विवस्वान के पुत्र थे वैवस्वत हुए थे। राजा सूर्य स्वयंभू मनु से अत्यधिक प्रभावित थे! इसलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम वैवस्वत मनु रखा, राजा सूर्य और राजा वैवस्वत मनु दोनों को ही भगवान नारायण के महान भक्तो में गिना जाता है! जिनको नारायण के साक्षात दर्शन हुए थे।पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार भारत का पहला आर्य राजा मनु था। मनु को मानववंश का प्रथम पुरुष भी कहा जाता है। मनु का पूरा नाम वैवस्वत मनु के रूप में सामने आता है। अनुश्रुति के अनुसार मनु से पूर्व इस देश की अराजक दशा थी। अराजक दशा से परेशान होकर लोगों ने मनु को अपना राजा चुना और उसके आदेशों का पालन स्वीकार किया। मनु हर ओर से निश्चित होकर राज्य व्यवस्था में अपना सारा समय लगाने लगे। प्रजा ने पैदावार का छठा हिस्सा स्वेच्छा से राजा को देना स्वीकार किया। मनु के प्रथम राजा बनने के बाद उसकी संतानों के राज्य को मानववंश का राज्य कहा गया। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम (नाभाग), अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पैदा हुए. हिन्दू धर्म के अनुसार मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। उनके साथ प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये पृथ्वी के उत्पन्न होने के बाद प्रथम पुरुष के रूप में सामने आने पर स्वयं-भू कहलाए।
हिन्दू धर्म में स्वयंभू मनु के कुल में आगे चलकर स्वयंभू मनु सहित क्रमशः 14 मनु हुए। महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख मिलता है। श्वेतवराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। इन चौदह मनुओं को जैन धर्म में कुलकर कहा गया है। चौदह मनुओं के नाम इस प्रकार हैं-
1.स्वयंभू मनु, 2. स्रोचिष मनु, 3. यौत्तमी मनु, 4. तामस मनु, 5. रैवत मनु, 6. चाक्षुष मनु, 7. श्राद्धदेव मनु, 8. सावर्णि मनु, 9. दक्ष सावर्णि मनु, 10. ब्रह्म सावर्णि मनु, 11. धर्म सावर्णि मनु, 12. रुद्र सावर्णि मनु, 13. देव सावर्णि मनु, 14. इंद्र सावर्णि मनु।
सावर्णि मनु के बारे में वर्णन मिलता है कि इनका आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारम्भ होने से 5680 वर्ष पूर्व हुआ था। कामायनी में मनु-जयशंकर प्रसाद’ का महाकाव्य कामायनी है। कामायनी के मनु के सम्बन्ध में कहा जाता है कि प्रलय आने से पृथ्वी बाढ़ग्रस्त हो गयी थी। कामायनी की शुरूआत इन पंक्तियों से होती है-
हिमगिरी के उतुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छांव।
एक पुरुष देख रहा था, भीगे नयनों से प्रलय प्रवाह ॥
शतपथ ब्राह्मण में मनु को श्रद्धादेव कहकर सम्बोधित किया गया है। श्रीमद् भागवत में उन्हें वैवस्व मनु और श्रद्धा (स्त्री पत्नी) से सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है। उन्हीं मनु ने मनुस्मृति नामक ग्रंथ की रचना की, जो मूलरूप से उपलब्ध नहीं है।
मानव वंश का विस्तार
मनु, आर्यों के पहला राजा बने। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार मनु की संतानों में सबसे बड़ी सन्तान आगे चलकर इक्ष्वाकु कहलायी। इक्ष्वाकु मध्य देश के राजा बने। उनकी राजधानी अयोध्या थी। इक्ष्वाकु द्वारा जो राजवंश चला, उसे भारतीय इतिहास में सूर्यवंश नाम से जाना गया।
मनु के एक अन्य पुत्र को नेदिष्ट के नाम से जाना गया। उसे पूर्व की ओर तिरहुत का राज्य मिला। इस वंश में आगे चलकर राजा विशाल हुआ। इसने वैशाली नाम की नगरी बसाई। बौद्ध-युग में इस नगरी को बहुत प्रसिद्धि मिली। यह लिच्छवि नाम के प्रसिद्ध क्षत्रियों की राजधानी बनी। इस नगरी के अवशेष उत्तरी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ नामक ग्राम में पाए गए हैं।
मनु के एक अन्य पुत्र कारुष ने कारुष राज्य की स्थापना की, जो उस समय के बघेल खण्ड क्षेत्र में विद्यमान था। मनु पुत्र शांति ने दक्षिण में आधुनिक गुजरात की ओर अपने राज्य की स्थापना की। शर्याति के एक पुत्र का नाम आनर्त था। वह प्रतापी राजा हुआ। इसी के नाम पर आनर्त देश का नाम पड़ा। आनर्त देश की राजधानी कुश स्थली या द्वारिका थी। इस तरह मनु के चारों पुत्र-इक्ष्वाकु, नेदिष्ट, शर्याति और कारुष चार बड़े और शक्तिशाली राज्यों के संस्थापक हुए। मनु के अन्य चार पुत्रों ने भी राज्य स्थापित किए, मगर वे अधिक प्रसिद्ध नहीं हुए।
इक्ष्वाकु वंश की शुरुवात
पौराणिक परंपरा के अनुसार इक्ष्वाकु, विवस्वान् (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु के पुत्र थे। पौराणिक कथा इक्ष्वाकु को अमैथुनी सृष्टि द्वारा मनु की छींक से उत्पन्न बताती है। वे सूर्यवंशी राजाओं में पहले माने जाते हैं। वैवस्वत मनु के दस पुत्र में से एक प्रमुख का नाम था इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। ये महान प्रतापी राजा हुए,जिनका गुणगान देवता तक करते है इसीलिए सूर्य वंश के साथ इस वंश को इक्कश्वाकु वंश भी कहा जाता है।सूर्यवंश के संस्थापक इक्ष्वाकु के भी अनेक पुत्र थे। उन्होंने अपने पृथक राज्य स्थापित किए। उसका बड़ा बेटा विपक्षि अयोध्या की राजगद्दी पर बैठा।
इक्ष्वाकु की पत्नी का नाम अलंबुषा था और वह हिरणाकश्यप की बहन होलिका और मदुरा के राजा अल्मबुष की पुत्री थी, देवासुर संग्राम में जब असुरों ने देवताओं की पुत्री से हिरणाकश्यप का विवाह कर दिया वह युद्ध महराज सूर्य की सहायता के बावजूद देवता हार गए थे, जब देवताओं की तपस्या से और हिर्णनक्ष्य द्वारा सूर्य देव को नीचा दिखाने के लिए प्रथ्वी की धुरी पकड़ ली गई! जिससे दिन रात होने बंद हो गए धरती पर त्राहि त्राहि हुई तब नारायण ने वाराह रूप में उसका वध किया, उसी समय हिरणाकश्यप की सेना का युद्ध इक्ष्वाकु से हुआ और दैत्य युद्ध हार गए और संधि में अल्मबुषा का विवाह इक्ष्वाकु से हुआ था। उनके १०० पुत्र बताए जाते हैं । इनमें से पचास ने उत्तरापथ में और पचास ने दक्षिणापथ में राज्य किया। इक्ष्वाकु के एक पुत्र कुक्षि हुए फिर कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि की एक अलग पारिवारिक श्रृंखला और पूरी वंशावली मिलती है।
ककुत्स्थ, विकुक्षि के पुत्र जो इक्ष्वाकु के पौत्र और वैवस्वत मनु के प्रपौत्र थे। देवासुर संग्राम में इन्होंने वृषरूपधारी इंद्र के कुकुद् अर्थात् डील (कूबड़) पर सवार होकर राक्षसों को पराजित किया था। इसी कारण वे 'ककुत्स्थ' कहलाए। इनके पुत्र अनेना और पौत्र पृथु हुए। कूर्म तथा मत्स्य पुराणों में इनके एक पुत्र का नाम सुयोधन भी दिया है।
साधारणत: बहुवचनांतक इक्ष्वाकुओं का तात्पर्य इक्ष्वाकु से उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं से होता है, परंतु प्राचीन साहित्य में उससे एक इक्ष्वाकु जाति का भी बोध होता है। इक्ष्वाकु का नाम, केवल एक बार, ऋग्वेद में भी प्रयुक्त हुआ है जिसे मैक्समूलर ने राजा की नहीं, बल्कि जातिवाचक संज्ञा माना है। इक्ष्वाकुओं की जाति जनपद में उत्तरी भागीरथी की घाटी में संभवत: कभी बसी थी। कुछ विद्वानों के मत से उत्तर पश्चिम के जनपदों में भी उनका संबंध था। सूर्यवंश की शुद्ध अशुद्ध सभी प्रकार की वंशावलियाँ देश के अनेक राजकुलों में प्रचलित हैं। उनमें वैयक्तिक राजाओं के नाम अथवा स्थान में चाहे जितने भेद हों, उनका आदि राजा इक्ष्वाकु ही है। इससे कुछ अजब नहीं, जो वह सुदूर पूर्वकाल में कोई ऐतिहासिक व्यक्ति रहे हों। इक्ष्वाकु वंश की परंपरा धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई, जिसमें हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर पैदा हुए.।
चंद्रवंशी क्षत्रिय
चंद्रदेव का चन्द्र वंश भी सूर्य वंश में से ही निकला।इक्ष्वाकु के पुत्रो में दो पुत्र प्रतापी हुए जिनमें से बड़ा पुत्र विशाल और छोटा पुत्र आर्द या चन्द्र हुआ इनका नाम चंद्रदेव के नाम पर रखा गया था। इनके वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे गए है अर्थात चन्द्र वंश भी सूर्य वंश में से ही निकला है।
निमि की मिथिला
इक्ष्वाकु के छोटे पुत्र निमि ने अयोध्या और वैशाली के बीच एक अन्य राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला थी। आगे चलकर इसी वंश के राजा जनक हुए। जिनकी पुत्री सीता थी। राजा जनक और सीता जी इसी कुल की शोभा बढ़ाई थी।
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