आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं,बेगमों उच्च पदस्थ लोगों तथा साधु महात्माओं
के स्मारकों, महलों ,बाग- बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है। मुगल पूर्व बागों में कैलाश,
रेनुकता, सूरकुटी, बृथला, बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी
श्रृंखला यहां देखने को मिलती है। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. अस्तित्व
या वजूद वाले, 2. विना अस्तित्व वाले या विलुप्त और 3. केवल नाम के बाग। इनमें कुछ
अवशेष के रूप में देखे जा सकते हैं कुछ समय के साथ मोहल्ले एवं बस्तियों की आवादी के
कारण समाप्त हो चुके हैं। इन बागों में फल फूलों, सजावटी वृक्षों , छायादार वृक्षों , मेवादार वृक्षों तथा
औषधिवाले वृक्षों का भरमार है। इनके पास कुएं, हौज, नदी, ताल , रहट ,फव्वारे तथा सीढ़ियां
आदि भी होती रही यहां तरबूज, अंगूर, गुले सुर्ख,
गुले नीलोफर के पौधे लगे हुए थे। सिकन्दर लोदी , बाबर एवं हुमायूं के समय आगरा जमुना
के दोनों तरफ आबाद था। अकबर के समय यह पूरब की अपेक्षा पश्चिम की ओर ज्यादा आबाद हुई
थी। यमुना के दोनों किनारे लगभग 4 कोस के दायरे में मकबरे, हवेलियां , मंदिर, मस्जिद
तथा बागों की लम्बी श्रृंखला थी। आगरा के 40 बागों का जिक्र शैलचन्द्र की फारसी तथा
मुन्शी कमरूद्दीन की उर्दू किताब में हुआ है।जिसका ही आधार लेकर 45 बागों का अध्ययन
आस्ट्रेलियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपने ‘कम्पलीट गार्डन आफ आगरा’ में किया है।उसके
द्वारा ताजनगरी में खोजी गई मुगलिया विरासत को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सहेजने की कवायद में जुटा है। ये विरासतें ज्यादातर लीज
पर चल रही है। ज्यादातर उद्यानों की भूमि पर पट्टे हैं। जिन पर ईंट-पत्थरों के मकान
बन चुके हैं।
वर्तमान में
उद्यानों की भूमि पर जो पट्टे हैं, वह वर्ष 1955 के कुछ साल पहले तक जारी हुए थे। इनकी
अवधि 90 साल तक बताई जाती है। लिहाजा इनको निरस्त करना भी आसान नहीं है। ऐसे में उद्यानों
को संरक्षित करने के लिए इस अवधि के खत्म होने तक इंतजार करना पड़ सकता है। आयोजित कार्यशाला उद्घाटन पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय
के अपर सचिव संस्कृति केके मित्तल ने कहा कि 45 में से 13 उद्यान ही फिलहाल संरक्षित
हैं। इनमें आठ का संरक्षण एएसआई कर रही है। 32 उद्यानों का अस्तित्व मिट चुका है। ऑस्ट्रिया
की इतिहासकार ईवा कोच ने अपने शोध कार्य में यमुना किनारे फैले 45 उद्यानों पर प्रकाश
डाला था।
मुगल शहंशाह
शाहजहां के दरबार में कभी जिनका प्रभाव था, जिनकी हवेलियां ताजमहल के एकदम नजदीक थीं,
वक्त ने न केवल उन हवेलियों का नाम ही भुला दिया बल्कि उनके अवशेष तक आंखों से ओझल
होने के कगार पर थे। 350 साल पहले शहंशाह का बनवाया ताज तो बुलंदी से दुनिया भर में
छाया, लेकिन मुगलिया दौर की ये धरोहरें उससे सटी होने पर भी अपना वजूद न बचा सकीं।
आगा खां का संक्षिप्त परिचय
आगा खां के
ऊपर नदियों के किनारे कानून व्यवस्था बनाने और मुगल सेना के हजारों घोड़ों की देखरेख
की जिम्मेदारी थी। उसे एक चैकस, जानकार, सूचनादाता माना जाता तथा आदर के साथ सम्बोधित
किया जाता रहा है। उसे शाहजहां के हरम (रनिवास) के ख्वाजसरा की उपाधि मिली थी। उसका
वर्णन 1144 हिजरी (1634-35 ई.) में आया है। इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने इस प्रकार
दर्शाया है, ‘‘आगा खां जो नदी के दोनों किनारों की सुरक्षाधिकारी था का मनसब जो पहले
1000 जाट व्यक्तिगत और 1000 सवार (अश्वारोही) का था। ‘‘ उसे 1000 जाट व्यक्तिगत और
1000 सवार (अश्वारोही) के मनसब के साथ 800 के दो और तीन घोड़ेवाले वजीफे बढ़ाकर कर दिये
गये । उसे “खान” फौजदारी (पुलिस सुरक्षाधिकारी) तथा अकबराबाद के यमुना नदी का “दारुल
खलीफा” के रुप में दर्शाया गया है। 1046 हिजरी (1636-37 ई.) में 800 के मनसब की जगह
मनसब 1000 जाट व्यक्तिगत के दो और 1000 सवार (अश्वारोही) के तीन मनसब का दर्जा दिया
गया था। 1047 हिजरी (1637-38 ई.) में उनका नाम आगा खां ख्वाजसरा के रुप में पुष्टि
की गयी है। अंतिम रुप में 1648 हिजरी में पूरे के पूरे 1000 सवार के 2 और 1000 अश्वारोही
के तीन मनसब कर दिया गया था। इसके बाद उसे आगा खां “फौजदार” के रुप मे ही वर्णित किया
गया है तथा यमुना नदी के दोनों किनारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गयी है। वह ताजमहल
का एवं यमुना नदी का सुरक्षाधिकारी था।
अब्दुल हमीद
लाहौरी मुगल साम्राज्यों के समकालीन इतिहासकार थे। उनके संदर्भों से पता चलता है कि
आगा खां शाहजहां के हरम (रनिवास) के एक विश्वसनीय अधिकारी था। इसलिए उनकी मूल उपाधि
ख्वाजसरा थी। वह नपुसक नहीं था। उनका पौरुषग्रंथि भी नहीं निकाला गया था। उन्हें जरुरी
रुप में हरम का प्रभार दिया गया था। उन्हें अन्य किसी सिविल या सौनिक पद पर बिना किसी
अपराध के स्थान्तरित किया जा सकता था। शाहजहां उसपर पूर्ण विश्वास करता था। जैसे ही
ताजमहल 1634 ई. में बनकर कुछ पूर्ण हुआ उसे “खान” की उपाधि से नवांज दिया गया। “खान”
एक संभ्रान्त अमीरजन की उपाधि होती है। उसे यमुना नदी के दोनों किनारों की सुरक्षा
की जिम्मेदारी दी गयी । जिसके दांये किनारे ताजमहल का महान मकबरा स्थित है। उनके पद
को “फौजदार-ए- नवाही दारुल खिलाफा” के रुपमें संशोधित
किया गया। निःसंदेह उनके नियंत्रण में एक मजबूत जलसेना ,नौकांए, नाविक और सौनिक थे।
वह नदी मार्ग की यात्रा का संचालन एवं नियंत्रण करता था। वह ऊपर और नीचे दोनों तरफ
का सालाना चक्कर लगाता रहता था। वह नुकसानदायक गतिविधियों को रोकता भी था। उसे नदी
तट के दोनों तरफ कानून व्यवस्था को बनाये रखने की महती जिम्मेदारी दी गयी थी।
ताजमहल के
निर्माण में वेशकीमती सोने व पत्थरों का खजाना लगा हुआ था। इसलिए इसकी सुरक्षा की समुचित
व्यवस्था की गयी थी। इसलिए एक नया तथा अप्रयोगिक पद सृजितकर ‘फौजदार-ए- नवाही’ ( नदी का सुरक्षाधिकारी) विशेष रुप से बनायी गई।
विश्वसनीय व्यक्ति होने के कारण आगा खां को यह जिम्मेदारी दी गयी थी। उन्होंने अपने
जीवन पर्यन्त हिजरी 1067/1656 ई. तक इस पद को संभला। इस समय उसे 1500 जाट/ 1500 सवार
( 2-3 अश्वारोही) का मनसब मिला था। 1658 में आगा खां की मृत्यु हो गई थी।
आगा खां हवेली / दशहरा घाट :- ताजमहल के आसपास पूर्व दक्षिण एवं
यमुना के तट पर 16वी से 19वीं शताब्दी में कई संरचनाओं के होने के उल्लेख मिलते है।
प्रायः सभी अब काल कवलित होकर मात्र इतिहास की बस्तु रह गये हैं। इनके विखरे हुए अवशेष
बहुत मुश्किल से खोजे या पहचाने जा सकते हैं। इसी प्रकार एक रहस्यात्मक भवन राजा माधो सिंह की हवेली कभी हुआ करती थी। जहांगीर के समय
में दो हजारी मनसब वाले माधो सिंह की हवेली
यहीं स्थित थी। इसका उल्लेख डच फ्रांसिस पेलसर्ट ने 1627 में किया है। ताजमहल के ठीक
बगल एवं पूर्व दिशा में नदी के तट पर यह एक विशाल उद्यान एवं महल था। इसे बड़ी हवेली
भी कहा जाता था। जहांगीर के समय के बाद यह हवेली लावारिश हो गयी। जप्ती कानून के आधार
पर यह खलास राज्य सम्पत्ति घोषित हो गयी। बाद में शाहजहां ने इसे आगा खां को आवंटित
कर दिया। शहंशाह शाहजहां के दरबारी और फौजदार आगा खां की हवेली, खान-ए-दुर्रान हवेली
और ताजमहल के बीच में थी। हवेली की फाउंडेशन ही अब शेष है। यमुना नदी में कई बार आई
बाढ़ से इस हवेली को नुकसान पहुंचा। यह हवेली नदी के तट से लगा हुआ है।
कुछ एतिहासिक
ग्रंथों में इसे तिलियार या त्रियाल का बगीचा भी कहा गया है। यह त्रियाल या तिलियार
कौन था ? किस काल में था ? इसका कोई विस्तृत विवरण नहीं मिलता है। इसी संरचना को कुछ
एतिहासिक संदर्भों में महावत खां का बगीचा कहा गया है। यह जहांगीर और शाहजहां के काल
का एक शक्तिशाली अमीर उमरा था। इसका प्रारम्भिक नाम जमना बेग था। इसे 1500 का मनसब
मिला हुआ थां। इसके पिता शिराज से काबुल आये थे। महावत खां की उपाधि उसे जहांगीर ने
1605 में देकर डेकन का गवर्नर बनाकर भेजा था। इसकी एक हवेली आगरा किला और ताज महल के
बीचोबीच स्थित था जो अब बिल्कुल मिट चुका है। इसका एक अन्य बगीचा बाग आगरा के राजपुर
में था। यहां इसके लडकी की कब्र बनी हुई हैं। यह भारतीय पुरातत्व द्वारा संरक्षित है
परन्तु स्वामित्व सरकार का नहीं है।
आगा खां की
हवेली व उद्यान ताज के बिल्कुल पूर्व में बना हुआ है।जयपुर के नक्शे में इसी क्रम में
दिखाया गया है। फ्लोरेन्टिया सेल के नोट बुक 1832-33 में इसे दौला खान के पैलेस के
रुप में दर्शाया गया है। इस उद्यान के अवशेष खान ए दौरा के हवेली के पास देखा जा सकता
है। टी. एच. बील ( एन ओरिएंटल बायोग्राफिक डिक्शनरी पृ. 36 ) में यह लिखा है ‘‘आगा खां का मकबरा मुमताज महल के पास बना है। परन्तु
कंचित कारणों से यह प्रकाश में नहीं आया।‘‘ इसे जयपुर संग्रहालय में संग्रहीत आगरा
के मानचित्र ( सुसन गोले: इण्डियन मैप एण्ड प्लान्स पृ. 199) पर दर्शाया गया है। यह
मानचित्र सवाई राजा जयसिंह द्वितीय कछवाहा आगरा का सूबेदार ( गवर्नर) के आदेश से
1722 ई. में तैयार किया गया था। इसे शहर के चहारदीवारी (परकोटे) के अन्दर ताजमहल के
पूर्वी किनारे नदी के उत्तरी किनारे पर दर्शाया गया है। इस मानचित्र में हवेली आगा
खां को चिन्हित किया गया है। यह नदी के किनारे वर्तमान दशहरे घाट के पास विखरा पड़ा
है।
ताजमहल संग्रहालय
के जान मूरी के ड्राइंग में इसे स्पष्ट दिखाया
गया है। इस स्थल पर दाऊ जी का मंदिर बन गया है इस स्थान को अब दशहरा घाट
कहते है। समय समय पर अपने नाम व स्वरुप को बदलते हुए यह अलग अलग काल खण्डों में अलग
अलग चार नामों से जाना जाता रहा है।
स्मारक हवेली आगा खां
बसई मुस्तकिल ताजगंज है जिला आगरा उत्तर प्रदेश राज्य राष्टीय महत्त्व का है। अब इसलिए
प्राचीन संस्था तथा पुरातत्वीय स्थान एवं अवशेष अधिनियम 1958 ,4958 का 24 को धारा 4 उपधारा ग द्वारा प्रदत्त
शक्तियों का प्रयोग करके महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सवेक्षण ने संरक्षित स्मारक घोषित
किया है। ताजमहल एण्ड इट्स इनकारनेशन नामक पुस्तक में जमातखाना के तीन मंजली विल्डिंग
के साथ इस भवन को संयुक्त करते हुए विभिन्न श्रोतों के आधार पर लगभग डेढ़ लाख रुपयें
में निर्मित होना बताया गया है। मुहम्म्द बेग ए. एस. आई. नार्दन सर्किल लाइब्रेरी की
पाण्डुलिपि (जो अब अनुपलब्ध है) के आधार पर रु 1,45,505,6 आने , सैयद हसन के अनुसार
रु. 1,44,,095, 13 आने 3 पैसे तथा मोइनुद्दीन के विवरण के आधार पर रु 1,45,505,6 आने
इसकी लागत रही है। ताजमहल की पाण्डुलिपियों में आगा खां के जिस हवेली का उल्ल्ख किया
गया है, उसे शाहजहां का दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने बादशाहनामा के वार्षिक
विवरण के आधार पर तब वर्णित किया जब उसके मनसब रैंक की पुष्टि की गई। उसका वर्णन
1144 हिजरी (1634-35) में आया है। फारसी पाण्डुलिपि में इस भवन की एकल लागत मुहम्मद
बेग 15,096, 4 आने बताई हैं। यह उस समय की बात है जब ताजमहल पूर्ण रुपसे बन गया था।
तब इसके पुनरुद्धार में इतने पैसे लगे थे।निःसन्देह यह भवन ताजमहल से विल्कुल पास ही में सटा हुआ हैं।
यहां आगा खां का कार्यालय और आवास था। इससे ताजमहल की सुरक्षा की जाती थी। इससे ताजमहल
के आसपास घाटों की सुरक्षा सक्षमता तथा प्रभावपूर्ण रुप में की जा सकती थी। यहां समान
भी उतारे जाते रहे थे।
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