Monday, January 13, 2025

बस्ती के छंदकार भाग 3 चतुर्थ चरण की विशेषतायें (कड़ी 2)

      बस्ती के छंदकार भाग 3 
चतुर्थ चरण की विशेषतायें (कड़ी 2)
लेखक डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' 
संपादक आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

           संपादकीय टिप्पणी 
अपने जीवन काल में आदरणीय डॉ मुनि लाल उपाध्याय "सरस" जी ने इस शोध प्रबंध के प्रारंभिक तीन अध्यायों को दो पृथक पृथक लघु पुस्तकों के रूप में क्रमशः 2006 और 2008 में प्रकाशित कराया था। ये अध्याय इस प्रकार हैं - 
1.प्रथम अध्याय-आदिचरण अथवा प्रथम चरण अथवा पीताम्बर लक्षीराम चरण
2. द्वितीय अध्याय - मध्य चरण अथवा द्वितीय चरण अथवा रंगपाल चरण।
3. मध्यौत्तर चरण अथवा तृतीय चरण अथवा कलाधर-पाल-ब्रजेश चरण ।
4. आधुनिक चरण अथवा चतुर्थ चरण
आधुनिक चरण अथवा चतुर्थ चरण में चतुर्थ अध्याय को आधुनिक चरण अथवा चतुर्थ चरण के नाम से संदर्भित किया गया है। जो इस कृति का मुख्य वर्ण विषय है। उक्त एक से तीन अध्याय की विषय सामग्री भाग 1 व भाग 2 की पुस्तक में पूर्व में ही प्रकाशित हो चुकी है ।
       बस्ती जनपद के छन्द-परम्परा का तृतीय चरण जिस तरह द्वितीय चरण के छन्दकारो से पूर्णत. प्रभावित रहा उसी तरह से तृतीय चरण से चतुर्थ चरण भी पूर्णत. प्रभावित हुआ है। आचार्य रामदेव सिंह "कलाधर", सुकवि रामाश्रय सिंह "रसकेन्दु", बद्री पाल पंडित मातादीन त्रिपाठी "दीन", आदि तृतीय चरण के बर्चस्वी छन्दकारों ने चतुर्थ चरण के कवियों को हर सम्भव सहयोग देने के लिए अपनी प्ररेणा प्रदान करते रहे हैं।

                   विशेषतायें

1- घनाक्षरी, दोहा और सवैया छन्द ब्रजभाषा के साथ खड़ी बोली और भोजपुरी मैं भी लिखे जाने लगे।

2- खड़ी बोली के खण्ड काव्य और प्रबंध काव्य अच्छे स्वर के लिखे गये ।

3- गीत, नवगीत, अगीत के साथ-साथ गजल आदि लिखने की परम्परा इस चरण के कवियों में अधिक पाई गई ।

4- इस चरण कै छन्दकारों का युग और उनके नेशन का समय प्राय स्वाधीनता के बाद से जोड़ा गया है। भारतीय समाज का चित्रण और राजनीति का प्रभाव आदि इस काल मैं अधिक दिखाया गया है।

5- अधिकाशत. छन्दकारों ने उत्कृष्ट गद्य साहित्य भी लिखा है। डा० राम नारायण पाण्डेय, डा राम जवाहर द्विवेदी, डा० मधुर नारायण मिश्र आदि प्रतिष्ठित समालोचकों ने छन्दों के विकास में अपना अच्छा योगदान दिया है ।

6- इस चरण में छन्दकारों के छन्दों के प्रकाशन के लिये साहित्यिक पत्रिकाये भी प्रकाशित की गयी। इसमे पं० केशरीधर द्विवेदी का अद्यतन", बाल सोम गौतम का "कबीर" और "मौलिश्री", रामदास पाण्डेय का "अनेक किन्तु एक, रामकृष्ण जगमग की "मंजरी मौलिश्री" तथा डा० परमात्मा नाथ द्विवेदी का "दूर्वादल" साहित्यिक पत्र छन्द परम्परा के विकास में अधिक उपयोगी हुआ है ।













No comments:

Post a Comment