1.सातवाहन राजवंश (60 ई.पू. से 240 ई.) भारत का प्राचीन ब्राम्हण राजवंश
था। इसने केन्द्रीय दक्षिण भारत पर शासन किया था। भारतीय इतिहास में यह राजवंश ‘आन्ध्र वंश’ के नाम से भी विख्यात है। इस वंश में 22 शासकों ने लगभग 300 साल शासन किया था।
2. कण्व राजवंश या ‘काण्व वंश’ या‘काण्वायन वंश’-
ईस्वी पूर्व 26 से 72
वर्ष के बीच वासुदेव भूमिमित्र नारायण तथा सुदर्शन नामक ब्राह्मण राजाओं ने राज
किया। ईसा से 27 वर्ष पहले मेघस्वाती नामक राजा ने कणवायन
ब्राह्मणों से ही मगध का राज लिया था।
3. शुंग राजवंश प्राचीन
भारत का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद शासन किया। इसका शासन उत्तर
भारत में 187 ईसा पूर्व से 75 ईसा
पूर्व तक कुल 10 राजाओं ने 112 वर्षों
तक शासन किया था। पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश का प्रथम शासक था। शुंग राजवंश उत्तर
भारत का मगध आधार लेकर यह एक शक्तिशाली राज वंश था।
4. वाकाटक राजवंश (300 से 500 ईसवी लगभग) वाकाटक भारतीय उपमहाद्वीप है
इसके दक्षिणी किनारों से विस्तार किया है माना जाता है से एक राजवंश था मालवा और
गुजरात के उत्तर में तुंगभद्रा नदी दक्षिण मेंऔर साथ हीसे अरबसमुद्र की के किनारों
में पश्चिम में छत्तीसगढ़ के पूर्वमें था। सातवाहनों के उपरान्त दक्षिण की
महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा। 250 ई. पूर्व बाकाटक
नाम के एक ब्राह्मण का राज्य था। तीसरी शताब्दी ई. से छठी शताब्दी ई. तक दक्षिणापथ
में शासन करने वाले समस्त राजवंशों में वाकाटक वंश सर्वाधिक सम्मानित एवं
सुसंस्कृत था।
5. परिब्रजक राजवंश- 5 वीं और 6 वीं शताब्दी में मध्य भारत के शासन भाग
में यह शासन किया था इस राजवंश के राजाओं ने महाराजा की उपाधि धारण की थी। शायद इन
लोगो ने गुप्त साम्राज्य के सामंतों के रूप में शासन किया था। इस शाही परिवार के
ब्राह्मणों के वंश से भारद्वाज गोत्र प्रकाश में आया था ।
6. चुटु राजवंश - चुटु राजवंश के शासकों ने दक्षिण भारत के कुछ भागों पर ईसा पूर्व पहली
शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी (ईसा पश्चात) तक शासन किया। उनकी राजधानी वर्तमान
कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले के बनवासी में थी। अशोक के शिलालेखों को छोड़ दें तो
चुटु शासकों के शिलालेख ही कर्नाटक से प्राप्त सबसे प्राचीन शिलालेख हैं। यह
राजवंश दक्षिण भारत पहली शताब्दी ई. पु. से तृतीय शताब्दी ई. तक राज किया है।
कर्नाटक के उत्तरी कन्नण में बनबासी इनका
राजधानी था।
7. कदंब राजवंश- कदंब वंश (345
- 525 सी ई.) एक राजवंश था जिसने वर्तमानमें उत्तर कन्नड़ जिले के
उत्तरी कर्नाटक पर और कोंकण के बनवासी क्षेत्रों पर शासन किया था। यह दक्षिण भारत
का एक ब्राह्मण राजवंश है। कदंब कुल का गोत्र मानव्य था जो अपनी उत्पत्ति हारीति
से मानते थे। ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार कदंब राज्य का संस्थापक मयूर शर्मन् नाम
का एक ब्राह्मण था जो विद्याध्ययन के लिए कांची में रहता था और किसी पल्लव
राज्यधिकारी द्वारा अपमानित होकर चैथी शती
ईसवी के मध्य (लगभग 345 ई.) प्रतिशोधस्वरूप कर्नाटक में एक
छोटा सा राज्य स्थापित किया था। इस राज्य की राजधानी वैजयंती थी।
8. गंग राजवंश (पश्चिमी)- दक्षिण भारत (वर्तमान कर्नाटक) का एक विख्यात राजवंश था। इसका राज्य 250 ई से 1000 ई तक अस्तित्व में था। ये लोग काण्वायन गोत्र
के थे और इनकी भूमि गंगवाडी कही गई है। इस वंश का संस्थापक कोंगुनिवर्मन अथवा माधव
प्रथम था। उसका शासन 250 और 400 ई. के
बीच रहा। उसकी राजधानी कोलार थी।
9. वर्मन राजवंश- धर्म
महाराज श्री भद्रवर्मन् जिसका नाम चीनी इतिहास में फनहुता (380-413 ई.) मिलता है। इसने वर्मन राजवंश की स्थापना की। ये एक ऐसा एकमात्र
राजवंश है इतिहास में जिसने चीन पर भी शासन किया है। इस प्रकार वर्मन भारत से चीन
तक इसका विस्तार सीमा क्षेत्र पर रहा।
10.पल्लव राजवंश - इसका समय
सी.285 -905 सीई.) था। तमिल जैन (तमिल सामर राजवंश), पल्लव शासित आंध्र (कृष्ण-गुंटूर) और उत्तर और मध्य तमिलनाडु पर इनका शासन
था। इस पल्लव राजा, महेन्द्रवर्मन शैव को इस वंश के पारंपरिक
रूप से परिवर्तित करने का श्रेय जाता है।
11.संगम राजवंश- विजयनगर
साम्राज्य के हरिहर और बुक्की ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी। विजयनगर साम्राज्य पर राज करने वाला प्रथम
ब्राम्हण शासक संगम विजय नगर 1336 1485 तक शासन किया था।
12. सालुव राजवंश- इसका संस्थापक सालुव नरसिंह था। 1485 ई. में संगम वंश के विरुपाक्ष द्वितीय की हत्या उसी के पुत्र ने कर दी थी,
और इस समय विजयनगर साम्राज्य में चारों ओर अशांति व अराजकता का
वातावरण था। इन्हीं सब परिस्थितियों का फायदा नरसिंह के सेनापति नरसा नायक ने
उठाया। उसने विजयनगर साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और सालुव नरसिंह को राजगद्दी पर
बैठा दिया । विजय नगर में 1485 से संगम को समाप्त करके यह
वंश सत्तासीन हुआ था।
13. मोहिवाल राजवंश - (580 से 700 ईसवी) के मध्य रहा। मोहियाल दो शब्दों मोहि
और आल से बनकर मिला है। मोहि यानि जमीन और आल यानि मालिक अर्थात भूमि का मालिक। इस
अश्वत्थामा वंश के दत्त ब्राह्मणों को हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है ।
14. चच राजवंश -ईस्वी सन् 769 के असापास चच और चन्द्र ये दोनों ही राजा ब्राह्मण थे जिन्हें अरब विजेता
मुहम्मद इब्न कासिम ने पराजित किया था। ईस्वी् सन् 769 के
असापास रहा। चच पुत्र दाहिर को अरब विजेता मुहम्मचद इब्न कासिम ने पराजित किया था।
15. भटिण्डा राजवंश- ईस्वी
सन् 977 के पहले जयपाल का राज्य था जो ब्राह्मण था।जिसे
सुबुक्तऋगीन ने हराकर भटिंडा को राजधानी बनाया था। यह जयपाल का राज्य 977 ई. के पहले था जो
ब्राहमण था। जिसे सुबुक्तगीन ने हराकर भटिण्डा को राजधानी बनाया था।
16. पेशवाई राजवंश (1714
- 1818 ईसवी)- मराठा साम्राज्य के
प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद
अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी
के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। पेशवा
फारसी शब्द है जिसका अर्थ अग्रणी है।
17. खण्डवाल दरभंगा राजवंश-
इस राजवंश की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी
की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश राज के दौरान तत्कालीन बंगाल के 18 सर्किल के 4,495 गांव दरभंगा नरेश के शासन में थे।
प्रशासन देखने के लिए लगभग 7,500 अधिकारी बहाल किये गये थे।
भारत के रजवाड़ों में दरभंगा राज का अपना खास ही स्थान रहा है।
18.सिंध ब्राह्मण राजवंश-
इस वंश की स्थापना चकोर ऑफ अलोर, बाद में सिंध के चंदर और
द्वारा शासित राजा दाहिर द्वारा की गई थीद्वारा की गई थी
19.भृष्ट राजवंश-यह एक मध्यकालीन
हिंदू राजवंश था जो अब हावड़ा और हुगली जिले में है। यह पश्चिम बंगाल के भारतीय
राज्य था जो एक रॉयल ब्राह्मण परिवार के शासन के अधीन था।
20 बागोचिया राजवंश -यह
राजा बीरसेन द्वारा की स्थापना की गई भूमिहार वंश और भ्ंाूजीं राज के शासक वंश के
थे जिसने गांवराज्य पर रोक लगाई थी।इस वंश की कैडेट शाखा परिवार ने तमकुही राज,
सलेमगढ़ एस्टेट , लेडोगैडी, किजोरी एस्टेट और खन्ना घाटवाली पर भी शासन किया पर भी शासन किया ।
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