Tuesday, April 8, 2025

डा.रामकृष्ण लाल"जगमग" (बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 17)

         डा.रामकृष्ण लाल"जगमग"
(बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 17)
    डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' 
    आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 
जीवन परिचय :- 
रामकृष्ण लाल "जगमग" की जन्मतिथि 15 अक्टूबर 1953, है । वे बस्ती जिले के बहादुर पुर ब्लाक के ग्राम-कैथवलिया में पैदा हुए थे। जगमग जी बी०ए०,डी०टी० सी० करने के बाद जिला परिषद के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन कार्य में लगे हुए थे । जगमग जी हास्य और व्यंग्य के अनूठे कवि है। जगमग जी ने दोहों को अपना करके हास्य और व्यंग्य का पुट दिया है। मंच की दृष्टि से जगमग जी का जितना समादर हो रहा है,वह गिने-चुने लोगों में है। इस समय वे राष्ट्रीय स्तर के कवि बन गए हैं।
प्रकाशित कृतियाँ :- 
जगमग’ की अभी तक 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
1.चाशनी' दुमदार दोहे (प्रथम संस्करण- 1978), (तृतीय संस्करण-2006),अब तक 6 संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
2.किसी की दिवाली किसी का दिवाला' (1982)
'3.विलाप' खण्ड काव्य,(1990)
4.हम तो केवल आदमी हैं' (काव्य संकलन-1997)
5.'बाल चेतना' (बालोपयोगी रचनाएं- 2000)।
6.सच का दस्तावेज’ 
7.खुशियों की गौरैया, 
8.‘बाल सुमन’ 
.9. 'नन्हें मुन्नों का संसार' , 6 अप्रैल 2025 को लोकार्पण हुआ है ।
10 .'स्वामी विवेकानन्द' - इन दिनों वे स्वामी विवेकानन्द पर केन्द्रित महाकाव्य का सृजन कर रहे हैं। 
      इन कृतियों में वे कभी हास्य तो कभी गंभीर दर्शन के रूप में आम आदमी की पीड़ा व्यक्त करते हुये उनका प्रतिनिधित्व करते हैं।निश्चित रूप से उनका साहित्यिक संसार घोर तमस में समाज का पथ प्रदर्शन करेगा।
प्रथम दो संग्रहों 'चाशनी’ और 'किसी की दिवाली किसी का दिवाला' का विवेचन :- 
इस शोध प्रबंध के। लिखे जाने 1984 तक जगमग जी की यह दोनो कृतियां प्रकाशित हुई हैं जिसमें दोहे और गजलो का प्रयोग अधिक हुआ है। जगमग जी के काव्य में में युगबोध का स्वरअधिक है। यह समाजवादी प्रवृत्तियों के अधिक निकट है। सम्पादन के क्षेत्र में भी इनका स्थान अच्छा है। “मंजरी मौलश्री" नामक पत्रिका इनके सहयोग और सम्पादकत्व में पिछले तीन वर्षों से छप रही है। "मंजरी- मौलश्री” के द्वारा जगमग जी ने नवोदित छन्दकारों को अच्छा प्रश्रय दे रखा है। जगमग़ जी को कवि सम्मेलनों में सदैव आदर मिलता रहा है। वे स्वयं कवि सम्मेलन कराने के शौकीन हैं। पत्रिका के माध्यम से प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर कवियों की कविताएं छापकर जिले के कवियों का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। उनमें व्यवहार कुशलता कूट-कूट कर भरी है। राजनीतिक खेमा के लोगो के साथ-साथ अधिकारियो से भी साहित्यिक योगदान प्राप्त करने में सफल रहते हैं । जगमग जी की भाषा में हिन्दी के साथ उर्दू का सम्मिश्रण पाया जाता है। उनके मुक्तकों में तीखा प्रहार दर्शनीय रहता है। इनका सम्पूर्ण साहित्य मानतीय संवेदनाओं के सन्ननिकट है।
पुरस्कार और सम्मान : - 
अनेकानेक राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समय समय पर जगमग जी को सम्मानित किया जाता रहा है। उनका दायरा राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया है। उन्हें भारतीय सेना संस्थान, दिल्ली द्वारा काव्य भूषण सम्मान, विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर द्वारा विदया वाचस्पति मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा साहित्य वृहस्पति सम्मान 20 05 2018 को ,भारत गौरव 20 जनवरी 2022 को, अंतरराष्ट्रीय साहित्य गौरव भूटान में 03 मई 2024 को , साहित्य गौरव 20 01 2025 को तथा वैज्ञानिक योगदान के लिए 06 03 2025 को 'साहित्य वाचस्पति' पुरस्कार से अलंकृत किया गया है। सम्भव है इस सूची में कुछ नाम छूट भी गए हो। हम उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ आयु की मंगल कामना करते हैं। उनका दुमदार दोहे बहुचर्चित रहे हैं- 

           कुछ दुमदार दोहे 

हतनी कुठा बढ़ गई, भूल गये हर फर्ज । कुछ नालायक कर रहे, पूज्य बाप से अर्ज। 
आप अब चले जाइए ।

गांधी बाबा देश का, डूब रहा है नाम । पाँचो चेले आपके निकले नमक हराम ।।
गुरु कुछ करो दवाई ॥

पहले अपने बाप का, नाम करो उजियार । और अंधेरे में करो, जो जी चाहे यार ।।
न कोई कुछ बोलेगा ।।

बिद्यालय को क्या कहूं, लुप्त हुआ हर ज्ञान छात्रों से अब मांगते, शिक्षक जीवन-दान ।।
यही शिक्षा की इति है ।।

कहा उन्होंने चुप रहो, मत लो मेरा टोह । छोड़ नहीं सकता कभी, मैं सत्ता का मोह ॥
लाख तुम करो घिसाई ॥

कहा कृष्ण ने क्या कहूं, मित्र सुदामा आज। फटे हाल हूं आपकी, कैसे रक्खू लाज ।।
जेब देखो है खाली ॥

कुछ लोगों ने प्रेम से, गरमाया जब दूध । इतने में सब लड़ पड़, आपस में दूग मूंदे ।।
मलाई हम खायेंगे ॥

सुनिये मेरी बात को, सेठ जानकी दास । मरते दम कुछ रूपये, लेते जाना पास ।।
वहां भी बिजनेस करना ।।











Friday, April 4, 2025

सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्रम् हिन्दी भावानुवाद


शिव उवाच–
"देवि त्वं भक्त सुलभे सर्वकार्य विधायिनी
कलौहि कार्यसिद्ध्यर्थम उपायं ब्रूहि यत्नतः"
हिंदी भावानुवाद 
शिव बोले- हो सुलभ भक्त को, 
कार्य नियंता हो देवी! 
एक उपाय प्रयत्न मात्र है, 
कार्य-सिद्धि की कला यही।।

देव्युवाच –
"शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम्
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते"
हिंदी भावानुवाद
देवी बोलीं- सुनें देव हे!, 
कला साधना उत्तम है। 
स्नेह बहुत है मेरा तुम पर, 
स्तुति करूँ प्रकाशित मैं।।

ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वत्यो देवताः श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः
हिंदी भावानुवाद
ॐ मंत्र सत् श्लोकी दुर्गा, 
ऋषि ‌नारायण छंद अनुष्टुप। 
देव कालिका रमा शारदा, 
दुर्गा हित हो पाठ नियोजित।। 

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।
हिंदी भावानुवाद
ॐ चेतना ज्ञानी जन में, 
मात्र भगवती माँ ही हैं। 
मोहित-आकर्षित करती हैं,
 मातु महामाया खुद ही।१। 

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्र्यदुःखभयहारिणी का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।2।
हिंदी भावानुवाद
भीति शेष जो है जीवों में, 
दुर्गा-स्मृति हर लेती, 
स्मृति-मति हो स्वस्थ्य अगर तो, 
शुभ फल हरदम है देती। 
कौन भीति दारिद्रय दुख हरे, 
अन्य न कोई है देवी। 
कारण सबके उपकारों का, 
सदा आर्द्र चितवाली वे।२।

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रयंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।3।
हिंदी भावानुवाद
मंगलकारी मंगल करतीं, 
शिवा साधतीं हित सबका। 
त्र्यंबका गौरी, शरणागत, 
नारायणी नमन तुमको।३। 

शरणागतदीनार्त परित्राण पराणये
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते।4।
हिंदी भावानुवाद
दीन-आर्त जन जो शरणागत, 
परित्राण करतीं उनका। 
सबकी पीड़ा हर लेती हो, 
नारायणी नमन तुमको।४। 

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते।5।
हिंदी भावानुवाद
सब रूपों में, ईश सभी की, 
करें समन्वित शक्ति सभी। 
देवी भय न अस्त्र का किंचित्, 
दुर्गा देवि नमन तुमको।५। 

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।6।
हिंदी भावानुवाद
रोग न शेष, तुष्ट हों तब ही, 
रुष्ट काम से, अभीष्ट सबका। 
जो आश्रित वह दीन न होता, 
आश्रित पाता प्रेय अंत में।६। 

सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि
एवमेव त्वया कार्यम स्मद्वैरिविनाशनम्।7।
हिंदी भावानुवाद
सब बाधाओं को विनाशतीं, 
हैं अखिलेश्वरी तीन लोक में। 
इसी तरह सब कार्य साधतीं, 
करें शत्रुओं का विनाश भी।७। 

इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गास्त्रोतं संपूर्णं।
इति सातश्लोकों वाली दुर्गा स्त्रोत सम्पूर्ण हुआ।