अमेरिका और रूस विश्व की दो महान प्रभावशाली ताकतें रही हैं। भारत इन दोनों से बाहर रहा है और निर्गुट वाले रास्ते को अपनाया था। बाद में चीन और पाकिस्तान के हस्तक्षेप और बार - बार भारत पर युद्ध थोपने के कारण भारत को रूस की मदद लेने को बाध्य होना पड़ा था। अमेरिका शुरू से ही पाकिस्तान को अपने छत्र - छाया में रखता चला आया है। उसे आर्थिक मदद और हथियार सप्लाई करता रहा। बीच - बीच में अमेरिका भारत से जुड़ने का भी प्रयास किया परन्तु उसकी चाल दोगली रही। उसने कई बार भारत को नीचा दिखाने का प्रयास भी किया और उस पर अनेक प्रकार के व्यवसायिक प्रतिबंध भी लगाया।
इन दिनों अमेरिका और भारत पर पुनः इतिहास दोहरा रहा है । एक बार फिर अमेरिका 'दादागिरी' और दबाव की राजनीति पर उतर आया है। भारत ने भी पहले की तरह अब भी यह साफ कर दिया है कि वह किसी भी वैश्विक ताकत के आगे नहीं झुकेगा। भारत अपने देश के लोगों के हितों को सर्वोपरि रखेगा।
इतिहास के आइने में भारत और अमेरिका के संबंध:-
भारत और अमेरिका के संबंध, एक जटिल और बहुआयामी रिश्ता रहा है जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से यह शनै: शनै: विकसित हुआ है। आज, इनमें रणनीतिक साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है, जिसमें व्यापार, रक्षा, प्रौद्योगिकी और क्षेत्रीय सुरक्षा आदि शामिल है। भारत और अमेरिका के बीच एक जटिल और गतिशील साझेदारी है जो विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग पर आधारित है। दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध न केवल उनके द्विपक्षीय हितों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
1947 से पहले की स्थिति :-
भारत शताब्दियों गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अफगानी , मुस्लिम आक्रांता और अंग्रेजों ने इसका खूब दोहन किया। इसे लूटा और जबरन अपनी संस्कृति थोपने का प्रयास भी किया है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को खूब लूटा खासूटा गया।भारत और अमेरिका के बीच पहले से कोई औपचारिक संबंध नहीं थे, लेकिन अमेरिका ने भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन व्यक्त किया था।
शीत युद्ध का दौर में :-
शीत युद्ध के दौरान, भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे, क्योंकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी, जबकि अमेरिका सोवियत संघ के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था। अमेरिका ने भारत को झुकाने की अनेक कोशिश की है। बीते 60 साल में 1965, 1971, 1974 और 1998 इन चार बड़े मोड़ों पर अमेरिका ने अपनी ताकत दिखाई, भारत पर प्रतिबंध लगाए, तरह तरह की धमकियां दीं गई। पर हर बार भारत ने दृढ़ता,आत्मसम्मान और पूरी मजबूती के साथ जवाब दिया है।
वर्ष 1965 का दौर में : -
उन दिनों भारत खाद्यान्न के मामले में आत्म निर्भर नहीं हो पाया था।अमेरिका से भारत में लाल रंग का घटिया क्वालिटी का गेहूं आयात हो रहा था । भारत पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने गेहूं रोकने की धमकी दी, भारत ने आत्मसम्मान को चुना। भारत-पाक युद्ध 1965 के बीच जब भारत खाद्य संकट से जूझ रहा था, तब अमेरिका 'PL-480' स्कीम के तहत भारत को गेहूं देता था। लेकिन युद्ध रोकने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने गेहूं बंद करने की धमकी दी। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जवाब दिया कि ''हम भूखे रह सकते हैं, लेकिन आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे।" और इसी समय 'जय जवान, जय किसान' का नारा गूंजा था और देश एकजुट हुआ था।
वर्ष 1971 का दौर में : -
अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने पाकिस्तान को हराया था। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अमेरिका पूरी तरह पाकिस्तान के साथ खड़ा था। राष्ट्रपति निक्सन और हेनरी किसिंजर ने भारत पर कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाने की पूरी कोशिश की। यहां तक कि अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी तक भेज दिया गया। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी झुकी नहीं। भारत ने निर्णायक जीत दर्ज की और बांग्लादेश का निर्माण कराया।
वर्ष 1974 का पोखरण-1 परमाणु परीक्षण का दौर :-
पोखरण-1 के परमाणु परीक्षण पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए थे , भारत इस बार भी रुका नहीं था।भारत ने पहली बार राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था । जवाब में अमेरिका ने तकनीकी सहायता, परमाणु ईंधन और आर्थिक सहयोग पर प्रतिबंध लगा दिए। फिर भी श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वदेशी तकनीक और वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता के सहारे देश का परमाणु कार्यक्रम जारी रखा था।
1998 में पोखरण-2 का परीक्षण :-
1998 में भारत द्वारा किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण के समय भारत और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण थे। परीक्षण के बाद, अमेरिका ने भारत पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसमें कुछ रक्षा सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर रोक लगाना, अमेरिकी ऋण और क्रेडिट गारंटी को रोकना, और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा भारत को वित्त पोषण का विरोध करना शामिल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था -"हम घुटने नहीं टेकेंगे।" भारत ने पोखरण-2 परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। अमेरिका बौखला गया था और उसने भारत के विरुद्ध व्यापक प्रतिबंध लगाए थे। विश्व बैंक से आर्थिक मदद रोक दी गई, सैन्य उपकरणों की बिक्री पर रोक लगाई गई। तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो टूक कहा कि "भारत की सुरक्षा के लिए जो जरूरी होगा, हम करेंगे। चाहे अमेरिका माने या न माने।"
भारत का स्पष्ट रुख:-
भारत ने इन प्रतिबंधों का दृढ़ता से विरोध किया था और अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा था। कुछ ही महीनों बाद अमेरिका को समझ में आ गया कि भारत को अलग- थलग नहीं किया जा सकता। 1999 में प्रतिबंध हटने लगे थे। भारत और अमेरिका के बीच संबंध 2000 के दशक में नाटकीय रूप से सुधर गए, और दोनों देश अब एक रणनीतिक साझेदारी में बदल गए थे।
बिल क्लिंटन का युग:-
2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए। दोनों देशों के संबंधों में सुधार दिखने लगा था। 9/11 केआतंकी हमलों के बाद, अमेरिका ने भारत पर लगाए गए कुछ प्रतिबंधों को हटा भी दिया था।
ऐतिहासिक परमाणु समझौता सम्पन्न:-
बाद में, 2008 में, दोनों देशों ने एक ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया युग शुरू हुआ।
2000 के बाद के समय:-
2000 के बाद, दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से सुधरने लगे। व्यापार, रक्षा, और रणनीतिक सहयोग में वृद्धि हुई। देश के विकास की गाड़ी काफी कुछ पटरी पर आ गई थी।
वर्तमान परिपेक्ष्य:-
आज, भारत और अमेरिका एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं।
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार हैऔर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था । अमेरिका भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक प्रमुख स्रोत है। दोनों देशों ने स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए कई पहल हुए हैं।
रक्षा सहयोग - संबंध:-
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा उपकरण खरीदना शामिल है।अमेरिका हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक सहयोग:-
भारत और अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग में भी सहयोग कर रहे हैं, जिसमें नासा और इशरो की साझेदारी और मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम शामिल हैं। दोनों देशों ने महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर सहयोग को मजबूत करने के लिए एक पहल की है। अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय छात्र और पेशेवर रहते हैं, और शिक्षा दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ रहा है, जिसमें फिल्म, संगीत और कला शामिल हैं।
विविध क्षेत्रों में अमेरिका - भारत का सम्बन्ध:-
भारत-अमेरिका संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बढ़ते समान हितों के आधार पर एक प्रमुख रणनीतिक गठबंधन के रूप में विकसित हुए हैं। दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय यात्राओं ने सहयोग के लिए निरंतर गति प्रदान की है, जबकि लगातार विस्तारित हो रहे संवाद ढांचे ने जुड़ाव के लिए दीर्घकालिक आधार तैयार किया है। अमेरिका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, जो रणनीतिक समर्थन, आर्थिक अवसर, रक्षा सहयोग और तकनीकी प्रगति प्रदान करता है। मजबूत द्विपक्षीय संबंध भारत के वैश्विक प्रभाव, सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ाते हैं। भारत-अमेरिका द्विपक्षीय सहयोग में व्यापार और निवेश, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, उच्च प्रौद्योगिकी, असैन्य परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुप्रयोग, स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य सहित कई क्षेत्र शामिल हैं। दोनों देशों में लोगों के बीच सक्रिय संपर्क और राजनीतिक समर्थन द्विपक्षीय संबंधों को पोषित करते हैं।
वर्ष 2009 में हुआ और सुधार :-
दोनों देशों ने वर्ष 2009 में 'रणनीतिक साझेदारी' समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों ने वर्ष 2020 में 'व्यापक वैश्विक रणनीतिक सहयोग' समझौते को मंजूरी दी, जो 15 वर्षों के अंतराल के बाद हुआ, जिससे अमेरिका- भारत संबंधों में सुधार हुआ है।
भारत पर एक तरफा टैरिफ ,अमेरिका के दादागिरी के आठ प्रमुख कारण:-
अमेरिका ने भारत पर पहले 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाकर व्यापार बढ़ाने का दबाव बनाया। यह नया टैरिफ़ पहले से लागू 25 प्रतिशत टैरिफ़ के साथ जुड़कर कुल शुल्क 50 फीसदी टैरिफ कर दिया है। अतिरिक्त टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएगा। सवाल है कि अमेरिका टैरिफ़ को लेकर ख़ासकर भारत को ही निशाना क्यों बना रहा है, जबकि रूस से तेल खरीदने के मामले में चीन, भारत से कहीं आगे है।
भारत से एक्सपोर्ट होने वाले सामानों पर लगने वाले भारी टैरिफ से इनकी बिक्री में दिक्कत आ सकती है। 50 फीसदी टैरिफ़ लगने से भारत का अमेरिका को होने वाला एक्सपोर्ट घट जाएगा, फलत: भारत में नौकरियां चली जा सकती है।इससे देश में बेरोजगारी बढ़ेगी और मंदी का दौर आ सकता है। इसका असर दूसरे उद्योग धंधों पर भी पड़ेगा, उत्पादन कम होगा,इससे हरेक उद्योग प्रभावित होंगे और हरेक सेक्टर में नौकरियां जा सकती हैं।
जिन देशों में टैरिफ कम लगाया गया है, उनके सामानों की पहुंच अमेरिका के बाजार में बढ़ सकती है। भारत पर भारी टैरिफ लगाने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत द्वारा लगातार रूस से तेल का आयात करना कारण बताया है।
ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि कई अन्य कारण भी हैं। भारत अपनी पुरानी मित्रता और देशहित को ऊपर रखते हुए रूस से लगातार तेल आयात में लगा हुआ है, जिसकी वजह से भारत पर भारी टैरिफ लगाया गया है। अमरीका के प्रायः हर राष्ट्रपति साम्राज्यवादी रहा है। पर ओबामा जार्ज बुश और क्लिंटन कुछ उदारवादी रहे। ट्रंप और बाइडन बिल्कुल विपरीत स्वभाव वाले रहे। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप के भारत से चिढ़ने के पीछे सिर्फ तेल आयात ही वजह नहीं है, बल्कि आठ अन्य कारण भी हैं।
1.भारत ने रूस से तेल लेना बंद नहीं किया :-
ट्रंप की कई चेतावनियों को दरकिनार करते हुए भारत ने अब तक रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया है। ट्रंप का दावा है कि भारत न सिर्फ सस्ते में रूस से तेल आयात कर रहा है, बल्कि उन्हें अन्य देशों को भारी कीमत पर बेचकर अच्छा मुनाफा भी कमा रहा है। इसके लिए ट्रंप ने भारत पर टैरिफ रूपी जुर्माना भी लगाया है। भारत ने भी तुरंत जवाब देते हुए साफ कर दिया , “जो कदम देशहित में होगा, वह भारत उठाता रहेगा।”
2.ब्रिक्स को लेकर नाराज़गी :-
ब्रिक्स, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. इसमें भारत समेत चीन, रूस, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के अलावा ईरान, इथियोपिया, इंडोनेशिया, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हैं।ये सभी देश डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के पक्ष में हैं, जो राष्ट्रपति ट्रंप को बिल्कुल पसंद नहीं है। वे समय-समय पर ब्रिक्स देशों को 100 प्रतिशत तक टैरिफ़ लगाने की धमकी देते आए हैं। उनका यह भी कहना है कि अगर ब्रिक्स देशों ने अपनी करेंसी चलाने की कोशिश की तो उन्हें अमेरिका से व्यापार को अलविदा कहने के लिए तैयार रहना होगा।
3.सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना:-
भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए कई दिनों तक संघर्ष चला था। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पीओके और पाकिस्तान में जबरदस्त हमले किए थे। हालांकि, चार दिन के बाद दोनों देशों में सीजफायर हो गया था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम करवाने का दावा किया। वे 30 से ज्यादा बार कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाक के बीच संघर्षविराम करवाया, लेकिन भारत सरकार ने साफ किया कि यह भारत और पाक के बीच डीजीएमओ स्तर पर हुआ। इसमें किसी भी तीसरे देश का कोई रोल नहीं है। ओर पाकिस्तान सरकार ने ट्रंप को सीजफायर क बार क्रेडिट दिया है। जानकारों की मानें तो ट्रंप के भारत से चिढ़ने की एक वजह भारत द्वारा सीज फायर का क्रेडिट न दिया जाना भी है।
4.ऑपरेशन सिंदूर' रोकने का श्रेय न मिलना :-
ऑपरेशन सिंदूर' के बाद पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की थी. हालांकि बाद में दोनों देशों ने संघर्ष विराम का एलान किया था।राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि सीजफायर उन्होंने कराया है, जबकि भारत ने साफ़ किया है कि इसमें अमेरिका की भूमिका नहीं है। जम्मू- कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष में बदल गया था।
5.चीन के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी:-
2020 में गलवान घाटी में भारत-चीन सैन्य झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली चीन यात्रा करने जा रहे हैं। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट में शामिल होने के लिए पीएम मोदी चीन जाएंगे। यह दौरा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक होगा।पिछले साल अक्तूबर में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात की थी। जून, 2025 में राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बीजिंग भी पहुंचे थे. उसके बाद विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भी चीन गए थे।
6.भारत ने नोबेल दिए जाने की मांग नहीं की :-
ट्रंप की लंबे समय से इच्छा है कि इस बार का शांति का नोबेल पुरस्कार उन्हें ही दिया जाए। इसके चलते वे दुनियाभर के युद्धों में खुद ही बीच में कूद पड़ते हैं और उसे रुकवाने का दावा करते हैं। भारत - पाकिस्तान से इतर, इजरायल-ईरान, इजरायल-हमास, थाइलैंड-कंबोडिया जैसे युद्ध रुकवाने का भी ट्रंप दावा कर चुके हैं। इजरायल, कंबोडिया और पाकिस्तान जैसे देशों ने आधिकारिक रूप से ट्रंप को नोबेल दिए जाने की मांग की है, लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया है। भारत ने दो टूक कहा है कि ऐसे सवाल वाइट हाउस से ही पूछे जाने चाहिए, नाकि भारत से। ऐसे में ट्रंप को इससे मिर्ची लगना तय है।
7. रूस-यूक्रेन युद्ध ना रुकवा पाना:-
अमेरिका अन्य पश्चिमी देशों की तरह शुरुआत से ही इस युद्ध में यूक्रेन की तरफ है। इसके चलते उसने रूस पर पहले तो कई कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन जब उसका भी कोई असर नहीं पड़ा तो यूक्रेन को खुलकर हथियारों और आर्थिक मदद करने लगा। इसके बाद जब ट्रंप राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस युद्ध को रुकवाने के लिए पूरी जी-जान लगा दी। कभी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से बात की तो कभी पुतिन को फोन लगा दिया। लेकिन उनकी तमाम कोशिशें भी काम नहीं कर सकीं और रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन में बमबारी करने से पीछे नहीं हटा। ऐसे में भारत द्वारा रूस से तेल खरीदना भी अमेरिका को बुरा लग गया और अब वह भारी टैरिफ लगाकर रूस से तेल खरीदने से रोकना चाहता है।
8.कृषि और डेयरी बाजार तक अधिक पहुंच बढ़ाना चाहता है अमेरिका:-
अमेरिका कई सालों से भारत के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी यह कोशिश हुई थी, लेकिन बात नहीं बनी।ट्रंप का मानना है कि भारत के साथ ट्रेड डील अमेरिका के लिए भारतीय बाज़ारों को खोलने का काम करेगी, लेकिन कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है।
अमेरिका भारत में कृषि और डेयरी बाजार बहुत बड़ा है और अमेरिका भी इसका लाभ लेना चाहता है। भारत और अमेरिका के बीच कई महीनों से ट्रेड डील पर बातचीत चल रही है, लेकिन भारत किसी भी हाल में अमेरिका के कृषि और डेयरी प्रोडक्ट्स वाली मांगों को मानने को तैयार नहीं है। अमेरिका भारत से मक्का, सेब, सोयाबीन समेत तमाम चीजों पर टैरिफ कम करने कीमांग कर रहा है और अपने डेयरी प्रोडक्ट्स पर भी डील चाहता है। लेकिन इससे भारत के किसानों को नुकसान हो सकता है और यही वजह है कि भारत सरकार किसी भी कीमत पर समझौता करने के मूड में नहीं है। इसकी एक झलक पीएम मोदी ने अभी हाल ही में एक बयान के जरिए कर दी है। ट्रंप को जवाब देते हुए पीएम मोदी ने साफ साफ कहा है - “हमारे लिए किसान हित सर्वोच्च प्राथमिकता है और भारत पशु-पालकों, मछुआरों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।” इसी वजह से भारत और अमेरिका के बीच व्यापार डील रुकी हुई है।
उक्त परिस्थितियां यदि इसी प्रकार नहीं रहेगी। कोई उदारवादी नेतृत्व उभरेगा और दोनों देश के मध्य बराबरी का समुचित तालमेल बैठाएगा। यदि ऐसा नहीं हो पाया तो दोनों देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती और विकास का पहिया अवरुद्ध हो सकता है। इससे भारत और मजबूती से उभरेगा।