इक्ष्वाकु के पुत्रो में बड़ा पुत्र विशाल था जो अयोध्या का राजा बना। जिसके नाम से वैशाली ग्राम बसा था। प्रतीत होता है कि अयोध्या से पूरब यह क्षेत्र अवध का ही भाग था जो बाद में प्रथम गणराज्य का गौरव पाया । वैशाली का नामाकरण महाभारत काल एक राजा ईक्ष्वाकु वंशीय राजा विशाल के नाम पर हुआ है। विष्णु पुराण में इस क्षेत्र पर राज करने वाले 34 राजाओं का उल्लेख है, जिसमें प्रथम नमनदेष्टि तथा अंतिम सुमति या प्रमाति थे। इस राजवंश में 24 राजा हुए।(वैशाली के लिच्छवी गणराज्य) राजा सुमति अयोध्या नरेश भगवान राम के पिता राजा दशरथ के समकालीन थे। ईसा पूर्व सातवीं सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्त्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से लेकर गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जियों तथा लिच्छवियों के संघ (अष्टकुल) द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरुआत की गयी थी। लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। विश्व को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान करानेवाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकशाही को अपनाया जा रहा है, वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। प्राचीन वैशाली नगर अति समृद्ध एवं सुरक्षित नगर था जो एक-दूसरे से कुछ अन्तर पर बनी हुई तीन दीवारों से घिरा था। प्राचीन ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि नगर की किलेबन्दी यथासम्भव इन तीनों कोटि की दीवारों से की जाए ताकि शत्रु के लिए नगर के भीतर पहुँचना असम्भव हो सके। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार पूरे नगर का घेरा 14 मील के लगभग था।
(आगे के दर्जनों राजाओं के केवल नामोल्लेख मिलते हैं। विस्तृत विवरण नहीं मिलते। )
इस भाग पर शोध की महती आवश्कता है।
विशाल के पुत्र का नाम हेमचंद्र हुआ!
हेमचंद्र के पुत्र सुचंद्र हुए!
सूचंद्र के पुत्र ध्रूमाश्व हुए!
सरजन्य या सरनजय
ध्रूमाष्व के पुत्र महान राजा सरजन्य हुए!
सरनजय भी इन्हीं का नाम था! क्योंकि इन्होंने देवासुर संग्राम में अपने बाणों से असुरों की पूरी सेना को ढक दिया था जिसमें तिल के बराबर भी प्रकाश जाने की जगह नहीं बची थी और असुर युद्ध में पराजित हो गए थे इसीलिए ब्रह्माजी ने इनका नाम स्रनजय नाम दिया था।
सरजन्य के पुत्र सहदेव हुए। यह सदाचारी और दानवीर होने के साथ बड़े सहनशील और महान पराक्रमी थे।
सहदेव के पुत्र कुशाश्व था
कुशाश्व के पुत्र का नाम सोमदत्त हुआ
सोमदत्त के पुत्र काकुतस्य था!
बाल्मीकि रामायण के सप्तचत्वारिंशः सर्गः में इस प्रकार वर्णन मिलता है।
पूर्वकाल में इक्ष्वाकु के, पुत्र विशाल नामके थे।
अम्बुलषा के गर्भ से जन्मे, विशाला पुरी बसायी जिसने।।
हेमचन्द्र थे उनके पुत्र, प्रपौत्र थे वीर सुचन्द्र।
सुचन्द्र के पुत्र धूमाश्व, धूमाश्व के थे सृंजय।।
सहदेव सृंजय के बेटे, कुशाश्व थे सहदेव के।
सोमदत्त कुशाश्व के पुत्र, काकुत्स्थ थे सोमदत्त के।।
काकुत्स्थ के महातेजस्वी, सुमति नाम के पुत्र हुए हैं।
परम कांतिवान वीर वे, इस समय यहाँ बसते हैं।।
सभी नरेश हुए धार्मिक, महा प्रसाद से इक्ष्वाकु के।
आज रात हम यहीं रुकेंगे, कल चलकर मिथिला पहुंचेंगे।।
विश्वामित्र को आया जान, आये वहाँ पर सुमति राजा।
बन्धु बांधवों, संग पुरोहित, हाथ जोड़कर की थी पूजा।।
धन्य हुआ मैं, आये आप, बड़ा आपका अनुग्रह मुझपर।
दर्शन दिए आपने हमको, मुझसे नहीं है कोई बढ़कर।।
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