Thursday, May 30, 2019

महत्वाकांक्षायें संतुलित हों - डा. राधेश्याम द्विवेदी


मानव के मन में ना जाने कितनी तरह की इच्छाएं जन्म लेती रहती हैं और हर व्यक्ति इसे पूर्ण करने के प्रयास में जुटा रहता है। जिन इच्छाओं में अपना महत्व या रुतबा दिखाने-बढ़ाने की चाह हो, वह महत्वाकांक्षा है। अध्यात्म महत्वाकांक्षा को अच्छा नहीं मानता। आकांक्षा स्थैतिक ऊर्जा के समान है, जिसमें व्यक्ति अपनी सामान्य-सी इच्छा को पूर्ण करना चाहता है। वहीं महत्वाकांक्षा गतिज ऊर्जा के समान है, जो गतिमान होती है। व्यक्ति इसे पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है। उसे सकारात्मकता या नकारात्मकता की परवाह नहीं होती है। ज्ञान के साथ ही अज्ञान का अस्तित्व है। जहां प्रेम है, वहीं घृणा भी होगी। इसी प्रकार आकांक्षा और महत्वाकांक्षा की विरोधाभासी स्थितियां भी अस्तित्व में रहेंगी। वेदों के काल में आकांक्षा का प्रभाव अधिक था, लेकिन समय के साथ आकांक्षा का अस्तित्व घटता गया और महत्वाकांक्षा प्रबल होती गई।
शाव्दिक रुप में महत्व दिखाने की महत्वाकांक्षा कहते हैं। महत्वाकांक्षा का उदय मन में होता है, तो आकांक्षा का उद्गम स्थल आत्मा है। यही वजह है कि महत्वाकांक्षा में स्वहित प्रधान होता है, तो आकांक्षा में परहित मुख्य होता है। आचार्य विनोबा भावे एक बार जब आंध्र प्रदेश के गांवों में भ्रमण कर रहे थे, तो उन्होंने भूमिहीन लोगों के एक समूह के लिए जमीन मुहैया कराने की अपील की। इसके जवाब में एक जमींदार ने उन्हें एक एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव दिया। इससे प्रभावित होकर वह गांव-गांव घूमकर भूमिहीनों के लिए भूमि का दान करने की अपील करने लगे और भूदान आंदोलन की नींव रखी। उन्होंने अपने इस कार्य को आकांक्षा की संज्ञा दी। वे महत्वाकांक्षा और आकांक्षा के बीच स्पष्ट लकीर खींचते हुए कहते हैं कि आकांक्षा का उद्गम स्थल आत्मा है। आत्मा कभी भी बुरे विचार का साथ नहीं देती है, इसलिए परोपकार का भाव प्रभावी होता है। वहीं महत्वाकांक्षा का उदय मन में होता है। मन में सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक विचार भी प्रतिपल जन्म लेते रहते हैं, इसलिए इसमें स्वहित प्रधान होता है। आकांक्षा और महत्वाकांक्षा दोनों ही शब्द समान अर्थ का आभास देते हैं, पर हैं वे एक दूसरे के विरोधाभासी।
चंद्रगुप्त के गुरु और महामंत्री चाणक्य भारत को एक सूत्र में पिरोने के पुरोधा थे, उन्होंने स्वयं इसे महत्वाकांक्षा की श्रेणी में रखा। एक ऐसी महत्वाकांक्षा, जिसमें व्यक्ति स्वयं के कल्याण के साथ-साथ दूसरों का कल्याण करता हुआ प्रतीत होता हो। यह सकारात्मक महत्वाकांक्षा जरूर है, लेकिन इसे पूरा करने में दूसरों के विचारों का या दूसरों का भी दमन हुआ होगा, जो नकारात्मक महत्वाकांक्षा है। दोनों ही प्रकार की महत्वाकांक्षा में स्वयं की इच्छापूर्ति की भावना प्राथमिक होती है। कभी-कभार महत्वाकांक्षा भी आकांक्षा में परिवर्तित हो जाती है। यदि हम इतिहास पर नजर डालें, तो कलिंग युद्ध के दौरान व्यापक नरसंहार हुआ था, जिसे देखकर सम्राट अशोक का हृदय द्रवित हो गया था। उन्होंने तत्काल युद्ध विराम की घोषणा कर दी और अहिंसा का मार्ग अपना लिया। अहिंसा को प्रचारित करने के लिए उन्होंने कई सफल प्रयास किए, जो जन समुदाय के हित में थे।
आकांक्षा से आत्मविश्वास पनपता है। पुष्प की अभिलाषा कविता के जरिये कवि माखनलाल चतुर्वेदी सिर्फ लोगों में देशभक्ति का भाव जगाते हैं, बल्कि आम लोगों को भी प्रेरित करते हुए कहते हैं-
चाह नहीं है सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं।
चाह नहीं प्रेमी माला बिंध मैं प्यारी को ललचाऊं।
चाह नहीं मैं देवों के सिर चढ़ भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जायें वीर अनेक।।.
यदि आप अपने कर्तव्यों का निर्वहन निस्वार्थ भाव से करते हैं या आपके कार्य में परोपकार का भाव छिपा है, तो यह शुद्ध आकांक्षा है। एक समय ऐसा आता है, जब आपकी आकांक्षा के सामने दूसरों की महत्वाकांक्षा गौण हो जाती है, क्योंकि इसमें दूसरों की संप्रभुता के हनन की कोशिश नहीं होती है। उनकी निजता का सम्मान किया जाता है। आकांक्षा में अहंकार की प्रवृत्ति नहीं देखी जाती है। अहंकार का अभाव होने से व्यक्तित्व में श्रेष्ठता का विकास होता है।आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्ति सफलता के पथ पर चल पड़ता है।
अधिक जिम्मेदारी का बोझ, कम समय में ज्यादा पाने की इच्छा, समाज में उपेक्षा, बच्चों को पढ़ाई का टेंशन, फेल हो जाने या कम नंबर पाने का डर। ऐसे कई कारण हैं, जिसके कारण लोग अपनी़ जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर चिड़चिड़ा और गुस्सेल हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल बुजुर्गो का भी है। अकेलेपन का एहसास इस कदर महसूस होता है कि वह अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। महत्वाकांक्षा की चाह में युवा पीढी अपने बुजुर्गों से दूर होती जाती है। बुजुर्ग अपनो के लिए तरस तक जाते हैं वैसे तो वसुदेव कुटुम्बकम कहा जाता है पर अपने के लिए मन में आखिरी वक्त तक इच्छा देखी जाती है।
कुछ लोग अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। आने वाले मरीजों में से ऐसे रोगियों की संख्या बीस फीसदी होती है। अवसाद कई गंभीर बीमारियों को भी जन्म देता है। इसकी वजह से रोगी मधुमेह, ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग का शिकार हो जाता है। पारिवारिक टेंशन और रोजगार की चिंता भी इसकी प्रमुख वजह है। मरीज को अच्छा वातावरण दिया जाना चाहिए। उनके सामने तनाव की बात नहीं करना चाहिए। प्रयास यह होना चाहिए कि हर व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा खुश रहें।


Wednesday, May 29, 2019

कैलाश मानसरोवर विश्व धरोहर घोषित -- डा. राधेश्याम द्विवेदी



कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रृंखला है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील स्थित हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि निकलतीं हैं । हिन्दू सनातन धर्म में इसे अत्यन्त पवित्र माना गया है। इस तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। बर्फ से आच्छादित कैलाश 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का एक पवित्र तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड भी कहा जाता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसपर विजय प्राप्त की थी। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इसके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे।
कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व बताया गया है। तिब्बती (लामा) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं। कहा जाता है कि यहां दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।
कैलाश-मानसरोवर जाने के भारत से अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। यह भाग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है। कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई पर है। इसके मध्य में पहले र्बाइं ओर मानसरोवर और र्दाइं ओर राक्षस ताल है। उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचा स्थान है, जिनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट) है। इसके निकट ही गौरीकुंड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के अनेक मठ बने हुए हैं।यात्रा में सामान्य रूपसे दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं।
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा गया है। वहॉ बर्फ ही बर्फ में भोले नाथ शंभू अंजान (ब्रह्म) तप में लीन शालीनता से, शांत ,निष्चल ,अघोर धारण किये हुऐ एकांत तप में लीन रहते है। धर्म व शा्स्त्रों में उनका वर्णनं प्रमाण है। शिव एक आकार है जो इस संपदा व प्राकृति के व हर जीव के आत्मा स्वरूपी ब्रह्म कहा जाता है। शिव का अघोर रूप वैराग व गृहत्थका संभव संपूर्ण मेल है जिसे शिव व शक्ति कहते है। कैलास पर्वत भगवान शिव एवं भगवान आदिनाथ के कारण ही संसार के सबसे पावन स्थानों में है ।
विश्व की धरोहर घोषित
भारत को कैलाश मानसरोवर के संरक्षण की दिशा में बड़ी कामयाबी मिली है। यूनेस्को ने कैलाश मानसरोवर भू-क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की दिशा में सहमति दी है और इसे अंतरिम सूची में भी शामिल किया है। भारत इस मांग को दशकों से करता रहा है, जिसमें अब कामयाबी मिल पाई है। दशकों से जिस मांग को लेकर भारत प्रयासरत था आखिरकार उसमें अब जाकर बड़ी कामयाबी मिल पायी है। असल में कैलाश मानसरोवर जिसे हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान माना जाता है, इसके भू-क्षेत्र के संरक्षण की दिशा में भारत की मांग पर यूनेस्को ने मुहर लगा दी है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने पर सहमति प्रदान करने के साथ ही अंतरिम सूची में भी शामिल कर लिया है। प्रस्ताव के अनुसार अंतरराष्ट्रीय महत्व वाले इस क्षेत्र को प्राकृतिक के साथ ही सांस्कृतिक श्रेणी की संरक्षित धरोहर का दर्जा मिल सकेगा।
पवित्र कैलाश मानसरोवर भूक्षेत्र भारत, चीन और नेपाल की संयुक्त धरोहर है। इसे यूनेस्को संरक्षित विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए चीन और नेपाल पहले ही अपने प्रस्ताव यूनेस्को भेज चुके थे। अब भारत ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए अपने हिस्से वाले 7120 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को यूनेस्को से प्रारंभिक मंजूरी प्रदान करा दी है। इस तरह कुल 31 हजार 252 वर्ग किलोमीटर भाग यूनेस्को की अंतरिम सूची में शामिल हो गया है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का यह प्रयास सराहनीय है। भारत, चीन और नेपाल के साझा प्रयासों से कैलास भूक्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से इससे न सिर्फ समूचे भूक्षेत्र का विकास होगा, बल्कि कैलास मानसरोवर यात्रा भी बेहतर सम्पन्न हो सकेगी।
मिल सकती है ए एस आई को बहुत बड़ी जिम्मेदारी :- भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने न केवल भारतीय स्तर के विश्व धरोहरों के संरक्षण का काम निभाया है अपितु विश्व स्तर के सुदूर अनेक धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी भी बखूबी निभायी है।
ये धरोहर है-
1. भारत के पहाड़ी रेलवे
2. प्रमबानन मंदिर जावा
3.ता प्रोहम मंदिर कम्बोडिया  4.
अंकोरवाट का कम्बोडियाई विष्णु व अन्य बौद्ध मंदिर
5. अफगानिस्तान बामियान की बौद्ध प्रतिमांए आदि।
इसके अलावा विश्व के अनेक देशों में हिन्दू बौद्ध व सिख मंदिरों की रक्षा व रख रखाव की जानकारी भी पुरातत्व सर्वेक्षण प्रदान करती है।.


मानव शरीर अत्यन्त दुर्लभ आचार्य राधेश्याम द्विवेदी

durlabh मानव शरीर के लिए इमेज परिणाम

प्राचीनकाल से हमारे ऋषि-मुनियों और ज्ञानियो ने भी इस बात को माना है मनुष्य जीवन अद्भुत व महानता का प्रतीक है। विवेक चूड़ामणि 5 में कहा गया है कि दुर्लभं मनुष्यं देहम इसका अर्थ है कि मनुष्य का देह बड़ी मुश्किल से मिलता है। ऋषियों, मुनियों, विचारकों ने कहा है कि ईश्वर ने पृथ्वी पर 84 कोटि ( प्रकार) योनियां बनाई है। इन 84 कोटि (प्रकार) योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। इसमें 30 कोटि (प्रकार) पेड़ पौधों की संख्या, 27 कोटि ( प्रकार) कीड़े मकोड़ों की संख्या, 14 कोटि ( प्रकार)  पक्षियों की संख्या, 9 कोटि      ( प्रकार) पानी के जीव जन्तुओं की संख्या और 4 कोटि ( प्रकार)  पशुओं की संख्या पायी जाने की मान्यता है।

पुनर्वित्तं पुनर्मित्रं पुनर्भार्या पुनर्मही।
एतत्सर्वं पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुन:।।
नष्ट हुआ धन पुनः मिल जाता है, रूठे हुए मित्र और बिछड़े हुए मित्र दुबारा मिल जाते हैं। पत्नी का बिछोह, त्याग और देहांत हो जाने पर दूसरी पत्नी भी मिल जाती है। जमीन, जायदाद, देश और राज्य दुबारा मिल जाते हैं और ये सब बार-बार प्राप्त हो जाते हैं। लेकिन यह मानव तन बार-बार नही मिलता। क्योकि नरत्वं दुर्लभं लोके इसका मतलब है इस संसार में नर देह प्राप्त करना दुर्लभ है, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा गया है।रामचरित मानस में भी भगवान राम ने मानव शरीर की के बारे में बताते हुए कहा है।
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन गावा।
बड़े सौभाग्य से यह नर शरीर मिलता है और सभी ग्रंन्थों में भी यही कहा गया है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है।
नरक स्वर्ग अपवर्ग नसेनी। ग्यान विराग भगति सुभ देनी।
यह मनुष्ययोनि नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है और यह शुभज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाली है।
साधन धाम मोच्छ कर व्दारा। पाइ न जेहिं परलोक संवारा।
यह नर शरीर साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जो परलोक को नही प्राप्त कर पाता है वह आभागा है।मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना गया है कि इस योनि में ही जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल सकती है। अतः ईश्वर की भक्ति और शुभकार्यो में अपने समय को व्यतित करना चाहिए। संत कबीर दास जी कहते हैं कि
“ दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।”
इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता मनुष्य के रूप में मिला हुआ यह जन्म एक लम्बे अवसर के बाद मिलता है अतः इसे व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए अपितु इस सुअवसर को जीव हित के लिए उपयोग करना चाहिए । जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता. यह अवसर हाथ से निकलने के पश्चात पुनः नहीं मिल सकता जिस प्रकार वृक्ष से झड़े हुए पत्ते उस पर पुनः नहीं जोड़े जा सकते ।
मनुष्य जन्म अति दुर्लभ है। मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जिसमें हम भगवान को पा सकते हैं। यह मनुष्य देह अत्यंत दुर्लभ और क्षण भंगुर है। मनुष्य शरीर के समान सर्वश्रेष्ठ शरीर कोई नहीं है। मनुष्य एक ऐसा जीव है, जिसने सब पर अपना कंट्रोल कर रखा है।
गरुण पुराण कहता है कि मनुष्य के अतिरिक्त अन्य कोई योनि वाला जीव भगवान को नहीं जान सकता है। इसी मानव देह को पाकर ईश्वर को नहीं जान पाये तो यह सबसे भूल होगी। यह मत समझना कि मृत्यु के पश्चात तुम्हें पुन: मनुष्य शरीर मिल जायेगा। यदि भगवान को नहीं जान पाओगे तो पुन: 84 कोटि ( प्रकार)  योनियों में भटकना पड़ेगा। इसलिए हे मानव उठो, जागो अब जल्द से जल्द किसी तत्व दर्शी की शरण में जाओ तुम्हारा कल्याण हो सकता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य में इतनी ताकत है कि वह देवताओं को भी अपना गुलाम बना सकता है। इसका उदाहरण लंका पति रावण है भगवान ने स्वयं कहा कि वह भक्त की भक्ति के वशीभूत होकर उसकी एक आवाज पर दौड़े चले आते हैं। इसलिए हमें अपनी शक्ति को पहचान कर भगवान की भक्ति में लग जाना चाहिये। मनुष्य की शरीर की रचना शाकाहारी पशुओं की रचना समान है लेकिन मांसाहारी पशुओं की शरीर रचना मनुष्य की शरीर रचना से भिन्न है। हमें शरीर स्वस्थ रखना है तो नियमित सात्विक भोजन करना होगा।
                      


Monday, May 27, 2019

श्रीमद्भागवत पुराण कीसंरचना



भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान् कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। अन्य पुराणों में, जैसे विष्णुपुराण (पंचम अंश), ब्रह्मवैवर्त (कृष्णजन्म खंड) आदि में भी कृष्ण का चरित् निबद्ध है, परंतु दशम स्कंध में लीलापुरुषोत्तम का चरित् जितनी मधुर भाषा, कोमल पदविन्यास तथा भक्तिरस से आप्लुत होकर वर्णित है वह अद्वितीय है। रासपंचाध्यायी (10.29-33) अध्यात्म तथा साहित्य उभय दृष्टियों से काव्यजगत् में एक अनूठी वस्तु है। वेणुगीत (10.21), गोपीगीत, (10.30), युगलगीत (10.35), भ्रमरगीत (10.47) ने भागवत को काव्य के उदात्त स्तर पर पहुँचा दिया है।
भागवत के १२ स्कन्द निम्नलिखित हैं- श्रीमद्भागवत पुराण कीसंरचना
भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान् कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। अन्य पुराणों में, जैसे विष्णुपुराण (पंचम अंश), ब्रह्मवैवर्त (कृष्णजन्म खंड) आदि में भी कृष्ण का चरित् निबद्ध है, परंतु दशम स्कंध में लीलापुरुषोत्तम का चरित् जितनी मधुर भाषा, कोमल पदविन्यास तथा भक्तिरस से आप्लुत होकर वर्णित है वह अद्वितीय है। रासपंचाध्यायी (10.29-33) अध्यात्म तथा साहित्य उभय दृष्टियों से काव्यजगत् में एक अनूठी वस्तु है। वेणुगीत (10.21), गोपीगीत, (10.30), युगलगीत (10.35), भ्रमरगीत (10.47) ने भागवत को काव्य के उदात्त स्तर पर पहुँचा दिया है।
भागवत के १२ स्कन्द निम्नलिखित हैं- श्रीमद्भागवत पुराण कीसंरचना
भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान् कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। अन्य पुराणों में, जैसे विष्णुपुराण (पंचम अंश), ब्रह्मवैवर्त (कृष्णजन्म खंड) आदि में भी कृष्ण का चरित् निबद्ध है, परंतु दशम स्कंध में लीलापुरुषोत्तम का चरित् जितनी मधुर भाषा, कोमल पदविन्यास तथा भक्तिरस से आप्लुत होकर वर्णित है वह अद्वितीय है। रासपंचाध्यायी (10.29-33) अध्यात्म तथा साहित्य उभय दृष्टियों से काव्यजगत् में एक अनूठी वस्तु है। वेणुगीत (10.21), गोपीगीत, (10.30), युगलगीत (10.35), भ्रमरगीत (10.47) ने भागवत को काव्य के उदात्त स्तर पर पहुँचा दिया है।
भागवत के १२ स्कन्द निम्नलिखित हैं-
स्कन्ध संख्या         विवरण
प्रथम स्कन्ध           इसमें भक्तियोग और उससे उत्पन्न एवं उसे स्थिर रखने वाला वैराग्य का वर्णन किया गया है।
द्वितीय स्कन्ध         ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप।
तृतीय स्कन्ध          उद्धव द्वारा भगवान् का बाल चरित्र का वर्णन।
चतुर्थ स्कन्ध           राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि का चरित्र।
पंचम स्कन्ध           समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति।
षष्ठ स्कन्ध              देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कथा।
सप्तम स्कन्ध         हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र।
अष्टम स्कन्ध          गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार
नवम स्कन्ध           राजवंशों का विवरण। श्रीराम की कथा।
दशम स्कन्ध          भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं।
एकादश स्कन्ध     यदु वंश का संहार।
द्वादश स्कन्ध         विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि का स्वरूप।