Friday, July 22, 2022

द्रविड़ शैली का अयोध्या में एकमात्र मन्दिर राम लला सदन का जीर्णोद्धार डा. राधे श्याम द्विवेदी


शिल्पशास्त्र और मंदिर स्थापत्य में मन्दिर की तीन बड़ी शैलियाँ बताई गई हैं – नागर शैली, द्रविड़ शैली और वेसर ( मिश्रित) शैली. इनमे नागर उत्तर भारत में और द्रविड़ शैली दक्षिण भारत में मुख्य रूप से तथा तथा वेसर प्रायः हर जगह गौण रूप से दिखाई देता है.
नागर शैली: - नागर शैली का प्रचलन हिमालय और विन्ध्य पहाड़ों के बीच की मैदानों में पाया जाता है.इस शैली के सबसे पुराने उदाहरण गुप्तकालीन मंदिरों में, विशेषकर, देवगढ़ के दशावतार मंदिर और भितरगाँव के ईंट-निर्मित मंदिर में मिलते हैं.
गुजरात के सोमपुरा नागर शैली के विशेषज्ञ है.ये अयोध्या के राम जन्मभूमि मन्दिर के स्थापत्यकार है।सोमनाथ तथा बिड़ला मंदिर इन्हीं के पूर्वजों ने डिजाइन की है.
द्रविड़ शैली :- दक्षिण भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है.द्रविड़ शैली कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच की भूमि में अपनाई गई. तमिलनाडु व निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के होते हैं. इसका सम्बन्ध दक्षिण और दक्कन के मंदिरों से है. कुछ पुराने नमूने उत्तर भारत और मध्य भारत में भी पाए गए हैं, जैसे – लाड़खान का पार्वती मंदिर तथा ऐहोल के कौन्ठगुडि और मेगुती मंदिर आदि.
द्रविड़ शैली की स्थापत्य कला :-
इस शैली में मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के ऊपर का शिखर भाग प्रिज्मवत् या पिरामिडनुमा होता है, जिसमें क्षैतिज विभाजन लिए अनेक मंजिलें होती हैं. शिखर के शीर्ष भाग पर आमलक व कलश की जगह स्तूपिका होते हैं. इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये काफी ऊँचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं. प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं. परिसर में कल्याणी या पुष्करिणी के रूप में जलाशय होता है. प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार गोपुरम कहलाता है. प्रायः मंदिर प्रांगण में विशाल दीप स्तंभ व ध्वज स्तंभ का भी विधान होता है.
द्रविड़ शैली की प्रमुख विशेषतायें:-
द्रविड़ शैली की प्रमुख विशेषता इसका पिरामिडीय विमान है. इस विमान में मंजिल पर मंजिल होते हैं जो बड़े से ऊपर की ओर छोटे होते चले जाते हैं और अंत में गुम्बदाकार आकृति होती है जिसका तकनीकी नाम स्तूपी अथवा स्तूपिका होता है. समय के साथ द्रविड़ मंदिरों में विमानों के ऊपर मूर्तियों आदि की संख्या बढ़ती चली गयी. द्रविड़ मंदिर में एक आयताकार गर्भगृह होता है जिसके चारों ओर प्रदक्षिणा का मार्ग होता है. द्रविड़ मंदिरों में समय के साथ कई विशेषताएँ जुड़ती चली गईं, जैसे – स्तम्भ पर खड़े बड़े कक्ष एवं गलियारे तथा विशालकाय गोपुर (द्वार).
द्रविड़ शैली के दो सबसे प्रमुख लक्षण है :- i) इस शैली में मुख्य मंदिर के चार से अधिक पार्श्व होते हैं .
ii) मंदिर का शिखर और विमान पिरामिडीय आकृति के होते हैं.
iii)द्रविडीय स्थापत्य में स्तम्भ और प्लास्टर का प्रचुर प्रयोग होता है. यदि इस शैली में कोई शिव मंदिर है तो उसके लिए अलग से नंदी मंडप भी होता है. इसी प्रकार ऐसे विष्णु मंदिरों में एक गरुड़ मंडप भी होता है.
iv) उत्तर भारतीय मंदिरों के विपरीत दक्षिण भारतीय मंदिरों में चारदिवारी भी होती है. कांची में स्थित कैलाश नाथ मंदिर द्रविड़ स्थापत्य का एक प्रमुख उदाहरण है. यह मंदिर राजसिंह और उसके बेटे महेंद्र तृतीय द्वारा बनाया गया है.
श्री राघवाचार्यजी महाराज के नेतृत्व में रामलला सदन मंदिर अयोध्या का जीर्णोद्धार :-
अयोध्या स्थित अनेक मंदिर और मठ श्रीमद्जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री राघवाचार्यजी महाराज के नेतृत्व में कार्यरत है.श्री महाराजश्री वेदों के अभ्यासक एवं मीमांसा के पंडित है तथा स्वयं उच्च विद्या विभुषित है. स्वामीजी का प्रमुख उद्देश्य है की प्राचीन और सांस्कृतिक सनातन धर्म से समाज को परिचित करवाना है.अपना समाज वेदों के बताये हुए धर्म के मार्ग पर चले, जिस से उन्हें मिले हुवे मानव जन्म का सार्थक हो. बचपन से ही स्वामीजी को देववाणी संस्कृत भाषा और वेदशास्त्र से लगाव था. उनके नानाजी वै. देवी प्रसाद मिश्र उर्फ़ दामोदराचार्य इन से यह धरोहर प्राप्त हुयी है. स्वामीजी राघवाचार्यजी की विद्वत्ता एवं उनका वेदादि शास्त्रों, व्याकरण का विधिवत अभ्यास देखकर श्रीधाम मठ , रामवर्णाश्रम अयोध्या के सर्वराकार श्री जयरामजी महाराज ने 1999 में श्री स्वामीजी को श्रीधाममठ के सर्वराकार महंत पद पर प्रतिष्ठित किया है. इस मठ का पदभार लेने के बाद उनके व्दारा मठ का जीर्णोद्धार, वेदशाला, नंदिनी गोशाला, अन्नक्षत्र और पुरातन मंदिर का जीर्णोद्धार इत्यादि कार्य उनके निर्देशन में सुचारु रूप से कार्यरत है. संप्रति श्री स्वामीजी निम्न संस्थाओं के सर्वराकार महंत पद पर प्रतिष्ठित है.
१) श्रीधाम मठ रामवर्णाश्रम, रामकोट अयोध्या.
२) श्रीराम लला सदन मंदिर, अयोध्या.
३) श्रीहनुमान मंदिर, रामकोट अयोध्या.
४) श्रीराम-जानकी मंदिर, रामापुर घाट, कौड़िया बाजार, जिला : गोंडा (उ. प्र.)
रामलला सदन मंदिर अयोध्या के जीर्णोद्धार कार्य का योगी आदित्यनाथ द्वारा शिलान्यास:-
उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने 1 जून 2022 को अयोध्‍या में रामलला सदन राममंदिर के गर्भगृह का शिलान्‍यास किया था. इसके बाद वे रामलला सदन मंदिर के कार्यक्रम में शामिल हुए. यह अयोध्‍या में द्रविड़ शैली बना पहला मंदिर है. मंदिर को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कि हम दक्षिण भारत के किसी मंदिर में आ गए हों. यह काफी प्राचीन स्‍थान है.यह मंदिर, श्रीरामजन्‍म भूमि से कुछ ही कदमों की दूरी पर स्थित है. 
 यह अयोध्‍या का पहला मंदिर है जहां भगवान श्रीराम के कुल देवता भगवान श्री विष्‍णु के स्‍वरूप भगवान रंगनाथन प्रतिष्‍ठ‍ित हैं. यहां भगवान राम, लक्ष्‍मण और मां सीता की प्राण प्रतिष्‍ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ है. दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर अत्‍यंत आकर्षक है और देखने वालों को दक्षिण भारत में होने का एहसास करा रहा है.
मन्दिर की प्रतिष्ठा से संबंधित मान्‍यता:-
रामलला सदन मंदिर का डिजाइन चेन्‍नई के मशहूर आर्किटेक्‍ट स्‍वामीनाथन ने तैयार किया है. मान्‍यता है कि यहां भगवान श्रीराम समेत चारों भाइयों का नामकरण संस्‍कार हुआ था. इसी वजह से इस मंदिर को राम लला सदन का नाम दिया गया है. मंदिर में श्री रामलला, माता जानकी और लक्ष्‍मण की मूर्तियां दक्षिण भारत से अयोध्‍या लाई गई हैं.

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