आगरा । ताज नगरी के मुहब्बत के शहर में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल एक नहीं
बल्कि तमाम हैं। आगरा के शाहगंज के देवरैठा में मुईन उल इस्लाम मदरसे में नई पीढ़ी
को सशक्त बनाने के साथ-साथ ऐसी तालीम भी दी जाती है कि हिंदू-मुस्लिम को अलग-अलग चश्मों
से देखने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। मोइन-उल-इस्लाम
मदरसा, हिन्दू और मुस्लिम दोनों कम्युनिटी से ताल्लुक रखने वाले तलबा में रवादारी की
इक़त्दार क़ीमत की बेहतरीन मिसाल है |मुल्क का इस्लामी तालीमी इदारा ये मदरसा,आगरा शहर
के दिल से बाहरी इलाक़े, देओरिथा इलाक़े में वाक़ेअ है |अंग्रेजी अख़बार में शाय एक
रिपोर्ट के मुताबिक़ यहाँ लड़के और लड़कियों को अरबी और संस्कृत दोनों सिखाये जाते हैं
| को –एजुकेशन निज़ाम को फरोग़ देने के लिए मदरसे में 400 से ज़ायद तलबा हैं, जिनमें
150 हिन्दू तालिब-ए-इल्म हैं, जो खूब रवानी से अरबी, संस्कृत ,उर्दू ,अंग्रेजी ,हिंदी
,पढ़ते और लिखते हैं | इसके अलावा, 1 से 8 क्लास तक के तालिब इल्मों के लिए मैथमेटिक्स,साइंस
,सोशल स्टडीज़,कम्प्यूटर की तालीम का भी इंतेज़ाम है | स्कूली रिकॉर्ड के मुताबिक़, प्राइमरी क्लासेस
में 40 फ़ीसद और 6- 8 क्लास में पढने वाले तालिब इल्मों में 60 फ़ीसद से ज़्यादा तालिब
इल्म हिन्दू हैं|
आगरा देवरैठा का मदरसा हिंदू-मुस्लिम
एकता की किसी मिसाल से कम नहीं है। यहां धर्म की दीवार तोड़ बच्चे उर्दू और संस्कृत
दोनों विषयों की शिक्षा एकसाथ गृहण कर रहे हैं। मुस्लिम बच्चे संस्कृत के श्लोकों का
उच्चारण जबकि हिंदू बच्चे कुरान की आयतें पढ़ते हैं। शिक्षक हों या बच्चे, सभी कहते
हैं, मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। कक्षा आठ की छात्रा निशा खान के मुंह से गायत्री
मंत्र का उच्चारण सुन लगेगा मानो इस बच्ची की जुबां पर स्वयं सरस्वती मां विराजमान
हो गई हैं। मासूम से चेहरे पर न तो किसी धर्म की परछाई दिखाई पढ़ती है और न ही किसी
प्रकार का धार्मिक भेदभाव। कक्षा सात के छात्र ऋषभ उर्दू सीखता है और कुरान की आयतें
भी पढ़ता है। कहता है कि भगवान और अल्लाह तो एक हैं लेकिन इंसान ने इन्हें अलग कर दिया
है। हिंदू-मुस्लिम होने से पहले हम इंसान है, और इंसान का धर्म है कि सभी की मदद करे।
मदरसे में तालीम लेने वाले ऐसे तमाम छात्र धार्मिक भेदभाव से परे हैं। उनके लिए जात-पात
कुछ नहीं, मानवता ही एकमात्र धर्म है। यहां बच्चों को उर्दू, अरबी, फारसी, संस्कृत,
हिंदी, गणित, विज्ञान आदि विषयों को पढ़ाया जाता है। दोनों ही धर्मों के बच्चों को
पढ़ाया जा रहा है सभी आपस में मिलकर प्रेम से रहते हैं। मुस्लिमों के साथ हिंदू बच्चे
भी उर्दू को सीखते हैं। सभी बच्चों को सुबह गायत्री मंत्र का पाठ कराया जाता है। संस्कृत
पढ़ने में बच्चों को आनंद भी मिलता है। किसी भी अभिभावक को संस्कृत या उर्दू पढ़ाने
से कोई दिक्कत नहीं है।
मदरसे के प्रिंसिपल/ प्रबंधक (शहर नायाब काजी) मौलाना उजेर आलम का कहना है कि हमने दीनी उल्मा और दूसरे लोगों से मशवरे के बाद संस्कृत पढ़ाना शुरू किया है
|इस तरह की शुरुआत करने के लिए यही ख्याल था कि मुतनासिब इल्म ,अख्लाकियात और ज़िन्दगी
में रवादारी के नुक़ते नज़र को लागू किया जाए | मदरसों को लेकर देश में भ्रम की स्थिति है। लोगों
की सोच को बदलने के लिए ही हमने दोनों धर्मों के बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया।शुरुआत
में यहां के लोगों को समझाने में परेशानी आई लेकिन अब सभी बच्चों के अभिभावक हमारे
इस प्रयास से काफी खुश हैं। हमारा काम समाज को अशिक्षा से बाहर निकालने का है।
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