Sunday, January 26, 2025

पण्डित जनार्दन नाथ पाण्डेय “ईश" बस्ती के छंदकार भाग 3 (कड़ी 9)

पण्डित जनार्दन नाथ पाण्डेय “ईश"।   बस्ती के छंदकार भाग 3 (कड़ी 9)    लेखक डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' संपादक आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

जीवन परिचय 

पण्डित जनार्दन नाथ पाण्डेय 'ईश' का जन्म (श्री “ईश” जी से साक्षात्कार के आधार पर) प्रथम जुलाई सन 1926 तदनुसार सं० 1983 वि० को अमोढा क्षेत्र के जाजपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम  अवध विहारी पाण्डे था। इलाहाबाद से बी०ए० और इतिहास में एम०ए० करने के बाद इन्होंने 1954 में एल०टी० किया तौर उस समय से देसराज नारंग इण्टर कालेज, वाल्टरगंज, बस्ती, में सहायक कक्षाध्यपक के पद पर कार्यरत रहे हैं। जनार्दन नाथ पाण्डेय बचपन से ही बड़े कुशाग्र बुद्धि  एवं प्रतिभाशाली बालक रहे है। 

     बाल्य काल से ही इन्होने कई बार कवि सम्मेलनों में भाग लिया और यह धीरे-धीरे बस्ती जनपद के केशव परम्परा के धुरंधर कविवर वलराम मिश्र "द्विजेश" के सम्पर्क मे आये। “द्विजेश” जी इनकी साहित्यिक प्रतिभा से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने इनका नाम 'ईश' रखा और उसी समय से 'ईश' जी द्विजेश जी के परम शिष्यों में गिने जाने लगे।

     'ईश' जी ने अपने किशोरावस्था में ही कई सौ छन्द, दोहा, घनाक्षरी, रोला,सवैया आदि में लिख डाला। शृंगार परक इन छन्दो में वही गम्भीरता थी। किन्तु इनके अधिकांशत: छन्द गायब हो गये। जो छन्द उनकी डायरियों में मिले हैं, उनके आधार पर उनके बारे में संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है- 

वाणी वन्दना का एक छन्द-

देती तन्त्र नाद धूमि झंकृत अम्बर में, 

दिग विदिग दिगम्बर के व्याकरण बोले  हैं।

व्यतिरेक अन्वय में सहित समन्वय में 

व्यापी व्याप्य अन्वयी निरन्वय कलोले हैं। 

मातृशक्ति दात्रीशक्तिधात्रिऔ विधात्रिशक्ति 

ब्रह्मा विष्णु शंकरहूं अंक के हिंडोले हैं।

निर्वानी सबानी बानी बंदना बर बानी यानी 

बानी की आशीष “ईश” शीश पै टटोले हैं।।

  -  ( वन्दना, प्रथम छन्द )

ईश जी के छन्दों में ब्रजभाषा की छटा अनुपम रूप से उनके प्राकृतिक वर्णनो पर बडी रम्यता के साथ दर्शनीय है। बसन्त प्रकरण की एक कविता दर्शनीय है- 

विमसन लागे कज कलित कलाप मंजु 

अंजन अनेक लगे एक रस खानी मे । 

पुंज पुंज चलि करि केलि कुंज कुंजन में 

वेदना मलिंद करें गुंजरत बपानी मे । 

तोरनि पलास के प्रसूनन की माला “ईश”

राग रजने सो भूमि पावडे बखानी में।

पंच सर ताने पंच सर मन मैचन में 

ललित लसत है वसन्त अगवानी में।।

 - (ईश जी की डायरी से उपलब्ध)

      इसी प्रकार से वर्षा पर किये गये “ईश” जी के छन्द बढ़े ही सबल हैं-

आप चारि मास के वे बारों मास हेतु “ईश”

आप निधि न्यारे  प्रेम निधि वे बसैया हैं।

आप तन कारे वे दोऊ तन मन कारे

आप परतंत्र वे स्वतंत्र बिहरौइया हैं।

आप विरही को नेक दुख दें आकाश भागे।

वे प्रकाशमा न पास पै दृढ़ दुखौया  हैं। 

घनश्यामकीजै जो घनश्याम की बराबरीना 

आप एक पैया यदि वे एक रुपैया हैं।।

    - (ईश जी की डायरी से उपलब्ध)

      पाई र्और रूपये के माध्यम से कवि ने       बादलों और कृष्ण के समानता की होड़ कितनी सटीकता के साथ प्रस्तुत किया है।

    हनुमत पताली शीर्षक पर 'ईश'  जी ने कई छन्द क्रिये है यथा- 

औरे ओप कोप औरे चौप करुणा को लोप 

सुप्त मुस्कान कुप्त अटटहास लाली है।

सप्तमावाश से अधिक ऊंचे भौहें तनी 

मुंडमालिनी बनी प्रचण्ड मुंड माली है। 

सोचे सबै कुंजित हुंकार हम सो हो क्रुद्ध

काहे भक्त भक्षण प्रवृत्ति महाकाली है। 

काली करे द्रावण यो जान्यो महिरावण हूं 

काके ध्यान आवत सदा हनुमत पताली है।

   - (  ईश जी की डायरी से उपलब्ध )

भारतीयता से संबंधित कई छन्द 'ईश' जी ने लिखा है जिसमें राष्ट्रीयता का स्वर तथा मातृभूमि के प्रति प्यार है। यथा- 

चोटी गौरी शंकर शिखा है भारतीयता की 

जाके भाल जहनुजा सुधाम्बु रसवारी है।

कवि ईश मानव के रूप ज्यो तथैव ताते 

भूमि नभ सागर नमस्त सुखकारी है।

भारत को रूप तौ अनूप एक भारत में 

सीमा में हिमालय कच्छ बंगऔ कुमारी है। 

भारत से फैली भारतीयन की मैत्री कीन 

भुवन भारती ने भारतीयता हमारी है।।

     - (  ईश जी की डायरी से उपलब्ध )

"इन्दिरा प्रशस्ति" में ईश' जी ने कई छन्द लिखे हैं। उसका एक छन्द यहाँ प्रस्तुत है-

खंजन खेलारिन के खेल ये बिगाड़ जाते 

परि जाते निष्प्रभ मयक पूत्ति आती ना। 

मिलि जाते पंकजहूं पंक ही के अंकनि में 

तैसे ई प्रभाकर में  या प्रभा समाती ना । 

विमल वसंत वासन्तिकता ना आती आज 

कमला कला की एक कला चीन पाती ना। 

जयहिन्द बोलि हिन्दवारी इन्दिरा विराजि 

जो समाज पै समाजवाद बरसाती ना ।

      - (  ईश जी की डायरी से उपलब्ध )

ईश जी के छन्दों में ब्रजभाषा की उत्कृष्टता के साथ पाण्डित्य मुखरित हो उठा है। इनके सवैया में श्रृंगार की छटा सर्वत्र संयोग और वियोग पक्ष की परम्परा में द्रष्टव्य है। उनका विचार है कि जहाँ मनुष्य निवास करेंगे वहाँ प्रेमी और प्रेमिकाओं का प्रेम  अवश्य पल्लवित होगा। इस प्रसँग का एक छन्द बड़ा उत्कृष्ट बन पड़ा है- 

कैसो समाज जहाँ ना गुनीजन 

देश सो कैसो जहा रवि नाही।

सागर कैसो विना जल के 

कल्पद्रुम कैसो ना शीतल छाही।

नैन वो कैसे मैन न ढरे जिन 

बिन वानी  ही ना जैवत राहीं । 

वे मन कैसे भला जग मे 

प्रिय प्रियतम होना रमे जग माही।  

- (  ईश जी की डायरी से उपलब्ध )

स्त्री वियोग में मै 'ईश' जी का एक छन्द प्रस्तुत है - 

दुख दारिद व्याधि बनावलि पै 

विखराय सुपूरित चुनी गई।

कल कण्ठित कल्पना कानन की 

दुरि दीन दिले दनि दूनो गई।

मृदु अंगनि काटि कटारिन लो 

मिर्चा मलि निर्दय नो नो गई। 

चर्चा करि हाय बने ही विना 

तुम सो गृह को तजि सुनो गई। 

    - (उपहार, पृष्ठ 20)

“ईश” जी “द्विजेश” परम्परा के बड़े ही सशक्त  छंदकार हैं। इनके छन्दों में ब्रजभाषा और खड़ी बोली के लालितत्य के साथ साथ अनुकरण  की प्रधानता है। यह केशव की परम्परा ने ”द्विजेश” जी द्वारा दीक्षित अलंकारवादी छन्दकार है। छन्दों में अर्थगाम्भीर्य तथा रीतिकालीन कलात्मकता सर्वत्र पाई जाती है। मानसिक रूप असंतुलित  रहने के कारण “ईश” जी के छन्द गायब होते रहे हैं। शृंगार और हास्य के अनुठे छन्दकार होने के साथ-साथ घनाक्षरी और सवैया के मजे मजाये कवि है। चतुर्थ चरण के छन्दकारो के मार्गदर्शन के निमित्त “ईश” जी सदैव आतुर रहते हैं। वे “रंगपाल”और “द्विजेश” जी के छन्द-परम्परा के विकास में आज भी लगे हुए हैं।

सम्पादक परिचय:-

(सम्पादक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। 

(मोबाइल नंबर +91 8630778321;) 

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