Friday, August 8, 2025

भारत अमेरिका का बिगड़ता सम्बन्ध, मजबूत होगा भारत # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


अमेरिका और रूस विश्व की दो महान प्रभावशाली ताकतें रही हैं। भारत इन दोनों से बाहर रहा है और निर्गुट वाले रास्ते को अपनाया था। बाद में चीन और पाकिस्तान के हस्तक्षेप और बार - बार भारत पर युद्ध थोपने के कारण भारत को रूस की मदद लेने को बाध्य होना पड़ा था। अमेरिका शुरू से ही पाकिस्तान को अपने छत्र - छाया में रखता चला आया है। उसे आर्थिक मदद और हथियार सप्लाई करता रहा। बीच - बीच में अमेरिका भारत से जुड़ने का भी प्रयास किया परन्तु उसकी चाल दोगली रही। उसने कई बार भारत को नीचा दिखाने का प्रयास भी किया और उस पर अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिबंध भी लगाया। 

     इन दिनों अमेरिका और भारत पर पुनः इतिहास दोहरा रहा है । एक बार फिर अमेरिका 'दादागिरी' और दबाव की राजनीति पर उतर आया है। भारत ने भी पहले की तरह अब भी यह साफ कर दिया है कि वह किसी भी वैश्विक ताकत के आगे नहीं झुकेगा। भारत अपने देश के लोगों के हितों को सर्वोपरि रखेगा।

इतिहास के आइने में भारत और अमेरिका के संबंध:- 

भारत और अमेरिका के संबंध, एक जटिल और बहुआयामी रिश्ता रहा है जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से यह शनै: शनै: विकसित हुआ है। आज, इनमें रणनीतिक साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है, जिसमें व्यापार, रक्षा, प्रौद्योगिकी और क्षेत्रीय सुरक्षा आदि शामिल है। भारत और अमेरिका के बीच एक जटिल और गतिशील साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर आधारित है। दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध न केवल उनके द्विपक्षीय हितों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

1947 से पहले की स्थिति :- 

भारत शताब्दियों गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अफगानी , मुस्लिम आक्रांता और अंग्रेजों ने इसका खूब दोहन किया। इसे लूटा और जबरन अपनी संस्कृति थोपने का प्रयास भी किया है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को खूब लूटा खासूटा गया।भारत और अमेरिका के बीच पहले से कोई औपचारिक संबंध नहीं थे, लेकिन अमेरिका ने भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन व्यक्त किया था।

शीत युद्ध का दौर में :- 

शीत युद्ध के दौरान, भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे, क्योंकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी, जबकि अमेरिका सोवियत संघ के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था। अमेरिका ने भारत को झुकाने की अनेक कोशिश की है। बीते 60 साल में 1965, 1971, 1974 और 1998 इन चार बड़े मोड़ों पर अमेरिका ने अपनी ताकत दिखाई, भारत पर प्रतिबंध लगाए, तरह तरह की धमकियां दीं गई। पर हर बार भारत ने दृढ़ता,आत्मसम्मान और पूरी मजबूती के साथ जवाब दिया है। 

वर्ष 1965 का दौर में : - 

उन दिनों भारत खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर नहीं हो पाया था।अमेरिका से भारत में लाल रंग का घटिया क्वालिटी का गेहूं आयात हो रहा था । भारत पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने गेहूं रोकने की धमकी दी, भारत ने आत्मसम्मान को चुना। भारत-पाक युद्ध 1965 के बीच जब भारत खाद्य संकट से जूझ रहा था, तब अमेरिका 'PL-480' स्कीम के तहत भारत को गेहूं देता था। लेकिन युद्ध रोकने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने गेहूं बंद करने की धमकी दी। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवाब दिया कि ''हम भूखे रह सकते हैं, लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे।" और इसी समय 'जय जवान, जय किसान' का नारा गूंजा था और देश एकजुट हुआ था।

वर्ष 1971 का दौर में : - 

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को हराया था। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अमेरिका पूरी तरह पाकिस्तान के साथ खड़ा था। राष्ट्रपति निक्सन और हेनरी किसिंजर ने भारत पर कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाने की पूरी कोशिश की। यहां तक कि अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी तक भेज दिया गया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी झुकी नहीं। भारत ने निर्णायक जीत दर्ज की और बांग्लादेश का निर्माण कराया।

वर्ष 1974 का पोखरण-1 परमाणु परीक्षण का दौर :- 

पोखरण-1 के परमाणु परीक्षण पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए थे ,  भारत इस बार भी रुका नहीं था।भारत ने पहली बार राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था । जवाब में अमेरिका ने तकनीकी सहायता, परमाणु ईंधन और आर्थिक सहयोग पर प्रतिबंध लगा दिए। फिर भी श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वदेशी तकनीक और वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता के सहारे देश का परमाणु कार्यक्रम जारी रखा था।

1998 में पोखरण-2 का परीक्षण :- 

1998 में भारत द्वारा किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण के समय भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे। परीक्षण के बाद, अमेरिका ने भारत पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसमें कुछ रक्षा सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर रोक लगाना, अमेरिकी ऋण और क्रेडिट गारंटी को रोकना, और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत को वित्त पोषण का विरोध करना शामिल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था -"हम घुटने नहीं टेकेंगे।" भारत ने पोखरण-2 परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अमेरिका बौखला गया था और उसने भारत के विरुद्ध व्यापक प्रतिबंध लगाए थे। विश्व बैंक से आर्थिक मदद रोक दी गई, सैन्य उपकरणों की बिक्री पर रोक लगाई गई। तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो टूक कहा कि "भारत की सुरक्षा के लिए जो जरूरी होगा, हम करेंगे। चाहे अमेरिका माने या न माने।"

भारत का स्पष्ट रुख:- 

भारत ने इन प्रतिबंधों का दृढ़ता से विरोध किया था और अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा था। कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को समझ में आ गया कि भारत को अलग- थलग नहीं किया जा सकता।  1999 में प्रतिबंध हटने लगे थे। भारत और अमेरिका के बीच संबंध 2000 के दशक में नाटकीय रूप से सुधर गए, और दोनों देश अब एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए थे।

बिल क्लिंटन का युग:- 

2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए। दोनों देशों के संबंधों में सुधार दिखने लगा था। 9/11 केआतंकी हमलों के बाद, अमेरिका ने भारत पर लगाए गए कुछ प्रतिबंधों को हटा भी दिया था। 

ऐतिहासिक परमाणु समझौता सम्पन्न:- 

बाद में, 2008 में, दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया युग शुरू हुआ। 

2000 के बाद के समय:

2000 के बाद, दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से सुधरने लगे। व्यापार, रक्षा, और रणनीतिक सहयोग में वृद्धि हुई। देश के विकास की गाड़ी काफी कुछ पटरी पर आ गई थी।

वर्तमान परिपेक्ष्य:- 

आज, भारत और अमेरिका एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार हैऔर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था । अमेरिका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक प्रमुख स्रोत है। दोनों देशों ने स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए कई पहल हुए हैं।

रक्षा सहयोग - संबंध:- 

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा उपकरण खरीदना शामिल है।अमेरिका हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक सहयोग:- 

भारत और अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में भी सहयोग कर रहे हैं, जिसमें नासा और इशरो की साझेदारी और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम शामिल हैं। दोनों देशों ने महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग को मजबूत करने के लिए एक पहल की है। अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र और पेशेवर रहते हैं, और शिक्षा दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ रहा है, जिसमें फिल्म, संगीत और कला शामिल हैं।

विविध क्षेत्रों में अमेरिका - भारत का सम्बन्ध:- 

भारत-अमेरिका संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बढ़ते समान हितों के आधार पर एक प्रमुख रणनीतिक गठबंधन के रूप में विकसित हुए हैं। दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं ने सहयोग के लिए निरंतर गति प्रदान की है, जबकि लगातार विस्तारित हो रहे संवाद ढांचे ने जुड़ाव के लिए दीर्घकालिक आधार तैयार किया है। अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, जो रणनीतिक समर्थन, आर्थिक अवसर, रक्षा सहयोग और तकनीकी प्रगति प्रदान करता है। मजबूत द्विपक्षीय संबंध भारत के वैश्विक प्रभाव, सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ाते हैं। भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग में व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, उच्च प्रौद्योगिकी, असैन्य परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुप्रयोग, स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्र शामिल हैं। दोनों देशों में लोगों के बीच सक्रिय संपर्क और राजनीतिक समर्थन द्विपक्षीय संबंधों को पोषित करते हैं।

वर्ष 2009 में हुआ और सुधार :- 

दोनों देशों ने वर्ष 2009 में 'रणनीतिक साझेदारी' समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों ने वर्ष 2020 में 'व्यापक वैश्विक रणनीतिक सहयोग' समझौते को मंजूरी दी, जो 15 वर्षों के अंतराल के बाद हुआ, जिससे अमेरिका- भारत संबंधों में सुधार हुआ है।

भारत पर एक तरफा टैरिफ ,अमेरिका के दादागिरी के आठ प्रमुख कारण:- 

अमेरिका ने भारत पर पहले 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाकर व्यापार बढ़ाने का दबाव बनाया। यह नया टैरिफ़ पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ जुड़कर कुल शुल्क 50 फीसदी टैरिफ कर दिया है। अतिरिक्त टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएगा। सवाल है कि अमेरिका टैरिफ़ को लेकर ख़ासकर भारत को ही निशाना क्यों बना रहा है, जबकि रूस से तेल खरीदने के मामले में चीन, भारत से कहीं आगे है।

      भारत से एक्सपोर्ट होने वाले सामानों पर लगने वाले भारी टैरिफ से इनकी बिक्री में दिक्कत आ सकती है। 50 फीसदी टैरिफ़ लगने से भारत का अमेरिका को होने वाला एक्सपोर्ट घट जाएगा, फलत: भारत में नौकरियां चली जा सकती है।इससे देश में बेरोजगारी बढ़ेगी और मंदी का दौर आ सकता है। इसका असर दूसरे उद्योग धंधों पर भी पड़ेगा, उत्पादन कम होगा,इससे हरेक उद्योग प्रभावित होंगे और हरेक सेक्टर में नौकरियां जा सकती हैं।

     जिन देशों में टैरिफ कम लगाया गया है, उनके सामानों की पहुंच अमेरिका के बाजार में बढ़ सकती है। भारत पर भारी टैरिफ लगाने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा लगातार रूस से तेल का आयात करना कारण बताया है। 

       ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि कई अन्य कारण भी हैं। भारत अपनी पुरानी मित्रता और देशहित को ऊपर रखते हुए रूस से लगातार तेल आयात में लगा हुआ है, जिसकी वजह से भारत पर भारी टैरिफ लगाया गया है। अमरीका के प्रायः हर राष्ट्रपति साम्राज्यवादी रहा है। पर ओबामा जार्ज बुश और क्लिंटन कुछ उदारवादी रहे। ट्रंप और बाइडन बिल्कुल विपरीत स्वभाव वाले रहे। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि आठ अन्य कारण भी हैं।

1.भारत ने रूस से तेल लेना बंद नहीं किया :- 

ट्रंप की कई चेतावनियों को दरकिनार करते हुए भारत ने अब तक रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया है। ट्रंप का दावा है कि भारत न सिर्फ सस्ते में रूस से तेल आयात कर रहा है, बल्कि उन्हें अन्य देशों को भारी कीमत पर बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा रहा है। इसके लिए ट्रंप ने भारत पर टैरिफ रूपी जुर्माना भी लगाया है। भारत ने भी तुरंत जवाब देते हुए साफ कर दिया , “जो कदम देशहित में होगा, वह भारत उठाता रहेगा।”

2.ब्रिक्स को लेकर नाराज़गी :- 

ब्रिक्स, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसमें भारत समेत चीन, रूस, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के अलावा ईरान, इथियोपिया, इंडोनेशिया, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं।ये सभी देश डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के पक्ष में हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप को बिल्कुल पसंद नहीं है। वे समय-समय पर ब्रिक्स देशों को 100 प्रतिशत तक टैरिफ़ लगाने की धमकी देते आए हैं। उनका यह भी कहना है कि अगर ब्रिक्स देशों ने अपनी करेंसी चलाने की कोशिश की तो उन्हें अमेरिका से व्यापार को अलविदा कहने के लिए तैयार रहना होगा।

3.सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना:- 

भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए कई दिनों तक संघर्ष चला था। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पीओके और पाकिस्तान में जबरदस्त हमले किए थे। हालांकि, चार दिन के बाद दोनों देशों में सीजफायर हो गया था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम करवाने का दावा किया। वे 30 से ज्यादा बार कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाक के बीच संघर्षविराम करवाया, लेकिन भारत सरकार ने साफ किया कि यह भारत और पाक के बीच डीजीएमओ स्तर पर हुआ। इसमें किसी भी तीसरे देश का कोई रोल नहीं है। ओर पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप को सीजफायर क बार क्रेडिट दिया है। जानकारों की मानें तो ट्रंप के भारत से चिढ़ने की एक वजह भारत द्वारा सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना भी है।

4.ऑपरेशन सिंदूर' रोकने का श्रेय न मिलना :- 

ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की थी. हालांकि बाद में दोनों देशों ने संघर्ष विराम का एलान किया था।राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि सीजफायर उन्होंने कराया है, जबकि भारत ने साफ़ किया है कि इसमें अमेरिका की भूमिका नहीं है। जम्मू- कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष में बदल गया था।

5.चीन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी:

2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली चीन यात्रा करने जा रहे हैं। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट में शामिल होने के लिए पीएम मोदी चीन जाएंगे। यह दौरा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होगा।पिछले साल अक्तूबर में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात की थी। जून, 2025 में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीजिंग भी पहुंचे थे. उसके बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भी चीन गए थे।

6.भारत ने नोबेल दिए जाने की मांग नहीं की :- 

ट्रंप की लंबे समय से इच्छा है कि इस बार का शांति का नोबेल पुरस्कार उन्हें ही दिया जाए। इसके चलते वे दुनियाभर के युद्धों में खुद ही बीच में कूद पड़ते हैं और उसे रुकवाने का दावा करते हैं। भारत - पाकिस्तान से इतर, इजरायल-ईरान, इजरायल-हमास, थाइलैंड-कंबोडिया जैसे युद्ध रुकवाने का भी ट्रंप दावा कर चुके हैं। इजरायल, कंबोडिया और पाकिस्तान जैसे देशों ने आधिकारिक रूप से ट्रंप को नोबेल दिए जाने की मांग की है, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया है। भारत ने दो टूक कहा है कि ऐसे सवाल वाइट हाउस से ही पूछे जाने चाहिए, नाकि भारत से। ऐसे में ट्रंप को इससे मिर्ची लगना तय है।

7. रूस-यूक्रेन युद्ध ना रुकवा पाना:- 

अमेरिका अन्य पश्चिमी देशों की तरह शुरुआत से ही इस युद्ध में यूक्रेन की तरफ है। इसके चलते उसने रूस पर पहले तो कई कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन जब उसका भी कोई असर नहीं पड़ा तो यूक्रेन को खुलकर हथियारों और आर्थिक मदद करने लगा। इसके बाद जब ट्रंप राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस युद्ध को रुकवाने के लिए पूरी जी-जान लगा दी। कभी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात की तो कभी पुतिन को फोन लगा दिया। लेकिन उनकी तमाम कोशिशें भी काम नहीं कर सकीं और रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन में बमबारी करने से पीछे नहीं हटा। ऐसे में भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना भी अमेरिका को बुरा लग गया और अब वह भारी टैरिफ लगाकर रूस से तेल खरीदने से रोकना चाहता है।

8.कृषि और डेयरी बाजार तक अधिक पहुंच बढ़ाना चाहता है अमेरिका:- 

अमेरिका कई सालों से भारत के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी यह कोशिश हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी।ट्रंप का मानना है कि भारत के साथ ट्रेड डील अमेरिका के लिए भारतीय बाज़ारों को खोलने का काम करेगी, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है।

    अमेरिका भारत में कृषि और डेयरी बाजार बहुत बड़ा है और अमेरिका भी इसका लाभ लेना चाहता है। भारत और अमेरिका के बीच कई महीनों से ट्रेड डील पर बातचीत चल रही है, लेकिन भारत किसी भी हाल में अमेरिका के कृषि और डेयरी प्रोडक्ट्स वाली मांगों को मानने को तैयार नहीं है। अमेरिका भारत से मक्का, सेब, सोयाबीन समेत तमाम चीजों पर टैरिफ कम करने कीमांग कर रहा है और अपने डेयरी प्रोडक्ट्स पर भी डील चाहता है। लेकिन इससे भारत के किसानों को नुकसान हो सकता है और यही वजह है कि भारत सरकार किसी भी कीमत पर समझौता करने के मूड में नहीं है। इसकी एक झलक पीएम मोदी ने अभी हाल ही में एक बयान के जरिए कर दी है। ट्रंप को जवाब देते हुए पीएम मोदी ने साफ साफ कहा है - “हमारे लिए किसान हित सर्वोच्च प्राथमिकता है और भारत पशु-पालकों, मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।” इसी वजह से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार डील रुकी हुई है।

     उक्त परिस्थितियां यदि इसी प्रकार नहीं रहेगी। कोई उदारवादी नेतृत्व उभरेगा और दोनों देश के मध्य बराबरी का समुचित तालमेल बैठाएगा। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो दोनों देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती और विकास का पहिया अवरुद्ध हो सकता है। इससे भारत और मजबूती से उभरेगा।



 लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।



Sunday, August 3, 2025

भारतीय संस्कृति में सौभाग्य और सुचिता का प्रतीक: सिन्दूर # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

पीले मिश्रित लाल रंग को सिंदूरी रंग कहा जाता है। यह रंग नारंगी और लाल के बीच का होता है। इसे कुमकुम भी कहा जाता है, जो आमतौर पर हिंदू महिलाओं द्वारा उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सिंदूर को अबीर और गुलाल के रूप में भी जाना जाता है, जो होली जैसे त्योहारों में उपयोग किए जाते हैं । इसके अलावा, इसे "नाग-संभूत" या "नागज" भी कहा जाता है, क्योंकि कुछ मान्यताओं के अनुसार इसकी खोज नागों द्वारा की गई थी।

सिंदूर का इतिहास:- 

शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती ने वर्षों तक शिव जी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने मां पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया तो मां पार्वती ने सुहाग के प्रतीक के रूप में सिंदूर मांग में लगाया था। उन्होंने कहा  कि जो स्त्री सिंदूर लगाएगी उसकी पति को सौभाग्य और लंबीआयु की प्राप्ति होगी। धार्मिक मतों के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने ही सिंदूर लगाया था और तभी से ये परंपरा चल पड़ी। सिंदूर को देवी पार्वती से जोड़ा जाता है, और इसे पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की सुख-समृद्धि के लिए लगाया जाता है। यह माना जाता है कि इसे लगाने से देवी पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। 

नवपाषाण काल में सिंदूर का प्रयोग:- 

बलूचिस्तान के मेहरगढ़ गहराई में मिली नवपाषाण काल की महिला कारीगरों की मूर्ति से प्रतीत होता है कि उस समय के महिलाओं के बालों के बीच में सिन्दूर जैसा रंग लगाया जाता था। सिंदूर भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य और शुभता का प्रतीक माना जाता है। सिंदूर का प्रयोग और इसका सांस्कृतिक महत्व हजारों वर्षों से प्रचलित है। विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में सिन्दूर भरने की यह प्रथा लगभग 8000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है।

हड़प्पा - मोहनजोदड़ो की सभ्यता :- 

सिंदूर का उपयोग हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता में भी देखा गया है, जहाँ खुदाई में स्त्रियों की मूर्तियों के मांग में सिंदूर के निशान पाए गए हैं। यह प्रमाणित करता है कि सिंदूर का प्रयोग भारत में बहुत पुराने समय से हो रहा है।इस सभ्यता सबसे बड़ी स्थल राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान महिलाओं के सजने संवरने को लेकर काफी चीजें मिलीं हैं ।           पत्थर की मालाएं, मिट्टी,तांबा व फियांस से बनीं चूड़ियां, कंगन, सोने के आभूषण, मिट्टी की माथे की बिंदी, सिंदूर दानी, अंगूठी, कानों की बालियां आदि प्रमुख हैं। इससे ये पता चल जाता है कि महिलाएं लगभग आठ हजार साल पहले भी सिंदूर लगाती थीं और सजने संवरने के लिए कंगन-चूड़ी, अंगूठी, बिंदी आदि का उपयोग करती थीं। पता चलता है कि पुराने जमाने में हल्दी, फिटकिरी, या चूने से सिंदूर को बनाया जाता था।  इस सभ्यता से भी कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं जो बताते हैं कि सिंदूर लगाने की परंपरा तब भी थी।  जिनमें महिलाओं की मांग में सिंदूर लगाने के साक्ष्य हैं। इस काल से जुड़ी देवियों की कुछ ऐसी मूर्तियां मिली हैं जिनके सिर के बीच में एक सीधी रेखा है और उस पर लाल रंग भरा गया है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह और कुछ नहीं बल्कि सिंदूर है। 

पारंपरिक सिन्दूर का उपयोग :- 

हल्दी और फिटकरी या चूने, या अन्य सामग्री से बनाया गया था।  लाल सीसा और सिन्दूर के विपरीत, ये अपराध नहीं होते हैं।  कुछ व्यावसायिक सिन्दूर के बारीक कणों के मसाले मौजूद होते हैं, जिनमें से कुछ मानक के अनुसार निर्मित नहीं होते हैं और उनमें सीसा हो सकता है। सिंदूर का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से औषधीय कारणों से भी किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में, हिंदू धर्म में ऐतिहासिक जड़ों वाली चिकित्सा पद्धति में, लाल सिंदूर पाउडर में औषधीय गुण होते हैं जो महिलाओं को लाभ पहुंचाते हैं, जिसमें उनकी कामोत्तेजना को बढ़ाने के लिए रक्त प्रवाह को सक्रिय करना शामिल है - यही कारण है कि अविवाहित महिलाओं और विधवाओं को इसे लगाने की अनुमति नहीं रही है।

सिंदूर का आध्यात्मिक महत्व :- 

सिंदूर का महत्व भारतीय समाज में अत्यधिक है। यह केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। विवाहित स्त्रियों के लिए सिंदूर एक शुभ संकेत है। मांग में भरने का अर्थ होता है कि वह स्त्री विवाहित है और अपने पति की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करती है। सिंदूर का लाल रंग शक्ति और उर्वरता का प्रतीक है, जो स्त्रियों की ऊर्जा और जीवंतता को दर्शाता है।

सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक:- 

सिंदूर विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक है। यह माना जाता है कि सिंदूर लगाने से पति की रक्षा होती है और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। सिंदूर लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, ऐसा माना जाता है। 

सिंदूर का सांस्कृतिक महत्त्व :- 

सिंदूर का सांस्कृतिक महत्त्व भी अत्यधिक है। हिंदू धर्म में, विवाह के समय पति द्वारा पत्नी की मांग में सिंदूर भरना एक महत्वपूर्ण रस्म है, जो उन्हें आधिकारिक रूप से पति-पत्नी घोषित करता है। यह रस्म भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों में थोड़े-बहुत भिन्न रूपों में प्रचलित है, लेकिन इसका मूल अर्थ वही रहता है। विवाहित स्त्रियाँ प्रतिदिन अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं, जिसे वे अपने पति के प्रति समर्पण और सम्मान के रूप में देखती हैं। इसकेअलावा, विशेष अवसरों और त्योहारों पर भी सिंदूर का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। छठ पूजा में माताएं बहुत लंबे शिर के बीचोबीच मांग से नाक तक सिन्दूर लगाती हैं और छठ माता से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

विभिन्न साहित्यिक ग्रंथों में सिंदूर का उल्लेख:

प्राचीन भारतीय साहित्य में सिन्दूर का उल्लेख विभिन्न संदर्भों में मिलता है, जिसमें धार्मिक, सौंदर्य, और वैवाहिक प्रथाएं शामिल हैं। हालांकि सिन्दूर को स्पष्ट रूप से विवाह के प्रतीक के रूप में उल्लेख करने की प्रथा मध्यकाल में अधिक स्पष्ट हुई, प्राचीन साहित्य में इसका उपयोग सौभाग्य, शक्ति, और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में देखा जाता है।

वैदिक साहित्य (1500-500 ईसा पूर्व)में सिन्दूर का प्रयोग :- 

लाल रंग के पदार्थों का सामान्य उल्लेख है, जिसे विवाहित महिलाओं के अलंकरण से जोड़ा गया है। कन्या के मांग में पहले सिन्दूर उसके शादी के दिन पति द्वारा सजाया जाता है जिसे हिंदूविवाह में सिंदूर दान कहा जाता है। सिन्दूर के संबंध में कुछ वैदिक धारणा भी है कि इसे लगाने के बाद पति को अपनी पत्नी का रक्षक बनना होता है तथा उसे हर सुख दुःख का साथी भी बनना पड़ता है। 

    ऋग्वेद और अथर्ववेद में सिन्दूर का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन लाल रंग के पदार्थों (जैसे गेरू, कुमकुम, या हरिद्रा) का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और सौंदर्य प्रसाधन में वर्णित है। उदाहरण के लिए, अथर्ववेद (6.138) में सौभाग्य और प्रजनन से संबंधित मंत्रों में लाल रंग के पदार्थों का उल्लेख है, जिसे सिन्दूर से जोड़ा जा सकता है।

पंच-सौभाग्य में समलित:- 

सिंदूर को वैदिक काल में पंच-सौभाग्य में शामिल किया गया था। पंच सौभाग्य बालों पर पुष्प, मंगल सूत्र, पैर की उंगली में छल्ले, चेहरे पर हल्दी और सिंदूर को कहा गया है। गृह्यसूत्र (वैदिक अनुष्ठान ग्रंथ) में विवाह संस्कारों के दौरान सौंदर्य प्रसाधनों और मांगलिक चिह्नों का उल्लेख है, जिसमें लाल रंग का उपयोग सिन्दूर के रूप में हो सकता है। सौभाग्य वती स्त्री के लिए मांगलिक प्रथाओं का उल्लेख मिलता है ।)

(संदर्भ: ऋग्वेद (10.85, विवाह सूक्त) 

महाकाव्य: रामायण और महाभारत (500 ईसा पूर्व-300 ईस्वी) में सिंदूर का महत्व:- 

सिंदूर लगाने का चलन प्राचीन काल से चला रहा है और इसका संबंध माता पार्वती व देवी सीता से भी जुड़ता है। वाल्मीकि रामायण में सीता के सौंदर्य प्रसाधन का वर्णन है, जिसमें लाल रंग के पदार्थों (संभवतः सिन्दूर या कुमकुम) का उपयोग मस्तक पर किया गया है। उदाहरण के लिए, सुंदरकांड (5.15) में सीता के मांगलिक अलंकरण का उल्लेख है, जो सिन्दूर से संबंधित हो सकता है। सिंदूर का उल्लेख रामायण काल में भी किया गया था। माना जाता है कि माता सीता नित दिन शृंगार के रूप में सिंदूर का प्रयोग करती थीं। बिंदी की तरह, सिंदूर का महत्व सिर के केंद्र में तीसरे नेत्र चक्र (उर्फ अजना चक्र) के पास इसके स्थान से उपजा है। मस्तिष्क से अजना चक्र की निकटता इसे एकाग्रता, इच्छा और भावनात्मक विनियमन से जोड़ती है। जो लोग चक्रों की शक्ति में विश्वास करते हैं, उनके लिए इस स्थान पर सिंदूर लगाने का अर्थ है एक महिला की मानसिक ऊर्जा को अपने पति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयोग करना।

       एक कथा के अनुसार, हनुमान जी ने जब मां सीता को सिंदूर लगाते हुए देखा और तो जिज्ञासावश उनसे यह पूछा लिया कि वह हर दिन सिंदूर क्यों लगाती हैं? तब जानकी जी ने उन्हें बताया कि वह भगवान श्री राम की लंबी आयु के लिए मांग में सिंदूर भरती हैं और भगवान श्री राम इससे प्रसन्न होते हैं। तब श्री राम के अनन्य भक्त हनुमान जी ने अपने प्रभु को प्रसन्न करने के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप लगा लिया था। इसलिए वर्तमान काल में भी हनुमान जी की पूजा में सिंदूर का प्रयोग निश्चित रूप से किया जाता है। ऐसा करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

द्रौपदी की सिंदूरी मांग सजाने की कहानी:- 

प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में, पांडवों की पत्नी द्रौपदी , हस्तिनापुर में घटने वाली घटनाओं से लेकर घृणा और विध्वंस तक, अपना सिन्दूर लिखा हुआ है । विवाह और सौभाग्य के संदर्भ में मांग में लाल रंग लगाने की प्रथा का संकेत है। द्रौपदी ने चीरहरण के गुस्से में बाल खोल दिए थे और सिंदूर नहीं पोछा। कहा जाता है कि उसके बाद सिंदूर भी नहीं लगाया था। द्रौपदी ने चीरहरण का बदला पूर होने पर महाभारत युद्ध में दुशासन के खून से बाल धोए थे और उसके बाद लाल सिंदूर से मांग सजाया था।

( संदर्भ:आदिपर्व, 1.189)।   

      ललिता सहस्रनाम और सौंदर्य लहरी ग्रंथों में सिन्दूर के प्रयोग का अक्सर उल्लेख किया गया है । सौंदर्य लहरी में प्राचीन कला कृतियाँ वर्णित हैं - 

तनोतु क्षेमं नः तव

वदना सौन्दर्यलहरी

परिवह-स्त्रोतः शरणिरिव सीमन्त-सारणीः।

वहन्ती सिन्दूरं प्रबल 

काबरी भारतीमिरा-

द्विशां बृंदैर बंदी-कृतमिव 

नवीनार्का किरणम् ॥

(हे माँ, आपके केशों के बीच की वह रेखा,जो एक चैनल की तरह दिखती है,जिसके माध्यम से आपके प्राकृतिक की तेज़ लहरें उतरती हैं,और जो दोनों तरफ से आयोजित होती है,आपका सिंदूर, जो उगते सूरज की तरह है,आपके शत्रुओं के सैनिकों की तरह काले बालों का उपयोग करके, हमारी रक्षा करें और हमें शांति दें।

(-आदि शंकराचार्य,सौंदर्य लहरी,पृष्ठ 44)

दांपत्य जीवन में सिंदूर का महत्व:- 

शास्त्रों में बताया गया है कि जिन सुहागिन महिलाओं द्वारा मांग में सिंदूर लगाया जाता है, उन्हें पति की अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। साथ ही समूचे परिवार को संकटों से छुटकारा मिल जाता है। नवरात्रि व दीपावली में मां दुर्गा और माता लक्ष्मी की उपासना में भी सोलह शृंगार में सिंदूर का स्थान श्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, सिंदूर का प्रयोग करने से माता सती और मां पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि आती है। प्राचीन साहित्य में सिन्दूर का उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य और धार्मिक संदर्भों में है, लेकिन विवाह से इसका संबंध पुराणों और महाकाव्यों में अधिक स्पष्ट है। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत में सिन्दूर को विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य और पति की दीर्घायु से जोड़ा गया है, जो इसे विवाह के प्रतीक के रूप में स्थापित करता है।

जैन धर्म में सिंदूर :- 

जैन महिलाएं सिन्दूर लगाती हैं, पूर्वोत्तर शहरों में। जैन ननों को यह अपने बालों या कपड़ों पर लगाना पसंद है। सिन्दूर की देवियों की वैधानिक स्थिति के दर्शन के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, कई स्थानीय कला कृतियाँ, सिन्दूर देवियों को भी सिन्दूर लगाती हैं।

(- संदर्भ: रामायण और महाभारत में विवाहित स्त्रियों के अलंकरण।)

पुराण (300-1000 ईस्वी) में सिन्दूर के संदर्भ :- 

मार्कण्डेय पुराण और कामसूत्र में सिंदूर को सौभाग्य और वैवाहिक जीवन से जोड़ते हैं। मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत पुराण में सिन्दूर को माता पार्वती और अन्य देवियों के साथ जोड़ा गया है। सिन्दूर को देवी पूजा में चढ़ाया जाता था, और इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था। मार्कण्डेय पुराण (चंडी सप्तशती) में सिन्दूर के उपयोग को वैवाहिक सुख और पति की दीर्घायु से जोड़ा गया है।

     विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी कुमकुम और सिन्दूर जैसे पदार्थों का उल्लेख पूजा और सौंदर्य के संदर्भ में है, जो विवाहित स्त्रियों की प्रथाओं से संबंधित है।  

(- संदर्भ: मार्कण्डेय पुराण (7.2) में देवी पूजा और सिन्दूर का उल्लेख।)

काव्य और नाटक (200 ईसा पूर्व- 1000 ईस्वी) में सिन्दूर:- 

कालिदास के साहित्य : जैसे कुमार - संभवम और रघुवंशम में स्त्रियों के सौंदर्य प्रसाधन में लाल रंग के पदार्थों (सिन्दूर या कुमकुम) का उल्लेख है। उदाहरण के लिए, कुमार संभवम (7.12) में पार्वती के मस्तक पर लाल रंग के अलंकरण का वर्णन है, जो सिन्दूर से जोड़ा जा सकता है।

      भास और शूद्रक जैसे नाटककारों के नाटकों (जैसे मृच्छ कटिकम्) में विवाहित स्त्रियों के मांग में लाल रंग लगाने की प्रथा का उल्लेख मिलता है, जो सामाजिक और वैवाहिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।  

(- संदर्भ: कालिदास की रचनाओं में सौंदर्य वर्णन।)

कामसूत्र और अन्य स्मृति ग्रंथ (200- 400 ईस्वी) में सिन्दूर का उल्लेख :- 

वात्स्यायन का कामसूत्र में सौंदर्य प्रसाधनों और अलंकरणों का विस्तृत वर्णन है, जिसमें सिन्दूर और कुमकुम जैसे लाल रंग के पदार्थों का उपयोग विवाहित स्त्रियों के लिए वर्णित है (अध्याय 4)। यह सौभाग्य और आकर्षण का प्रतीक माना जाता था। मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति में विवाहित स्त्रियों के लिए विशिष्ट अलंकरणों का उल्लेख है, जिसमें मांगलिक चिह्न (संभवतः सिन्दूर) शामिल हो सकते हैं।  

(- संदर्भ: कामसूत्र (4.1) में सौंदर्य प्रसाधन।)

भक्ति साहित्य (600-1000 )ईस्वी में सिंदूर :- 

भक्ति काल के दौरान, विशेष रूप से दक्षिण भारत में, आलवार और नयनार संतों के तमिल भक्ति साहित्य में सिन्दूर और कुमकुम का उल्लेख देवी पूजा और वैवाहिक सौभाग्य के संदर्भ में है। उदाहरण के लिए, तिरुक्कुरल में सौभाग्यवती स्त्री के अलंकरणों का वर्णन है, जो सिन्दूर से संबंधित हो सकता है। मध्यकालीन साहित्य (जैसे भक्ति काव्य और क्षेत्रीय साहित्य) में सिन्दूर का उपयोग विवाह के प्रतीक के रूप में और अधिक स्पष्ट हो जाता है।

(- संदर्भ: तमिल भक्ति साहित्य में सौंदर्य और पूजा।)

सिंदूरी शाम के विविध उल्लेख:- 

यह एक बहुत ही लोकप्रिय वाक्यांश है जिसका उपयोग अक्सर कविता, गीत और कला में किया जाता है, विशेष रूप से सूर्यास्त के समय के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए। श्रीप्रकाश पाण्डेय की एक रचना दृष्टव्य है - 

धड़कन में संगीत प्यार का

होंठों पर तुम्हारा नाम

सूरज ने भी रच दी देखो

वहां नभ पर सिन्दूरी शाम 

घर-घर गूंजी एक कहानी

बस्ती-बस्ती फैली ये बात

पलकों पर चाँद सजाने में

यहां कट गयी सारी रात

शब्दों से गीतों को ढलने में

कितना दर्द हुआ बदनाम।

रहे प्रतीक्षा रत जीवन भर

मंजिल तक ना पहुंचे पास

सांस-सांस पर नाम तुम्हारा

पल-पल मिलने की आस

राहों में यादों के जंगल

भटकन सुबह और शाम।

पूनम श्रीमाली की ये पंक्तियां भी दिल को छू लेती हैं - 

शाम सिंदूरी , ये डूबता सूरज और ये सिंदूरी नज़ारा ,

ये झील का किनारा ..!!

ये खूबसूरत कुदरती  नज़ारा

उस पर ये खामोशी और ख्वाब तुम्हारा।

ऐसे कैसे जाने देंगे प्रियतम

अभी तो शुरू हुआ है 

(तुम्हें सोचना) हमारा ..…....!!

संस्कृति में सिन्दूर:- 

सिन्दूर से जुड़ी हैं कई भारतीय फ़िल्में और नाटक, थीम थीम इस स्मारक का महत्व- गिर्द घूमती है। इनसे सिंदूर (1947),सिंदूरम(1976),रक्त सिंधुरम (1985 ), सिंदूर(1987) और सिंदूर तेरे नाम का सीरीज़, (2005- -2007) शामिल हैं। 

ऑपरेशन सिंदूर 2025 :- 

अभी हाल ही 2025 में  भारतीय सशस्त्र बल ने पहलगाम हमले का जवाब पाकिस्तान पर मिसाइल हमले करके दिया। पहलगाम हमलों में पुरुष हिंदू क्रॉटल की मौत के संदर्भ में, मिसाइल हमले को ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया था। आतंकियों ने सिंदूर उजाड़ी तो हमने बदले के लिए ऑपरेशन सिंदूर से करारा जवाब दिया । भारत ने सबसे पहले सिंधु नदी का पानी रोक कर आतंक पर चुप्पी साधी पाकिस्तान सरकार को जगाया। उसके बाद ऑपरेशन सिंदूर ने आतंकियों को राख करने का काम किया। ये संयोग समझिए या कुछ और…जो सिंधु और सिंदूर आज पाकिस्तान के लिए काल बने हैं। 

सिंदूर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- 

सिंदूर का प्रयोग केवल धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से नहीं किया जाता, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का ब्रह्मरंद्र यानी मस्तिष्क का उपरी भाग बहुत ही संवेदनशील और कोमल होता है। ऐसे में सिंदूर लगाने से विद्युत ऊर्जा पर नियंत्रण पाई जा सकती है और इससे नकारात्मक विचार दूर रहते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि सिंदूर लगाने से सिर दर्द, अनिद्रा, मस्तिष्क से जुड़ा रोग समाप्त हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि सिंदूर के प्रयोग से चेहरे पर जल्दी झुर्रियां भी नहीं पड़ती है और बढ़ती उम्र के संकेत दिखाई नहीं देते हैं।

       सिंदूर हल्दी और चूने के मिश्रण से बनाया जाता है, जो शरीर के लिए फायदेमंद होता है। यह माना जाता है कि सिंदूर लगाने से तनाव और मानसिक दबाव को कम करने में मदद मिलती है।इससे रक्त चाप तथा पीयूष ग्रंथि भी नियंत्रित होती है। सिंदूर में पाए जाने वाले पारंपरिक घटक, जैसे हल्दी और पारा, स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं। हल्दी एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक है, जबकि पारा रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।

निष्कर्ष :- 

प्राचीन भारतीय साहित्य में सिन्दूर का उल्लेख सौंदर्य प्रसाधन, धार्मिक अनुष्ठान, और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में मिलता है। वैदिक साहित्य में लाल रंग के पदार्थों का सामान्य उल्लेख है, जबकि रामायण, महाभारत, और पुराणों में इसे विवाहित स्त्रियों के अलंकरण से जोड़ा गया है। मार्कण्डेय पुराण और कामसूत्र जैसे ग्रंथ सिन्दूर को सौभाग्य और वैवाहिक जीवन से जोड़ते हैं, जो विवाह प्रतीक के रूप में इसकी प्रारंभिक भूमिका को दर्शाता है। मध्यकालीन साहित्य में यह प्रथा और स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार सिंदूर भारतीय समाज और संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। इसका इतिहास, महत्व और सांस्कृतिक महत्त्व हमें हमारे पुरखों से विरासत में मिला है, जिसे हमें संजोकर रखना चाहिए। सिंदूर का प्रयोग केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्त्रियों के जीवन में  जीवन में सौभाग्य, प्रेम और शक्ति का प्रतीक है। यह न केवल एक श्रृंगार है, बल्कि विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य, प्रेम, समर्पण और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। 


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

 मोबाइल नंबर +91 8630778321; 

वॉर्ड्सऐप नम्बर+919412300183)

Saturday, August 2, 2025

चरित्र हनन पर सनातन संतों की मुहिमआचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य , राधाबल्लभ सम्प्रदाय के मनीषी सन्त प्रेमानंद जी के बाद अब साध्वी ऋतंभरा के प्रवचन ने आम जनमानस में नई मुहिम छोड़ रखी है। अब एक पति, पिता और भाई भी इन तथ्यों को नजरंदाज नहीं कर सकते हैं। जो खून के रिश्ते वाले ये आत्मीयजन नहीं कर सके उसे कुछ सनातन ऋषियों- संतों और प्रेमियों ने कर के दिखा दिया है।

साध्वी ऋतम्भरा की मुहिम:- 

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद जी महाराज के बाद अब साध्वी ऋतंभरा का युवा युवतियों  पर दिए बयान से चर्चा बढ़ गई है। रीलबाज महिलाओं को लेकर साध्वी ऋतंभरा ने बयान काफी चर्चा में हैं। उन्होंने हिंदू लड़कियों के पहनावे और अन्य चीजों पर एक प्रवचन के दौरान कटाक्ष किया।उन्होंने खासकर रील बनाने वाली और छोटे पहनने वाली लड़कियों को निशाने पर लिया। साध्वी जी ने कहा कि “ये देखकर शर्म आती है कि लड़कियों पैसा कमाने के लिए कैसे-कैसे गंदे काम करती हैं।उनके पिता और पति ये बर्दाश्त कैसे कर लेते हैं।” उन्होंने कहा कि नंगे होकर और गंदे ठुमके लगाकर पैसा कमाओगे। जिस घर के अंदर गंदी कमाई आती है, तो पितर, पितर लोक में तड़पने लगते हैं। मर्यादित जीवन होना चाहिए। हे भारत की देवियों तुम चाहो तो कर सकती हो । तुम चाहो तो राक्षसों के घर में देवताओं को जन्म दे सकती हो। तुमने प्रहलाद का जन्म हिरणाकश्यप के घर देकर यह सिद्ध भी कर दिया है । तुमने कयाधू बनकर हिरण्यकशिपु के घर में प्रह्लाद को जन्म दिया । अगर तुम न चाहो तो विश्रवा ऋषि के घर में रावण जैसा राक्षस पैदा हो सकता है।

अनिरुद्धाचार्य ने कहा था :- 

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य के लड़कियों की उम्र को लेकर बड़बोलेपन शब्द बोल दिए थे, जिस पर जमकर बवाल हुआ था। उनके कुछ शब्द कुछ लोगों को आपत्ति जनक लगे थे। अपनी फजीहत देखकर  बाद में उन्होंने इसके लिए माफी भी मांगी थी । उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि वह महिलाओं का अपमान नहीं कर सकते। उन्होंने सफाई में कहा कि उनका बयान आम महिला पर ना होकर कुछ महिला पर था। उनका कहना था कि उनका बयान ऐसी लड़कियों के लिए था जो पराये पुरुष के लिए अपने पति को मार देती हैं।

प्रेमानंद जी महाराज ने कहा था :-आजकल के समय में लोगों के चरित्र में हो रही गिरावट को लेकर चिंता जताते हुए प्रेमानंद जी कहा था कि 'शादी के परिणाम अच्छे आएंगे कैसे? आजकल बच्चे और बच्चियों का चरित्र पवित्र नहीं है?माताओं- बहनों का पहले रहन-सहन देखो।हम अपने गांव की बता रहे हैं। वह बूढ़ी थीं, लेकिन इतने नीचे तक पल्लू था।' कहा, 'आजकल के बच्चे कैसी पोशाकें पहन रहे हैं? कैसा आचरण कर रहे हैं? एक लड़के से ब्रेकअप। फिर दूसरे से व्यवहार। फिर दूसरे से ब्रेकअप और फिर तीसरे से व्यवहार। व्यवहार- व्यभिचार में परिवर्तित हो रहा है, कैसे शुद्ध होगा?

      प्रेमानंदजी महाराज ने चरित्र के पीछे खानपान और व्‍यभिचार का उदाहरण देते हुए कहा, 'मान लो हमें चार होटल का भोजन खाने की आदत पड़ गई है, तो घर की रसोई का भोजन अच्छा नहीं लगेगा। इसी तरह जब चार पुरुष से मिलने का आदत पड़ गई है, तो एक पति को स्वीकार करने की हिम्मत उसमें नहीं रह जाएगी। लड़कों के संदर्भ में भी उन्‍होंने यही बात कही। उन्होंने कहा, 'जब चार लड़कियों से व्यभिचार करता है तो वह अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं रहेगा। उसे चार से व्यभिचार करना पड़ेगा, क्योंकि उसने आदत बना ली है। हमारी आदतें खराब हो रही हैं।' 

       कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी, मनीषी सन्त प्रेमानंद जी और साध्वी ऋतंभरा द्वारा लड़कियों पर दिए गए बयान के बाद एक बार फिर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। जहां एक ओर रील बनाने वाली महिलाओं की लोग आलोचना कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उनके समर्थन में भी लोग दिखाई दे रहे हैं। वायरल हो रहे वीडियो पर विरोध और समर्थन में तरह-तरह के कमेंट आने लगे  हैं।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

Wednesday, July 23, 2025

विभाजन और भ्रष्टाचार को बढ़ाती भारत की वर्तमान जातीय व्यवस्था # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

 

भारतीय राजनीति में जातियों की भूमिका :- जाति प्रथा अथवा व्यवस्था हिन्दू समाज की एक प्रमुख बुराई है। यह कब और कैसे शुरू हुई, इस पर अत्यन्त मतभेद है। आधुनिक भारत में धर्म और जाति की सामाजिक श्रेणियां ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान प्रचलन में थीं। इसका विकास शुरुआत में मनुस्मृति और ऋगवेद जैसे धर्मग्रंथों को बिना समझे दोषारोपित किया जाता रहा है। 19वीं शताब्दी के अंत तक इन जाति श्रेणियों को जनगणना की मदद से मान्यता दी गई।

     श्रम विभाजन पर आधारित होने के कारण इससे श्रमिक वर्ग अपने कार्य मे निपुण होता गया क्योकि श्रम विभाजन का यह कम पीढियो तक चलता रहा था। इससे भविष्य - चुनाव की समस्या औरबेरोजगारी की समस्या भी दूर हो गए। इसके बावजूद जाति प्रथा मुख्यत: एक बुराई ही है। इसके कारण संकीर्णता की भावना का प्रसार होता है और सामाजिक , राष्ट्रिय एकता मे बाधा आती है जो कि राष्ट्रिय और आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है

       भारतीय राजनीति में जाति अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल सामाजिक संरचना का हिस्सा है, बल्कि चुनावी राजनीति में भी एक प्रमुख कारक भी है। यह भारतीय समाज में सदियों से मौजूद है, जिसने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए मतदाताओं को आकर्षित करने के एक उपकरण के रूप में काम किया है। जातीय दलों के बीच प्रतिस्पर्धा अक्सर संघर्ष और हिंसा का कारण बनती है। 

     मोटे तौर पर, भारतीय जातियां - अगड़ी जातियों , अन्य पिछड़ा वर्ग , अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में विभाजित हैं । भारतीय ईसाई औरभारतीय मुसलमान भी जातियों के रूप में कार्य करते हैं। अब तो दलित, अति दलित, पिछड़ी, अति पिछड़ी, पी डी ए आदि ना जाने कितनी जातियों की संरचना नेताओं ने उत्पन्न कर दी है। इसका पोषण भारतीय संविधान द्वारा होता है और इस को प्रोत्साहन हमारी कॉलेजियम वाली न्याय व्यवस्था करती रहती है। जातीय दलों की भूमिका भारत की राजनीति में जटिल और विवादास्पद बना दिया है। 

     जाति व्यवस्था के विविध प्रभाव:-- 

1.मतदाताओं को प्रभावित करना:

राजनीतिक दल अक्सर जातिगत भावनाओं को भड़काकर और अपने- अपने समुदायों के उम्मीदवारों को समर्थन देने के लिए मतदाताओं को प्रोत्साहित करके वोट हासिल करने का प्रयास करते हैं। नेता अक्सर जातिगत आधार पर मतदाताओं को लुभाने के लिए वादे करते हैं, जैसे कि मुफ्त बिजली मुफ्त आवास, मुफ्त पानी, हर परिवार को सरकारी नौकरियों, मुफ्त शिक्षा और अन्य लाभों का वादा किया जाता है। कभी कोई एकाध वादा पूरा कर दिया गया,जबकि अधिकांश वादे ही रह जाते हैं।

2.टिकट वितरण:- 

राजनीतिक दल अक्सर उम्मीदवारों का चयन करते समय उनकी जातिगत संबद्धता पर विचार करते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां विशिष्ट जातियों का मजबूत प्रभाव है। वे ऐसा इस कारण करते  हैं कि विभिन्न जातियों के लोगों को खुश किया जा सके, उनको ध्रुवीकरण किया जासके।

3.सरकारी नीतियां:

सरकारें भी अक्सर जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाती हैं, खासकर आरक्षण , आवास, गैसकनेक्शन ,राशन वितरण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के मामले में वोट बैंक का पूरा ख्याल रखा जाता है।

4.राजनीतिक दल:- 

कई राजनीतिक दल विशिष्ट जातियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, और इस तरह जातिगत राजनीति को बढ़ावा देते हैं। भारत में कई राजनीतिक दल हैं जो जातीय या सामुदायिक आधार पर बने हैं या उनका समर्थन करते हैं। ये पार्टियां अक्सर अपने समुदाय के हितों को बढ़ावा देने और राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास करती हैं। कुछ प्रमुख जातीय दल इस प्रकार हैं-          कही दलितों की हिमायती भीम आर्मी है तो कहीं भूमिहार दल कही राजभरों की पार्टी है तो कहीं पटेल दल, कहीं पट्टीदार पार्टी है । ऐसे ही दलित पिछड़ों और जनजातियों की बहुजन समाजवादी पार्टी, यादवों की समाजवादी पार्टी,तमिलनाडु में द्रविड़ समुदाय की डीएमके प्रतिनिधित्व करती है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम और बंगाली समुदाय का प्रतिनिधित्व टीएमसी करती है। बिहार में यादव समुदाय और अन्य पिछड़ी जातियों का राजेडी प्रतिनिधित्व करती है। बिहार में ही कुशवाहा और कुर्मी समुदायों का प्रतिनिधित्व जेडीयू करती है। बिहार में पासवान समुदाय का प्रतिनिधित्व लोक जनशक्ति पार्टी करती है। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का प्रतिनिधित्व शिव सेना और मनसा करती है। महबूबा मुफ्ती का संगठन जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पी॰डी॰पी॰) का गठनमुस्लिम हितों के लिए गठन किया। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम जातियों के प्रमुख हैं। जम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व नेशनल कांफ्रेंस करती है। 

5.जातीय जनगणना के आधार उम्मीदवारी :- सभी राजनैतिक दल जातीय गणना के आधार पर उम्मीदवारों को तय करने लगे। वर्तमान समय में जातीय आधार पर राजनैतिक दलों के गठन का प्रमुखआधार है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं। दलीय संगठन में विचारधारा भी प्रमुख भूमिका निभाती है।नेताओं द्वारा की जा रही जातीय राजनीति, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। राजनेता अक्सर मतदाताओं को आकर्षित करने और वोट बैंक बनाने के लिए जातीय भावनाओं का उपयोग करते हैं, जिससे समाज में विभाजन पैदा होता है। नेताओं द्वारा जातीय राजनीति का उपयोग एक ऐसी रणनीति है जिसमें राजनीतिक दल और नेता मतदाताओं को लुभाने के लिए जातिगत भावनाओं और पहचान का उपयोग करते हैं। यह भारत जैसे बहु- जातीय समाज में एक आम बात है, जहां जाति एक महत्वपूर्ण सामाजिक कारक है।

6.सामाजिक जातिगत विभाजन:- 

जातिगत राजनीति सामाजिक विभाजन को बढ़ा सकती है और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा कर सकती है। जातीय राजनीति कभी-कभी जातिगत विभाजन और दुश्मनी को बढ़ावा दे सकती है, जिससे समाज में तनाव बढ़ सकता है।

7.भ्रष्टाचार:- 

जातिगत राजनीति में, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि राजनीतिक दल अपने जातिगत समर्थकों को लाभ पहुंचाने का प्रयास करते हैं। इसके लिए गलत सही सब तरीके अपनाए जाते हैं।

8.विकास पर प्रभाव:- 

जातिगत राजनीति विकास की गति को धीमा कर सकती है, क्योंकि राजनीतिक दल अक्सर जातिगत हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर रखते हैं। भारत में अनेक संगठन इस विचार में डूबकर अपना लोकतांत्रिक अस्तित्व खोते जा रहे हैं।

निष्कर्ष :- 

संक्षेप में, जाति भारतीय राजनीति में एक जटिल और बहुआयामी भूमिका निभाती है। यह एक तरफ मतदाताओं कोप्रभावित करने और राजनीतिक दलों के लिए एक उपकरण के रूप में काम करती है, तो दूसरी तरफ सामाजिक विभाजन और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकती है। 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।          (मोबाइल नंबर +91 8630778321; वॉर्ड्सऐप नम्बर+91 9412300183)



Tuesday, July 22, 2025

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग : पौराणिक इतिहास और स्थापत्य#आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी

इतिहास हमेशा वर्तमान पर हमले करता है और वर्तमान को बचाने के लिए बलिदान दिया जाता है तब यही वर्तमान फिर इतिहास बनता है. हिन्दुओ का इतिहास काफी संघर्षपूर्ण रहा है. एक समय था जब हिन्दू अपने देश में शांतिपूर्वक रहते थे. इस देश को सोने की चिड़िया बोला जाता था.तभी कुछ इंसानियत के दुश्मन देश में आते हैं और इस देश की शांति भंग हो जाती है. यहाँ लूट होती है. महिलाओं की इज्जत उतारी जाती हैं. बच्चों का क़त्ल होता है. हिन्दुओं के धार्मिक स्थान को तोड़ा और लूटा जाता है. ऐसा ही कुछ सोमनाथ मंदिर के बारे में बोला जाता है. सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित प्रभास में विराजमान हैं। इस स्तम्भ लेखक को अगस्त 2024 में इस तीर्थ का अवलोकन करने का अवसर मिला है,जो समय कम होने के कारण फौरी तरह से इसे हृदयंगम कर सका है।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया।इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है इसी क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को बींध डाला था।
भालका तीर्थ :- 
 लोककथाओं के अनुसार इसी क्षेत्र में श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। सोमनाथ मंदिर के लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर ही भालका तीर्थ है। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आँख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।
पौराणिक वर्णन:- 
शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग में सोमनाथ की गणना प्रथम है। इनके आविर्भाव का प्रकरण प्रजापति दक्ष और चन्द्रमा के साथ जुड़ा है। जब प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी के रूप में दक्ष कन्याओं को प्राप्त कर चन्द्रमा बहुत शोभित हुए और दक्ष कन्याएँ भी अपने स्वामी के रूप में चन्द्रमा को प्राप्त कर शोभायमान हो उठी। चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें अतिशय प्रिय थी, जिसको वे विशेष आदर तथा प्रेम करते थे। उनका इतना प्रेम अन्य पत्नियों से नहीं था। चन्द्रमा की उदासीनता और उपेक्षा का देखकर रोहिणी की अपेक्षा शेष स्त्रियाँ बहुत दुःखी हुई। वे सभी स्त्रियाँ अपने पिता दक्ष की शरण में गयीं और उनसे अपने कष्टों का वर्णन किया। अपनी पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के दुर्व्यवहार को सुनकर दक्ष भी बड़े दुःखी हुए। उन्होंने चन्द्रमा से भेंट की और शान्ति पूर्वक कहा- ‘कलानिधे! तुमने निर्मल व पवित्र कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नियों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हो। तुम्हारे आश्रय में रहने वाली जितनी भी स्त्रियाँ हैं, उनके प्रति तुम्हारे मन में प्रेम कम और अधिक, ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों है? तुम किसी को अधिक प्यार करते हो और किसी को कम प्यार देते हो, ऐसा क्यों करते हो? अब तक जो व्यवहार किया है, वह ठीक नहीं है, फिर अब आगे ऐसा दुर्व्यवहार तुम्हें नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्मीय जनों के साथ विषमता पूर्ण व्यवहार करता है, उसे नर्क में जाना पड़ता है।’ इस प्रकार प्रजापति दक्ष ने अपने दामाद चन्द्रमा को प्रेम पूर्वक समझाया और ऐसा सोच लिया कि चन्द्रमा में सुधार हो जाएगा। उसके बाद प्रजापति दक्ष वापस चले गये। शिव महापुराण के कोटिरुद्र संहिता के चौदहवें अध्याय में लिखा है-
विमले च कुले त्वं हि समुत्पन्नः कलानिधे। 
आश्रितेषु च सर्वेषु न्यूनाधिक्यं कथं तव।।
कृतं चेतत्कृतं तच्च् न कर्त्तव्यं त्वया पुनः।
वर्तनं विषमत्वेन नरकप्रदमीरितम्।।
       प्रबल भावी के कारण विवश चन्द्रमा ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष की बात नहीं मानी। रोहिणी के प्रति अतिशय आसक्ति के कारण उन्होंने अपने कर्त्तव्य की अवहेलना की तथा अपनी अन्य पत्नियों का कुछ भी ख्याल नहीं रखा और उन सभी से उदासीन रहे। दुबारा समाचार प्राप्त कर प्रजापति दक्ष बड़े दुःखी हुए। वे पुनः चन्द्रमा के पास आकर उन्हें उत्तम नीति के द्वारा समझने लगे। दक्ष ने चन्द्रमा से न्यायोचित बर्ताव करने की प्रार्थना की। बार-बार आग्रह करने पर भी चन्द्रमा ने अवहेलनापूर्वक जब दक्ष की बात नहीं मानी, तब उन्होंने शाप दे दिया। दक्ष ने कहा कि मेरे आग्रह करने पर भी तुमने मेरी अवज्ञा की है, इसलिए तुम्हें क्षयरोग हो जाय-
श्रयतां चन्द्र यत्पूर्व प्रार्थितो बहुधा मया।,
न मानितं त्वया यस्मात्तस्मात्त्वं च क्षयी भव।
      दक्ष द्वारा शाप देने के साथ ही क्षण भर में चन्द्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गये। उनके क्षीण होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। सभी देवगण तथा ऋषिगण भी चिंतित हो गये। परेशान चन्द्रमा ने अपनी अस्वस्थता तथा उसके कारणों की सूचना इन्द्र आदि देवताओं तथा ऋषियों को दी। उसके बाद उनकी सहायता के लिए इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण ब्रह्माजी की शरण में गये। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि जो घटना हो गई है, उसे तो भुगतना ही है, क्योंकि दक्ष के निश्चय को पलटा नहीं जा सकता। उसके बाद ब्रह्माजी ने उन देवताओं को एक उत्तम उपाय बताया।
ब्रह्माजी का उपाय:-
 ब्रह्माजी ने कहा कि चन्द्रमा देवताओं के साथ कल्याणकारक शुभ प्रभास क्षेत्र में चले जायें। वहाँ पर विधिपूर्वक शुभ मृत्युंजय- मंत्र का अनुष्ठान करते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिंग की स्थापना करके प्रतिदिन कठिन तपस्या करें। इनकी आराधना और तपस्या से जब भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो जाएँगे, तो वे इन्हें क्षय रोग से मुक्त कर देगें। पितामह ब्रह्माजी की आज्ञा को स्वीकार कर देवताओं और ऋषियों के संरक्षण में चन्द्रमा देवमण्डल सहित प्रभास क्षेत्र में पहुँच गये।
मृत्यंजय-मंत्र का जप:- 
वहाँ चन्द्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की अर्चना-वन्दना और अनुष्ठान प्रारम्भ किया। वे मृत्युंजय-मंत्र का जप तथा भगवान शिव की उपासना में तल्लीन हो गये। ब्रह्मा की ही आज्ञा के अनुसार चन्द्रमा ने छः महीने तक निरन्तर तपस्या की और वृषभ ध्वज का पूजन किया। दस करोड़ मृत्यंजय-मंत्र का जप तथा ध्यान करते हुए चन्द्रमा स्थिरचित्त से वहाँ निरन्तर खड़े रहे। उनकी उत्कट तपस्या से भक्तवत्सल भगवान शंकर प्रसन्न हो गये। उन्होंने चन्द्रमा से कहा- ‘चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम जिसके लिए यह कठोर तप कर रहे हो, उस अपनी अभिलाषा को बताओ। मै तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हें उत्तम वर प्रदान करूँगा।’ चन्द्रमा ने प्रार्थना करते हुए विनयपूर्वक कहा- ‘देवेश्वर! आप मेरे सब अपराधों को क्षमा करें और मेरे शरीर के इस क्षयरोग को दूर कर दें।’
शिव का वरदान:-
 भगवान शिव ने कहा– ‘चन्द्रदेव! तुम्हारी कल प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी, जबकि दूसरे पक्ष में प्रतिदिन वह निरन्तर बढ़ती रहेगी। इस प्रकार तुम स्वस्थ और लोक-सम्मान के योग्य ही जाओगे। भगवान शिव का कृपा-प्रसाद प्राप्त कर चन्द्रदेव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने भक्तिभाव पूर्वक शंकर की स्तुति की। ऐसी स्थिति में निराकार शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर साकार लिंग रूप में प्रकट हो गये तथा प्रभास क्षेत्र के महत्त्व को बढाने हेतु देवताओं के सम्मान तथा चन्द्रमा के यश का विस्तार करने के लिए स्वयं ‘सोमेश्वर’ कहलाने लगे। चन्द्रमा के नाम पर सोमनाथ बने भगवान शिव संसार में ‘सोमनाथ’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
धार्मिक मान्यता:-
सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से उपासक भक्त के क्षय तथा कोढ़ आदि रोग सर्वथा नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है। यशस्वी चन्द्रमा के कारण ही सोमेश्वर भगवान शिव इस भूतल को परम पवित्र करते हुए प्रभास क्षेत्र में विराजते हैं। उस प्रभास क्षेत्र में सभी देवताओं ने मिलकर एक सोम कुण्ड की भी स्थापना की है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड में शिव तथा ब्रह्मा का सदा निवास रहते हैं। इस पृथ्वी पर यह चन्द्र कुण्ड मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में प्रसिद्ध है। इसे ‘पापनाशक-तीर्थ’ भी कहते हैं। जो मनुष्य इस चन्द्र कुण्ड में स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। इस कुण्ड में बिना नागा किये छः माह तक स्नान करने से क्षय आदि दुःसाध्य और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं। मुनष्य जिस किसी भी भावना या इच्छा से इस परम पवित्र और उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, तो वह बिना संशय ही उसे प्राप्त कर लेता है। शिव महापुराण की कोटिरुद्र संहिता के चौदहवें अध्याय में उपर्युक्त आशय वर्णित है-
चन्द्रकुण्डं प्रसिद्ध च पृथिव्यां पापनाशनम्। 
तत्र स्नाति नरो यः स सर्वेः पापैः प्रमुच्यते।।
रोगाः सर्वे क्षयाद्याश्च ह्वासाध्या ये भवन्तिवै। ते सर्वे च क्षयं यान्ति षण्मासंस्नानमात्रतः।।
प्रभासं च परिक्रम्य पृथिवीक्रमसं भवम्। 
फलं प्राप्नोति शुद्धात्मा मृतः स्वर्गे महीयते।।
सोमलिंग नरो दृष्टा सर्वपापात्प्रमुच्यते । 
लब्धवा फलं मनोभीष्टं मृतः स्वर्गं समीहते।।
      इस प्रकार सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव देवताओं की प्रार्थना पर लोक कल्याण करने हेतु प्रभास क्षेत्र में हमेशा-हमेशा के लिए विराजमान हो गये। इस प्रकार शिव-महापुराण में सोमेश्वर महादेव अथवा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति का वर्णन है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में लिखी कथा भी इसी से मिलती-जुलती है।
इतिहास:- 
सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व मेंअस्तित्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। ‘‘मंदिर की सेवा के लिए 10 हजार गांव लगे थे. मंदिर में 100 पुजारी, 500 नर्तकियां तथा 200 गायक दर्शकों को भगवान के गीत सुनाया करते थे. मंदिर की अपार सम्पत्ति से ललचाकर महमूद अजमेर के रास्ते सोमनाथ के द्वार पर जा पहुंचा. राजपूतों ने मंदिर की रक्षा के लिए घमासान युद्ध किया, लगभग 50 हजार हिंदू मारे गए. डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ‘अज्ञात’ जी की पुस्तक ‘‘क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिंदू धर्म ?’’ के पेज न. 203 पर सोमनाथ मंदिर के विषय में लिखा है, जब महमूद की सेना ने नरसंहार शुरू किया, तब हिंदुओं का एक समूह दौड़ता हुआ मंदिर की मूर्ति के सामने धरती पर लेट कर उससे विजय के लिए प्रार्थना करने लगा. हिंदुओं के ऐसे दल के दल मंदिर में प्रवेश करते, जिनके हाथ गरदन के पास जुड़े होते, जो रो रहे होते और बड़े भावावेश पूर्ण ढंग से सोमनाथ की मूर्ति के आगे गिड़गिड़ा कर प्रार्थनाएं कर रहे होते. फिर वे बाहर आते, जहां उन्हें कत्ल कर दिया जाता. यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि हर हिंदू कत्ल नहीं हो गया. (देखें: सर एच.एच. इलियट और जान डाउसन कृत ‘द हिस्ट्री आफ इंडिया एज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियनस’ पृ. 470)
प्राचीन भारतीय इतिहास और आधुनिक भारत के इतिहास में भी सोमनाथ मन्दिर को सन् 1024 में महमूद ग़ज़नवी ने भ्रष्ट कर दिया था। मूर्ति भंजक होने के कारण तथा सोने-चाँदी को लूटने के लिए उसने मन्दिर में तोड़-फोड़ की थी।मन्दिर के हीरे-जवाहरातों को लूट कर वह अपने देश ग़ज़नी लेकर चला गया। उक्त सोमनाथ मन्दिर का भग्नावशेष आज भी समुद्र के किनारे विद्यमान है। इतिहास के अनुसार बताया जाता है कि जब महमूद ग़ज़नवी उस शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया, तब उसने उसके अगल-बगल में भीषण आग लगवा दी। सोमनाथ मन्दिर में नीलमणि के छप्पन खम्भे लगे हुए थे। उन खम्भों में हीरे-मोती तथा विविध प्रकार के रत्न जड़े हुए थे। उन बहुमूल्य रत्नों को लुटेरों ने लूट लिया और मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
      अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। 50,000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोडकर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये। अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया।             50,000 लोग मंदिर के अंदर हाथ जोडकर पूजा अर्चना कर रहे थे, प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये। इस सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिए महमूद गजनवी अपनी विशाल सेना लेकर आया था.तो आज हम आपको बताने वाले एक ऐसी कहानी, जो हिदुओं के लिए गर्व की बात है. यह कहानी है सोमनाथ मंदिर को बचाने के लिए बलिदान की, यह कहानी है अमर शहीदों के बलिदान की. सोमनाथ मंदिर की रक्षा के प्रयास में कोई 50 हजार हिंदू मंदिर के द्वार पर मारे गए और सोमनाथ मंदिर तोड़कर महमूद ने कोई 2 करोड़ दीनार की सम्पत्ति लूट ली.
बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार:- 
मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन 1026 में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था।
      मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1940 को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। 1948 में प्रभास तीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी। यह जूनागढ़ रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन 1948 के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मंदिर की आधार शिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर 1962 में पूर्ण निर्मित हो गया। 1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृह मन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बडा योगदान रहा। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथ जी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है। यह तीर्थ पितृ गणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
तीर्थ स्थान और मंदिर :- 
मंदिर नं.1 के प्रांगण में हनुमानजी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर नं. 6 के समीप भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, दुखहरण जी की जल समाधि स्थित है। पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाडा में, विलेश्वर मंदिर नं. 12 के नजदीक और नं. 15 के समीप राममंदिर स्थित है। नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल 42 मंदिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं। बाहरी क्षेत्र के प्रमुख मंदिर :- वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे शशिभूषण मंदिर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, कपिलेश्वर, रोटलेश्वर, भालुका तीर्थ है। भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुंड, पांडव कूप, द्वारिकानाथ मंदिर, बालाजी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, रूदे्रश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर, हिंगलाज गुफा, गीता मंदिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 65वीं बैठक के अलावा कई अन्य प्रमुख मंदिर है। प्रभास खंड में विवरण है कि सोमनाथ मंदिर के समयकाल में अन्य देव मंदिर भी थे। इनमें शिवजी के 135, विष्णु भगवान के 5, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के 5, नाग मंदिर 1, क्षेत्रपाल मंदिर 1, कुंड 19 और नदियां 9 बताई जाती हैं। एक शिलालेख में विवरण है कि महमूद के हमले के बाद इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया। संभवत: इसके पश्चात भी अनेक मंदिर बने होंगे। प्रमुख तीर्थ द्वारिका सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर प्रमुख तीर्थ श्रीकृष्ण की द्वारिका है। यहां भी प्रतिदिन द्वारिकाधीश के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां गोमती नदी है। इसके स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ फीट ही रह जाता है।
पुनः प्रतिष्ठा:- 
महमूद ग़ज़नवी के मन्दिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने पुनः उसकी प्रतिष्ठा की। सन् 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर की प्रतिष्ठा और उसके पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल ने जैनाचार्य हेमचन्द्र सरि के साथ सोमनाथ की यात्रा की थी। उन्होंने भी मन्दिर का बहुत कुछ सुधार करवाया था। इसी प्रकार सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ-मन्दिर का सौन्दर्यीकरण कराया था। उसके बाद भी मुसलमानों ने बहुत दुराचार किया और मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट करते रहे। अलाऊद्दीन ख़िलजीने सन् 1297 ई. में पुनः सोमनाथ-मन्दिर का ध्वंस किया। उसके सेनापति नुसरत ख़ाँ ने जी-भर मन्दिर को लूटा। सन् 1395 ई. में गुजरात का सुल्तान मुजफ्फर शाह भी मन्दिर का विध्वंस करने में जुट गया। अपने पितामह के पदचिह्नों पर चलते हुए अहमदशाह ने पुनः सन् 1413 ई. में सोमनाथ-मन्दिर को तोड़ डाला। प्राचीन स्थापत्यकला जो उस मन्दिर में दृष्टिगत होती थी, उन सबको उसने तहस-नहस कर डाला।
आज़ादी के बाद:- 
भारतीय स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करते हुए पुनः सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण कराया। आज पुनः भारतीय-संस्कृति और सनातन-धर्म की ध्वजा के रूप में सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग ‘सोमनाथ मन्दिर’ के रूप में शोभायमान है। सोमनाथ का मूल मन्दिर जो बार-बार नष्ट किया गया था, वह आज भी अपने मूलस्थान समुद्र के किनारे ही है। स्वाधीन भारत के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने यहाँ भव्यमन्दिर का निर्माण कराया था। सोमनाथ के मूल मन्दिर से कुछ ही दूरी परअहल्याबाई द्वारा बनवाया गया सोमनाथ का मन्दिर है।
कैसे पहुँचें:- सोमनाथ का मन्दिर जिस स्थान पर स्थित है, उसे वेरावल, सोमनाथ पाटण, प्रभास और प्रभास पाटण आदि नामों से जाना जाता है। सौराष्ट्र के पश्चिमी रेलवे स्टेशन की राजकोट-वेरीवलतथा खिजडिया वेरावल लाइनें हैं। इन दोनों ओर से वेरावल पहुँचा जाता है। वेरावल रेलवे स्टेशन से प्रभासपाटण पाँच किलोमीटर की दूरी पर है। स्टेशन से बस, टैक्सी आदि के द्वारा प्रभासपाटण पहुँचा जा सकता है।
विशेषता:-
 यहाँ भू-गर्भ में (भूमि के नीचे) सोमनाथ लिंग की स्थापना की गई है। भू-गर्भ में होने के कारण यहाँ प्रकाश का अभाव रहता है। इस मन्दिर में पार्वती, सरस्वती देवी, लक्ष्मी, गंगा औरनन्दी की भी मूर्तियाँ स्थापित हैं। भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर मूर्ति है। मन्दिर के परिसर में गणेशजी का मन्दिर है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति स्थापित की गई है। प्रभावनगर में अहल्याबाई मन्दिर के पास ही महाकाली का मन्दिर है। इसी प्रकार गणेशजी, भद्रकाली तथा भगवान विष्णु का मन्दिर नगर में विद्यमान है। नगर के द्वार के पास गौरीकुण्ड नामक सरोवर है। सरोवर के पास ही एक प्राचीन शिवलिंग है।
समुद्रका’ अग्निकुण्ड:- 
सोमनाथ में धर्मयात्रियों के लिए अनेक पवित्र और दर्शनीय स्थान विद्यमान हैं। प्रभासपाटण नगर के बाहर ही एक ‘समुद्रका’ नामक अग्निकुण्ड है। सर्वप्रथम यात्रीगण इसी कुण्ड में स्नान करते हैं, उसके बाद वे प्राची त्रिवेणी में स्नान करने के लिए जाते हैं।
प्राची त्रिवेणी:- 
नगर के द्वार से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर प्राची त्रिवेणी है। उससे पहले ही रास्ते में ब्रह्माकुण्ड नामक बावडी मिलती है। वहीं पर ब्रह्माकण्डलु नामक तीर्थ और ब्रह्मेश्वर शिवमन्दिर भी स्थित है। इससे आगे चलने पर ‘आदिप्रभास’ तथा ‘जलप्रभास’ नामक दो कुण्डों का दर्शन होता है। हिरण्या, सरस्वती और कपिला नाम वाली तीन नदियाँ नगर से पूरब की दिशा में समुद्र में जाकर मिलती है। नगर से पूरब में इन तीनों नदियों का संगम होने के कारण ही इसे ‘प्राची त्रिवेणी’ कहा जाता है। सबसे पहले ‘कपिला’ सरस्वती में मिलती है, उसके बाद ‘सरस्वती’ हिरण्या में मिलती है, फिर ‘हिरण्या’ समुद्र में जा मिलती है। प्राचीन त्रिवेणी संगम से कुछ ही दूर पर सूर्य भगवान का मन्दिर है। उससे आगे चलने पर हिंगलाज भवानी और महादेव सिद्धनाथ का मन्दिर एक गुफा के भीतर प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ से बलदेव जी शेषरूप धारण करके पाताल में गये थे। वहीं समीप में ही श्री वल्लभाचार्य जी की बैठक है, जहाँ त्रिवेणी माता, महाकालेश्वर, श्रीराम, श्रीकृष्ण और भीमेश्वर के मन्दिर हैं। इस स्थान को ‘देहोत्सर्ग-तीर्थ’ भी कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को जब भालक-तीर्थ में बाण लगा था, उसके बाद वे यहाँ पर आ गये थे और फिर अन्तर्धान हो गये थे। कल्पभेद की कथा के अनुसार श्रीकृष्णचन्द्र के शरीर का यहीं अग्नि-संस्कार किया गया था। देहोत्सर्ग तीर्थ से कुछ आगे चलकर हिरण्या नदी के किनारे यादवस्थली मिलती है। ऐसी मान्यता है कि इस यादवस्थली पर ही आपस में लड़ते हुए यादवगण नष्ट हो गये थे।
बाणतीर्थ:-
वेरोवल रेलवे स्टेशन से सोमनाथ आते समय रास्ते में समुद्र के किनारे बाणतीर्थ अवस्थित है। इस तीर्थ में शशिभूषण महादेव का प्राचीन मन्दिर है। समुद्र के किनारे बाणतीर्थ से पश्चिम की ओर चन्द्रभाग तीर्थ है। इस तीर्थ में बालू के ऊपर ही कलिलेश्वर महादेव का स्थान है। बाणतीर्थ से लगभग पाँच किलोमीटर पर भालुपुर गाँव के पास भालक-तीर्थ है। यहाँ पर पास में ही भालकुण्ड और पद्मकुण्ड नामक सरोवर हैं। यहीं पर एक पीपल-वृक्ष के नीचे भालेश्वर शिव का स्थान है। इस पेड़ को मोक्ष-पीपल भी कहा जाता है। ऐसी प्रसिद्धि है कि इसी वृक्ष के (पीपल) नीचे बैठे श्रीकृष्णचन्द्र को उनके चरण में ‘जरा’ नामक व्याध ने बाण मारा था। कहा जाता है कि उनके चरणों से बाण निकाल कर इसी भालकुण्ड में फेंक दिया था। भालकुण्ड के पास दुर्गकूट में गणेश जी का भी मन्दिर है। यहाँ एक कर्दमकुण्ड भी है, जहाँ पर कर्देश्वर-महादेव का मन्दिर है। कुछ लोग बाण तीर्थ को ही भालक तीर्थ भी कहते हैं। पुराण की एक विशेष कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी को खोदकर प्रभास क्षेत्र में मुर्गी के अण्डे बराबर स्वयम्भू शिवलिंग सोमनाथ के दर्शन किये उसके बाद उन्होंने उस लिंग को कुशा तथा मधु से ढँककर उस पर ब्रह्मशिला रख दी। उसी ब्रह्मशिला के उपर ब्रह्मा ने सोमनाथ के बृहद्लिंग की प्रतिष्ठा की। चन्द्रमा इसी बृहद्लिंग की अर्चना-वन्दना करने के बाद प्रजापति दक्ष के शाप से मुक्त हुऐ थे।




Monday, July 14, 2025

ब्राह्मण ही भागवतकथा सुनाने का अधिकारी है # आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी



इटावा का मामला क्या है :- 
यादव कथावाचक वाली घटना इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव की है, जहां 21 जून को एक भागवत कथा का आयोजन किया गया था। 
यादव कथावाचक क्या व्यासपीठ की गरिमा के योग्य था :- 
कार्यक्रम में कथावाचक मुकुट मणि यादव और आचार्य संत सिंह यादव कथा वाचन कर रहे थे। इनका कथा वाचन कथा कम हास्य और फूहड़ नौटंकी ज्यादा लग रही थी। 
कथावाचक हेमराज यादव को जरा उनके वीडियो में सुनिए, देखिए कैसे कथा के नाम पर व्यास पीठ की गरिमा पर बट्टा लगा रहे हैं।भगवा पहने हैं गले में रामनामी दुपट्टा लगाए हैं। जैसे कथा नहीं नौटंकी चल रही हो। इसे इस लिंक से देखा जा सकता है – 
https://www.facebook.com/EkSwaymsevak/videos/1061926582103569/?mibextid=rS40aB7S9Ucbxw6v
    कथा कोई भी कहे लेकिन गरिमा के साथ। बेहतर यही होगा जो व्यास पीठ पर बैठने का अधिकारी हो, जिसे शास्त्र का ज्ञान हो, जो मर्यादा में रह सके, वह कहे।
कथा के दौरान विवाद:- 
भागवत कथा के दौरान जमकर विवाद हो गया था। कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके साथी संत कुमार यादव के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। मारपीट के बाद संत यादव का सिर भी मुड़वा दिया गया था। 
कथाकारों की जाति और आचरण अशिष्ट :- 
आयोजन के दौरान कुछ ग्रामीण युवकों ने की जाति और आचरण को लेकर आपत्ति जताई। इन्होंने जाति छिपाकर कथा कही और महिला से छेड़खानी की। आचार्यों ने महिलाओं के साथ अशिष्टता भी की ।
आरोप लगाया गया कि कथावाचकों ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर कथा का आयोजन कराया था ,जबकि वह अन्य जाति से हैं। इसी विवाद ने तूल पकड़ा और कुछ लोगों ने कथावाचकों के साथ मारपीट शुरू कर दी। इतना ही नहीं, उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके बाल भी काट दिए गए। इस अमानवीय कृत्य का वीडियो किसी ने बना लिया, जो बाद में सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया।
वीडियो वायरल होने पर पुलिस एक्शन
वीडियो के वायरल होने के बाद क्षेत्र में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई. स्थानीय लोगों और धार्मिक संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा की और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
पुलिस चार आरोपियो को गिरफ्तार किया:- 
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए। सेल ने वायरल वीडियो का संज्ञान लिया और मामले की जांच शुरू की।पीड़ित कथावाचकों की तहरीर पर संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए चार आरोपियों आशीष (21 वर्ष), उत्तम (19 वर्ष), प्रथम उर्फ मनु (24 वर्ष) और निक्की (30 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया। इनमें निक्की पर कथावाचकों के बाल जबरन काटने का मुख्य आरोप है।
अखिलेश ने कानून व्यवस्था बिगाड़ा:- 
इस मामले पर सियासत भी तेज है। अखिलेश यादव जहां इस मामले में शास्त्र सम्मत बातों को नजरंदाज करते हुए सभी ब्राह्मण समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने अपने कथाकारों को सम्मानित करते हुए बीस बीस हजार रुपए का इनाम भी दिया है।उनके गुंडे क्षेत्र की फिजा खराब करने में लगे हैं। मजबूरी में ब्राह्मण महा सभा को भी इसके बीच में कूदना पड़ा। अब पीड़ित यादव कथाकार ना होकर क्षेत्र की ब्राह्मण जनता हो गई है। जो कानून के दायरे में गुण दोष के हिसाब से कार्यवाही का पक्षधर है। सपा पीडीए के लोग योगी सरकार पर हमले बोल रहे हैं तो वहीं बीजेपी के लोग भी अखिलेश यादव पर हमलावर है। 
कथाकार भी हुए भूमिगत :- 
जब यजमान की पत्नी ने अशिष्टता की शिकायत की तो कथाकारों के पास दो दो आधार कार्ड मिले,जिसे अपनी सुविधा के अनुसार बदल कर वे अपने काम को अंजाम देते थे।प्रशासन के संज्ञान में आते ही इन पर मुकदमे दर्ज हो गए और ये लोग भूमिगत होकर कानूनी कार्यवाही से बचते हुए भागते फिर रहे हैं।
व्यासपीठ का अधिकारी
ब्राह्मण ही होता है:- 
गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित श्री मदभागवत के भाग 1 के महात्म्य भागवत पुराण की महिमा के छठे भागवत सुनने की प्रक्रिया नामक अध्याय के 20 वें और 23वें श्लोक में कथाकार के गुण और चरित्र को स्पष्ट रूप लिखा गया है -
श्लोक-20
विरक्तो वैष्णवो विप्रो 
वेदशास्त्रविशुद्धिकृत्।
दृष्टान्तकुशलो धीरो वक्ता कार्योऽतिनिःस्पृहः ॥
(चुना गया व्याख्याता भगवान विष्णु का उपासक ब्राह्मण होना चाहिए , जिसने संसार का त्याग कर दिया हो, तथा जो वेदों और शास्त्रों के कठिन विषयों को समझाने में सक्षम हो , (विषय को स्पष्ट करने में) उचित उदाहरण देने में निपुण हो, तथा लोभ और लालसा से पूर्णतः मुक्त बुद्धिमान वक्ता हो।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। वे सब कुछ जानते हुए अनाधिकार चेष्टा में लगे थे । न तो उन्हें वेद का ज्ञान था ना शास्त्र का। वे लोभी, लालची,कामी और फूहड़ नौटंकी बाज ज्यादा थे। एक पैरोडी इस प्रकार है -- "भारत की नैया मझधार में गई।
बाबा गए पैदल रण्डी कार में गई।"
"जब से प्यार किया देवतन से ....
सुनो पाछे पुर के दद्दू .......
जीने में हमारे लाले पड़ गए।"
मेंहदी लगा के रखना ला ला ला ला ला।)

श्लोक-21
अनेकधर्मविभ्रान्ताः 
स्त्रैणाः पाखण्डवादिनः। 
शुकशास्त्रकथोच्चारे 
त्याज्यास्ते यदि पण्डिताः ॥
(जो व्यक्ति स्वयं धर्म के विभिन्न मार्गों से भ्रमित हैं, स्त्रियों में अत्यधिक आसक्त हैं, पाखण्ड को मानते हैं, वे भले ही विद्वान क्यों न हों, भागवत के पाठ के भी अयोग्य हैं।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। वायरल वीडियो में उनके 
फिल्मी गानों की पैरोडी उनके इस गुण को लक्षित कर रहे हैं)
श्लोक-22
वक्तुः पार्श्वे सहायार्थमन्यः 
स्थाप्यस्तथाविधः ।
पण्डितः संशयच्छेत्ता 
लोकबोधनतत्परः ।।
( भागवत के) व्याख्याता के साथ तथा उसकी सहायता के लिए , व्याख्याता के समान योग्यता वाला एक अन्य विद्वान ब्राह्मण, जो (श्रोताओं के) संदेहों का समाधान करने में समर्थ हो तथा लोगों को ज्ञान देने में तत्पर हो, को स्थापित करना चाहिए।)
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। उनका सहयोगी भी अपने आचार्य की ही तरह योग्यता में नगण्य रहा)
श्लोक-23
वक्त्रा क्षौरं प्रकर्तव्यं 
दिनादर्वाग्वताप्तये। 
अरुणोदयेऽसौ निर्वर्त्य 
शौचं स्नानं समाचरेत् ॥
(निर्धारित सप्ताह में भागवत का पाठ और व्याख्या करने का) पवित्र व्रत पूरा करने के लिए , (प्रस्तावित) व्याख्याता को पिछले दिन मुंडन करवाना चाहिए। भोर होने पर, उसे अपने सुबह के कामों से निपटकर स्नान करना चाहिए।
(इटावा के कथाकार इस कसौटी पर पूर्णतः फेल रहे। कथा के पूर्व उनके शिर में पूरे बाल थे। यद्यपि उन्हें अपने परीक्षित की तरह बाल एक दिन पूर्व ही मुड़ा लेना चाहिए।)
अमर किशोर प्रसाद सिंह :- 
श्री अमर किशोर प्रसाद सिंह ने मेरे फेसबुक पृष्ठ पर ब्राह्मण के विद्वता पर जोर देते हुए एक बहुत ही सार्थक टिप्पणी जोड़ी है जिसे मैं यहां साभार उद्धृत कर रहा हूं - 
"ब्रह्म समान जिसका आचरण एवं विचार है, बह ब्राह्मण है। जो श्रोता को संसार से मोह भंग करा कर, भगवान् के चरणों में अनुराग बढ़ा दे, बही व्यासपीठ का अधिकारी है। जो अपनी ही सूरत और जेब चमकाने में लगा है, कथा के पूर्व व्यूटीपार्लर जाना, लट बिखेरना, जो श्रोता के मनोमस्तिस्क अपनी छवि बिठा रहा, बह भगवान् की मूरत हृदय में कहाँ से बिठा पायेगा।"
कानून अपनी सही प्रक्रिया में :- 
जिस तरह से प्रदेश की सरकार ने गंभीरता के साथ कदम उठाया और ऐसे शांति भंग करने वालों को गिरफ्तार किया है । अब निश्चित बात है कि जब कोई बात होती है तो दूसरा दल उसमें राजनीति ढूंढता है ताकि उनको फायदा हो सके। उनकी वोटों का ध्रुवीकरण हो सके ।


Saturday, July 12, 2025

जय गुरुदेव रामशंकरदास महाराज वेदांती चरण सेवक : आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी



जय जय जय श्री राम शंकर दास महाराज वेदांती।
हरहु कष्ट अपार भवसागर पार दो मन की शान्ति।
पीठासीन कुंज राम बल्लभा जानकी घाट अयोध्या स्थित।
सिया राम विवाह महोत्सव होता जहां भव्य आयोजित।।


पास ही विशाल कार सेवकपुरम है श्रीराम समर्पित।
छोटी छावनी मणिराम दास जी पास में है स्थित।
स्फटिक शिला छवि सियाराम स्वर्ण मुकुट विराजित ।
धर्म धुरंधर वक्ता ज्ञानी ध्यानी योगी गुरुदेव वेदांति।।

मधुकर निवास में भक्त भगवान गौवों की सेवा।
छात्र ब्रह्मचारी गृहस्थ पशुओं की पंगती होवा।
राम अर्चना राम कथा अनवरत भगवत संकीर्तन होया ।
गुरुदेव आप हैं भव्य दिव्य तव शरण में आया ।।


राम कथा भागवत कथा के कुशल प्रस्तोता व्यास रहे।

भगवत चिन्तन संकीर्तन के भी आप प्रबल 

उद्भास दिए।

अवध धाम की जानी मानी हस्ती पर्व सभा में नाम दिए।

असंख्यक शिष्यों के शिरोमणि भव बंधन का त्रास दिए।।

गुरु गोविंद से कम नहीं दे परिचय सबको मिलाते हैं।

सुमिरन ध्यान और कृपा से परम लक्ष्य दिखलाते हैं।

गुरु प्रेरणा और प्रयास से  सब मोह मिटते जाते हैं ।

गुरु प्रयास से सियाराम राधाकृष्ण से भेंट हो जाते हैं।।

 

गुरु महिमा से शास्त्र भरे गुरुवाणी रखते सबकी लाज ।

पावन गंगा सा बह चले नित गुरुअधीन होते सब काज।।

गुरु चरण में जो जीव आ जाए जीवन उसका होता धन्य।

भवसागर बेड़ा पार हो जाए मिटते रहते क्लेश सब दैन्य।।



     आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

Tuesday, July 1, 2025

1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस। डा. राधेश्याम द्विवेदी


राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 1 जुलाई को भारत के लोगों द्वारा मनाया जाता है । भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस एक बड़ा जागरुकता अभियान है जो सभी को मौका देता है डॉक्टरों की भूमिका, महत्व और जिम्मेदारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के साथ ही साथ चिकित्सीय पेशेवर को इसके नजदीक आने और अपने पेशे की जिम्मेदारी को समर्पण के साथ निभाने के लिये प्रोत्साहित करता है। संपूर्णं चिकित्सीय पेशे के लिये सम्मान प्रकट करने के लिये डॉ बिधान चन्द्र रॉय की याद में इस दिन को मनाया जाता है।
     राष्ट्रीय चिकित्सीय दिवस के रुप में हर वर्ष 1 जुलाई को पहचान और मनाये जाने के लिये 1991 में भारतीय सरकार द्वारा डॉक्टर दिवस की स्थापना हुई थी। भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ बिधान चन्द्र रॉय (डॉ.बी.सी.रॉय) को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिये 1 जुलाई को उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर इसे मनाया जाता है।उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना में हुआ था। रॉय साहब ने अपनी डॉक्टरी की डिग्री कलकत्ता से पूरी की और 1911 में भारत लौटने के बाद अपनी एमआरसीपी और एफआरसीएस की डिग्री लंदन से पूरी की और उसी वर्ष से भारत में एक चिकित्सक के रुप में अपने चिकित्सा जीवन की शुरुआत की। बाद में उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से एक शिक्षक के रुप में जुड़ गये और इसके बाद वो कैंपबेल मेडिकल स्कूल गये और उसके बाद कारमाईकल मेडिकल कॉलेज से जुड़ गये। वो एक प्रसिद्ध चिकित्सक थे और नामी शिक्षाविद् होने के साथ ही एक स्वतंत्रता सेनानी के रुप में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी से जुड़े। बाद में वो भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेता बने और उसके बाद पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री बने। 4 फरवरी 1961 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। इस दुनिया में अपनी महान सेवा देने के बाद 80 वर्ष की आयु में 1962 में अपने जन्मदिवस के दिन ही उनकी मृत्यु हो गयी। उनको सम्मान और श्रद्धंजलि देने के लिये वर्ष 1976 में उनके नाम पर डॉ.बी.सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की शुरुआत हुई।
राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस क्यों मनाया जाता है:-
डॉ बिधान चन्द्र रॉय पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री होने के साथ ही प्रसिद्ध और किंवदंती चिकित्सक को सम्मान देने के लिये 1 जुलाई को पूरे भारत भर में हर वर्ष राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस को मनाया जाता है। भारत में ये एक महान रीति है जो अपने महत्वपूर्णं भूमिका और जिम्मेदारी के साथ ही हर एक के जीवन में चिकित्सक की वास्तविक जरुरत को पूरा करने में मदद करती है। डॉक्टर्स की बहुमूल्य सेवा, भूमिका और महत्व के बारे में आम जन को जागरुक करने के लिये इस जागरुकता अभियान का वार्षिक उत्सव मदद करता है। भारत की विशाल जनसंख्या कई तरीकों से चिकित्सक और उनके गुणवत्तापूर्णं उपचार पर निर्भर करती है जो उपाय और उपचार के तरीकों में उल्लेखनीय सुधार और प्रगति को दिखाता है। अपने पेशे की ओर समर्पण की कमी के कारण अपने गिरते करियर से उठने के लिये भारत के सभी डॉक्टर्स के लिये ये एक आँख खोलने वाला और प्रोत्साहन के तरीके के रुप में डॉक्टर्स दिवस का वार्षिक उत्सव साबित हुआ है। कई बार सामान्य और गरीब लोग गैर-जिम्मेदार और गैर-पेशेवर के हाथों में फँस जाते हैं जो कई बार डॉक्टरों के खिलाफ लोगों की हिंसा और विद्रोह का कारण बन जाता है। जीवन बचाने वाले चिकित्सीय पेशे की ओर जिम्मेदारी को समझने के लिये तथा सभी डॉक्टर्स को एक ही जगह पर आकृष्ट करने के लिये ये जागरुकता अभियान एक महान रास्ता है। संपूर्णं पेशेवर डॉक्टरों के लिये सम्मान के दिन के रुप में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस उत्सव को चिन्हित किया जाता है जो मरीजों के जीवन को बचाने में अपना सारा बेहतरीन प्रयास लगा देते हैं। चिकित्सक दिवस अर्थात् एक पूरा दिन जो मेडिकल पेशे खासतौर से डॉक्टरों के प्रयासों और भूमिका को याद करने के लिये समर्पित हो। ये एक दिन है उन्हें ढ़ेर सारा धन्यवाद कहने का जिन्होंने अपने मरीजों का अनमोल ध्यान रखा, उन्हें लगाव और प्यार दिया।
राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे समारोह:- 
चिकित्सकों के योगदान के साथ परिचित होने के लिये सरकारी और गैर-सरकारी स्वास्थ्य सेवा संबंधी संगठन के द्वारा वर्षोँ से राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस उत्सव मनाया जा रहा है। इस उत्सव को मनाने के लिये स्वास्थ्य सेवा संबंधी संगठन के कर्मचारी विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम और क्रियाकलाप आयोजित करते हैं। “उत्तरी कलकत्ता और उत्तर-पूर्व कलकत्ता समाज कल्याण संगठन” चिकित्सक दिवस के भव्य उत्सव को मनाने के लिये हर साल बड़ा कार्यक्रम आयोजित करती है। चिकित्सा पेशे के विभिन्न पहलूओं के बारे चर्चा करने के लिये एक चर्चा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जैसे स्वास्थ्य परीक्षण उपचार, रोकथाम, रोग की पहचान करना, बीमारी का उचित इलाज आदि। बेहतर और स्वस्थ सामाजिक विकास के लिये समुदायों में डॉक्टरों के द्वारा भी चक्रिय चिकित्सा सेवाओं को प्रोत्साहन और बढ़ावा दिया जाता है। आमजनों के बीच में बिना पैसे के गुणवत्तापूर्णं चिकित्सीय सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य देख-भाल संस्थानों के द्वारा सार्वजनिक जगहों और कई स्वास्थ्य केन्द्रों पर मुफ्त चिकित्सीय परीक्षण कैंप लगाए जाते हैं। वरिष्ठ नागरिक और गरीब लोगों के बीच स्वास्थ्य पोषण पर बातचीत और स्थायी बीमारी जागरुकता, स्वास्थ्य परामर्श, स्वास्थ्य स्थिति को आँकने के लिये सामान्य प्रदर्शन टेस्ट कैंप भी आयोजित किये जाते हैं। सभी के जीवन में डॉक्टर के बहुमूल्य भूमिका के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिये मुफ्त खून जाँच, आकस्मिक खून सूगर जाँच, इसीजी, इइजी, ब्लड प्रेशर जाँच आदि क्रिया-कलाप आयोजित किये जाते हैं। समर्पित मेडिकल पेशे की ओर ज्यादा युवा विद्यार्थियों को बढ़ावा देने के लिये स्कूल और कॉलेज स्तर पर कुछ गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती है। चिकित्सक मुद्दे पर चर्चा, प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, खेल क्रियाएँ, रचनात्मक ज्ञान के लिये विद्यार्थियों के लिये वैज्ञानिक औजारों का उपयोग, मेडिकल पेशे को मजबूत और ज्यादा जिम्मेदार बनाने के लिये नयी और असरदार शैक्षणिक रणनीतियों को लागू करना। मेल के द्वारा ग्रीटिंग संदेश, उन्हें फूलों का गुच्छा या बुके देकर, इ-कार्ड, सराहना कार्ड, अभिवादन कार्ड वितरण करने के द्वारा 1 जुलाई को मरीज अपने डॉक्टर का अभिवादन करते है। मेडिकल पेशे की ओर डॉक्टर के उस दिन के महत्व और योगदान को याद करने के लिये डॉक्टर्स दिवस के द्वारा घर या नर्सिंग होम पर, अस्पाताल में पार्टी और डीनर स्वास्थ्य केन्द्र पर आयोजित किये जाते हैं, तथा खास सभाएँ होती हैं।
डॉक्टर अपने पेशे से चिंतित :- 
आजकल व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो चुके चिकित्सकों को भी अब अपने पेशे को लेकर चिंता सताने लगी है। हालाँकि इस पेशे में बढ़ती व्यवसायिकता से सीनियर डॉक्टर काफी आहत हैं। लेकिन कुछ ऐसे डॉक्टर भी है जो अभी भी डॉक्टर पेशे के रूप में सेवाभाव जिंदा है। उन्हें फिर पुराने समय के लौटने की उम्मीद है। डॉ. राम शर्मा के अनुसार बीमारी का कारण स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव है। उन्होंने कहा कि बीमारी के इलाज से बेहतर उसका बचाव करना है। इसके लिए सभी ब्लड शुगर व उच्च रक्तचाप की जाँच अनिर्वाय रूप से करानी चाहिए। डॉ. लखन सिंह का कहना है कि पुराने दिनों में हर फील्ड के लोग रुपए कमाने की अंधी दौड़ में शामिल होते थे, लेकिन डॉक्टरी पेशा इससे अछूता था। इसलिए डॉक्टरों को काफी सम्मान मिलता था। वर्तमान में स्थिति कुछ और ही है। इसके अलावा शासकीय सेवा से जुड़े डॉक्टर अभी भी सीमित संसाधनों के बाद भी अपने कर्तव्य को ईमानदारी के साथ पूरा कर रहे हैं। डॉ. पंकज के अनुसार डॉक्टर होना सिर्फ एक काम नहीं है, बल्कि चुनौतीपूर्ण वचनबद्धता है। उन्होंने कहा कि युवा डॉक्टरों को डॉ. बिधानचंद्र राय की तरह जवाबदारी पूरी कर डॉक्टरी पेशे को बदनाम होने से बचाने के लिए पहल करनी होगी। डॉ. सरिता अग्रवाल का कहना है कि यह दिन यह विचार करने के लिए है कि डॉक्टर हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वर्तमान में डॉक्टर पुराने सम्मान को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता हुआ नजर आ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं। डॉक्टरों को अपनी जवाबदारियों का पालन ईमानदारी से करना सीखना होगा। डॉक्टरों की एक छोटी-सी भूल भी रोगी की जान ले सकती है।
जनता के विश्वास की डोर है डॉक्टर :- 
वर्तमान में डॉक्टरी ही एक ऐसा पेशा है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी डॉक्टरों पर है। डॉक्टर्स डे स्वयं डॉक्टरों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह उन्हें अपने चिकित्सकीय प्रैक्टिस को पुनर्जीवित करने का अवसर देता है। सारे डॉक्टर जब अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत करते हैं तो उनके मन में नैतिकता और जरूरतमंदों की मदद का जज्बा होता है, जिसकी वे कसम भी खाते हैं। इसके बाद कुछ लोग इस विचार से पथभ्रमित होकर अनैतिकता की राह पर चल पड़ते हैं। डॉक्टर्स डे के दिन डॉक्टरों को यह मौका मिलता है कि वे अपने अंतर्मन में झाँके, अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझें और चिकित्सा को पैसा कमाने का पेशा न बनाकर मानवीय सेवा का पेशा बनाएँ, तभी हमारा यह डॉक्टर्स डे मनाना सही साबित होगा।