बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे। लेकिन १४८० ई में एक चक्रवाती तूफान ने इसे तोड़ दिया। बाद में आज से लगभग चार सौ वर्ष पहले कृष्णप्पनायकन नाम के एक राजा ने उस पर पत्थर का बहुत बड़ा पुल बनवाया। अंग्रेजो के आने के बाद उस पुल की जगह पर रेल का पुल बनाने का विचार हुआ। उस समय तक पुराना पत्थर का पुल लहरों की टक्कर से हिलकर टूट चुका था। एक जर्मन इंजीनियर की मदद से उस टूटे पुल का रेल का एक सुंदर पुल बनवाया गया। इस समय यही पुल रामेश्वरम् को भारत से रेल सेवा द्वारा जोड़ता है। यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था। इस स्थान पर दक्षिण से उत्तर की और हिंद महासागर का पानी बहता दिखाई देता है। उथले सागर एवं संकरे जलडमरू मध्य के कारण समुद्र में लहरे बहुत कम होती है। शांत बहाव को देखकर यात्रियों को ऐसा लगता है, मानो वह किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों।
पाम्बन पुल (Pamban Bridge) भारत के तमिल नाडु राज्य में पाम्बन द्वीप को मुख्यभूमि में मण्डपम से जोड़ने वाला एक रेल सेतु है। इस पुल के निर्माण का प्रयास 1870 के दशक में ही शुरू हो गया था, जब ब्रिटिश सरकार ने श्रीलंका तक व्यापार संपर्क बढ़ाने का निर्णय लिया था। यह अगस्त 1911 से बनना शुरु हुआ और इसका उदघाटन 24 फ़रवरी 1914 में हुआ था। तब यह भारत का एकमात्र समुद्री सेतु था।
145 खंभों पर टिका पुल
यहां पहुंचने का सफर भी उतना ही रोमांचक है जितना कि इस मंदिर का महत्व। कंक्रीट के 145 खंभों पर टिका सौ साल पुराने पुल से ट्रेन के द्वारा इस मंदिर में जाया जाता है। अब सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। समुद्र के बीच से गुजरती ट्रेन का नजारा इतना खूबसूरत है कि इसे देखने का अनुभव जीवनभर याद रहता है। यह सन् 2010 में बान्द्रा-वर्ली समुद्रसेतु के खुलने तक भारत का सबसे लम्बा समुद्री सेतु रहा। सन् 1988 में रेल पुल से समांतर एक सड़क पुल भी बनाया गया जो राष्ट्रीय राजमार्ग 87 का भाग है।
पुराने ब्रिज के बन्द होने का कारण
दिसंबर 2022 में पुराने पुल पर रेल परिवहन को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया क्योंकि जंग के कारण बेसक्यूल खंड काफी कमजोर हो गया था । लगभग 2.2 किमी तक कुल और 143 खंभों वाले इस पुल को 1914 में आधिकारिक तौर पर चालू किया गया था। यह मुंबई का आउटलेट-वर्ली सी लिंक भारत का दूसरा सबसे लंबा समुद्री पुल है। पाम्बन रेलवे पुल भारतीय मुख्य भूमि और पाम्बन द्वीप के बीच 2.065 किलोमीटर लंबा फैला हुआ है। फ्लोरिडा के बाद यह दुनिया के सबसे संक्षारक वातावरण में स्थित है, जिससे इसका रखरखाव एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह स्थान एक चक्रवात-प्रवण उच्च वायु वेग क्षेत्र में भी आता है। पाम्बन रेल पुल शेज़र रोलिंग लिफ्ट तकनीक पर काम करता है, जिससे फ़ेरी की पेशकश होती है, जो 90 डिग्री के कोण पर ऊपर की ओर खुलती है। अरब सागर के नीले विस्तार के अद्भुत दृश्य पेश करने वाली रेल ड्रॉ के दौरान पंबन पुल हमेशा से ही लोगों को आकर्षित करता रहता है।
संरचना :-
रेलवे पुल समुद्र तल से 12.5 मीटर (41 फीट) ऊपर स्थित है और 6,776 फीट (2,065 मीटर) लंबा है। पुल में 143 खम्भे लगे हुए हैं और इसमें दो-पतरों से बना एक बैस्क्यूल खंड बना हुआ है, जिसमें सेज़र रोलिंग टाइप लिफ्ट स्पैन होते हैं, जिन्हें जहाजों के आने-जाने के लिए उठाया जा सकता है। प्रत्येक पतरें का वजन 415 टन (457 टन) है।पुल के दोनों पतरे लीवर का उपयोग करके मैन्युअल रूप से खोले जाते हैं।
पंबन ब्रिज के बारे में खासियत :-
नए पंबन ब्रिज में 18.3 मीटर के 100 स्पैन और 63 मीटर का एक नेविगेशनल स्पैन शामिल है. यह मौजूदा पुल की तुलना में 3 मीटर ऊंचा है और समुद्र तल से 22 मीटर की नौवहन वायु निकासी प्रदान करता है. इसके निर्माण में इलेक्ट्रो-मैकेनिकल नियंत्रित सिस्टम का उपयोग किया गया है, जो इसे ट्रेन नियंत्रण प्रणालियों के साथ समन्वित करता है।
पुराने ब्रिज के बन्द होने का कारण
दिसंबर 2022 में पुराने पुल पर रेल परिवहन को स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया क्योंकि जंग के कारण बेसक्यूल खंड काफी कमजोर हो गया था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6 अप्रैल 2025 को राम नवमी के दिन तमिलनाडु के पंबन पुल का उद्घाटन कर सकते हैं। इससे रामेश्वरम के लिए रेल कनेक्टिविटी बेहतर होगी। यह पुल देश का पहला वर्टिकल सी ब्रिज है। सूत्रों का कहना है कि समुद्री पुल को व्यावसायिक रूप से खोलने की तैयारी पूरी ज़ोरों पर है। दक्षिणी रेलवे के शीर्ष रेलवे अधिकारी पिछले कुछ दिनों से पुल और रामेश्वरम रेलवे स्टेशन का निरीक्षण कर रहे हैं। सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री के श्रीलंका से दो दिन की यात्रा (4 और 5 अप्रैल) से लौटने के तुरंत बाद उद्घाटन होने की संभावना है।
फेसबुक के इस लिंक से इस पुल की घटना को और सुगमता से जाना जा सकता है।
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लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
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