Thursday, May 4, 2017

रिटायरी की सेवापूर्ण जिन्दगी : डा.राधेश्याम द्विवेदी

आजकल बड़े बुजुर्गों की जीवनशैली में बहुत तेजी से बदलाव आता देखा जा रहा है। अब वे अपने जीवन की इस पारी में भी स्वयं को बिजी रहना चाहते हैं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि आज उनके पास पहले से ज्यादा कई बेहतर विकल्प भी उपलब्ध हैं। जीवन बहुत ही बहुमूल्य वस्तु  होता है।  सही तौर तरीके से जीने की ललक और सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण अब आम नागरिक की औसत उम्र में इजाफा हुआ है। अतः सेवानिवृति के बाद 20 से 30 साल तक सामान्य जीवन यापन आम बात होती जा रही है। प्रत्येक सेवानिवृत्त व्यक्ति को यह भी समझ लेना चाहिए कि वह सरकारी नौकरी के सेवा नियमावली के नियमों के कारण वह सेवानिवृत हुआ है की कार्य करने की अक्षमता के कारण से। इसलिए अपनी क्षमता अनुभव के अनुसार हर व्यक्ति को हर समय काम करते रहना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि सरकारी सेवा में रह कर हर कर्मी समुचित धन वेतन के रूप में अर्जित कर लेता है। इसके बाद भी सरकार सेवा नियमावली के तहत काफी पैसा एकमुस्त भी अदा करती है। आम कर्मचारी की औसतन उम्र में बढ़ोतरी हुई है तथा लंबे समय तक जनता के पैसे से पेंशन भी मिलती रहती है । वैसे भी जब राजनीतिज्ञ मरते दम तक काम कर सकते हैं तो अधिकारी कर्मचारी क्यों नहीं। अतः हर सेवानिवृत्त व्यक्ति का दायित्व बनता है कि वह पेंशन प्राप्ति के बदले समाज को अपनी सेवाएं किसी किसी रूप में देता रहें। तब उसका जीवन सार्थक माना जाएगा तथा वह स्वंय भी स्वास्थ्य लाभ उठा सकेंगा। इस कृत्य के कारण उनके बच्चे भी महशूस करेंगें कि उनके माता-पिता अभी भी पूर्ण सक्षम हैं। वे ना केवल अपने परिवार की अपितु अपने कुटुम्ब समाज और देश की सेवा करने भी सक्षम जीवन के लम्बे समय में उनके पास बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव होते हैं।
देश में प्रतिदिन 17 हजार से ज्यादा लोग 60 वर्ष की उम्र पार करते है। यदि इस अवस्था में बड़े बुजुर्ग घर में ही बंद रहेंगे तो उनके परिवार के सदस्य भी इससे अच्छा महसूस नही करेंगे। क्योंकि हमारा समाज संक्रमण काल से गुजर रहा है। बच्चे समझ नहीं पाते कि उनके घर के बुजुर्गों को सही देखभाल पर्याप्त समय देने की जरूरत है। मशीनी होती जिंदगी में संवेदनशीलता कम हो रही है। दूसरी ओर समय की कमी के कारण माता-पिता को देखने उनसे बातचीत करने का मौका भी नही मिल पाता है। ऐसी सूरत में सेवानिवृत्त बुजुर्गों को चाहिए कि घर से बाहर निकल कर समाज में क्षमतानुकूल अपना योगदान देकर अपने जीवन को सार्थक रचनात्मक बनाएं। ज्यादातर देखा गया है कि सेवानिवृत्ति के उपरांत सरकारी कर्मचारी अधिकारी अपने को अक्षम मानना शुरू कर देते हैं तथा शहर में लगे बेंचों पार्कों में पूरा पूरा दिन ताश खेलने फिजूल की बातें करने में बिता देते हैं। इससे अच्छा है कि वे अपने अनुभवों के अनुसार समाज में अपना योगदान देते रहें। जो चिकित्सिक के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं उनको चाहिए की वे प्रतिदिन कम से कम चार घंटे लोगों को मुफ्त सेवा उपलब्ध करवाएं।  अन्य क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र के हिसाब से प्राप्त अनुभव के आधार पर समाज की मुफ्त सेवा कर सकते हैं। उनका समय ठीक से बीतेगा वे स्वस्थ भी रहेंगे। उन पर दवा का खर्चा भी कम हो जाएगा तथा देश उनके अनुभवों का लाभ उठाने में सक्षम हो पायेगा। आओ हम सब मिलकर एक अच्छा समाज निर्मित करें। मानव सेवा ही परम धर्म है और सेवा करने की कोई भी उम्र नहीं होती।


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