Wednesday, May 7, 2025

बस्ती जनपद के स्थापना (6 मई ) का 161वां साल # आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी


बस्ती का इतिहास :- 'बस्ती को बस्ती कहूं, काको कहू उजाड़' किसी और कालखण्ड में कहा गया था, बात 160 साल पुरानी हो गयी है। बस्ती न तब विभूतियों से खाली से थी और न आज। बस्ती जनपद की प्रतिभायें देश के कोने कोने में सम्मानित हो रही हैं, बस्ती का अपना पौराणिक महत्व है, ऐसे में बस्ती को उजाड़ कहकर सम्बोधित करना जनपद के साथ न्याय नही होगा। बस्ती जनपद के बारे में पूर्व की धारणाओं को से ऊपर उठने की जरूरत है।
      किंवदंतियों के अनुसार, सदियों से बस्ती एक जंगल था और अवध की अधिक से अधिक भाग पर भार कब्जा था। भार के मूल और इतिहास के बारे में कोई निश्चित प्रमाण शीघ्र उपलब्ध नही है। जिला में एक व्यापक भर राज्य के सबूत के रुप मे प्राचीन ईंट इमारतों के खंडहर लोकप्रिय है जो जिले के कई गांवों मे बहुतायत संख्या में फैले है। बस्ती जनपद 160 साल का हो गया है जी हां बस्ती अपनी वर्षगांठ मनाएगा। 
     प्राचीन काल में बस्ती को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ऋषि के नाम पर वाशिष्ठी के नाम से जाना जाता रहा, कहा जाता है कि उनका यहां आश्रम था। अंग्रेजों के जमाने में जब यह जिला बना तो निर्जन,वन और झाड़ियों से घिरा था। लोगों के प्रयास से यह धीरे-धीरे बसने योग्य बन गया। वर्तमान नाम राजा कल्हण द्वारा चयनित किया गया था। यह बात 16वीं सदी की है। 
      गोरखपुर सरकार का भाग होते हुए 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बना और 6 मई 1865 को गोरखपुर से अलग होकर नया जिला मुख्यालय घोषित किया गया। अयोध्या से सटा यह जिला प्राचीन काल में कोशल देश का हिस्सा था। रामचंद्र राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे जिनकी महिमा कौशल देश में फैली हुई थी जिन्हें एक आदर्श वैध राज्य, लौकिक राम राज्य की स्थापना का श्रेय जाता है। परंपरा के अनुसार राम के बड़े बेटे कुश कौशल के सिहासन पर बैठे जबकि छोटे लव को राज्य के उत्तरी भाग का शासक बनाया गया जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। इक्ष्वाकु से 93वीं पीढ़ी और राम से 30 वीं पीढ़ी में बृहद्वल था। यह इक्ष्वाकु शासन के अंतिम प्रसिद्ध राजा थे,जो महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह में मारे गए थे। भगवान बुद्ध के काल में भी यह क्षेत्र शेष भारत से अछूता न रहा। कोशल के राजा चंड प्रद्योत के समय यह क्षेत्र कोशल के अधीन रहा। गुप्त काल के अवसान के समय समय यह क्षेत्र कन्नौज के मौखरी वंश के अधीन हो गया। 9वीं शताब्दी में यह क्षेत्र फिर पुन: गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट के अधीन हो गया।1225 में इल्तुतमिश का बड़ा बेटा नासिर उददीन महमूद अवध का गवर्नर बन गया और इसने स्थानीय रूप से सत्ता में आए भार जाति के शासक लोगों के सभी प्रतिरोधों को पूरी तरह कुचल डाले थे। 1479 में बस्ती और आसपास के जिले जौनपुर राज्य के शासक ख्वाजा जहान के उत्तराधिकारियों के नियंत्रण में था। बहलूल खान लोधी अपने भतीजे काला पहाड़ को इस क्षेत्र का शासन दे दिया था। उस समय महात्मा कबीर,प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक इस जिले के मगहर में रहते थे। अकबर और उनके उत्तराधिकारी के शासनकाल के दौरान बस्ती अवध सूबे गोरखपुर सरकार का एक हिस्सा बना हुआ था। 1680 में मुगलकाल के दौरान औरंगजेब ले एक दूत काजी खलील उर रहमान को गोरखपुर भेजा था। उसने ही गोरखपुर से सटे सरदारों को राजस्व भुगतान करने को मजबूर किया था। अमोढ़ा और नगर के राजा को जिन्होंने हाल ही में सत्ता हासिल की थी राजस्व का भुगतान करने को तैयार हो गए। रहमान मगहर गया,यहां उसने चौकी बनाई और राप्ती के तट पर बने बांसी राजा के किले को कब्जा कर लिया। नवनिर्मित जिला संतकबीरनगर का मुख्यालय खलीलाबाद शहर का नाम खलील उर रहमान से पड़ा,जिसका कब्र मगहर में मौजूद है। उसी समय गोरखपुर से अयोध्या सड़क का निर्माण हुआ था। एक महान और दूरगामी परिवर्तन तब आया जब 9 सितंबर 1772 में सआदत खान को अवध सूबे का राज्यपाल नियुक्त किया गया जिसमें गोरखपुर का फौजदारी भी था। उस समय बांसी और रसूलपुर पर सर्नेट राजा का,बिनायकपुर पर बुटवल के चौहान का,बस्ती पर कल्हण शासक का,अमोढ़ा पर सूर्यवंश का , नगर पर गौतम का,महुली पर सूर्यवंश का शासन था। अकेले मगहर पर नवाब का शासन था। मुस्लिम शासन काल में यह क्षेत्र कभी जौनपुर तो कभी अवध के नवाबों के अधीन होता रहा।
बस्ती जनपद मुख्यालय की स्थापना :- अंग्रेजों ने मुस्लिमों से जब यह इलाका प्राप्त किया तो गोरखपुर को अपना मुख्यालय बनाया। शासन सत्ता सुचारू रूप से चलाने और राजस्व वसूली के लिए अंग्रेजों ने 1865 में इस क्षेत्र को गोरखपुर से अलग किया। 6 मई 1865 को गोरखपुर जिले से कटकर से बस्ती जनपद का मुख्यालय बना। 1988 में इस विशाल जिले के उत्तरी हिस्से को काटकर सिद्धार्थ नगर जिला बनाया गया। 1997 में बस्ती के पूर्वी खलीलाबाद को केन्द्रित हिस्से को काटकर संतकबीरनगर जिला बनाया गया। बाद में जुलाई 1997 में बस्ती मंडल मुख्यालय बनाया गया। इसमें तीन जिले बस्ती, सिद्धार्थ नगर तथा संत कबीर नगर तथा तीन संसदीय क्षेत्र बस्ती डुमरियागंज तथा खलीलाबाद बने। 
जनपद वर्तमान समस्याएं :- 
यातायात जाम की समस्या:- 
फुटपाथों पर दुकानदारों के अतिक्रमण और शहर में पार्किंग की व्यवस्था न होने के  कारण सभी प्रमुख सड़कों पर जाम लग जाता है. ठेले और बेतरतीब चलने वाले ई-रिक्शा भी जाम की समस्या को बढ़ाते हैं. शहर में जाम की समस्या का स्थायी निदान चाहिए। चौराहों पर अतिक्रमण की समस्या बड़ी है। ऑफिस और स्कूल खुलने-बंद होने के समय बेतरतीब चलने वाले ई-रिक्शा भी मुसीबत हैं। शहर में पार्किंग जोन न होने से गांधीनगर क्षेत्र में बीच सड़क पर वाहन खड़े होते हैं जो स्थाई समाधान नहीं कहे जा सकते हैं। 
ओवर ब्रिज की सख्त जरूरत :- 
कप्तान गंज, कलवारी, दुबौला चौराहा , रोडवेज चौराहा,जिला अस्पताल चौराहा आदि स्थलों पर फ्लाई ओवर ब्रिज की सख्त आवश्यकता है। इससे जाम 
और यातायात में सुधार होगा।
अस्पताल और मेडिकल की समस्याएं:
जिला अस्पताल और मेडिकल कालेज में पर्चा काउंटर और ओपीडी में मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है, और दवाओं की कमी भी बनी रहती है. कुछ दलाल किस्म के लोग मरीजों को गुमराह करके अपने कमीशन के चक्कर में प्राइवेट अस्पतालों को लाभ पहुंचाते हैं। 
विकास की नई गति :- 
शासन व संगठन में सामंजस्य स्थापित कर विकास की गति को अंजाम दिया जा सकता है। पूर्वांचल को प्रदेश का नेतृत्व करने का अवसर सदियों में कभी कभी ही आता है। कांग्रेस के नेता स्व. बीरबहादुर सिंह के बाद यह दायित्व माननीय योगी जी पर आया है। इसका सार्थक समाधान माननीय योगी जी को ही खोजना है कि उनके अधिकारी उनकी नीतियों को सही ढ़ंग से क्रियान्वित कर सकें तथा जनता की समस्याओं का निदान भी जन प्रतिनिधियों के सुझाव व सम्मान के साथ हो सके। 
कल्याणकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन :- 
यदि वर्तमान सरकार व जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका का बेहतर निर्वहन करें तो कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है। बेरोजगारी, अशिक्षा, चिकित्सा, शिक्षा क्षेत्र का अभाव बस्ती मण्डल की बडी चुनौतियां है। आजादी के 7 दशक बाद भी बाढ पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो सका है। औद्योगिक विकास के लिये प्रभावी संसाधन जुटाये जाने की जरूरत है, जिससे युवाओं के पलायन पर रोक लग सके। बस्ती मण्डल का स्वरूप तभी विकसित होगा जब कल कारखानें चलें और पौराणिक, ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाय। इस जिले का थीम सांग "नगर है ये खास नाम है इसका बस्ती " इस लिंक से देखा जा सकता है - 
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