रिटायरमेंट पुनर्जन्म से कम नहीं :- जब आदमी को ये पता चलता है
कि नौकरी के गिने-चुने दिन शेष रह गए हैं, तो वह समाप्त-सा ही हो जाता है, जिस दिन
व्यक्ति नौकरी शुरू करता है, उसकी सर्विस बुक में उसकी रिटायरमेंट की तारीख भी लिख
दी जाती है। किसी भी कर्मचारी का रिटायरमेंट किस दिन होगी, ये तो पहले से ही सबको पता
हो जाता है। इस दृष्टि से व्यक्ति की उलटी
गिनती नौकरी के प्रारंभ होने के साथ ही हो जाती है। उसे नौकरी प्रारंभ होने के साथ
ही समाप्त सा हो जाना चाहिए। वैसे तो व्यक्ति के पैदा होने के साथ ही उसकी उलटी गिनती
शुरू हो जाती है। इस धरती पर जो व्यक्ति पैदा हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इस
उपापोह में क्या व्यक्ति जीना ही छोड़ देगा ? नहीं, विल्कुल नहीं, मृत्यु के भय के कारण जीवन का परित्याग
नहीं किया जा सकता है।व्यक्ति हर हाल में अपने अंतिम क्षण तक जीने को अभिशप्त है। यदि
किसी का जीवन उत्तमता के साथ व्यतीत हो जाए तो कितना अच्छा होगा। इसी प्रकार जब तक
सेवाकाल का एक दिन भी शेष है, उसे महत्त्वपूर्ण मानते हुए केवल कर्म की ओर प्रवृत्त
होते रहना चाहिए । गीता में लिखा है, जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है
और मृत्यु के बाद उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में
किसी प्रकार शोक नहीं करना चाहिए। जीवनक्रम में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए शोक
रहित रहना जरूरी है। कर्तव्य का पालन करते हुए यदि मृत्य भी आए तो शोक नहीं करना चाहिए।
जब मृत्यु को भी शोक का कारण नहीं माना गया है तो रिटायरमेंट कैसे शोक का कारण हो सकता
है? यदि मृत्यु के बाद कोई पुनर्जन्म होता है, तो रिटायरमेंट के बाद की अवस्था उस पुनर्जन्म
से तनिक कम नहीं मानी जानी चाहिए। सेवानिवृत्ति जीवन का एक महत्वपूर्ण परिवर्तन होता
है। यह एक नए जीवन की शुरुआत ही नहीं, बल्कि एक तरह से पुनर्जन्म ही है। जीवन में हर नया पल, हर परिवर्तन पुनर्जन्म
ही होता है और हम इतनी बड़ी घटना को तटस्थ होकर देखते तो हैं, पर इसे पुनर्जन्म के रूप
में स्वीकार नहीं करते हैं। जिस प्रकार एक नारी के लिए प्रसव शारीरिक रूप से एक कष्टप्रद
स्थिति है, लेकिन प्रसव के बाद नारी का पुनर्जन्म ही तो होता है, जो अत्यंत आनंदप्रद
स्थिति जैसी ही होती है। आप भी रिटायरमेंट
को प्रसव के बाद की अवस्था या पुनर्जन्म की तरह ही मान लीजिए और चैन की जिन्दगी यापन
कीजिए।
सक्रियता
में कोई कमी नहीं :- प्रायः लोग कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद सक्रिय
जीवन का अवसान हो जाता है। मगर किसी महीने की अंतिम तारीख तक तो आप एकदम सक्रिय रहे,
लेकिन अगले महीने की पहली ही तारीख को प्रातः उठते ही आप अचानक निष्क्रिय कैसे हो गए?
यह वास्तव में हमारी सोच का दोष है। इसके लिए हममें एक पूर्वाग्रह बन गया है। इस स्थिति
से उबरना जरूरी है। रिटायर हम नहीं होते, रिटायर होता है हमारा कमजोर मन और उसमें उत्पन्न
विचार जो हमें रिटायर कर देते हैं। इस लिए कभी भी अपने को ना तो रिटायर समझना चाहिए
और ना ही टायर , अपितु इसे जीवन के एक कड़ी के रुप में अंगीकार करते रहना चाहिए। आप
देखते हैं शहरों एवं नगरों में वरिष्ठ नागरिक कितना अच्छा जीवन चर्या बना लेते हैं।
उन्हें जहवन यापन का पेंशन तो होता ही है साथ ही वह परिवार की जरुरतों के अनुसार विना
किसी खर्चे के एक सम्पूरक सपोर्ट की भी हैसियत में होते हैं। दादा दादी तथा नाना नानी
की महत्ता पहले भी थी और सदा रहेगी। बस इसे पहचानने व जीवन में ढ़ालने की जरुरत होती
है।
रिटायरमेंट
बेहतर नए जीवन की शुरुआत :- यह सिर्फ हमारी एक धारणा है कि साठ वर्ष के बाद
व्यक्ति की क्षमता कम हो जाती है, अतएव सेवानिवृत्ति हो जानीचाहिए। परिवर्तन सृष्टि
का नियम है। मनुष्य का जीवन भी परिवर्तन से अछूता नहीं रहता। रिटायरमेंट किसी अवस्था
विशेष की स्थिति नहीं है, बल्कि हर क्षण घटित होने वाली स्थिति है। जब भी मौका मिले,
रिटायर हो जाइए लेकिन अपने कमजोर मनोभावों तथा विकारों से रिटायर होइये । रिटायरमेंट
एक परिवर्तन है, एक नई शुरुआत है, एक बेहतर और नए जीवन की शुरुआत है ।
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