राम सखे मन हर लियो सुन्दर युगुल किशोर।"
उचेहरा में अस्थाई प्रवास :-
कुछ महात्मा यह भी बताते हैं कि महाराज जी के एक शिष्य उनके साथ रहे। चित्रकूट में रहने के बाद महाराज जी उचेहरा (अब सतना जिला) में गए, उन्हें वहाँ बहुत अच्छा नहीं लगा और संवत 1831में मैहर चले गए।
मैहर में तपोसाधना :-
श्री राम सखा जू महाराज, हिंदू धर्म के माधव संप्रदाय के प्रतिपादक और अनुयायी थे, लगभग दो सौ साल पहले जयपुर से मैहर आए । मैहर आकार वह नीलमती गंगा के तट पर उन्होंने एक पर्णकुटी में गणेश जी के सामने भजन किया। मैहर में एक मठ की स्थापना की, जिसे "श्री राम सखेंद्र जू का अखाड़ा" कहा जाता है। श्री सुखेन्द्र निध्याचार्य जी महाराज की तपोभूमि बड़ा अखाड़े के रूप में मैहर में बहुत लोकप्रिय है । यह मंदिर शिव भगवान जी को समर्पित है। बड़ा अखाड़ा में मंदिर और आश्रम दोनो देखने के लिए मिल जाता है। यहां पर शिव भगवान जी की बहुत बड़ा शिवलिंग मंदिर के छत पर बना हुआ है, जो बहुत ही सुंदर लगता है। इसके अलावा मंदिर के अन्दर में 108 शिवलिंग विराजमान है। यहां पर एक प्राचीन कुआं भी है। यहां पर राम जी का मंदिर, गणेश जी का मंदिर और हनुमान जी का मंदिर भी हैं। आश्रम का प्रवेश द्वार बहुत ही खूबसूरत है। आश्रम के प्रवेश द्वार में हनुमान जी और शंकर जी की प्रतिमा बनी है, जो बहुत ही खूबसूरत लगती है। इस आश्रम के अंदर बगीचा भी है। यहां पर बहुत सारे ब्राह्मण विद्यार्थी रहते हैं, जिन्हें यहां पर शिक्षा दीक्षा दी जाती है। महाराज जी ने उन्नीसवीं संवत के प्रथम चरण यानी 1842 में मैहर में अमरता प्राप्त की। उनकी समाधि मैहर में ही है । यहां राम जानकी मंदिर में आज भी इस पंथ की पुजा पद्वति प्रचलित है। 
              रामसखा बड़ा अखाड़ा मैहर के परमपूज्य श्री श्री 1008 श्री सीताबल्लभ शरणजू महराज जी राम सुखेंद्र जू महराज की तपोभूमि (अखाड़े का ही भाग) है। श्री 1008 सुखेन्द्र निध्याचार्य जी महाराज की तपोभूमि (देवी रोड) बहुत ही सिद्ध पीठ है।            श्री1008 श्री सीता शरण जी महाराज 
इस समय श्री श्री1008 श्री सीता शरण जी महाराज इस पीठ के स्वामी हैं।
राम नगरी अयोध्या में विशाल प्रयोग:-
राम नगरी अयोध्या में 11,000 से ज्यादा मंदिर हैं, पूरे विश्व में यह एक ऐसा स्थान है जहां इतनी बड़ी संख्या में मंदिर है. धर्म नगरी अयोध्या भगवान राम की जन्म स्थली के रूप में जानी जाती है. भगवान विष्णु के ही दूसरे अवतार कृष्ण का नाम पहले लिया जाता है। रासलीला, गोपलीला, राधा प्रेम जैसी कई कथाएं कृष्ण से सम्बन्धित हैं.     
सिर पर चुनरी डालकर उपासना :-
अयोध्या में जन्मभूमि मंदिर से कुछ दूर कनक भवन स्थित है . रसिक संप्रदाय के लोग यहां सिर पर चुनरी डालकर भगवान की आरती करते हैं और राम संकीर्तन में खो जाते हैं. वह खुद का संबंध सीता से जोड़ते हैं और श्रीराम को दूल्हा मानते हैं।
श्रीराम दूल्हे के रूप में पूज्य:-
मान्यता है कि जब मिथिला में श्रीराम-सीता का विवाह हुआ तब उसके बाद उनकी सखियों ने विवाह ही नहीं किया. उन्हें इस युगल को देखकर ही जीवन का सारा ज्ञान मिल गया. उन्होंने वरदान मांगा कि हमारा जब भी जन्म हो, राम-सीता की भक्ति में ही जीवन कटे और हम अधिक से अधिक उनके निकट रहें. बिहार में सीतामढ़ी, जनकपुरी, दरभंगा, मैथिल आदि इलाकों में आज भी श्रीराम और यहां तक कि अयोध्या के हर वासी को वे पाहुन (ससुराल से आया अतिथि) मानते हैं. वह उन्हें दूल्हा ही मानते हैं. 
त्रेतायुग से रामरसिकों की सानिध्यता:-
राम रसिकों की मौजूदगी त्रेतायुग से ही है. अहिल्या और शबरी श्रीराम की नवधा भक्ति में समर्पित महिलाएं थीं. 
 एक खास बात ये भी है कि राम रसिक होने के बाद स्त्री-पुरुष का भेद मिट जाता है, सिर्फ आत्मा रह जाती है, जो किसी देह से बंधी सी है.
खाकी बाबा प्रिया अली सहचरी भाव पाये :-
श्री रूपकला जी (अयोध्या के सिद्ध संत) के साथ खाकी बाबा की मित्रता थी । जब कभी अयोध्या आते तो उनसे मिलते और श्री रामकथा सुनकर उसका आनंद लेते । एक दिन रात्रि मे वही विश्राम किया । रात्रि मे श्री रूपकला जी को विरह हुआ तो उनके मुख से आर्त वाणी से निकलने लगा - हे प्रियतम ! हे प्राणनाथ ! हे किशोरी जू । इस तरह कहकर रोने लगे । 
        खाकी बाबा ने उनको डांटा और कहा कि यह क्या प्रियतम और प्यारे प्यारे कहकर रोते रहते हो ? रूपकला जी ने खाकी बाबा से कहा - खाकी बाबा ! श्री अवध आये हो तो आपको एक बार श्री श्री लक्ष्मण शरण जी का दर्शन करना चाहिए । श्री रूपकला जी के कहने पर खाकी बाबा उन रसिक संत श्री श्री लक्ष्मण शरण जी का दर्शन करने गए । जब खाकी बाबा दर्शन करने गए तब बाबा जी चारपाई पर लेटे थे । श्री लक्ष्मण शरण जी ने खाकी बाबा से कहा की थोड़ा समय रुके रहो । जब सब लोग चले गए तब खाकी बाबा को अपने पास बुलाया । खाकी बाबा ने जैसे ही पास जाकर अपने गुरु के चरणों का स्पर्श किया तो देखा की उनके शरीर का अंग प्रत्यंग बदल गया । उनका शरीर एक अतिसुंदर तरुणी के शरीर मे बदल गया । सामने जो रसिक संत लेटे है उनको भी एक सुंदर युवती के रूप मे देखा । कुछ क्षणों मे वह दृश्य चला गया । खाकी बाबा वहां से भागे ।रूपकला जी के पास आकर बोले -  उसके चरण छूते ही मै एक युवती बन गया और वह बाबा खुद भी एक युवती बन गया । 
       रूपकला जी ने कहा - आप पर श्री किशोरी जी की कृपा हो गयी । आपको संत ने श्री किशोरी जी की सहचरियों मे सम्मिलित कर लिया । आप अपने स्वरूप को पहचानो, आज से आप तो प्रिया अली हो गए।  गुरुदेव द्वारा प्रदत्त नाम सीताराम दास, दुनिया के लिए खाकी बाबा और अंतरंग उपासना मे प्रिया अली हो गया । उसके बाद धीरे धीरे रसिक संतो एक संग व सेवा करते करते उनको माधुर्य उपासना की प्राप्ति हुई । 
अयोध्या के लक्ष्मण किले में राम रसिकों की मौजूदगी:-
आचार्य पीठ लक्ष्मण किला रसिक उपासना का सबसे प्राचीन पीठ है. आचार्य जीवाराम के शिष्य स्वामी युगलानन्य शरण की तपोस्थली पर इस मंदिर को साल 1865 में रीवा स्टेट के दीवान दीनबंधु के विशेष आग्रह के बाद बनवाया गया था. यहां वह सिर्फ सीता के पति हैं, सखियों के जीजा हैं और जगत के स्वामी हैं. उनकी उपासना में श्रृंगार का भाव प्रमुख हैं. राम रसिक सिर्फ राम की भक्ति नहीं करते हैं, बल्कि राम से भक्ति में रचा-बसा प्रेम करते हैं. रसिक उपासना के संत यहां भगवान राम की उपासना दूल्हे के रूप करते हैं. मंदिर में विवाह के पदों का गायन होता है.
अयोध्या मां सीता की भी नगरी:-
रामनगरी वस्तुत: श्रीराम के साथ मां सीता की भी नगरी है. श्रीराम और मां सीता में अभिन्नता प्रतिपादित है. यह शास्त्रीय तथ्य रामनगरी में पूरी प्रामाणिकता और पूर्णता के साथ प्रवाहमान है. रामजन्मभूमि पर विराजे रामलला को छोड़कर बाकी के सभी मंदिरों में श्रीराम के साथ मां जानकी का भी विग्रह अनिवार्य रूप से स्थापित है. वैष्णव परंपरा की दो मुख्यधारा रामानुज एवं रामानंद संप्रदाय में सीता आद्या-परात्परा एवं अखिल ब्रह्मांड नायक सृष्टि नियंता श्रीराम की सहचरी के रूप में समान रूप से स्वीकृत-शिरोधार्य हैं.गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि सीता उत्पत्ति, पालन और संहार की अधिष्ठात्री शक्ति है. वैष्णव मतावलंबी संतों की यह आम धारणा है कि श्रीराम करुणा के साथ न्याय और कर्म के आधार पर फल देने वाले हैं, जबकि मां जानकी अतीव करुणामयी हैं और वे पीड़ित मानवता पर अहेतुक कृपा करती हैं. रामानंद संप्रदाय की उपधारा रसिक उपासना परंपरा में तो मां सीता श्रीराम की चिर सहचरी के साथ जीव मात्र की आदि गुरु और मार्गदर्शिका के रूप में प्रतिष्ठित हैं.मान्यता है कि भक्तों की पुकार वही श्री राम तक पहुंचाती हैं और श्रीराम की कृपा भी उनके ही माध्यम से भक्तों पर बरसती है.
अयोध्या का रंग महल में माता सीता की सखी भाव:-
अयोध्या के मंदिरों में से एक पवित्र मंदिर रंगमहल भी है। यह सैकड़ों वर्ष पुरानी मंदिर है जहां की उपासना बहुत ही महत्वपूर्ण है भगवान श्रीराम की जन्म स्थली से सटे रंगमहल की पौराणिकता अत्यंत अद्भुत है श्री राम जन्मभूमि में जहां श्री राम की उपासना होती है वही राम जन्मभूमि के बगल स्थित रंगमहल में माता सीता की उपासना होती है, इस मंदिर के संत अपने आपको सीता जी की सखी मानते हैं.
बड़ा स्थान जानकीघाट :- 
बड़ा स्थान जानकीघाट मन्दिर रसिक उपासना का केन्द्र
रसिक उपासना की मूलपीठ श्री स्वामी करुणा सिंधु मेमोरियल चैरिटेबल सेवा संस्थान द्वारा संचालित श्री जानकीघाट बड़ा स्थान है. परमार्थ सेवा की यह सिद्ध स्थली है. यह अयोध्या की अति प्राचीनतम मन्दिर है. जहा पर हर वर्ष विविध धार्मिक आयोजनों के साथ ही जन मानस व राम भक्तो की सेवा सतत चलती ही रहती है.
अष्ट रामसखा तथा अष्ट जानकी सखी: कनक भवन :-
कनक भवन के अष्ट सखी कुुन्ज में शय्या पर भगवान शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। श्री चारुशीला जी, श्री क्षेमा जी, श्री हेमा जी, श्री वरारोहा जी, श्री लक्ष्मणा जी, श्री सुलोचना जी, श्री पद्मगंधा जी, श्री सुभगा जी । इन आठ सखियों के प्राचीन चित्र बने हुए हैं। इनके अतिरिक्त सीताजी की आठ सखियाँ और हैं जो श्री सीताजी की अष्टसखी कही जाती हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी, श्री प्रसाद जी, श्री विमला जी, मदनकला जी, श्री विश्वमोहिनी, श्री उर्मिला जी , श्री चम्पाकला जी, श्री रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग कहा जाता है। ये श्री किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में लवलीन रहती हैं। 
रंगमहल अयोध्या ;-
अयोध्या के रामकोट मोहल्ले में राम जन्म भूमि के निकट भव्य रंग महल मन्दिर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि जब सीता माँ विवाहोपरांत अयोध्या की धरती पर आयीं. तब कौशल्या माँ को सीता माँ का स्वरुप इतना अच्छा लगा कि उन्होंने रंग महल सीता जी को मुँह दिखाई में दिया। विवाह के बाद भगवान श्री राम कुछ 4 महीने इसी स्थान पर रहे। और यहाँ सब लोगों ने मिलकर होली खेली थी। तभी से इस स्थान का नाम रंगमहल हुआ। सखी सम्प्रदाय का मंदिर होने से इस स्थान का महत्व अत्यंत वृहद और दर्शनीय हो जाता है । यहाँ नित्य भगवान राम को शयन करते समय पुजारी सखी का रूप धारण करती हैं, भगवान को सुलाने के लिए ये सखियाँ लोरी सुनाती हैं, और उनके साथ रास करती हैं।
हनुमत् निवास मंदिर:-
अयोध्या में रसिक उपासना परम्परा से जुड़े हनुमत् उपासना के प्रमुख केन्द्र हनुमत् निवास मंदिर है। सौ वर्षों से भी अधिक पुराने इस धर्म स्थान की हनुमत् उपासना के क्षेत्र में विशिष्ट परम्परा रही है। कहा जाता है की गोमती शरण जी महाराज को हनुमानजी का साक्षात्कार हुआ था। चित्रकूट में कठिन साधना के पश्चात ईश्वरीय प्रेरणा से रसिक परम्परा की केन्द्रीय पीठ लक्ष्मण किला के इस स्थान पर स्थित गौशाला को ही उन्होंने अपनी साधना स्थली बना लिया था। 
पृथक राम सखा सम्प्रदाय का उद्भव ;-
अयोध्या में श्रावण कुंज, नृत्य राघव कुंज , सियाराम केलि कुंज ,चार शिला कुंज , राम सखा जू महाराज और राम सखा बगिया आदि पाच प्रमुख मंदिर इस सम्प्रदाय के हैं।प्रतीत होता है कि अयोध्या मैहर चित्रकूट पुष्कर उडुपि तथा सतना आदि के सभी मंदिर एक ही परमेश्वर व नियंत्रण के अधीन दीर्घ समय तक रहे। बाद में सुविध तथा दुर्गमता के कारण सभी स्वतंत्र नियंत्रण मे चले गये।
नृत्य राघव कुंज :-
नृत्य राघव कुंज मणिराम छावनी के निकट बासुदेव घाट अयोध्या एक प्राचीन मंदिर है।राम सखा की दूसरी गद्दी बनी। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। यही प्रथम गुरु का प्रथम निवास था। इसका निर्माण मैहर के तत्कालीन राजा दुर्जन सिंह कछवाह ने करवाया था। आजादी के बाद तक वहां से मंदिर की व्यवस्था के लिए खर्चा आता था। अब पुराना मंदिर जीर्ण हो गया है और न मंदिर पुष्कर के महंत के अधीन चला गया है।
श्रावण कुंज अयोध्या :-
 श्रावण कुंज अयोध्या के नया घाट पर स्थित है। मान्यता के अनुसार गोस्वामी तुलसी दास जी ने यही रामचरित मानस के बालकंड की रचना की थी। यह प्रति महंत छवि किशोर शरण के संरक्षण में थी। इस पर 1661 वैशाख सुदी 6 बुधवार छपा है। तुलसीदास जी मानस के रचना अयोध्या में ही शुरू किए थे। वे बहुत दिनों तक अयोध्या में रहे। (हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास : डा.राम कुमार वर्मा पृ. 416)। वर्तमान में इस पीठ की देख रेख साध्वी राजेश्वरी देवी द्वारा हो रही है ।इसके अधीन एक मातृ आश्रम भी चल रहा है।
राम सखा बगिया :-
राम सखा बगिया रानी बाग में एक विस्तृत भूभाग में स्थित है। इसका निर्माण भी मैहर के तत्कालीन राजा दुर्जन सिंह कछवाह ने करवाया था। आजादी के बाद तक वहां से मंदिर की व्यवस्था के लिए खर्चा आता था।
 श्री अवध किशोर शरण मिश्र राम सखा बगिया अयोध्या 
राम सखा मंदिर रानी बाग अयोध्या के वर्तमान महन्थ श्री अवध किशोर मिश्र ने मंदिर की परम्परा के बारे में बताया कि अयोध्या के कुल पाच मंदिर एक ही महन्थ जी के संरक्षण में पूजा अर्चनाकरते आ रहें थे। प्रथम गुरु श्रीमद् राम सखेन्द्र जू महराज थे। द्वितीय का नाम सुशील निधि जी महराज रहे है। तृतीय महराज श्री शील निधि जू महराज थे। चतुर्थ श्री अवध शरण जू महराज तथा पंचम श्री रामभुवन शरण जू महराज रहे। षष्टम श्री कामता शरण जू महराज तथा सप्तम श्री रामेश्वर शरण जू महराज रहे।अष्टम महराज के रुप में वर्तमान महन्थ श्री अवध किशोर शरण जी है।इस परम्परा में मुस्लिम धर्म से सनातन धर्म में आये दो सन्तों ने कुछ समय तक इस परम्परा के प्रधान की भूमिका निभाई थी। इनके नाम श्री शीलनिधि महराज तथा श्री सुशील निधि महराज रहा। राम सखेन्दु जू महराज से लेकर कामता शरण महराज तक की परम्परा अखिल भारतीय स्तर पर प्रायः मिलती जुलती है । 
जानकी सखी मन्दिर:-
यह मंदिर पंजाबी आश्रम बक्सरिया टोला तुलसी नगर अयोध्या में मत गजेंद्र चौराहे से तुलसी बालिका विद्यालय होते हुए गोला घाट जाने वाले रोड पर स्थित है। तुलसी उद्यान से बगल के रास्ते से भी इस मंदिर में पहुंचा जा सकता है।
सियावर केलि कुंज :-
सियावर केलि कुंज नागेश्वरनाथ मंदिर के पीछे तथा अम्मा जी मंदिर के बगल तथा तुलसी बालिका इन्टर कालेज के पास स्थित है। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। 
राम सखी मंदिर :-
राम सखी मंदिर निकट लक्ष्मण किला चौराहा गोलाघाट 
राम सखी मंदिर गोला घाट महंथ सिया राम शरण जी हैं।
चारू शिला मंदिर,जानकीघाट :-
चार शिला कुंज जानकी घाट अयोध्या में स्थित है। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। चारूशिला मंदिर के जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी वल्लभाचार्य जी हैं। चारूशीला राम जी की सखी थी।
प्रथम चारुशीला सुभग, गान कला सुप्रबीन।
युगल केलि रचना रसिक, रास रहिस रस लीन।। 1।।
अर्थात-श्री चारुशीलजी, युगल सरकार की क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती हैं। आप गान-कला की आचार्य हैं। अखिल ब्रह्माण्ड के देवी-देवता, जो गानविद्या-प्रिय हैं, गन्धर्व आदि उन सबकी अधिष्ठात्री देवी आप हैं। सृष्टि के वाणी आदि कार्य सब आपके आधीन हैं। आप युगल सरकार के ‘
विधान-रचना’ विभाग की प्रधानमंत्री हैं।
नौ खण्डीय रामसखा आश्रम पुष्कर :-
राजस्थान के पुष्कर में राम सखा आश्रम में आज भी इस सम्प्रदाय के लोग पूजा आराधना करते है । पुष्करके प्राचीन रामसखा आश्रम एवं नवखंडी हनुमान मंदिर के महंत तथा पुष्कर षड़दर्शन साधू समाज के अध्यक्ष रामस्वरूप शरण महाराज ,महंत सियाशरण महराज, सचिदानंद महाराज,रामस्वरूप शरण महाराज आदि परम तत्व मे विलीन हो चुके हैं। वर्तमान महंत नंदराम शरण महाराज सत्ता सीन है। यह मंदिर क्षेत्र के आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नयन के लिए सक्रिय भूमिका निभाता चला आ रहा है।
पीताम्बर गाल किशनगढ़:-
यह धार्मिक स्थल भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस जगह का नाम एक पीताम्बर नामक सिद्ध तपस्वी के द्वारा यहां तप करने और उनकी तपोस्थली रही इस जगह का नाम उनके नाम पर ही पीताम्बर पड़ा। पिताम्बर गाल सिलोरा के संचालक श्री 108 रामस्वरूप शरण जी महाराज के कृपापात्र शिष्य नौ खण्डीय रामसखा आश्रम पुष्कर के महंथ श्री नंदकिशोर शरण जी महाराज है, 
चित्रकूट में रामसखा आश्रम :-
रामसखा आश्रम जानकी कुण्ड चित्रकूट के , महंत मतंग ऋषि। हैं।.(रामसखा जानकी मंदिर) चित्रकूट के महंथ सचिदानंद जी हैं। ये मंदिर क्षेत्र के आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नयन के लिए सक्रिय भूमिका निभाता चला आ रहा है।
शहडोल एम पी में रामसखा आश्रम:-
राम सखा आश्रम कल्याणपुर पाली शहडोल एम पी में है।
यह मंदिर क्षेत्र के आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नयन के लिए सक्रिय भूमिका निभाता चला आ रहा है।
 

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