Wednesday, May 28, 2025
हिन्दू धर्म के प्रमुख शैव संप्रदाय # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
Wednesday, May 21, 2025
हिन्दू वैष्णव या भागवत संप्रदाय में विभिन्न मतावलंबियों की लम्बी शृंखला # आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
हिंदू धर्म में अनेक संप्रदाय है। ये स्वायत्त प्रथाओं और मठवासी केंद्रों के साथ शिक्षण परंपराएं हैं, जिनमें एक गुरु वंश होता है, जिसमें अनुयायियों की प्रत्येक पीढ़ी द्वारा विचारों को विकसित और प्रसारित, पुनर्परिभाषित और समीक्षा की जाती है। एक विशेष गुरु वंश को परम्परा कहा जाता है । जीवित गुरु की परम्परा में दीक्षा प्राप्त करके , व्यक्ति अपने उचित संप्रदाय से संबंधित होता है ।
हिंदू धर्म की सभी विचारधारा या संप्रदाय वेद से निकले हैं। वेदों में ईश्वर, परमेश्वर या ब्रह्म को ही सर्वोच्च शक्ति माना गया है। सदाशिव, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, काली आदि सभी उस सर्वोच्च शक्ति का ही ध्यान करते हैं। सभी संप्रदाय मूल में उसी सर्वोच्च शक्ति के बारे में बताते हैं।
वैष्णव या भागवत सम्प्रदाय :-
वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है. इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं।
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है. वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है. इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं। और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय. वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है.
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है. वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है. इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय. वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है।
वैष्णववाद हिंदू धर्म की एक भक्ति धारा है, जो भगवान विष्णु को सर्वोच्च भगवान ( स्वयं भगवान ) के रूप में पूजती है। स्वयं विष्णु के साथ-साथ, इस संप्रदाय के अनुयायी विष्णु के दस अवतारों ( दशावतार ) की भी पूजा करते हैं।
विष्णु के दो सबसे अधिक पूजे जाने वाले अवतार कृष्ण हैं (विशेषकर कृष्णवाद में सर्वोच्च के रूप में) और राम, जिनकी कहानियाँ क्रमशः महाभारत और रामायण में बताई गई हैं । इस संप्रदाय के अनुयायी आम तौर पर गैर-तपस्वी, मठवासी और ध्यान अभ्यास और परमानंद जप के प्रति समर्पित होते हैं। वैष्णववाद की विशेषता कई संतों, मंदिरों और शास्त्रों के प्रति विविध पालन है।
विभिन्न वैष्णव सम्प्रदाय:-
वैष्णव भागवत धर्म एक विशाल सागर की भांति है जिसमें थोड़े थोड़े अलग अलग पूजा पद्धतियों की एक लम्बी शृंखला है - दत्तात्रेय संप्रदाय, सौर संप्रदाय, पांचरात्र मत, वैरागी, दास, रामानंद-रामावत संप्रदाय, वल्लभाचार्य का रुद्र या पुष्टिमार्ग, निम्बार्काचार्य का सनक संप्रदाय, आनंदतीर्थ का ब्रह्मा संप्रदाय, माध्व, राधावल्लभ, सखी, चैतन्य गौड़ीय, वैखानस संप्रदाय, रामसनेही संप्रदाय, कामड़िया पंथ, नामदेव का वारकरी संप्रदाय, पंचसखा संप्रदाय, अंकधारी, तेन्कलै, वडकलै, प्रणामी संप्रदाय अथवा परिणामी संप्रदाय, दामोदरिया, निजानंद संप्रदाय- कृष्ण प्रणामी संप्रदाय, उद्धव संप्रदाय- स्वामी नारायण, एक शरण समाज, श्री संप्रदाय, मणिपुरी वैष्णव, प्रार्थना समाज, रामानुज का श्रीवैष्णव, रामदास का परमार्थ आदि।
वैष्णव धर्म या सम्प्रदाय से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:-
(1) वैष्णव धर्म के बारे में सामान्य जानकारी उपनिषदों से मिलती है. इसका विकास भगवत धर्म से हुआ है.
(2) वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे, जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा था.
(3) कृष्ण का सबसे पहले उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में देवकी के बेटे और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ.
(4) विष्णु के अवतारों का उल्लेख मत्स्यपुराण में मिलता है.
(5) शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, लेकिन मत्स्य पुराण में प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं:
(i) मत्स्य
(ii) कच्छप
(iii) वराह
(iv) नृसिंह
(v) वामन
(vi) परशुराम
(vii) राम
(viii) कृष्ण
(ix) बुद्ध
(x) कल्कि
(6) 24 अवतारों का क्रम इस तरह है:
(i) आदि परषु
(ii) चार सनतकुमार
(iii) वराह
(iv) नारद
(v) नर-नारायण
(vi) कपिल
(vii) दत्तात्रेय
(viii) याज्ञ
(ix) ऋषभ
(x) पृथु
(xi) मतस्य
(xii) कच्छप
(xiii) धनवंतरी
(xiv) मोहिनी
(xv) नृसिंह
(xvi) हयग्रीव
(xvii) वामन
(xviii) परशुराम
(xix) व्यास
(xx) राम
(xxi) बलराम
(xxii) कृष्ण
(xxiii) बुद्ध
(xxiv) कल्कि
(7) वैष्णव धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया है.
(8) ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है. वैष्ण ग्रंथ इस प्रकार ...
1.) ईश्वर संहिता
(ii) पाद्मतन्त
(iii) विष्णुसंहिता
(iv) शतपथ ब्राह्मण
(v) ऐतरेय ब्राह्मण
(vi) महाभारत
(vii) रामायण
( viii) विष्णु पुराण
(9) वैष्ण तीर्थ इस प्रकार हैं:
(i) बद्रीधाम
(ii) मथुरा
(iii) अयोध्या
(iv) तिरुपति बालाजी
(v) श्रीनाथ
(vi) द्वारकाधीश
(10) वैष्णव संस्कार इस प्रकार हैं:
(i) वैष्णव मंदिर में विष्णु राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं. एकेश्वरवाद के प्रति कट्टर नहीं हैं.
(ii)इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं.
(iii) इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं.
(iv) ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं.
(v) यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं.
(vi) जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं.
vii) वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं.
(viii) वैष्णव दाह संस्कार की रीति हैं.
(ix) यह चंदन का तीलक खड़ा लगाते हैं.
11) वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी कहा जाता है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
मोबाइल नंबर +91 8630778321;
वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)
Sunday, May 18, 2025
पौराणिक काल के 24 चर्चित श्राप और उनके पीछे की कथा आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी
हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर मिलती है। आज हम आपको हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित 24 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कथा बताएँगे।
1. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप : - महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि – आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी।
2. ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप: महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।
3. माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप: महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।
तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।
तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।
4. नंदी का रावण को श्राप: -
रावण ने ही शिव तांडव की रखना की थी। वो तंत्र, ज्योतिष और अस्त्र-शस्त्र का ज्ञाता था। इस कारण देवता भी उससे डरते थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण शंकर जी से मिलने कैलाश पर्वत गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। इससे नाराज होकर नंदी ने रावण को श्राप दिया कि बंदर ही तेरा सर्वनाश का कारण बनेंगे।
5. कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप : - महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।
6. उर्वशी का अर्जुन को श्राप : - महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।
7. तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप : - शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया। तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है।
8. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप : - पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।
ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।
9.राजा अनरण्य का शाप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।
10. परशुराम का कर्ण को श्राप : - महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।
11.विष्णु की तपस्वनी का रावण को शाप
एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे जंगल में एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसे अपने साथ चलने के लिए जबरदस्ती की तो इसने अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि स्त्री ही तेरी मौत का कारण बनेगी।
12. गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप : - महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ।
13. महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप: महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।
14.शूपनखा का रावण को शाप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।
15. ऋषियों का साम्ब को श्राप : - महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।
16. दक्ष का चंद्रमा को श्राप : - शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी। ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने। तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।
17.शंभर पत्नी माया का शाप
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी कामवासना को शांत करने के लिए अपनी बातों में फंसा लिया। लेकिन जब इसका शंभर को लगा तो उसने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इसमें शंभर मारा गया। पति की मृत्यु के बाद जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने उसे श्राप देते हुए कहा कि तुमने अपनी कामवासना के लिए मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई। अब स्त्री की वासना ही तुम्हारी मौत का कारण बनेगा।
18. शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप : -
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था।
19. ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप : -
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।
20. नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप : - शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।
21. नल कुबेर पत्नी रंभा का शाप
रावण ने जब स्वर्ग लोक पर आक्रमण किया तो उसे वहां अप्सरा रंभा मिली। रावण उसे अपने साथ लाना चाहता था लेकिन उसने मना करते हुए कहा कि मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर से होने वाली है मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। लेकिन रावण ने उसकी नहीं सुनी और उससे साथ दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद अगर रावण किसी भी औरत को उसकी इच्छा के विरूद्ध छूएगा तो रावण का मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएंगे।
22. श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप : - महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।
23. तुलसी का श्रीगणेश को श्राप :- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।
24 नारद का भगवान विष्णु को श्राप : - शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया। यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया।
Tuesday, May 13, 2025
स्वामीनारायण छपिया मंदिर का मुख्य मंदिर :आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
हर साल कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा (कार्तिक और चैत्र मास की पूर्णिमा) पर मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लाखों लोग आते हैं। अस्थायी दुकानें 5 किलोमीटर के दायरे में फैली होती हैं।
हर साल दुनिया के हर हिस्से से तीर्थयात्री इस स्थान पर आते हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं जैसे उचित सड़क और रेल संपर्क, संचार के साधन, हेलीपैड, पानी और जल निकासी कनेक्शन, आवास और भोजन की सुविधा आदि उपलब्ध हैं।
छपिया का मुख्य मंदिर
मंदिर 20 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है और इसमें किसी भी समय 25,000 तीर्थयात्रियों के लिए व्यवस्था है। तीन शिखर वाला यह मुख्य मंदिर की छवि निराली है। दूर से आने पर प्रवेश भाग का यह मुख्य आकर्षण है।तीन मंडप में दस छवियां प्रदर्शित होती हैं। बाएं मंडप में भगवान कुंज बिहारी और बासुदेव नारायण विराजमान हैं। मध्य भाग के मंडप में भक्ति माता,धर्म पिता, श्री घन श्याम महाराज और आदि आचार्य श्री अयोध्या प्रसाद जी महाराज विराजमान हैं। तीसरे सबसे दाएं तरफ़ के मंडप में रेवती बलदेव जी और हरिकृष्ण जी महाराज की सुन्दर झांकी अलंकृत होती है। सभी छवियों के शीर्ष पर इनके नाम हिंदी और गुजराती भाषा में विद्युत रोशनी द्वारा फ्लैस होते रहते है। लोग स्वयं दर्शन कर अपने को धन्य करते हैं।ना कोई पुजारी इन छवियों का स्पष्ट पहचान बताता है और ना ही किसी प्रकार के चढ़ावे को प्रेरित करता है।भक्त अपनी इच्छा से दानपात्र में भेट अर्पित करने को स्वतंत्र है।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया जा रहा है जो छपिया की महत्ता पर प्रकाश डालता है -
https://www.facebook.com/share/r/1AGwbA6nhR/
आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-स्वामीनारायण द्वारा निर्मित भारत के प्रमुख स्वामीनारायण मंदिर ::आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
स्वामीनारायण भगवान के मंदिर मन्दिर कुल नौ मंदिरों का निर्माण स्वामी नारायण भगवान ने अपने हाथों से किया था। नीचे जिन नौ मंदिरों की मैं बात कर रहा हूं उनका निर्माण भगवान स्वामी नारायण ने गुजरात में कराया है ।
1.जूनागढ़ स्वामीनारायण मंदिर
श्री स्वामीनारायण मंदिर, जूनागढ़, जिसे श्री राधा रमण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण ने स्वयं बनाने का आदेश दिया था।जूनागढ़ शहर गिरनार पर्वत की गोद में बसा है । मंदिर के लिए भूमि राजा हेमंतसिंह (जीनाभाई, पांचाल दरबार) द्वारा दान की गई थी, और उनकी स्मृतियाँ यहाँ बनाए रखी गई हैं। इसका आधार शिला 10 मई 1826 ई. को गोपालानंद स्वामी और अन्य वरिष्ठ परमहंसों की उपस्थिति में गुणातीतानंद स्वामी द्वारा रखी गई थी। निर्माण की देखरेख ब्रह्मानंद स्वामी ने की थी । प्राण प्रतिष्ठा , या देवताओं की स्थापना, शुभ कार्यक्रमों के उत्सव के साथ पूरे दो दिन तक चली।1 मई, 1828 ई को, स्वामी नारायण ने स्वयं श्रीरणछोड़राय और त्रिकमराय को आंतरिक गर्भगृह में स्थापित किया । पूर्वी विंग में, उन्होंने राधारमण देव और हरिकृष्ण महाराज को स्थापित किया और पश्चिमी भाग में उन्होंने सिद्धेश्वर महादेव , पार्वती , गणेश और नंदीश्वर को स्थापित किया। स्वामीनारायण ने गुणातीतानंद स्वामी को पहला महंत (धार्मिक और प्रशासनिक प्रमुख) नियुक्त किया: उन्होंने 40 से अधिक वर्षों तक इस भूमिका में कार्य किया। स्वामीनारायण मंदिर की परिधि 278 फीट है। इस मंदिर में पाँच शिखर और कई मूर्तियाँ हैं।
2.कालूपुर स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद
पुराने शहर में शानदार, बहुरंगी, लकड़ी की नक्काशी वाला स्वामीनारायण मंदिर, 1822 में स्वामीनारायण हिंदू संप्रदाय के पहले मंदिर के रूप में बनाया गया था। अनुयायियों का मानना है कि संप्रदाय के संस्थापक, स्वामीनारायण सर्वोच्च व्यक्ति थे। यहां प्रतिदिन सुबह 8 बजे हेरिटेज वॉक की शुरुआत आमतौर पर मंदिर में पूजा के साथ होती है, जिसमें भक्तों की भीड़ उमड़ती है। प्रत्येक पैनलिंगकलात्मक अलंकरण के साथ बर्मा सागौन की लकड़ी से बनी है। प्रवेश द्वार की मूर्तियों में राजस्थानी वेशभूषा और रंग भी हैं। मंदिर के मुख्य देवता नर नारायण देव जी हैं।, श्री राधा कृष्ण देव, श्री धर्मभक्ति माता और हरि कृष्ण महाराज, श्री बाल स्वरूप घनश्याम महाराज और श्री रंगमोहल घनश्याम महाराज भी बिराजमान हैं। मंदिर का पश्चिमी भाग तपस्वी या सांख्य योगी महिलाओं के निवास के रूप में आवंटित किया गया है। यह स्वामी नारायण संप्रदाय का पहला मंदिर है, और इसका निर्माण संस्थापक श्री स्वामी नारायण भगवान के निर्देश पर किया गया था। एक अधिकारी सर डनलप स्वामी नारायण की गतिविधियों से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने सरकार की ओर से मंदिर की स्थापना के लिए 5,000 एकड़ जमीन दान कर दी थी। एक बार जब प्रभावशाली संरचना तैयार हो गई, तो उन्होंने मंदिर को 101 तोपों की सलामी दी। बाद में मंदिर के विभिन्न खंड जोड़े गए। मुख्य संरचना को उत्तरी प्रवेशद्वार, नर नारायण मंदिर, अक्षर भवन, रंग महल और पवित्र महिलाओं और छात्रों के लिए आवासों में विभाजित किया गया था। आचार्य महाराजश्री केशवप्रसादजी महाराज द्वारा निर्मित एक हवेली 1871 में बनी।
3.मूली स्वामीनारायण मंदिर
मुलिधाम में संवत 1879 में महासूद 5 (17 जनवरी, 1823) को श्रीजी महाराज ने वेदों में निर्धारित रीति-रिवाजों के अनुसार सभी मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा की। मंदिर के मुख्य देव श्री राधाकृष्ण देव जी हैं।मंदिर में श्री हरिकृष्ण महाराज, श्री रणछोड़ जी-त्रिकमजी और श्री धर्मदेव- भक्तिमाता की मूर्तियाँ हैं। प्राण प्रतिष्ठा (उद्घाटन समारोह) के दौरान, श्री हरि ने मुलिधाम, जन्माष्टमी और वसंत पंचमी समाइयो की महिमा के बारे में बताया।मूलधाम की महिमा स्वयं भगवान श्रीस्वामीनारायण कह रहे हैं और सद्गुरु ब्रह्मचारी श्रीवासुदेवानंद वर्णीजी द्वारा रचित ग्रंथराज श्रीमद् सत्संगीभूषण में लिखा है कि सम्पूर्ण भारत में दस बार तीर्थ करने से जो फल प्राप्त होता है, वह वसंत पंचमी के दिन श्री राधाकृष्णदेव के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। उस दिन से लेकर आज तक हर वसंत पंचमी के दिन हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन श्रीनर नारायण देव पीठाधिपति आचार्य महाराज श्री (कालूपुर, अहमदाबाद) मंदिर परिसर में रंग छिड़ककर रंगोत्सव के दौरान सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
4.भुज स्वामीनारायण मंदिरस्वामीनारायण मंदिर, भुज) भुज में एक हिंदू मंदिर है । इस मंदिर का निर्माण स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण ने करवाया था । इस मन्दिर के मुख्य देव श्रीनरनारायण देव जी हैं। भुजभक्तों के मांग पर , स्वामी नारायण ने वैष्णवानंद स्वामी को संतों की एक टीम के साथ वहां जाने और एक मंदिर बनाने के लिए कहा। 1822 में, उन्होंने मंदिर स्थल पर मूर्ति स्थापित की और मंदिर की योजना बनाई। एक वर्ष के अंदर उन्होंने नर नारायण का मंदिर बनवाया था। यह मंदिर नरनारायण देव गढ़ी के अंतर्गत आता है। कच्छ के भुज क्षेत्र से वरिष्ठ भक्त गंगारामभाई जेठी सुंदरजीभाई, जिग्नेश्वर भाई और अन्य लोग गढ़दा गए थे जहाँ भगवान स्वामीनारायण फुलडोल उत्सव में भाग ले रहे थे । उस उत्सव में, भुज के भक्तों ने स्वामीनारायण से मुलाकात की और उनसे भुज में एक मंदिर बनाने का अनुरोध किया। भगवान स्वामीनारायण ने वैष्णवानंद स्वामी को संतों की एक टीम के साथ भुज जाकर एक मंदिर बनाने के लिए कहा। वैष्णवानंद स्वामी और उनके साथ आए संत 1822 में भुज गए, मंदिर की भूमि के पास के स्थान पर डेरा डाला, मंदिर और परिसर की योजना बनाई, सूक्ष्म विवरणों के साथ योजनाओं को क्रियान्वित किया और एक वर्ष की छोटी सी अवधि में उन्होंने नरनारायण देव का मंदिर निवास बनाया । कच्छ क्षेत्र में सत्संग का प्रसार स्वर्गीय गुरु रामानंद स्वामी ने किया था । वे लगातार भुज और कच्छ के अन्य स्थानों का दौरा करते थे।भगवान स्वामीनारायण ने भारत के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर को सुशोभित किया था और उन्होंने स्वयं नरनारायण देव की मूर्तियों की स्थापना की थी तथा उनके स्वयं के रूप - हरिकृष्ण महाराज कोआचार्य अयोध्या प्रसादजी महाराज द्वारा मंदिर के केंद्रीय गर्भगृह में स्थापित किया गया था। केंद्रीय गुंबद पर भगवान के इन स्वरूपों के अलावा पूर्वी गुंबद के नीचे राधाकृष्ण देव , हरिकृष्ण महाराज और पश्चिमी गुंबद में घनश्याम महाराज विराजमान हैं। रूप चौकी - आंतरिक मंदिर का मुख्य चौक - में गणपति और हनुमान की प्रतिमाएँ हैं ।मंदिर के अक्षर भवन में स्वामीनारायण की वे निजी वस्तुएं रखी हैं, जिनका उपयोग उन्होंने अपने जीवन में किया है।
5.वड़ताल स्वामीनारायण मंदिर
लक्ष्मीनारायण देव गादी का मुख्यालय वडताल में इस मंदिर में स्थित है । इसमें मुख्य देव श्री लक्ष्मीनारायण देव जी हैं।स्वामी नारायण ने वडताल में अपनी मूर्ति भी स्थापित की, जिसका नाम उन्होंने हरिकृष्ण महाराज रखा। मंदिर में तीन मुख्य मंदिर हैं, इस मंदिर का केंद्रीय मंदिर लक्ष्मी नारायण और रणछोड़ राय का है। दाईं ओर भगवान राधा रानी और श्री कृष्ण की उनके महाविष्णु रूप हरिकृष्ण के साथ मूर्ति है और बाईं ओर वासुदेव , धर्म और भक्ति हैं। मंदिर के लकड़ी के खंभों पर रंग-बिरंगी लकड़ी की नक्काशी है।मंदिर परिसर में एकधर्मशाला है। ज्ञानबाग मंदिर के द्वार के उत्तर-पश्चिम में एक उद्यान है जिसमें स्वामीनारायण को समर्पित चार स्मारक हैं। वडताल शहर को वडताल स्वामी नारायण के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ का मंदिर कमल के आकार का है, जिसके भीतरी मंदिर में नौ गुंबद हैं। इस मंदिर के लिए ज़मीन स्वामीनारायण के भक्त जोबन पागी ने दान की थी। मंदिर का निर्माण स्वामी नारायण ने करवाया था और ब्रह्मानंद स्वामी की देखरेख में इसका निर्माण हुआ था । निर्जला एकादशी के दिन वड़ताल से भक्त श्रीजी महाराज से मिलने गढ़डा गए थे । अगले दिन - ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के द्वादशी दिन - उन्होंने स्वामीनारायण से वड़ताल में कृष्ण मंदिर बनाने का अनुरोध किया। श्रीजी महाराज ने अपने शिष्य एस. जी. ब्रह्मानंद स्वामी को अस्थायी रूप से मुली मंदिर के निर्माण को छोड़ने और वड़ताल मंदिर के निर्माण की योजना बनाने और देखरेख करने के लिए संतों की एक टीम के साथ आगे बढ़ने का आदेश दिया । इस मंदिर का निर्माण 15 महीनों के भीतर पूरा हुआ और लक्ष्मी नारायण देव की मूर्तियों को 3 नवंबर 1824 को वैदिक भजनों और स्थापना समारोह के भक्ति उत्साह के बीच स्वयं स्वामीनारायण ने स्थापित किया। मंदिर के बीच में उन्होंने लक्ष्मीनारायण देव और रणछोड़ की मूर्तियां स्थापित कीं। केंद्रीय मंदिर में विराजमान देवताओं के अतिरिक्त पूजा स्थल की बायीं दीवार में दक्षिणावर्त शंख और शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) की प्रतिमा स्थापित की गई है तथा आंतरिक गुम्बद में भगवान के दस अवतारों की पाषाण प्रतिमाएं स्थापित हैं, साथ ही शेषनाग के आसन पर विराजमान विष्णु की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। दीवारों को रामायणके रंग-बिरंगे चित्र से उतारा गया है। मंदिर की दीवारों को रामायणके रंग-बिरंगे चित्र से उतारा गया है ।
6.गढडा स्वामीनारायण मंदिर
गढड़ा भारत के गुजरात राज्य के बोटाद ज़िले में स्थित एक नगर है। यह घेला नदी के किनारे बसा हुआ है। इसी नगर को स्वामीनारायण सम्प्रदाय के स्थापक भगवान स्वामीनारायण ने अपनी कर्मभूमि बना कर अपना ज़्यादातर जीवनकाल यही गुजारा था, उनका देहावसान भी यही हुआ था। यह नगर अपने स्वामीनारायण मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। जिसे गोपीनाथ जी देव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, गढ़ाड़ा , गुजरात , भारत में एक हिंदू मंदिर है । यह स्वामीनारायण संप्रदाय मंदिर संप्रदाय के संस्थापक स्वामीनारायण द्वारा निर्मित नौ मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण श्री स्वामिनारायण ने स्वयं करा था। इस मंदिर के निर्माण के लिए भूमि , गढ़डा में दादा खाचर के दरबार द्वारा दान की गई थी । दादा खाचर और उनका परिवार स्वामीनारायण के भक्त थे। मंदिर उनके अपने निवास के प्रांगण में बनाया गया था।मंदिर के काम की योजना और निष्पादन सीधे स्वामीनारायण के परामर्श और मार्गदर्शन में किया गया था। स्वामीनारायण ने निर्माण की देखरेख की और पत्थर और गारा उठाकर मंदिर के निर्माण में मैनुअल सेवा में भी मदद की। इस मंदिर में दो मंजिल और तीन गुंबद हैं। यह नक्काशी से सुसज्जित है। मंदिर एक विशाल चौकोर पर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है और इसमें एक सभा कक्ष है जिसमें तपस्वियों और तीर्थ यात्रियों के लिए बड़ी धर्मशालाएँ और रसोईघर हैं। स्वामीनारायण ने 9 अक्टूबर 1828 को इस मंदिर में मूर्तियाँ स्थापित की थीं। गोपीनाथ ( कृष्ण का एक रूप ), उनकी पत्नी राधा और हरिकृष्ण (स्वामीनारायण) केंद्रीय मंदिर में प्रतिष्ठित हैं।स्वामीनारायण के माता-पिता धर्मदेव और भक्तिमाता और वासुदेव (कृष्ण के पिता) की पूजा पश्चिमी मंदिर में की जाती है। रेवती - बलदेवजी , कृष्ण और सूर्यनारायण पूर्वी मंदिर में हैं। हरिकृष्ण की मूर्ति की बनावट स्वामीनारायण जैसी ही है।
7.स्वामी नारायण मंदिर, धोलेरा
यह एक हिंदू मंदिर है ,स्वामीनारायण द्वारा निर्मित नौ श्री स्वामीनारायण मंदिरों में से एक है । धोलेरा अपने आप में एक प्राचीन बंदरगाह शहर है, जो अहमदाबाद जिले के धंधुका से 30 किमी दूर है। तीन शिखरों वाले इस मंदिर के निर्माण की देखरेख और योजना निष्कुलानंद स्वामी,आत्मानंद स्वामी, अक्षरानंद स्वामी और धर्मप्रसाद स्वामी ने की थी । जिस जमीन पर इमारत बनी है, वह दरबार पुंजाभाई ने दान की थी। स्वामीनारायण भगवान जब कमियाला में डेरा डाले हुए थे, तो भक्तों श्री पुंजाभाई और अन्य लोगों ने उनसे धोलेरा जाकर धोलेरा में नए मंदिर में मूर्तियाँ स्थापित करने का अनुरोध किया। स्वामीनारायण भगवान ने ब्राह्मण पुजारियों से स्थापना समारोह के लिए शुभ समय खोजने को कहा। स्वामी नारायण भगवान ने पंजाबभाई और अन्य भक्तों के अनुरोध पर धोलेरा को सुशोभित किया, और 19 मई 1826 को, और वैदिक भजनों के बीच मंदिर की मुख्य सीट पर मदन मोहन देव और उनके स्वयं के रूप, हरिकृष्ण महाराज की मूर्तियों को स्थापित किया । स्वामी नारायण भगवान ने तब अद्भुतानंद स्वामी को मंदिर का महंत नियुक्त किया । केंद्रीय वेदी पर मदन मोहन देव ( कृष्ण ), राधा जी और हरिकृष्ण महाराज की मूर्तियाँ विराजमान हैं। आंतरिक मंदिर और गर्भगृह में देवताओं के अलावा , हनुमान और गणपति मंदिर की मुख्य सीढ़ी के पास रूप चौकी की शोभा बढ़ाते हैं। पश्चिम में, सीढ़ियों के पास, शेषशायी, सूर्यनारायण , धर्म-भक्ति और घनश्याम महाराज की मूर्तियाँ हैं। शंकर और पार्वती की मूर्तियाँ दाहिनी ओर हैं।
8.श्रीस्वामीनारायण मंदिर, जूनागढ़
गिरनार पर्वत पर जूनागढ़ शहर में स्थित इस मंदिर में पांच गुंबद और बाहरी सजावट की गई है। इसका निर्माण की व्याख्या ब्रह्मानंद स्वामी ने की थी; इसे पांचाल के दरबार के राजा वलथीसिंह द्वारा दान की गई भूमि पर बनाया गया था। 1 मई 1828 को, स्वामी नारायण ने रणछोड़राय और त्रिकमराय की मूर्तियों की मुख्य वेदिका स्थापित की, जिसका नमूना 278-फुट (85 मीटर) है। गर्भगृह के पत्थर पर स्वामी नारायण का जीवन उकेरा हुआ है।
श्री स्वामी नारायण मंदिर, गढ़ाडा
गढ़दा(या गढ़पुर) मंदिर के लिए भूमि गढ़दा में दादा खाचर के दरबार द्वारा दान किया गया था। दरबार दादा खाचरऔर उनके परिवार स्वामीनारायण के भक्त थे। मंदिर उन्होंने अपने निवास स्थान पर बनवाया था। इस मंदिर में दो मंजिलें और तीन गुंबद हैं और निर्मित है।स्वामीनारायण ने पत्थर और गारा पर्वत मंदिर के निर्माण में सहायता की, और उन्होंने 9 अक्टूबर 1828 कोगोपीनाथ,राधिकाऔर हरिकृष्ण की प्रतिमाएँ स्थापित कीं।
लक्ष्मी वादी समाधी स्थल
यहां लक्ष्मी वादी का भी घर है। यह स्वामी नारायण की अस्थियों का दफ़न स्थल है। इस स्थल पर एक मंदिर है जिसमें भाई इच्छाराम, स्वामी नारायण और रघुवीरजी महाराज की मूर्तियाँ हैं।
आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदीलेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)