स्वामीनारायण की जन्मस्थली पर स्थित एक सुंदर स्मारक बना हुआ है। यहां पहले धर्मभक्ती का भवन था।1830 में स्वामी नारायण के निधन के बाद 1863 में आचार्य श्री अयोध्याप्रसादजी महाराज ने इस स्थान पर एक मंदिर बनवाया था। बाद में, 47 वर्षों के बाद 1910 में आचार्य श्री पुरुषोत्तमप्रसादजी महाराज ने एक और बड़ा मंदिर बनवाया।इसका संगमरमर से पुनर्निर्माण किया जा रहा है, यह परियोजना आचार्य श्री तेजेंद्रप्रसादजी महाराज ने 2004 में शुरू की थी। इसे धर्मभक्ति का भवन कहा जाता है ।
संगमरमर से सजा कमरा भूतल पर है। मंदिर का यह भाग में श्री हरि का जन्म स्थान है। यहां ठाकुर जी के लीला चरित्र, बाल लीला दर्शन तथा तत्कालीन घर गृहस्थी के प्रयोग में लाए गए वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। यहां तत्कालीन भारत के ग्राम्य वातावरण की सुंदर छवि हृदय की गहराइयों में अतीत के सादे जीवन की जीवंत झांकी प्रस्तुत करती है। शुद्धमन से दर्शन करने पर दिव्य अनुभूति तथा मन में अदभुत शान्ति मिलती है।
23 जुलाई 2024 अमृत विचार की विज्ञप्ति के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्यटन स्थल के रुप मे सवारने और विकसित करने की योजना चला रही है।
विकास कार्य के लिए 22.18 करोड रुपए की धनराशि स्वीकृत की गई है। राज्यपाल ने शासन के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए 8 करोड़ रुपए की पहली किस्त 23 जुलाई 2024 को जारी कर दी है।
कार्यदायी संस्था सी एंड डी एस ने इस स्थल के विकास के लिए 24.85 करोड़ रुपये की डिमांड की थी। इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए प्रदेश सरकार ने इस स्थल को सजाने संवारने के लिए 22.18 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की है और पहली किश्त के रूप में 8 करोड़ रुपये का बजट जारी कर दिया है।
नूतन भव्य जन्मस्थान भवन
पूरी दुनिया को मानवता व अध्यात्म का संदेश देने वाले स्वामी नारायण सम्प्रदाय के आराध्य देव बाल स्वरूप घनश्याम प्रभु की जन्मस्थली छपिया में नूतन भव्य जन्म स्थान स्मारक भवन का निर्माण पूरा हो गया है। यह भवन अपने आप में पूरी दुनिया में अनूठा स्मारक है, जो अपनी नक्काशी व स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। इस भवन की विशेषता यह है कि इसमें 36 गुणे 36 का गर्भगृह बिना खम्भे के निर्मित है। एक लाख घन फुट श्वेत मकराना संगमरमर से बने चार मंजिला वाले स्मारक के निर्माण में तीस करोड़ रुपये की लागत लगी है।
मंदिर के महंत ब्रह्मचारी स्वामी वासुदेवानंद जी महराज और ब्रह्मचारी स्वामी हरि स्वरूपानंद महाराज ने बताया कि भव्य जन्मभूमि स्मारक का शिलान्यास मोटा महाराज तेजेन्द्र प्रसाद के संकल्प से सन 2006 में नर नारायण देव गादीपति आचार्य कौशलेन्द्र प्रसाद महाराज ने किया था। मंदिर की नींव मेटल से तैयार की गई है। जन्मभूमि स्मारक का निर्माण गुजरात के सोमपुरा जय डिक्स आर्ट ने किया है। आर्किटेक्ट सुरेश भावेश और कन्हैया लाल की देखरेख में निर्माण चला। महंत स्वामी ने बताया कि जन्मभूमि स्मारक का निर्माण मंदिर सम्प्रदाय के हरिभक्तों सहयोग से किया गया है।
स्मारक की विशेषतायें
चार मंजिले भवन में एक लाख घन फुट संगमरमर पत्थरों से निर्माण किया गया है। संगमरमर पत्थर गुजरात सोमपुरा से मंगवाया गया। स्मारक भवन में 800 खम्भे, 1500 कमान, 100 बड़ी खिड़कियां, 51 झरोखा, 151 छत, पूर्व उत्तर व पश्चिम दिशा में 4500 बड़ी मूर्तियां एवं 2500 छोटी मूर्तियां, तीन सीढ़ियां गौ माता गोमती के स्वरूप की 201 मूर्तियां, 3300 भगवान के बाल चरित्र स्वरूप का निर्माण, सूर्य रूप शिव रूप रुद्र रूप व नीलकंठ वर्णी धर्मकुल भक्तिकुल स्वरूप संगीतकार मुद्रा वाले संत गणपति चौकीदार 3000 हाथी, 200 गाय स्वरूप स्वर्ण सुकसैया स्वर्ण मुख्य द्वार, स्वर्ण कलश, स्वर्ण ध्वजदंड, स्वर्ण सिंहासन, सूतिका गृह का कलात्मक निर्माण किया गया है।
किस तल पर क्या है
नूतन जन्म स्थान स्मारक भवन के विभिन्न तलों का अलग-अलग स्वरूप दिया गया है।
भूतल-
इस मंदिर के प्रवेश द्वार के मध्य एक पतले गलियारे से सोपान से उतर कार प्रवेश करने पर जन्मभूमि गर्भ गृह अपनी दिव्य आभा प्रसारित करता है।
प्रथम तल-
इस मंदिर के प्रवेश द्वार के मध्य एक पतले गलियारे के आजू बाजू दोनो
तरफ सोपान से इस भाग में प्रवेश करने पर बाल स्वरूप घनश्याम प्रभु का मनभावन विग्रह का दर्शन होता है।
द्वितीय तल-
प्रथम तल के भाग में प्रवेश करके सोपान के माध्यम से द्वितीय तल पर पहुंचा जा सकता है। इसे छप्पर पलंग शयन खंड नाम से जाना जाता है।
तृतीय तल-
द्वितीय तल के बाद सीढ़ियों से तृतीय
प्रसाद भंडार तल पर पहुंचा जा सकता है।
चतुर्थ तल- संग्रहालय
तृतीय तल के बाद सीढ़ियों से चतुर्थ तल पर पहुंचा जा सकता है।इस तल पर
भगवान द्वारा उपयोग में लायी गयी वस्तुओं का संग्रहालय बनाया गया है।
स्वामीनारायण मंदिर की विशेषताएं
स्वामीनारायण मंदिर, जो स्वामीनारायण संप्रदाय के आध्यात्मिक संस्थानों की एक प्रमुख स्थली है, विभिन्न कारणों से प्रसिद्ध है। यहां कुछ मुख्य कारणों को निम्नांकित किया गया है –
1.आध्यात्मिक महत्व:
स्वामीनारायण मंदिर एक आध्यात्मिक स्थल है जहां संप्रदाय के अनुयाय अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए आते हैं। यहां प्रवचन, पूजा, ध्यान और धार्मिक आयोजनों का आयोजन होता है।
2. स्थापत्य शैली की श्रेष्ठता: स्वामीनारायण मंदिरों की विशेषता उनके आकर्षक स्थापत्य शैली में होती है। इन मंदिरों की निर्माण में भारतीय और स्थानीय स्थापत्य कला के अंशों का उपयोग किया जाता है और इसलिए वे कला और संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं।
3. सेवा और सामाजिक कार्य: स्वामीनारायण मंदिर सेवा और सामाजिक कार्यों को महत्व देते हैं। इन मंदिरों में विभिन्न सामाजिक परियोजनाओं को संचालित किया जाता है, जैसे शिक्षा, आरोग्य, पेयजल, वन संरक्षण, विधवा कल्याण, ग्राम विकास आदि।
4. संप्रदायिक समागम:
स्वामीनारायण मंदिरों में लोग अलग-अलग धर्मों और संप्रदायों से आकर्षित होते हैं। यहां सभी लोगों का स्वागत किया जाता है और धार्मिक तथा सामाजिक एकता को प्रमोट किया जाता है।
5. प्रशासनिक नियमितता: स्वामीनारायण मंदिरों के प्रशासनिक नियमितता का ध्यान रखा जाता है जो उन्हें व्यवस्थित और सुविधाजनक बनाता है। इससे लोगों को विश्राम का मौका मिलता है और उन्हें शांति और सकारात्मक वातावरण का अनुभव करने का अवसर मिलता है।
ये कुछ मुख्य कारण हैं जो स्वामी नारायण मंदिर को प्रसिद्ध बनाते हैं। इन मंदिरों का महत्वपूर्ण आयोजन और उनकी सेवाओं के कारण लोग इन्हेंआध्यात्मिकता, शांति और सेवा के प्रतीक के रूप में मान्यता देते हैं।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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