चार
सैयद पीर बंधुओं द्वारा सुरक्षा
जिस प्रकार आगरा शहर की रक्षा के लिए शहर के चारो
कोण पर चार प्रसिद्ध शिव मंदिर बने हुए हैं उसी प्रकार ताज महल की रक्षा के लिए चार
सैयद पीर बंधुओं को भी जिम्मेदारी दी गयी थी। यहां के मुस्लिम समाज का कहना है कि जब
शाहजहां ताजमहल की नींव रखवा रहा था तो उस दौरान भूत-जिन्न कारीगरों को ताजमहल की बुनियाद
रखने नहीं दे रहे थे। वे रात में कारीगरों को डराकर भगा देते थे। साथ ही रखी हुई नींव
को धवस्त कर देते थे। इसके चलते कोई भी कारीगर यहां रुकने को तैयार नहीं था। प्रतीत
होता है कि यह स्थल निरापद नहीं था। यहां पहले से कोई दैवी शक्ति विद्यमान थी जो इस
स्थल पर ताज महल का निर्माण आसानी से नहीं कराने दे रही थी। इससे यहां पहले से शिव
मंदिर होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। यदि एक बादशाह की निजी इच्छा
की पूर्ति में कोई शक्ति बाधा पहुंचा रही हो तो यह प्रश्न जटिल हो जाता है कि वहां
कोई पाक साफ काम ना होकर कुछ जबरिया काम हो रहा था। ये भूत जिन्न भगवान शिव के गण भी
तो हो सकते हैं। आश्चर्य है कि दो रुहानी शक्तियों में टकराव हुआ होगा और किन परिस्थिति
में एक शक्ति ने इसे नजरन्दाजकर दूसरे के मनसूबे को पूरा करने का मौका दिया होगा। यह
भी संभव है कि दोनों में कोई अन्डर स्टैण्डिंग बनी हो और ताज के निर्माण में उस शक्ति
की कुछ शर्तों का पालन किया गया हो।
हजरत अहमद बुखारी शाह की मजार पूर्वी गेट के पास
भारतीय
और इस्लामी मिश्रित वास्तु शैली
वर्तमान ताज महल की संरचना पूर्ण इस्लामिक है नहीं।
ताज महल के स्थापत्य में हिन्दू तत्व- इसकी वास्तु शैली फारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी
वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। मुख्य गुम्बद के साथ-साथ ही छतरियों एवं गुलदस्तों
पर भी कमलाकार शिखर शोभा देता है। गुम्बद एवं छतरियों के शिखर पर परंपरागत फारसी एवं
हिंदू वास्तु कला का प्रसिद्ध घटक एक धात्विक कलश किरीटरूप में शोभायमान है। मुख्य
गुम्बद के किरीट पर कलश है । यह शिखर कलश आरंभिक 1800ई० तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे
का बना है। यह किरीट-कलश फारसी एवं हिंन्दू वास्तु कला के घटकों का एकीकृत संयोजन है।
यह हिन्दू मन्दिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है, जिसकी नोक
स्वर्ग की ओर इशारा करती हैं। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक
त्रिशूल का आकार बनाती हैं, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है। ताजमहल इमारत समूह
रक्षा दीवारों से परिबद्ध है। इन दीवारों के बाहर अतिरिक्त मकबरे स्थित हैं, जिसमें
शाहजहाँ की अन्य पत्नियाँ दफ्न हैं, एवं एक बडा मकबरा मुमताज की प्रिय दासी हेतु भी
बना है। यह इमारतें भी अधिकतर लाल बलुआ पत्थर से ही निर्मित हैँ, एवं उस काल के छोटे
मकबरों को दर्शातीं हैं। इन दीवारों की बागों से लगी अंदरूनी ओर में स्तंभ सहित तोरण
वाले गलियारे हैं। यह हिंदु मन्दिरों की शैली है, जिसे बाद में, मस्जिदों में भी अपना
ली गई थी।
अमजद बुखारी की दरगाह बिल्लोचपुरा (तेलीपाड़ा)
ओक की थ्यूरी अमान्य पर दमदार
सन 2000 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय श्री पुरुषोत्तम
नागेश ओक द्वारा दाखिल अर्जी रद्द कर दी थी, जिसमें यह कहा गया था, कि एक हिंदु राजा
ने ताजमहल बनवाया था। श्री ओक ने साक्ष्य सहित, यह दावा किया था, कि ताजमहल का उद्गम
(मूल इमारत), एवं साथ ही देश की अनेकों एतिहासिक इमारतें, जो आज मुस्लिम सुल्तानों
द्वारा निर्मित बताई जाती हैं, असल में उनसे पहले भी यहाँ मौजूद थीं। फलतः यह मूल इमारतें
हिंदु राजाओं द्वारा निर्मित हैं एवं इनका
उद्गम हिंदु है।
(संदर्भ: Oak, Purushottam Nagesh. "The True Story of the Taj Mahal" ( in English)
Stephen Knapp. अभिगमन तिथि: 2007-02-23.)
लाल बुखारी की मजार थाना ताजगंज
चार सैयद पीर बंधुओं की मदद से तैयार
उपरोक्त प्रमाणों को देखकर लगता है कि ताज महल एक
परिवर्तित या मिश्रित शैली की संरचना है। इसे बनाने में इसी लिए अड़चनें आई थीं। और
इस विशिष्ट शैली के निर्माण में तत्कालीन प्रसि़द्ध पीर फकीरों की मदद ली गयी थी।ताजमहल
की नींव रखी जा सके इसके लिए शाहजहां को इमामों ने अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत
अहमद बुखारी को बुलाने के लिए कहा. शाहजहां के बुलावे पर पीर अपने साथ तीन भाई सैय्यद
जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह भारत चले आए। शाहजहां
सभी पीर बाबाओं को खुद लेकर आए थे। चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताजमहल के नींव परिसर
पर पहुंचकर कुरान और कलमों की तिलावत (पाठ) कराई। इसके बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर
ताजमहल को बनवाने का काम शुरू करवाया गया था। तब कहीं जाकर ताजमहल का निमार्ण पूरा
हो सका था।
जलाल बुखारी पश्चिमी गेट के पास
पीर
बंधुओं के उर्स पापुलर नहीं हो पाये
जिन पीरों (संतों) की वजह से ताजमहल की नींव रखी गई
उन्हें हर साल उर्स के मौके पर श्रद्धा और सुविधा से वंचित रखा जाता है। अहमद बुखारी
शाह बहुत बड़े सिद्ध पुरुष थे। उनकी मजार पर आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी
होती है। इसके चलते शाहजहां से पहले उनकी दरगाह पर माथा टेकना बहुत जरूरी होता है।
मान्यता है कि अगर कोई जायरीन शाहजहां की जियारत करने आया है तो उसे सबसे पहले पीर
हजरत अहमद बुखारी की दरगाह पर जाकर माथा टेकना होता है। उसके बाद शाहजहां की मजार पर
जाना चाहिए। लेकिन ताजमहल की लाइमलाइट में परंपराओं की अनदेखी की जा रही है। चारों
पीर बाबाओं के जन्नत में पहुंचने के बाद उन चारों की मजार ताज के चारों कोनों पर बनाई
गईं हैं। हजरत अहमद बुखारी शाह की मजार पूर्वी गेट के पास बनी हुई है। जलाल बुखारी
की पश्चिमी गेट के पास बनी हुई है। लाल बुखारी की थाना ताजगंज के परिसर में बनी हुई
है। अमजद बुखारी की दरगाह बिल्लोचपुरा (तेलीपाड़ा) में बनाई गई है। ऐसी मान्यता है कि
जब तक ताज के चारों ओर इनकी दरगाह मौजूद हैं तब तक ताज को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता.
इसलिए उर्स पर जियारत करने वाली श्रद्धालुओं के लिए मान्यता है कि अगर वे जियारत करने
शाहजहां की मजार पर जाना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले अहमद बुखारी की दरगाह पर आना
होगा. तभी उनकी जियारत पूरी होगी. शाहजहां के उर्स से पहले पीर अहमद बुखारी शाह का
उर्स शुरू होता है। लेकिन ताजमहल की चकाचैंध और लोगों की धारणा ने पीर बाबा को पीछे
कर दिया. यहां इस परंपरा को फॉलो नहीं किया जा रहा है। एक तरफ ताजमहल पर दिनभर में
50 से 60 हजार श्रद्धालु आकर चले जाते हैं वहीं, सैय्यद अहमद बुखारी की दरगाह पर आने
वाले श्रद्धालुओं की संख्या कुछ एक हजार होती है। इसके अलावा प्रशासन जितनी मुस्तैदी
से ताज परिसर में व्यवस्थाएं करता है उसके अपेक्षा में यहां ध्यान कम दिया जाता है।
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