पितरों का महत्व और श्राद्ध की परंपरा
धर्मग्रंथों में साफ लिखा है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, पर आत्मा अमर रहती है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने बताया है कि पितृ दोष से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए श्राद्ध व पिंडदान करना जरूरी है। यही वजह है कि आज भी यह माना जाता है कि अगर पितरों की आत्मा तृप्त है, तो परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
मोक्ष भूमि गया
वैसे तो देश में 55 से ज्यादा ऐसी जगहें हैं जहां पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के गया में इसका खास महत्व है। यही वह जगह है जहां परंपरा, कथा और आस्था तीनों एक साथ मिलते हैं। यही वजह है कि आज भी कोई बेटा या बेटी जब अपने पितरों की आत्मा की शांति चाहता है, तो पहला ख्याल गया का ही आता है।
गया की धरती पर कदम रखना एक हिन्दू के लिए बड़े पुण्य का काम है । कहा जाता है कि खुद भगवान विष्णु यहां पितृ देव के रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि गया का नाम आते ही लोगों की श्रद्धा और भी बढ़ जाती है।इतना ही नहीं पितृपक्ष में भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक देशभर से लाखों लोग यहां आते हैं।मान्यता है कि इन दिनों गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और परिवार पर से पितृ दोष दूर होता है।
गया धाम की कहानी:-
प्राचीन काल में गयासुर नाम के एक राक्षस ने कठिन तप किया और ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे एक वरदान मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाये । उसको देखने मात्र से ही लोगों के पाप कट जाएं और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो । गयासुर को मिले उस वरदान ने सृष्टि का संतुलन बिगाड़ दिया । लोग बिना किसी डर के पाप कार्यों में लिप्त होने लगे, क्योंकि उसके बाद गयासुर के दर्शन मात्र से ही उनके सारे पाप दूर हो जाते थे और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती थी । स्वर्ग और नर्क का सन्तुलन बिगड़ने पर देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद माँगी । तब भगवान विष्णु की सलाह से देवताओं ने गयासुर से यज्ञ करने हेतु पवित्र जमीन की मांग की । गयासुर की नजर में उसके शरीर से पवित्र कुछ नही था, इसलिए वह भूमि पर लेट गया और बोला कि आप लोग मेरे शरीर पर ही यज्ञ कर लीजिये । गयासुर का शरीर पाँच कोस जमीन पर फ़ैल गया । गयासुर के समर्पण से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने वरदान दिया कि अब से यह स्थान जहां तुम्हारे शरीर पर यज्ञ हुआ है वह गया के नाम से जाना जाएगा । यहां श्राद्ध करने वाले को पुण्य और पिंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्ति मिल जाएगी ।
ब्रह्माजी ने व्यासजी को बताया कि गया नामक असुर ने कठोर तपस्या से देवताओं और मनुष्यों को कष्ट दिया था। परेशान देवगण विष्णु जी के पास गए, जिन्होंने वध का आश्वासन दिया। शिवजी की पूजा के लिए क्षीरसागर से कमल लाते समय, विष्णुमाया से मोहित गया । असुर कीकट देश में शयन करने लगा। उसी समय श्री विष्णु ने अपनी गदा से उसका वध कर देवों और मनुष्यों का कल्याण किया। भगवान विष्णु ने इसके बाद घोषणा की कि उसकी देह अब पुण्यक्षेत्र के रूप में पूजनीय होगी। यहां किए गए यज्ञ, श्राद्ध और पिंडदान से भक्त स्वर्ग-ब्रह्मलोक की प्राप्ति करेंगे।
भारत के पिण्ड तर्पण के प्रमुख केन्द्र
प्राचीन में गया के पंचकोश में 365 वेदियां थीं, परंतु कालांतर में इनकी संख्या कम होती गई और आज यहां 45 वेदियां हैं जहां पिंडदान किया जाता है। पूरे विश्व में गया ही एक ऐसा स्थान है, जहां सात गोत्रों में 121 पीढि़यों का पिंडदान और तर्पण होता है। यहां पिंडदान में माता, पिता, पितामह, प्रपितामह, प्रमाता, वृद्ध प्रमाता, प्रमातामह, मातामही, प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही, पिताकुल, माताकुल, श्वसुर कुल, गुरुकुल, सेवक के नाम से किया जाता है। गया श्राद्ध का जिक्र कर्म पुराण, नारदीय पुराण, गरुड़ पुराण, वाल्मीकि रामायण, भागवत पुराण, महाभारत सहित कई धर्मग्रंथों में मिलता है।
1.विष्णुपद मंदिर:
गयासुर का पूरा शरीर ही आज का गया तीर्थ है। उसकी पीठ पर बने विष्णु भगवान के पैरों के निशान के ऊपर बनवाया गया भव्य मंदिर विष्णुपद मन्दिर के नाम से जाना जाता है।दंतकथाओं में कहा गया है कि गयासुर नामक दैत्य का बध करते समय भगवान विष्णु के पद चिह्न यहां पड़े थे। यह मंदिर 30 मीटर ऊंचा है जिसमें आठ खंभे हैं। इन खंभों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। यह मन्दिर हिन्दू मान्यताओं में भगवान विष्णु के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है । गया के पास ही स्थित पाथेरकट्टी पहाड़ी से लायी गई ग्रेनाइट की चट्टानों से इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने 18वी शताब्दी में इस मन्दिर का निर्माण राजस्थान से ख़ास तौर से बुलाये गये लगभग 1200 शिल्पकारों से करवाया । मंदिर के निर्माण में लगभग 12 वर्ष लगे ।मन्दिर के अंदर गर्भगृह में एक बेसाल्ट की चट्टान के उपर भगवान विष्णु के पैर के निशान आज भी मौजूद हैं, जिसको धर्मशिला के नाम से जाना जाता है ।प्रांगण के अंदर अन्य मंदिर भी स्थित हैं। एक भगवान नरसिम्हा को समर्पित है और दूसरा फाल्ग्विस्वर के रूप में भगवान शिव को समर्पित है।
2.फल्गु निरंजना नदी :-
फल्गु नदी के तट पर स्थित यह स्थान पितरों के मोक्ष के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. जिस फल्गु नदी को मोक्षदायिनी गंगा से भी पवित्र माना गया, वह गया धाम में अपने अस्तित्व के लिए ही जूझती मिली । सीता के श्राप ने फल्गु को अंतः सलीला (सतह के नीचे से बहने वाली) बना दिया, लेकिन फिर उसी फल्गु को गंगा से भी पवित्र माना गया। यही फल्गु नदी बोधगया में निरंजना के नाम से जानी गयी ।
3.प्रेत शिला मंदिर :-
प्रेतशिला गया शहर से लगभग 8 किमी उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। यह हिंदूओं का एक पवित्र स्थान हैं, जहां वे पिंड दान (दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए एक धार्मिक अनुष्ठान) करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और लोगों का मानना है कि इस स्थान पर पिंडदान करने के बाद आत्मा को मोक्ष मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां की पड़ाही पर मृत्यु के देवता भगवान यम को समर्पित एक मंदिर है। मंदिर का निर्माण शुरू में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था लेकिन इसका कई बार जीर्णोद्धार किया गया। आप मंदिर के पास रामकुंड नामक एक तालाब देख सकते हैं, ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने एक बार इसमें स्नान किया था।
यह गया शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक पर्वत है जिसके ऊपर प्रेतशिला वेदी है। यह स्थान गया शहर से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। पहुंचने के लिए 676 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, लेकिन जो लोग चढ़ नहीं पाते हैं, वे डोली का सहारा लेते हैं। मान्यता है कि यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वे प्रेत योनि से मुक्त होते हैं, खासकर अकाल मृत्यु वाले लोगों की आत्माओं को मुक्ति मिलती है।
4.अक्षय वट गया :-
पितृपक्ष के अंतिम दिन या यूं कहा जाए कि गया के माड़नपुर स्थित अक्षयवट स्थित पिंडवेदी पर श्राद्धकर्म कर पंडित द्वारा दिए गए सुफल के बाद ही श्राद्धकर्म को पूर्ण या सफल माना जाता है।यह परंपरा त्रेता युग से ही चली आ रही है। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की नगरी गया से थोड़ी दूर स्थित माढ़नपुर स्थित अक्षयवट के बारे में कहा जाता है कि इसे खुद भगवान ब्रह्मा ने स्वर्ग से लाकर रोपा था। इसके बाद मां सीता के आशीर्वाद से अक्षयवट की महिमा विख्यात हो गई। सीता जी द्वारा पिण्ड दान करने पर पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षयवट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली।अक्षयवट के निकट भोजन करने का भी अपना अलग महत्व है। अक्षयवट के पास पूर्वजों को दिए गए भोजन का फल कभी समाप्त नहीं होता।
5.सीता कुण्ड गया :-
सीताकुंड विष्णुपद मंदिर के ठीक विपरीत दिशा में स्थित है। सांस्कृतिक दृष्टि से इस कुंड का विशेष महत्व है। इस कुंड को लेकर ऐसा कहा जाता है कि 14 वर्ष के लिए वनवास जाते समय सीता माता ने इसी कुंड में स्नान किया था। इसी वजह से इस कुंड का नाम सीता कुंड पड़ा।
सीता कुंड, गया में स्थित एक पवित्र जलस्रोत है, जो माता सीता की तपस्या और पवित्रता से जुड़ा हुआ है। यह स्थल धार्मिक आस्था का केंद्र है और यहाँ मकर संक्रांति व रामनवमी जैसे पर्वों पर विशेष स्नान का महत्व माना जाता है। कुंड के पास एक छोटा मंदिर भी स्थित है, जहाँ श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।सीता कुंड का जल आज भी साफ़ और निर्मल बना हुआ है, जिसे आस्था के साथ पिया और संग्रहित किया जाता है। आसपास का प्राकृतिक वातावरण इसे और अधिक आध्यात्मिक बनाता है।
6.धर्मारण्य वेदी, गया:-
निरंजना के तट पर स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ।धर्मारण्य पिंडवेदी है, यहां श्राद्ध करने से विभिन्न बाधाओं से मुक्ति मिलती है, पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है. चाहे किसी की आत्मा भटक रही हो, या किसी का परिवार विभिन्न रोगों से ग्रसित हो या फिर संतान ना हो, शादी ना हो रही हो, या फिर अन्य कोई भी बाधा हो, अगर लोग यहां पिंडदान करते हैं तो उन्हें उक्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है, साथ ही पितरों का उद्धार होता है. इस वेदी पर श्राद्ध कर्मकांड करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. महाभारत काल में स्वयं युधिष्ठिर ने भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहां पिंडदान किया था. इसलिए इस पिंडवेदी का बहुत ही महत्व है. यह स्थान पर पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इस पवित्र स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। माना जाता है कि यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा सभी देवी-देवता विराजमान हैं। गया का महत्व इसी से पता चलता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया गया था। वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी गया शहर का वर्णन किया गया है।
कालांतर से चली आ रही तर्पण व पिंडदान की प्रक्रिया पावन भूमि गया के आसपास स्थित पिंडवेदियों पर आज भी जारी है। स्कंद पुराण के अनुसार, महाभारत के युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में धर्मारण्य वेदी की गणना की जाती है। माना जाता है कि धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यहां किए गए पिंडदान व त्रिपिंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है और सभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
7.बोधगया :-
मुख्य शहर से थोड़ी दूर पर स्थित बोधगया में पीपल के पेड़ (जिसे बाद में बोधि वृक्ष का नाम मिला) के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई । पुराने शहर के पास बहती फल्गु नदी के किनारे हर साल पितृपक्ष के 15 दिनों में लाखों लोग गया तीर्थ की धरती पर अपने पितरों का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करके उनके मोक्ष की कामना करते हैं । पितृपक्ष के परे भी यह सिलसिला साल भर चलता ही रहता है । ज्ञान और मोक्ष के इसी संगम ने गया को मुक्तिधाम बना दिया । यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ज्ञान का सागर है और हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए मोक्ष का द्वार है ।गया तीर्थ में पिंडदान के लिए सिर्फ फल्गु नदी का किनारा ही नहीं है, बल्कि ऐसी कई सारी वेदियाँ हैं, जहाँ पिंडदान और श्राद्ध के कार्यक्रम विधिपूर्वक संपन्न होते हैं ।
8.मंगला गौरी मंदिर गया:-
मंगला गौरी मंदिर 15वीं सदी में बना है। यह देवी सती को समर्पित 52 महाशक्तिपीठों में गिना जाता है, जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। यह मंदिर पहाड़ी पर विराजमान है। मंगला गौरी मंदिर बिहार के गया जिले में, भस्मकूट पर्वत पर स्थित एक प्रमुख शक्ति पीठ है, जहाँ सती माता का वक्षस्थल गिरा था और यह 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है. यह मंदिर दया की देवी माता मंगला गौरी को समर्पित है।
9.राम शिला पहाड़ी गया :-
रामशिला पहाड़ी बिहार के गया जिले में स्थित एक प्राचीन और पवित्र स्थल है, जहां भगवान राम से जुड़ी मान्यताएं हैं और यह धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. यह पहाड़ी अपने मनमोहक नजारों और हरियाली के लिए भी जानी जाती है, जो इसे एक लोकप्रिय स्थल बनाती है।
10.प्रयागराज,संगम तट:-
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश: तीर्थों के राजा प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर पिंडदान करने से पितरों को सारे पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है।
11. उज्जैन, मध्यप्रदेश: -
महाकाल की नगरी उज्जैन में लोग काल सर्प दोष और पितृ दोष निवारण की पूजा करने के लिए देश-दुनिया से आते हैं. क्षिप्रा नदी के तट पर पूर्वजों के लिए पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यता है कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे पिंडदान कराने का फल गयाजी में पिंडदान कराने जितना ही मिलता है।
12. द्वारका, गुजरात:- भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका में भी गोमती नदी के तट पर पिंडदान किया जाता है।कृष्ण भक्त यहां विशेष रूप से आते हैं।
13. पुरी, ओडिशा:-महानदी और भार्गवी नदी के संगम तट पर स्थित यह पवित्र स्थान पितरों को पुण्य और शांति प्रदान करता है। जगन्नाथ मंदिर के लिए प्रसिद्ध पुरी में भी समुद्र तट पर पिंडदान कराया जाता है। मान्यता है कि 'स्वर्गद्वार' नामक स्थान पर पिंडदान करने से पितरों को सीधे स्वर्ग में प्रवेश मिलता है।
14.पिशाच मोचन कुंड, काशी:-
काशी में स्थित पवित्र पिशाच मोचन कुंड में पितरों को सभी बंधनों से मुक्त करने की विशेष शक्ति मानी जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, इस स्थान का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि एक परेशान आत्मा यहाँ स्नान करने के बाद शांत हो गई थी। गरुड़ पुराण में वर्णन है कि इस कुंड को स्वयं भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया था। जब परिवार इस पवित्र स्थान पर पिंडदान और तर्पण करते हैं, तो माना जाता है कि पितरों को तत्काल संतुष्टि और मुक्ति प्राप्त होती है। कुंड के चारों ओर प्राचीन पीपल के पेड़ हैं, जहाँ ऐसा कहा जाता है कि पितरों की आत्माएँ अपने वंशजों द्वारा याद किए जाने की प्रतीक्षा करती हैं। विश्वास है कि यहाँ अनुष्ठान करने के बाद भक्तों को पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिलती है। गंगा जल से मिश्रित इस कुंड का पानी पितृ दोष को दूर करने और पारिवारिक जीवन में शांति लाने के लिए अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है।
15.बद्रीनाथ (उत्तराखंड):
यहां अलकनंदा नदी के तट पर स्थित ब्रह्मकपाल क्षेत्र में पिंडदान करने से बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.
16.हर की पौड़ी,हरिद्वार (उत्तराखंड):
हरिद्वार, उत्तराखंड: हरिद्वार में हर की पौड़ी पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
पिंडदान के लिए उत्तराखंड के हरिद्वार को शुभ माना गया है। कहते हैं कि हरिद्वार में पिंडदान करने से ज्यदा फल मिलता है। खासतौर से जिनके पितृ प्रेत योनि में भटक रहे हैं, उनके लिए हरिद्वार में श्राद्ध करना फलदायी है। मान्यता है कि हरिद्वार में गंगा नदी में पितरों का तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
17.नारायणी शिला, हरिद्वार:-
भगवान विष्णु के श्रीविग्रह के तीन महत्वपूर्ण अंग तीन अलग-अलग तीर्थों में स्थित हैं। चरण बिहार के गया में विष्णुपाद मंदिर में, शीर्ष भाग उत्तराखंड के बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल पर और कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार की नारायणी शिला में है। इसी कारण इस स्थान को हृदय स्थल कहा जाता है।गंगा तट पर स्थित इस शिला के दर्शन मात्र से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और यहां किया गया पिंडदान व श्राद्ध पितृों को मोक्ष प्रदान करता है।
शास्त्र कहते हैं कि हरिद्वार में भगवान विष्णु का स्थान है। यहां जो भी भक्ति भाव से अपने पितरों के लिए मनोकामना करता है, वह सीधे भगवान विष्णु तक पहुंच जाती है। इसलिए इस जगह का वर्णन पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है।शास्त्र कहते हैं कि हरिद्वार में भगवान विष्णु का स्थान है। यहां जो भी भक्ति भाव से अपने पितरों के लिए मनोकामना करता है, वह सीधे भगवान विष्णु तक पहुंच जाती है। इसलिए इस जगह का वर्णन पुराणों, धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है।
18.कुशावर्त घाट -
हरिद्वार में पिंडदान करना है, तो कुशावर्त घाट अच्छी जगह है। ज्यादातर लोग यहीं पिंडदान करते हैं।
19.पुष्कर (राजस्थान):
ब्रह्म सरोवर पर श्राद्ध कर्म करने के लिए यह प्रसिद्ध है.
20.नासिक (महाराष्ट्र):
गोदावरी नदी के तट पर त्रयंबकेश्वर के पास श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है.
21.कुरुक्षेत्र (हरियाणा):
पितरों के मोक्ष के लिए कुरुक्षेत्र में भी पिंडदान का विधान है.
22.द्वारिका (गुजरात):
पिण्डारक नामक तीर्थ क्षेत्र में श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है.
23.लक्ष्मण बाण कुंड (कर्नाटक):
यह रामायण काल से जुड़ा स्थान है, जहां भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था.
24.भरत कुंड
भरत कुंड, जिसे नंदीग्राम भी कहा जाता है, अयोध्या के पास स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए हजारों लोग हर दिन पिंडदान के लिए यहां पहुंचते हैं। इसे गया बेदी भी कहा जाता है।
25.सरयू नदी
अयोध्या पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित है, और नदी के किनारे भी पिंडदान के अनुष्ठान किए जाते हैं।
यहां लोग नदी में डुबकी लगाते हैं और फिर ब्राह्मणों की देखरेख में अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान व हवन का अनुष्ठान करते हैं।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
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