Sunday, September 29, 2024

वक्फ बोर्ड के माध्यम से भारत को एक इस्लाम राष्ट्र बनाने का षडयंत्र हो रहा है आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी


 

इस्लाम को फैलाने के लिए गजवा-ए-हिंद की योजना

भारत को मुस्लिम बहुल राष्ट्र बनाने की योजना साजिसन बहुत दिनों से लगातार चल रही है. मोटे तौर पर गजवा-ए- हिंद के मायने भारत में जंग के जरिये इस्लाम की स्थापना करने से है. इसका मतलब भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले काफिरों को जीतकर उन्‍हें मुस्लिम बनाने और जंग में भारत को जीतकर इसका इस्लामी करण करने से है. इस्‍लाम के कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में पहले किए गए हमलों से गजवा-ए-हिंद पूरा हो चुका है. वहीं, कुछ मुस्लिम विद्वानों का मत है कि ये अभी 50 फीसदी ही पूरा हुआ है. 50 प्रतिशत पूरा करने के लिए कांग्रेस और अन्य कुछ दल अभी भी जुटे हुए हैं.

गांधी जी को गलत सोच

गांधीजी की सोच थी कि मुस्लिम हिंदुस्तान छोड़कर न जाएं , और पाकिस्तान से आए हिंदू सिख वापस चले जाएं, पहले विभाजन धार्मिक आधार पर होने दिया और जब हिंदू सिखों को पाकिस्तान में मारा जाने लगा , तभी वे हिंदुस्तान भागकर आए अपनी जान बचाकर आए। उन्हें पागलपन सवार नहीं था अपनी जायदाद रोजगार छोड़कर आने का. एक तरह से गांधी ढोंगी था. तभी आंबेडकर ने गांधी को दूरदर्शिता से शून्य बताया था. भारत में मुसलमानों को एक साजिश के तहत रोका गया था नहीं तो जब धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ तो उन्हें पूरे मुसलमान को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था. यह सोची समझी साजिश के तहत जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के पूर्वाग्रह के साथ किया था जो सर्वथा गलत एवं निंदनीय है और उसका खामियाजा आगे आने वाली पीढ़ियां को भुगतना पड़ेगा.

जवाहर लाल नेहरू का उल्टा रोल

जवाहर लाल नेहरू को गयासुद्दीन भी कहा जाता है.वे अपने को कश्मीरी पंडित कहते थे. उनके पूर्वज कश्मीर से थे. विदेशी शिक्षा के प्रभाव में वह खुद को एक्सीडेंटल हिन्दू कहते थे और पश्चिमी सभ्यता से अत्यधिक प्रभावित थे . वे इस्लामी संस्कृति और मुगलिया सल्तनत के शाशन काल कों पसन्द करते थे.उन्होने देश आजादी के बाद जो कानून सबसे पहले बनाएं वे हिन्दुओं की संख्या कम करने वाले थे. जैसे परिवार नियोजन कार्यक्रम सन् 1952 में , हिन्दू विवाह अधिनियम सन् 1955 में बना . सन् 1974 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया जिससे देश को तथाकथित सेकुलर बना दिया गया.बाबा साहेब ने जो संविधान बनाया था, उसकी हत्या कर दी गई. इंदिरा जी भी पारसी धर्म की अनुवाई होने के कारण उनका झुकाव गैर हिंदू हो रहा. राजीव गांधी, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री राहुल गांधी और श्रीमती प्रियंका गांधी बढ़ोरा सब के सब ईसाई ही हैं. श्रीमती सोनिया गांधी, देश को ईसाई बनाने के लिए How to convert India into Christianity जैसे पुस्तकें पसन्द और प्रकाशित करती देखी गई है.

भारत में एक बहुत ताकत वाला है वक्फ बोर्ड

भारत के वक्फ बोर्ड के पास दुनिया के और तमाम देशों के वक्फ बोर्ड से कई गुना ज्यादा संपत्ति है. हमारा वक्फ बोर्ड काफी ताकतवर है. मौजूदा वक्फ बोर्ड एक्ट के मुताबिक, एक बार जब कोई जमीन वक्फ के पास चली जाती है तो उसे वापस नहीं किया जा सकता. इसी वजह से देश में मौजूद सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड दोनों की कुल संपत्ति लगातार बढ़ रही है.  वक्फ बोर्ड के पास देश में रेलवे, डिफेंस और कैथोलिक चर्च के बाद सबसे ज्यादा जमीन है.देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास है.इसकी संपत्तियां आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं. पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है। ऐसे कई तथ्य हैं, जो इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं. जब यह कानून बना था, तब इसे लेकर भले ही कुछ तार्किक कारण रहे हों, लेकिन आज यह पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनता दिख रहा है। ऐसे में वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून और उसके अधिकारों की सामयिकता और संवैधानिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है। वक्फ बोर्ड्स की कुल संपत्तियों की कीमत 1 लाख 20 हजार करोड़ से ज्यादा है. मनमोहन सरकार ने मार्च 2014 में दिल्ली में सरकारी संपत्तियों को वक्फ को ट्रांसफर किया है.

45 देशों के क्षेत्रफल से भी ज्यादा भारत के वक्फ बोर्ड की जमीन

हमारे देश में वक्फ बोर्ड के पास करीब 3804 वर्ग किलोमीटर संपत्ति जमीन है. यह दुनिया के लगभग 45 देशों के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है. यह क्षेत्रफल समोआ, मॉरीशस, हांगकांग, बहरीन और सिंगापुर जैसे देशों से भी ज्यादा है. वर्तमान समय में वक्फ बोर्ड देश भर में 9 दशमलव 4 लाख एकड़ में फैली 8 लाख 72, 328  अचल संपत्तियां पंजीकृत हैं। जिसका अनुमानित मूल्य 1 लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ संपत्ति है.इनमें सबसे ज्यादा संपत्ति उत्तर प्रदेश में हैं. यूपी में वक्फ बोर्ड के पास कुल 2 लाख 14 हजार 707 संपत्तियां हैं. इसमें से 1 लाख 99 हजार 701 सुन्नी और 15006 शिया वक्फ की हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर है, जहां वक्फ के पास 80 हजार 480 संपत्तियां है. इसी तरह तमिलनाडु में वक्फ की 60 हजार 223 संपत्तियां हैं.

वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल किस रूप में 

कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे. वक्फ संपत्ति का इस्तेमाल कब्रिस्तान, सामाजिक कल्याण, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डिस्पेंसरी और मुसाफिर खानों के लिए होता है. देशभर में बने सभी कब्रिस्तान वक्फ भूमि का हिस्सा हैं. देश के सभी कब्रिस्तान का रखरखाव वक्फ बोर्ड ही करता है.देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड कार्यरत हैं. 

1995 में मिले असीमित अधिकार

देश में वक्फ की संपत्तियों के लिए कानून बनाने की शुरुआत 1954 में हुई थी. इसके बाद से समय-समय पर कई संशोधन हो चुके हैं. साल 1995 में केंद्र की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियां बढ़ाकर उसे कानूनन अधिकार दिए कि वह मुस्लिम द्वारा दिए गए दान के नाम पर संपत्तियों पर दावा कर सकता है. उन्होंने वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव किए और जमीन अधिग्रहण करने के लिए असीमित अधिकार दे दिए. 1995 का वक्फ कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा। यदि दावा गलत है तो संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा.

वक्फ एक्ट 1995 की प्रमुख धाराएं 

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा.बाद में वर्ष 2013 में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई.

वक्फ बोर्ड को मिली हैं ये शक्तियां

अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते.आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते. तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं. इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं.उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं.वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है .

पंथनिरपेक्षता, एकता और अखंडता की भावना के विपरीत है वक्फ बोर्ड 

यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है. वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है. यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है.

धार्मिक स्वतंत्रता के विपरीत

यह 1995 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोगों के लिए समानता होनी चाहिए, किंतु यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है. यह अधिनियम अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्पसंख्यकों के हित की रक्षा की बात करता है, इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है.  

संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध

संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है- 

1. अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका,

2.अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और

3.अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय.

       संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं. ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है.यह भारतीय संविधान के धार्मिकऔर आर्थिक प्रावधानों का खुलम खुला उलंघन है.   

अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन

वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं. इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं.

      दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके संरक्षण के लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं बना है.

यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो.

वक्फ बोर्ड के मिले हैं असीमित अधिकार

वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है. हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानता को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है.

संपत्ति का अधिकार भी सुरक्षित नहीं

अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नही. यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए? यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है. यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है.

लिमिटेशन एक्ट से भी छूट

वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है.धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है.इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है.

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर

धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है. संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो. वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं है.

भारत भी एक मुस्लिम राष्ट्र की तरफ़ अग्रसर 

इस एक्ट से बहुत ही दूरगामी दुष्परिणाम पड़ेगा.भारत की अखंडता अक्षुण्य नही रह सकती है. पूरे देश में वक्फ प्रापर्टी का बोलबाला हो जाएगा. यहां के मूल निवासियों की स्थिति दोयम नंबर की हो जायेगी और की पारसी देश ईरान की भांति भारत भी एक मुस्लिम राष्ट्र बन जायेगा. 

       वक्फ बोर्ड के विशेषाधिकार

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 40 

अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई संपत्ति उसकी है तो वो उसकी जांच कर सकता है और अगर बोर्ड ये मान ले कि ये संपत्ति उसकी है तो वो उस संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता है .

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 54

वक्फ बोर्ड सिर्फ किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति ही नहीं घोषित कर सकता बल्कि वो उस संपत्ति पर कब्जे को हटाने के लिए डीएम को भी कह सकता है.डीएम को ऐसी संपत्ति को खाली करवाना होगा.

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 85

इसके तहत अगर कोई मामला वक्फ से जुड़ा हुआ है तो उसे किसी सिविल, राजस्व कोर्ट या किसी अन्य प्राधिकरण में चैलेंज नहीं कर सकते.

वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 83

इस सेक्शन में साफ लिखा है कि वक्फ ट्रिब्यूनल के पास वैसे ही पावर होंगी जैसे सिविल कोर्ट के पास होती है. ट्रिब्यूनल का फैसला फाइनल होगा.उसे सभी पक्षों को मानना होगा. ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती. सिर्फ हाईकोर्ट के पास ये पावर होगी कि अगर कोई अपील करे या खुद से वो ट्रिब्यूनल के फैसले की वैधानिकता की जांच (Legality check)कर सकता है.

दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती

दिल्ली हाईकोर्ट में वक्फ एक्ट 1995 को चुनौती दी गई है.बीजेपी नेता एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें वक्फ कानून के प्रावधानों को चुनौती दी गई है. इस मामले में अब जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से अदालत में अर्जी दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज कर दिया जाए.

न्यायालय से मात खाने के बावजूद हठधर्मिता जारी


ताज महल के मामले में मात खाया है वक्फ बोर्ड 

1998 में, यूपी के फिरोजाबाद के एक व्यापारी इरफ़ान बेदार ने यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड से गुजारिश की थी कि ताजमहल को वक्फ की संपत्ति घोषित कर बोर्ड उन्हें वहां का मुतवल्ली या केयर टेकर बना दे.इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही इस अपील पर विचार करने को कहा जिसके बाद 2005 में यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताज को वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने का निर्णय ले लिया. 

     इसे एएसआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.जिसे माननीय न्यायालय स्वीकार कर वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया था.बादशाह शाहजहां के द्वारा वक्फ के सबूत ना दे पाने के कारण बाद में यूपी वक्फ बोर्ड ने खुद ही ताजमहल से अपना दावा वापस लेना पड़ा था. ताज महल पर एएसआई का दावा पक्का माना गया था.


आगरा की जामा मस्जिद अपना अलग ही अलाप 

आगरा की जामा मस्जिद की अगर बात करें, जिसका निर्माण मुग़ल बादशाह शाहजहां ने करवाया था. उन्होंने इस मस्जिद को अपनी बेटी जहां आरा बेगम को समर्पित किया था. उत्तर प्रदेश केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड को इस मस्जिद का नियंत्रण मिला था. इसके परिसर में 82 दुकानें हैं, जहां से बोर्ड हर महीने 17,000 रुपये का किराया वसूलता था. मनमानी खर्च करता है. लेकिन यह एएसआई ही है जो अपने संसाधनों से इस इमारत का रखरखाव कर रहा है .

दिल्ली की जामा मस्जिद के लिए एक बड़ा खेल रचा गया

जामा मस्जिद को वर्ष 1656 में शाहजहां ने बनवाया था. ये मस्जिद करीब 368 वर्ष पुरानी है. ऐसे में ASI को उसे अपने संरक्षण में लेना चाहिए था. लेकिन जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बनने से रोकने के लिए एक बड़ी साजिश की गई थी.  इस इमारत को देश की सबसे बड़ी मस्जिद का तमगा हासिल है. जब इसको राष्ट्रीय धरोहर बनाने का वक्त आया, तो एक बड़ा खेल रचा गया. इस खेल में मौलाना, पूर्व प्रधानमंत्री और एएसआई तीनों शामिल थे.ये मुगलकालीन इमारत शाही इमामों की प्राइवेट प्रॉपर्टी बन गई है. इसीलिए जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर घोषित करने की कवायद, कई वर्षो से चल रही है. पत्रों के माध्यम से मौलाना सैयद अहमद शाह बुखारी और पीएम मनमोहन सिंह की बातचीत हुई है. जामा मस्जिद को एएसआई संरक्षण से दूर रखने की साजिश की पहल मौलाना बुखारी ने ही की थी.

        10 अगस्त 2004 को ये पत्र सैयद अहमद बुखारी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था. इसमें उन्होंने जामा मस्जिद के रखरखाव के लिए एएसआई को निर्देश देने की अपील की थी. इसके अलावा उन्होंने लगभग चेतावनी भरे लहजे में कहा था, कि अगर जामा मस्जिद को एएसआई के संरक्षण में दिया गया, तो देश में बवाल खड़ा हो जाएगा. इस पत्र के जरिए मौलाना बुखारी, देश के पूर्व प्रधानमंत्री को धमकी देते हुए नजर आए.

        बुखारी साहब ने, इस पत्र के जरिए ये भी कहा,कि जामा मस्जिद के रख रखाव का खर्चा वो सरकार से ही लेंगे, लेकिन जामा मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर नहीं बनने देंगे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसको लेकर एएसआई को एक पत्र लिखा. जिसके बाद, उन्होंने बुखारी को उनके पत्र का जवाब दिया.

       20 अक्टूबर 2004 को लिखे गए इस पत्र में मनमोहन सिंह ने बुखारी से कहा, कि उन्होंने एएसआई 

को जामा मस्जिद के रिपेयर वर्क के लिए कह दिया है. और ये भी तय कर दिया गया है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा. 

       यदि जामा मस्जिद संरक्षित इमारत घोषित कर दी गई, तो कई लोगों की राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी. यही नहीं जामा मस्जिद को निजी संपत्ति समझने वाले शाही इमामों की दुकानें भी बंद हो जाएंगी. एएसआई के संरक्षण के बाद जामा मस्जिद एक धार्मिक इमारत बनकर रहेगी जहां प्राइवेट और राजनीति तकरीरें बंद हो जाएंगी. 

2018 में दायर की गई थी याचिका

दिल्ली हाईकोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही जिसमें मांग की गई है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित किया जाए और उसके आसपास अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया जाए. याचिका मार्च 2018 में सुहैल अहमद खान ने दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि जामा मस्जिद के आसपास के पार्कों पर अवैध कब्जा है और अतिक्रमण किया गया है एएसआई ने कहा था हमारे दायरे में नहीं है. सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को ये आश्वस्त किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा. एएसआई ने कहा था कि जामा मस्जिद केंद्र सरकार की ओर से संरक्षित इमारत नहीं है, इसलिए वो एएसआई के अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आता है.

2004 में भी उठा था संरक्षित घोषित करने का मामला

एएसआई ने हाईकोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने का मामला उठा था. हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर 2004 को शाही इमाम को लिखे अपने पत्र में कहा था कि जामा मस्जिद को केंद्र सरकार संरक्षित इमारत घोषित नहीं करेगी.

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने अभी हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ऐतिहासिक जामा मस्जिद के संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लिए गए निर्णय से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। इस निर्णय में कहा गया है कि मुगलकालीन मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए.न्यायालय की ओर से यह निर्देश बुधवार, 28 अगस्त 2024 को जारी किया गया, जब ऐसी खबरें आईं कि यह महत्वपूर्ण दस्तावेज अब गायब है.


भाजपा सरकार ने जामा मस्जिद के संरक्षण पर खर्च किए ₹52 लाख

भारत सरकार बिना संरक्षित इस स्मारक पर नियम विरुद्ध पहले भी पैसा खर्च करता आया है और आज भी कर रहा है.भाजपा सरकार जामा मस्जिद के संरक्षण का काम की है, जिसमें मस्जिद के कुछ हिस्सों में 52 लाख रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं. लोकसभा सदस्य साजदा अहमद ने  संस्कृति, पर्यटन और पर्यटन क्षेत्र विकास मंत्री जी से एक प्रश्न के उत्तर में पूछा था। किशन रेड्डी ने कहा कि भारतीय पुरातत्ववेत्ता ने जामा मस्जिद का प्रालेखी करण और शास्त्र चित्रण का काम शुरू कर दिया है. आवश्यक है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित कार्य नियमित रूप से किया जाना.मंत्री ने कहा कि जब भी जरूरत पड़ी, जामा मस्जिद के संरक्षण के लिए धनराशि उपलब्ध करायी गयी.

     पिछले तीन प्रचलित सत्रों में जामा मस्जिद की सुरक्षा पर कुल 52.80 लाख रुपये खर्च हुए हैं. खर्च के हिसाब से साल 2018-19 में 13.90 लाख रुपये, 2019-20 में 13.92 लाख रुपये और 2020-21 में 25.00 लाख रुपये खर्च किए गए हैं.

2024 में भाजपा सरकार द्वारा दो विधेयक पेश

लोकसभा में 8 अगस्त 2024 को दो विधेयक वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 पेश किए गए, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है.

जनहित का प्रश्न अंतर्निहित 

1. क्या वक्फ एक्ट 1995, देश के सेकुलर ढांचे के खिलाफ है?

2. क्या सरकारी संपत्तियों को वक्फ को देने का मनमोहन सरकार का फैसला खतरनाक था?

3. हिंदुस्तान में जो अधिकार किसी दूसरे धर्म के पास नहीं, वो वक्फ के पास क्यों?

पुरातत्त्व अधिनियम से टकराव

वक्फ अधिनियम 1995 वक्फ बोर्ड को दान के नाम पर किसी भी संपत्ति या इमारत को वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार देता है .इस अधिकार का उपयोग करते हुए वक्फ बोर्ड ने संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए अधिसूचनाएँ जारी की हैं, जिसके परिणाम स्वरूप प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत दिए गए अधिकारों के साथ टकराव हो जाता है.

जेपीसी की बैठकों में मुद्दे बढ़ रहे हैं 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने जेपीसी की बैठक में संरक्षित स्मारकों और स्थलों में वक्फ से जुड़े मुद्दों पर विस्तृत प्रस्तुति दी और बताया कि इतने सारे ऐतिहासिक स्मारकों के साथ उन्हें क्या- क्या समस्याएं आ रही हैं.उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की है कि वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक क्यों जरूरी है?

आधी- अधूरी सूची ही पेश कर पाया एएसआई 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने वक्फ़ संशोधन विधेयक-2024 के समर्थन में वक्फ़ बोर्ड से जुड़ी कुछ बातें बताई हैं. एएसआई ने अभी तक अपने 24 जोन में से सिर्फ 9 जोन की जानकारी ही सौंपी है. दिल्ली जोन की सूची, जो कि काफी महत्वपूर्ण है, अभी तक नहीं सौंपी गई है. उम्मीद है कि एएसआई जल्द ही बाकी जोन की जानकारी उपलब्ध करा देगा, ताकि वक्फ संपत्तियों को लेकर स्थिति और स्पष्ट हो सके. एएसआई के अधिकारियों ने बैठक में बताया कि वक्फ बोर्ड के साथ देश भर में अद्यतन कथित 132 या 120 संपत्तियों को लेकर उनका विवाद है।इन स्मारकों पर वक्फ़ बोर्ड दावा कर रहा है, 

     एएसआई संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है। एएसआई ने अपनी प्रस्तुति में 53 स्मारकों की सूची दी, जिन पर वक्फ अपना दावा करता है। इनमें से कुछ को देश की आजादी से पहले का इतिहास रखने वाले एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने के लगभग एक सदी बाद वक्फ की संपत्ति घोषित किया गया।एएसआई अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के "दोहरे अधिकार" टकराव पैदा करते हैं.उन्होंने रेखांकित किया कि इनमें से कई संपत्तियों को वक्फ के रूप में तभी वर्गीकृत किया गया है, जब उन्हें संरक्षित स्थल घोषित किया गया था.


जेपीसी की बैठकों में विपक्ष का अपना निजी स्वार्थ

जेपीसी की बैठकों में विपक्ष की ओर से एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने केवल दिल्ली की ही 172 वक्फ संपत्तियों की सूची सौंपी जो उनके अनुसार एएसआइ के अनधिकृत कब्जे में हैं. सूत्रों के अनुसार ओवैसी खुद 3000 करोड की वक्फ की जमीन कब्जा किए बैठे हैं. कांग्रेस के समय की कर्नाटक मैनार्टी कमेटी को रिपोर्ट के अनुसार 120 एकड़ जमीन को कमर्शियल कनवरजन करा लिया है. ये 8 रुपए की किरायेदारी पर है। इसे 30 साल से ज्यादा कोई नहीं रख सकता फिर भी ओवैसी इस पर कुण्डली मार कर बैठे हैं.

संरक्षण में बाधा 

इन स्मारकों पर वक्फ़ बोर्ड का दावा करने की वजह से संरक्षण और देखरेख प्रभावित होता रहता है. संरक्षण कार्य में बाधा उत्पन्न हुई है और वक्फ संपत्तियों में अनधिकृत परिवर्तन कर लिए जाते हैं. इनके मुतलवी एएसआई के अधिकारी वा कर्मचारी को स्मारक में प्रवेश ,निरीक्षण,रेखाचित्र और छायाचित्र करने नही देते हैं. अनेक बार तो हाई लेवल अधिकारी को लिखकर पुलिस संरक्षण में स्मारक में प्रवेश करने दिया जाता है.

ये राजनीतिक बल का प्रयोग कर सरकारी विभाग पर दबाव डलवाते हैं.बिना किसी देरी के आनन फानन में स्मारक का मनमानी संरक्षण अनुरक्षण और छोटा मोटा निर्माण भी करवा लेते हैं.

संरक्षण प्रतिबंधित'

सूत्रों के अनुसार, एएसआई ने शिकायत की है कि उसके कर्मचारियों को ऐसे स्मारकों में “संरक्षण” कार्य करने से प्रतिबंधित किया गया है। एएसआई अधिकारियों ने बोर्ड पर इन संरक्षित स्मारकों की मूल संरचना में “कई जोड़ और परिवर्तन” करने का भी आरोप लगाया, जिससे ऐसी संरचनाओं की “प्रामाणिकता और अखंडता” बाधित हो रही है.

वक्फ बोर्ड और एएसआई के मध्य कुछ विवाद वाले मामले

एएसआई द्धारा प्रदत्त सूची में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित निजाम शासक अहमद शाह की कब्र को शामिल किया गया। इसे एएसआई ने 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित किया था, जबकि 2006 में इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया.

इसी प्रकार, बेलगाम की सफा मस्जिद, जिसे 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, को 2005 में वक्फ के रूप में वर्गीकृत किया गया.

महाराष्ट्र के संभाजीनगर (औरंगाबाद) में औरंगजेब का मकबरा, पर विवाद होता रहता है.

आगरा की जामा मस्जिद, पर विवाद होता रहता है।

कर्नाटक का बीदर किला पर विवाद होता रहता है.और 

औरंगाबाद के पास प्रसिद्ध दौलताबाद किला पर भी विवाद होता रहता है.

आगरा में फतेहपुर सीकरी और जौनपुर में अटाला मस्जिद का उदाहरण देते हुए एएसआई ने बताया कि संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित किए जाने से टकराव की स्थिति पैदा होती है.

उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड

उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास संपत्तियों की संख्या : 1,17,161 है। प्रमुख निम्न लिखित हैं ,जिन पर एएसआई से विवाद होता रहता है.

टीले वाली मस्जिद, लखनऊ

जामा मस्जिद, लखनऊ

नादान महल मकबरा, लखनऊ

शाही अटाला मस्जिद जौनपुर

दरगाह सैयद सालार मसूद गाजी, बहराइच

सलीम चिश्ती का मकबरा, फतेहपुर सीकरी, आगरा 

धरहरा मस्जिद, वाराणसी

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड

उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पास संपत्तियों की संख्या : 15,386 संपत्तियां है.प्रमुख निम्न लिखित हैं ,जिन पर एएसआई से विवाद होता रहता है.

बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ

छोटा इमामबाड़ा लखनऊ

इमामबाड़ा किला-ए-मुअल्ला, रामपुर

मकबरा जनाब-ए-आलिया, रामपुर

इमामबाड़ा खासबाग, रामपुर

बहू बेगम का मकबरा, फैजाबाद

दरगाहे आलिया नजफ-ए-हिंद, बिजनौर

मजार शहीद-ए-सालिस, आगरा.

संयुक्त संसदीय समिति को करीब 96 लाख से अधिक आपत्तियां और सुझाव

वक्फ संशोधन बिल को लेकर संयुक्त संसदीय समिति को करीब 96 लाख से ज्यादा ईमेल मिले हैं. इस बीच एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन ईमेल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले रिएक्शन का हिस्सा काफी बड़ा है. वक्फ संशोधन बिल पर टिप्पणियां दर्ज करने की समय सीमा बीती 15 सितंबर को खत्म हो चुकी है. अब संयुक्त संसदीय समिति का पैनल अलग-अलग राज्यों का दौरा करेगा. इसके साथ ही स्टेट वक्फ बोर्ड और राज्य अल्पसंख्यक आयोगों से मुलाकात करेगा.


     आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय


(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं.मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

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