Sunday, November 11, 2018

चुनावी जुमलों से राजनीतिक फतह करने की कोशिश डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


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हमारे यहां राजनेताओं के लिए ‘कथनी और करनी’ से इतर एक बेहतरीन शब्‍द ‘जुमला’ लांच हुआ है । यह ‘जुमला’ शब्‍द पता नहीं कहां से आयात कर लिया है। इस शब्‍द को समझने में हमें पता नहीं कितने साल निकल जाएंगे? यद्यपि ‘जुमला’ शब्‍द नया नहीं है, लेकिन यह पापूलर बहुत तेजी से हो रहा है। इस शब्‍द का अर्थ तो बहुत सरल है। व्याकरण के नियमों के अनुसार क्रम से लगा हुआ वह सार्थक शब्द-समूह जिसके द्वारा किसी पर अपना अभिप्राय प्रकट किया जाता है जुमला कहा जाता है। जुमला एक विशेषण है जिसका मतलब होता है कुल, पूरा, कहा जाना या कहावत आदि। यह करने का नहीं सिर्फ कहने की बात होती है।जुमला शाश्वत है. उसका ओर है छोर. वो दिखाई देता है सुनाई देता है, उसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है. तेज़ गति से आता है और कान में वैक्यूम सा बनाता चला जाता है. उसका रूप है रंगजुमला एक अमूर्त थ्योरम है, जिसे तो काटा जा सकता है प्रूव किया जा सकता है क्योंकि वो परसाई के ट्रक की तरह सत्य के अनंत पहलुओं का वाहक है. ये तो ठोस है, द्रव्य है. जुमला किसी का नहीं है लेकिन वो सबका है, जो उसे मन से ग्रहण करता है, जुमला उसी का है. समाजवादी है. साम्यवादी है. वादी है, प्रतिवादी है. गाय भी है. आय भी है. जुमले का कोई अहं नहीं है, वो ये नहीं जानना चाहता है कि उससे किसी को क्या लाभ है, उसे इसकी भी चिंता भी नहीं कि उससे किसका नुक़सान होगा. वो निश्चिंत, निष्काम कर्म के क्रम में आगे बढ़ते जाता है.
आकांक्षाओं के क्षितिज के पार से आने वाला जुमला आनंद और परमानंद से मुक्त है. जुमला वोट बैंक भी है. जुमला स्विस बैंक भी. राशन कार्ड भी. आधार कार्ड भी. जुमला सर्ज भी है. मर्ज़ भी. जुमले के लिए कोई सत्य नहीं. उसके लिए सत्य भी कोई नहीं. उसे किसी के मन में आशा जगाने या किसी को निराश करने को लेकर, वो मन में कोई अपराधबोध भी नहीं रखता है. वो मायावी भी है इसीलिए जिसकी आशा टूटती भी है वो भी जुमले से नहीं टूटते. जुमले स्वरूप बदल लेते हैं. जुमला आस्था है. ऐसी सत्यता जिसकी वास्तविकता ही कल्पना है. वास्तविकता ढुलमुल है, कल्पना ठोस. इतनी ठोस की कूट-कूटकर सपनों के हवामहल खड़े कर दिए जाए.जुमला भावशून्य होता है, वो शत्रु को भी काटता है, मित्रों को भी. ट्रैजिडी किंग को भी काट सकता है और कॉमेडी किंग की भी कुटाई कर सकता है.जुमला यूज़ भी है. मिसयूज़ भी.
आजकल के चुनाव भी वायदों की तरह होता है। यदि जुमला चुनावी हो तो उसकी बात ही क्या होती है ? यहां तक कि विरोधी पार्टियों द्वारा भाजपा को भारतीय जुमला पार्टी कहा जाता है। लोकतंत्र में चुनाव प्रचार का बहुत महत्व है और चुनाव प्रचार में चुनावी जुमलों का। विभिन्न राजनैतिक पार्टियाँ प्रत्याशियों के साथ साथ चुनावी जुमलों पर भी विशेष ध्यान रखती हैं। जैसे एक अनुभवी गृहस्थ बकरी खरीदने से पहले उसकी पूरी तरह जाँच पड़ताल करता है उसी तरह अनुभवी वोटर चुनावी जुमलों की अच्छी तरह पड़ताल करके ही वोट डालता है।अब अपने प्रधानमंत्री को ही ले लीजिए, उनके 'अच्छे दिन', 'अबकी बार मोदी सरकार', 'गुजरात का विकास' जैसे जुमले ही उनकी जीत के बड़े कारण रहे हैं और इसके पहले भी जब बीजेपी की सरकार आई थी तब 'रामलला हम आएँगे' जुमला काफी लोकप्रिय हुआ था। आज तो नए नए जुमले गढ़े जा रहे हैं, दूर कहीं कोई टोपी वाला 'लोकपाल' जुमले के सहारे दिल्ली फतह करना चाह रहा है। हाल ही के कुछ पॉपूलर  जुमले इस प्रकार हैं- ‘लव जिहाद’, ‘सर्जिकल स्‍टराइक’, ‘बीफ’, कथित ‘राष्‍टरावाद’, और कथित ‘नोट बंदी’ जनेउधारी ,रामभक्त, शिवभक्त, तड़ीपार, सबका साथ सबका विकास, कामदार, चैकीदार, नामदार, युवराज व असहिषुणता आदि।  अनेक जुमले आये दिनों सुनने व पढ़ने को मिलते है। दलित और अल्पसंख्यकों को रिझाने व लुभाने के लिए कोई भी पार्टी कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है।इसके लिए संविधान के समता जैसे अनेक मौलिक अधिकारों का निरन्तर हनन होता रहता है । न्यायालय भी अपने खास लोगों के हितों को वरीयता देती है आम जन के लिए उसके पास समय ही नहीं बचता है। चुनावी जुमले एक तरह से नए प्रेमी के वादों की तरह होते हैं जो प्रेमिका को खुश करने के लिए चाँद तारे तोड़ने की बात करता है परंतु वास्तव में “स्वर्ग की तारे तोड़ने” की बात कभी भी पूरी नहीं हो सकती है।
आजकल के वोटर भी चतुर होते हैं जो इन चुनावी जुमलों की सारी हकीकत समझते हैं, लेकिन विरोधी सब समझकर भी नही समझते। आजकल '15-15 लाख' वाले चुनावी जुमले को लेकर शोर करने वाला 'विपक्ष' वर्षों से 'गरीबी हटाओ' जुमले को जी रहा है। हमारे देश की भोली-भाली जनता जैसे-तैसे ‘कथनी और करनी’ में फर्क समझने ,समझाने जानने लगी । इसका इस्‍तेमाल विरोधी लोग बेवजह करते रहते हैं। विरोधी दल के नेता जब देखो तब जुमला शब्‍द पकड़ कर बैठ जाते हैं। पहले हमारे देश की जनता-जनार्दन बहुत ही सहज होती थी। हमारी राजनीतिक पार्टियां अवाम को बहुत आसानी अपने चंगुल में फंसाती रही हैं, क्‍योंकि नेताओं की कथनी और करनी के तालाब में गोते लगाते हुए जनता ने लगभग सात दशक खपा दिए, इसलिए अब जनता ने नेताओं की कथनी पर अविश्‍वास करना प्रारंभ कर दिया और अनेक राज्‍यों में और आम चुनावों में नेताओं को पटकनी देना शुरू कर दिया।  प्रायः सभी राजनीतिक पार्टी मुददों पर नहीं जुमलों पर चुनावी वैतरणी को पार करने का प्रयोग सफल होने से गद गद है। इस साल भारतीय जनता पार्टी का सबसे ज़्यादा अहित संभवतः इसी शब्द से हो सकता है। प्रधानमंत्री  कई मौकों पर विरोधियों के खिलाफ तीखे जुमले का प्रयोग कर चुके हैं। मजेदार बात यह है कि उनके जुमले लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं।  पता चला कि पीएम की एक निजी टीम है, जो काफी रिसर्च के बाद ऐसे एक्रोनिम्स गढ़ती है। ये हैं शब्दों के वे उस्ताद, जो तैयार करते हैं पीएम मोदी के भाषण  यश गांधी, नीरव के. शाह , प्रतीक दोषी (ओएसडी- रिसर्च एंड स्ट्रैटजी) , हिरेन जोशी (ओएसडी-आईटी)  और जगदीश ठक्कर, पीआरओ आदि है।
नए जुमलों का इंतजार अब 2019 के चुनाव के लिए सियासी रणभूमि सजने लगी है। राजनीतिक दलों की मोर्चेबंदी, सोशल मीडिया नेटवर्किंग और चुनावी अभियान के लिए नए नारे-जुमले बनने लगे हैं। ऐसे में बीजेपी ने पहले ही इशारा कर दिया है कि वोनए नारों और वादों के साथ चुनाव में उतरेगी। फिलहाल पार्टी ने 'सबका साथ, सबका विकास' को छोड़कर एक नया नारा दिया है। सभी विज्ञापनों में मोदी सरकार की 'साफ नीयत, सही विकास' का गुणगान किया जा रहा है। हालांकि, पार्टी के सूत्र बताते हैं कि चुनाव आते-आते बीजेपी 2014 की हीतरह एक नहीं, अनेक नारों के साथ अखाड़े में कूदेगी। इन नारों पर फिलहाल काम जारीहै। पार्टी की मीडिया सेल नए-नए नारे लिख रही है, उसे पार्टी अध्यक्ष से अप्रूव करा रही है। इसी हफ्ते बीजेपी का एक नया बन रहा नारा सामने आया था, जिसमें कहा गया है "काम अधूरा, एक मौका मोदी सरकार, काम पूरा होने का।



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