धर्मनगरी चित्रकूट भगवान श्री राम की तपोस्थली रही है। यहां प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल के लगभग बारह साल व्यतीत किए थे। रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर कामदगिरि के प्रमुख द्वार से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर चित्रकूट सतना राजमार्ग पर जानकी कुंड स्थित है। श्वेत पहाड़ो को श्रृंखलाओं के मध्य मंदाकिनी नदी प्रवाहित होती रहती हैं । मन्दाकिनी के जल से उसके किनारे तट पर जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान पूजा हवन और श्रृंगारादि करती थीं।
यहाँ पर श्री रामचन्द्र करोड़ों कामदेवों की कांति से युक्त नित्य विहार करते हैं। उनके चरणों की रेणु (धुल) यहाँ पर्वत के रूप में एकत्रित हो गई है। उसकी शिला स्फटिक समान स्वच्छ चिकनी है, जो संसार को पवित्र करती है। उस शिला में सुन्दर दाहिना चरण चिन्ह विद्यमान है। जानकी कुण्ड के नाम से प्रख्यात है। इस सीता कुण्ड में स्नान करके तथा भक्ति भाव से चरणों का पूजन करके मनुष्य महान् पातकों का नाश करने वाले भक्ति योग को प्राप्त करता है।
सीता कुण्डे नरः स्नात्वा चरणं पूज्य भक्तितः,
भक्ति योगम् प्राप्नोति महापातक नाशनम्।
यह स्थान रम्य आश्रम के रूप में वर्तमान में विख्यात है। यहाँ महात्मागण, अनगिनत गुफाओं में तपश्चर्या में निम्गन रहते हैं। मंदाकिनी के किनारे यह आश्रम प्राकृतिक एवं मनोरम है। नदी के दोनों किनारे हरितिमा से विभूषित एवं नयनाभिराम हैं।
यहाँ के पत्थर आग्नेय हैं। कहीं-कहीं यहाँ सफेद पत्थर भी पाये जाते हैं। जब युगल सरकार यहाँ चलते थे तो मानो यह पत्थर भी मोम के मानिन्द हो जाते थे।
चरण चिन्ह:-
मंदाकनी की नदी के तट पर यह एक सुंदर पावन स्थल है। इसके किनारे पर सीढ़ियां बनी हुई हैं और यहां पत्थर पर मानव के जैसे माता जानकी के पैरो के निशान माने जाते हैं। भगवान राम के वनवास के दौरान यह स्थान माता जानकी का सबसे पसंदीदा स्थान रहा है । जानकी कुंड के पास ही राम जानकी मंदिर और संकट मोचन मंदिर भी स्थित है। यहां हनुमान जी की विशाल मूर्ति के दर्शन भी किये जा सकते हैं। उसी के समीप लगभग 85 सीढ़ी नीचे उतरने पर मां मंदाकिनी के तट पर सुप्रसिद्ध जानकी कुंड तीर्थ स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में मां जानकी (सीता माता) नित्य स्नान करती थी। इसीलिए इसका नाम जानकी कुंड पड़ा। यहां पर मां जानकी जी के पावन चरण चिन्ह के दर्शन होते हैं । माता जानकी के चरण चिन्ह आज भी बने हुए हैं। इस कुंड को लोग जानकी कुंड के नाम से जानते हैं।इस कुंड में दूर-दूर से श्रद्धालु आज भी माता जानकी के चरण चिन्ह के दर्शन के लिए आते हैं। लोक मान्यता है कि वनवास काल के दौरान माता जानकी इसी कुंड में स्नान करती थीं। कहते हैं कि माता सीता के पांव इतने कोमल थे कि उनके लिए धरती पिघल जाती थी। आज भी जानकी कुंड में मां सीता के चरण चिन्ह और उनके श्रृंगार करने का स्थान बना हुआ है। इसके दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.
हवन कुण्ड जिसमे पुरोहित कार्य ब्रह्मा जी करते थे:-
माता जानकी स्नान करने के बाद हवन किया करती थीं। हवन कुंड को माता सीता ने खुद अपने हाथों से बनाया था। वह इस हवन कुंड में गायत्री मंत्र का जाप करके हवन करती थीं। ब्रह्मा जी उनके पुरोहित थे और वह हवन करवाने के लिए आया करते थे। स्नान के बाद माता सीता इसी कुंड में बैठकर श्रृंगार किया करती थी। उस समय यहां न तो कोई मंदिर था ना हो कोई मकान। चित्रकूट के चारो धाम में सब से पहला धाम जानकी कुंड ही है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)
.
No comments:
Post a Comment