Monday, December 30, 2024

शृंगार रस के कवि : पण्डित राम नारायण चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार 25)# आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


पंडित राम नारायण चतुर्वेदी का जन्म बैसाख कृष्ण 12, संवत् 1944 विक्रमी को उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के हैसर बाजार-धनघटा नगर पंचायत के ग्राम सभा मलौली में हुआ था। यह क्षेत्र इस समय वार्ड नंबर 6 में आता है। जो पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर है । इनके पिता पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी जी थे। यह बस्ती मण्डल का एक उच्च कोटि का कवि कुल घराना रहा है। पंडित कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। पंडित राम नारायण जी का रंग परिषद में भी बड़ा आदर और सम्मान हुआ करता था। घनाक्षरी और सवैया छंदों की दीक्षा उन्हें रंगपाल जी से मिली थी। वे भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे। राम नारायण की शिक्षा घर पर ही हुई थी। इनके चार पुत्र बांके बिहारी, ब्रज बिहारी, वृन्दावन बिहारी और शारदा शरण थे। जिनमें ब्रज बिहारी ब्रजेश और शारदा शरण मौलिक अच्छे कवि रहे। 
पंडित राम नारायण जी अंग्रेजी राज्य में असेसर (फौजदारी मामलों में जज / मजिस्ट्रेट को सलाह देने के लिए चुना गया व्यक्ति) के पद पर कार्य कर रहे थे। एक बार असेसर पद पर कार्य करते हुए उन्होंने ये छंद लिखा था जिस पर जज साहब बहुत खुश हुए थे - 
दण्ड विना अपराधी बचें कोऊ,
दोष बड़ों न मनु स्मृति मानी।
दण्ड विना अपराध लहे कोऊ, 
सो नृप को बड़ा दोष बखानी।
राम नारायण देत हैं राय,
असेसर हवै निर्भीक है बानी।
न्याय निधान सुजान सुने,
वह केस पुलिस की झूठी कहानी।।
ब्रज भाषा और शृंगार रस
कवि राम नारायण जी ब्रज भाषा के शृंगार रस के सिद्धस्थ कवि थे। सुदृढ़ पारिवारिक पृष्ठभूमि और रंगपाल जी का साहश्चर्य से उनमें काव्य कला की प्रतिभा खूब निखरी है। उनका अभीष्ट विषय राधा- कृष्ण के अलौकिक प्रेम को ही अंगीकार किया है। शृंगार की अनुपम छटा उन्मुक्त वातावरण में इस छंद में देखा जा सकता है। एक छंद द्रष्टव्य है - 
कौन तू नवेली अलबेली है अकेली बाल,
फिरौ न सहेली संग है मतंग चलिया।
फूले मुख कंज मंजुता में मुख नैन कंज,
मानो सरकंज द्दव विराजे कंज कलिया।
करकंज कुचकंज कंजही चरण अरु 
वरन सुकन्ज मंजु भूली कुंज अलियां।
तेरे तनु कंज पुंज मंजुल परागन के,
गंध ते निकुजन की महक उठी गालियां।।
घनाक्षरी का नाद-सौष्ठव
सुकवि राम नारायण की एक घनाक्षरी का नाद सौष्ठव इस छंद में देखा जा सकता है- 
मंद मुस्काती मदमाती चली जाती कछु,
नूपुर बजाती पग झननि- झननि- झन ।
कर घट उर घट मुख ससीलट मंजु,
पटु का उडावै वायु सनन- सनन- सन।
आये श्याम बोले वाम बावरी तु बाबरी पै,
खोजत तुम्हें हैं हम बनन- बनन- बन।
पटग है झट गिरे घट-खट सीढ़िन पै,
शब्द भयो मंजु अति टनन-टनन- टन।।
वैद्यक शास्त्रज्ञ
सुकवि राम नारायण जी कविता के साथ साथ वैद्यक शास्त्र के भी ज्ञाता थे। उनके द्वारा रचित आवले की रसायन पर एक छंद इस प्रकार देखा जा सकता है - 
एक प्रस्त आमले की गुठली निकल लीजै,
गूदा को सुखाय ताहि चूरन बनाइए।
वार एक बीस लाइ आमला सरस पुनि,
माटी के पात्र ढालि पुट करवाइए।
अन्त में सुखाद फेरि चुरन बनाई तासु,
सम सित घृत मधु असम मिलाइये।
चहत जवानी जो पै बहुरि बुढ़ापा माँहि,
दूध अनुपात सो रसायन को खाइये।।
ज्योतिष के मर्मज्ञ 
सुकवि राम नारायण जी को कविता , वैद्यकशास्त्र के साथ साथ ज्योतिष पर भी पूरा कमांड था। उनके द्वारा रचित एक छंद नमूना स्वरूप देखा जा सकता है- 
कर्क राशि चन्द्र गुरु लग्न में विराजमान,
रूप है अनूप काम कोटि को लजावती।
तुला के शनि सुख के समय बनवास दीन्हैं 
रिपु राहु रावन से रिपुवो नसावाहि।
मकर के भौम नारि विरह कराये भूरि,
बुध शुक्र भाग्य धर्म भाग्य को बढ़ावहीं ।
मेष रवि राज योग रवि के समान तेज,
राम कवि राज जन्म पत्रिका प्रभावहीं।।
ब्रजभाषा की प्रधानता 
इस परम्परागत कवि से तत्कालीन रईसी परम्परा में काव्य प्रेमी रीतिकालीन शृंगार रस की कविता को सुन-सुन कर आनंद लिया करते थे। कवि राम नारायण भोजपुरी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद भी ब्रजभाषा में ही कविता किया करते थे। उनका रूप-सौंदर्य और नख-सिख वर्णन परंपरागत हुआ करता था। उन्होंने पर्याप्त छंद लिख रखें थे पर वे उसे संजो नहीं सके। कविवर ब्रजेश जी के अनुसार पंडित रामनारायण जी चैत कृष्ण नवमी सम्बत 2011 विक्रमी को अपना पंच भौतिक शरीर को छोड़े थे । 
बस्ती के छंदकार शोध ग्रन्थ के भाग 1 के पृष्ठ 122 से 126 पर स्मृतिशेष डॉक्टर मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' जी ने पंडित राम नारायण जी के जीवन वृत्त और कविता कौशल पर विस्तार से चर्चा किया है।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)



















Wednesday, December 25, 2024

एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार 24)#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

श्रीनारायण चतुर्वेदी का नाम सुनते ही उत्तर-प्रदेश के इटावा जनपद में जन्मे महान कवि, पत्रकार, भाषा-विज्ञानी तथा लेेखक का स्वरूप आंखों के सामने आ जाता है जिनके पिता श्री द्वारिका प्रसाद शर्मा चतुर्वेदी अपने समय के संस्कृत भाषा के नामी विद्वान थे।उनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन से हुई थी। जो स्वतंत्रता से पूर्व उन्होंने सन् 1926 से 1930 तक जिनेवा में भारतीय शैक्षिक समिति के प्रमुख तथा कई वर्षो तक उत्तर प्रदेश सरकार के शैक्षिक विभाग के भी प्रमुख रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत उन्होंने आल इंन्डिया रेडियो के उप महानिदेशक (भाषा) के रूप में तैनात रहकर हिंदी भाषा विज्ञान के विकास के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुये सेवानिवृत हुये थे।

बस्ती के पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी 

इटावा के अलावा एक और पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर के मलौली गाँव में प्रसिद्ध साहित्यिक कुल में भी हुआ था जिसमें अभी तक ज्ञात सात उच्च कोटि के छंदकार अवतरित हुए हैं। इस पं.श्रीनारायण चतुर्वेदी का जन्म कार्तिक कृष्ण 15,संवत् 1938 विक्रमी को दीपावली के दिन हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ था । जो अब नवगठित नगर पंचायत हैसर बाजार-धनघटा के वार्ड नंबर 6 में आता है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचो बीच है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । 

छः भाइयों में सबसे कुशाग्र 

    श्रीनारायण चतुर्वेदी के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था।  जिनके छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। ये सभी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश' के भाई थे। श्री नारायण बचपन में बड़े प्रतिभाशाली थे। अपने छः भाइयों में श्रीनारायण इतने कुशाग्र थे कि कोई भी भाई इनसे तर्क वितर्क नहीं कर पाता था। संस्कृत, फारसी, आयुर्वेद और ज्योतिष पर इनका पूर्ण नियंत्रण था। वे महीनों सरयू नदी और गंगा नदी के तट पर कल्प वास किया करते थे। 

अनेक लहरियों के मध्य "सरयू लहरी "

पदमाकर जी के गंगा लहरी की भांति श्री नारायण जी ने 109 छंदों की "सरयू लहरी" लिखा था जो दुर्भाग्य बस गायब हो गया। इससे पहले महाकवि सूरदास ने साहित्य लहरी नामक 118 पदों की एक लघु रचना लिखी है। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा संस्कृत में रचित गंगा लहरी में 52 श्लोक हैं। इसमें उन्होंने गंगा के विविध गुणों का वर्णन करते हुए उनसे अपने उद्धार के लिए अनुनय किया गया है। इसी प्रकार त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने प्रेम लहरी, जम्मू के जाने-माने साहित्यकार प्रियतम चंद्र शास्त्री की शृंगार लहरी रचना है। बद्री नारायण प्रेमधन की लालित्य लहरी आदि लहरी रचनाएँ रही हैं। मूलतः लहरियों में धारा प्रवाह या भाव प्रभाव रचनाओं की अभिव्यंजना मिलती है। इसी तरह भारतेंदु हरिश्चंद्र' ने भी “सरयूपार की यात्रा” नामक एक यात्रा वृतांत लिखा है है। जिसका रचनाकाल 1871 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

रीतिकालीन शृंगार का प्रस्फुटन

श्रीनारायण चतुर्वेदी रीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। उन्होंने देव बिहारी और चिन्तामणि के छंदों को कंठस्थ कर लिया था। लोग घण्टों उनके पास बैठ कर श्रृंगार परक रचना का रसास्वादन किया करते थे। उन्हें भाषा ब्रज, छंद मनहरन और सवैया प्रिय था। उनका श्रृंगार रस का एक छंद (डा मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' कृत 'बस्ती के छंदकार' भाग 1, पृष्ठ 13 - 14 के अनुसार ) द्रष्टव्य है - 

कंज अरुणाई दृग देखत लजाई खंग 

समता न पायी चपलायी में दृगन की।

वानी सरसायी दीन धुनिको लजायी पिक,

समता न पायी वास किन्हीं लाजवन की।

जंघ चिकनाई रम्भा खम्भ हू न पायी नाभि,

भ्रमरी भुलाई मन नीके मुनिजन की।

बुद्धि गुरुवायी श्री नारायण की जाती फंसि,

देखि गुरुवायी बाल उरज सूतन की।।

एक अन्य छंद भी द्रष्टव्य है

बाल छबीली तियान के बीच सो बैठी प्रकाश करै अलगै।

चंद विकास सो हांसी हरौ उपमा कुच कंच कलीन लगै।

दृग की सुधराई कटाछन में श्रीनारायण खंज अली बनगै।

मृदु गोल कपोलन की सुषमा त्रिवली भ्रमरी ते मनोज जगै।

     श्रीनारायण कवि का यह छंद शृंगार की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। ये मलौली के कवि परम्परा के प्रथम चरण के अंतिम कवि थे।

      आचार्य डॉक्टर राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)










Sunday, December 22, 2024

शृंगार रस के कवि भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश’(बस्ती के छंदकार 23)#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया संवत 1930 विक्रमी में 
हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत के गांव सभा मलौली में हुआ है । यह वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश’ के पिता का नाम कृष्ण सेवक चतुर्वेदी था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी 'दिनेश' जी के पिता कृष्ण सेवक चतुर्वेदी के छः पुत्र थे - प्रभाकर प्रसाद, भास्कर प्रसाद, हर नारायण, श्री नारायण, सूर्य नारायण और राम नारायण। इनमें भास्कर प्रसाद , श्री नारायण और राम नारायण उच्च कोटि के छंदकार हो चुके हैं। राम नारायण उच्च स्तर के छंदकार रह चुके हैं। उनका रंग परिषद में बड़ा सम्मान था। भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी श्री नारायण चतुर्वेदी और राम नारायण चतुर्वेदी के भाई थे।
भास्कर प्रसाद शृंगार रस के कवि 
साहित्य के अनुसार नौ रसों में से एक रस जो सबसे अधिक प्रसिद्ध है और प्रधान माना जाता है । जब पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के मन में रति नाम का स्थायी भाव जागृत होकर आस्वादन के योग्य हो जाता है, तो इसे शृंगार रस कहते हैं. शृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है. यह नौ रसों में से एक है।
जाको थायी भाव रस, सो शृंगार सुहोत। मिलि विभाव अनुभाव पुनि संचारिन के गोत। 
इसमें नायक - नायिका के परस्पर मिलन के कारण होने वाले सुख की परिपुष्टता दिखलाई जाती है । इसका स्थायी भाव रति है । आलंबन विभाव नायक और नायिका हैं । उद्दीपन विभाव सखा, सखी, वन, बाग आदि, विहार, चंद्र- चंदन, भ्रमर, झंकार, हाव भाव, मुसक्यान तथा विनोद आदि हैं । यही एक रस है जिसमें संचारी विभाव, अनुभाव सब भेदों सहित होता है; और इसी कारण इसे रसराज कहते हैं । इसके देवता विष्णु अथवा कृष्ण माने गए हैं और इसका वर्ण श्याम कहा गया है । यह दो प्रकार का होता है—एक संयोग और दूसरा वियोग या विप्रलंभ । नायक नायिका के मिलने को संयोग और उनके विछोह को वियोग कहते हैं ।
     शृंगार रस की प्रधानता मुख्यतः रीतिकाल में है। हिंदी साहित्य में कविवर बिहारीलाल जी शृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे। शृंगार रस के लोकप्रिय कवि बिहारी लाल का नाम हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में अधिकांशतः शृंगार रस का प्रयोग किया है । इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी कृतियों में गागर में सागर भर दिया है। उनकी लिखी हुई शृंगार रस कविता इस प्रकार है - 
तुम बिन हम का हो सजनी,
तुम बिन हम का
परुष समान पुरुष में तुमने,
भर दी अपनी कोमलता,
बेतरतीब पड़े जीवन में,
लाई तुम सुगढ सँरचना,
छोड्के निज घर बार,
सजाया, दूर नया सन्सार हो सजनी
तुम बिन हम का हो सजनी,
तुम बिन हम का।

बिहारी का शृंगार रस से परिपूर्ण एक और दोहा दृष्टव्य है -
"बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनु हँसे , दैन कहै , नटि जाय।।"
"कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सों बात॥"
"पतरा ही तिथी पाइये, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौई रहे, आनन-ओप उजास॥"
" अंग अंग नग जगमगत दीपसिखा सी देह।
दिया बुझाय ह्वै रहौ, बड़ो उजेरो गेह॥"
" तंत्रीनाद, कवित्त-रस, सरस राग, रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े , तिरे जे बूड़े सब अंग।।”

        मलौली धनघटा सन्त कबीर नगर निवासी भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी शृंगार रस के बड़े कवि थे। 52 छंदों की  "शृंगार बावनी"  इनकी रचना बताई जाती है। यह ब्रज भाषा में लिखा गया है। सभी मनहरन और घनाक्षरी छंद में लिखे गए हैं। एक छंद (डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' कृत 'बस्ती के छंदकार' भाग 1, पृष्ठ 13 के अनुसार ) द्रष्टव्य है - 
प्यारी सुकुमारी की बड़ाई मै कहां लौ करौ, रति तन कोटिन निकाई परयो हलके।
सुन्दर गुलाब कंज मंजुल सुपांखुरिन 
धोए पद कंजन में जात परे झलके।
कंच कुच भार को सम्हारि न सकत अंग,चौंकि चौंकि उठति सुरोज कंज दल के। 
ऐसी सुकुमारता दिनेश जी कहां लौ कहूं, गड़िजात पांव में बिछौना मखमल के।।
    इस छंद में अतिशयोक्ति बिहारी जी की नायिकाओं से भी बढ़कर है। दिनेश जी रईस परम्परा के कवि थे जहां रीतिशास्त्र के भरमीआचार्यों का सम्पर्क बड़ी सुगमता से उपलब्ध हो जाता रहा। यही कारण रहा है कि इनके अधिकांशतः छंद शृंगार की वल्लरी में भौतिक शृंगार की अभिव्यंजना तक सीमित रह सके।
      शृंगार बावनी की तरह शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। रतन बावनी (लगभग 1581ई. ) केशवदास की सबसे पहली रचना रही है। इसी से मिलता जुलता शृंगार मंजरी को केशव दास ने लिखा था। श्री नागरी देव जी ने श्रृंगार रस का पद इस प्रकार लिखा है - 
विहरत विपिन भरत रंग ढुरकी।
हरषि गुलाल उडाइ लाडिली, सम्पति कुसमाकरकी॥ 
कसुंभी सारी सोधें भीनी, ऊपर बंदन भुरकी।
चोली नील ललित अञ्चल चल, झलक उजागर उरकी॥ 
मृदुल सुहास तरल दृग कुंडल, मुख अलकावलि रुरकी।
श्रीनागरीदासि केलि सुख सनि रही, मैंन ललक नहिं मुरकी॥ 

         आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)




रीतिकालीन कवि श्री बलराम चतुर्वेदी (बस्ती के छंदकार संख्या 22)#आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


(साभार :शोध प्रबंध - "बस्ती के छंदकार" लेखक: आचार्य डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' )
          
       रीति कालीन परम्परा के सुकवि बलराम चतुर्वेदी श्रावण शुक्ल 5 संवत् 1922 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में बलराम चतुर्वेदी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । यहां मलौली हॉस्पिटल और कई अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बने हुए हैं। यहां पर नगर पंचायत का कार्यालय बन रहा है। 
बलराम चतुर्वेदी श्री रामगरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के गाँव में पैदा हुए थे। ये राम गरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के प्रपौत्र रहे हैं । इनके पिता का नाम बेनी दयाल चतुर्वेदी था। ये तीन भाई थे - घन श्याम, ईशदत्त और बेनीशंकर इनके छोटे भाई थे। इनके छंदों पर रीति कालीन परम्परा का प्रभाव था। फुटकर छंदों के अतिरिक्त हनुमान शतक इनका बहु चर्चित कृति थी। उन्होंने 111 छंदों में हनुमान जी की स्तुति की है। उनकी भाषा ओजपूर्ण ब्रज भाषा है। छंदों में लालित्य है और काव्य में ओज। सभी छंद भक्ति से परिपूर्ण थे,परन्तु पांडुलिपि गायब हो गई है। कवि बलराम चतुर्वेदी मृत्यु संवत् 1997 विक्रमी को हुई थी। 
                पंचमुखी हनुमान 
       जीवन में कभी-कभी ऐसी परेशानियां आ जाती हैं कि व्यक्ति बिल्कुल निराश हो जाता है। उसे समझ नहीं आता कि आखिर किस तरह से अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाया जाया। ज्योतिष के मुताबिक घर में हनुमान जी की पंचमुखी तस्वीर लगाने से घर पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आती है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनके स्मरण मात्र से हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी हनुमान के पांचों मुख का अलग-अलग महत्व है। इसमें भगवान के सारे मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का वानर मुख है जो दुश्मनों पर विजय दिलाता है।पश्चिम दिशा की तरफ भगवान का गरुड़ मुख है जो जीवन की रुकावटों और परेशानियों को खत्म करते हैं। उत्तर दिशा की ओर वराह मुख होता है जो प्रसिद्धि और शक्ति का कारक माना जाता है। दक्षिण दिशा की तरफ हनुमान जी का नृसिंह मुख जो जीवन से डर को दूर करता है।आकाश की दिशा की ओर भगवान का अश्व मुख है जो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। 
पंचमुखी हनुमान जी के विग्रह से संबंधित सुकवि बलराम चतुर्वेदी का एक छंद द्रष्टव्य है - 
पूरब बिकट मुख मरकट संहारे शत्रु 
दक्षिण नरसिंह जानें दानव वपुश को।
पश्चिम गरुण मुख सकल निवारै विष
उत्तर बाराह आनें सर्प दर्प सुख को। 
ऊर्ध्व हैग्रीव पर यंत्र मंत्र तन्त्रन को 
करत उच्चांट बलराम दीह दुख को।
बूत करतूत सुनि भागे जगदूत भूत 
बंदों सो सपूत पवन पूत पंच मुख को।।

        आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)




Friday, November 29, 2024

भज ले नारायण नारायण नारायण (भजन)

लख चौरासी, भोग के तूने, यह मानव तन पाया ll
रहा भटकता, माया में तूने, कभी न हरि गुण गाया,
भज ले, नारायण नारायण नारायण।।

वेद पुराण, भागवत गीता, आत्म ज्ञान सिखाए
रामायण जो, पढ़े हमेशा, राम ही राह दिखाए,
भज ले, नारायण नारायण नारायण।।

गज़ और ग्राह, लड़े जल भीतर, लड़त लड़त गज़ हारा
प्राणो पर जब, आन पड़ी तो, प्रेम से तुझे पुकारा,
भज ले, नारायण नारायण नारायण।।

कोई नहीं है, जग में तेरा, तूँ काहे भरमाए
प्रभु की शरण में, आजा बंदे, वही पार लगाए,
भज ले, नारायण नारायण नारायण
श्रीमन नारायण नारायण नारायण
श्रीमन नारायण नारायण नारायण।।

Thursday, November 21, 2024

भारत के 43 विश्व धरोहर स्मारक आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी


विश्व धरोहर सप्ताह हर साल 19 नवंबर से 25 नवंबर तक पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व विरासत स्थल ऐसे विशेष स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं; और यही समिति इन स्थलों की देखरेख युनेस्को के तत्वाधान में करती है।इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है।ये मुख्यतः स्कूल और कॉलेज के छात्रों द्वारा लोगों को सांस्कृतिक विरासत के महत्व और इसके संरक्षण के बारे में जागरुक करने के लिये मनाया जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से ऐतिहासिक भारत के ढांचे, भ्रमण स्थलों से और भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का पूरे भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के लिये आयोजित किये जाते हैं। 

भारत में विश्व धरोहर सप्ताह मनाने के प्रतीक:-

ऐसे कई भारतीय ऐतिहासिक धरोहर और भ्रमण स्थल हैं जो प्राचीन भारतीय लोगों की संस्कृति और परंपरा के प्रतीक है। भारत की ये विरासत और स्मारक प्राचीन सम्पति हैं इस संस्कृति और परंपरा की विरासत को आने वाली पीढ़ीयों को देने के लिये हमें सुरक्षित और संरक्षित करना चाहिये। भारत में लोग विश्व धरोहर सप्ताह के उत्सव के हिस्से के रूप में इन धरोहरों और स्मारकों के प्रतीकों द्वारा मनाते हैं विश्व धरोहर सप्ताह को मनाने के लिये स्कूलों और कॉलेजों के छात्र बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। स्कूल से छात्र संस्कार केन्द्र और शहर के संग्रहालय के निर्देशित पर्यटन में भाग लेते हैं।

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का प्रयोजन:-

विश्व धरोहर सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य देश की सांस्कृतिक धरोहरों और स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा के बारे में लोगों को प्रोत्साहित करनाऔरजागरूकता बढ़ाना है। प्राचीन भारतीय संस्कृति और परंपरा को जानने के लिए ये बहुत आवश्यक है कि अमूल्य विविधसांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक स्मारकों की रक्षा की जाये और उन्हें संरक्षित किया जाये।

भारत में 43 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

भारत, एक ऐसा देश है जिसमें कई रंग हैं, इसकी पहचान इसकी विविध संस्कृति, धर्म, कला और वास्तुकला से है। इसके अलावा, भारत के विशाल प्रायद्वीप में वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला है। इन स्मारकों के मूलतः दो श्रेणी हैं।एक सांस्कृतिक धरोहरों की श्रेणी जिसमें इस समय 35 स्मारक पंजीकृत हैं।दूसरा प्राकृतिक स्मारकों की श्रेणी जिसमें सात स्मारक पंजीकृत हैं। एक स्मारक कंचन जंघा राष्ट्रीय उद्यान को सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों श्रेणी में रखा जा सकता है।

भारत में सांस्कृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित सभी सांस्कृतिक विश्व धरोहर स्थल शामिल किए जाने के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध हैं:

1. ताज महल (1983)

यह एक सफ़ेद संगमरमर का स्मारक है जिसे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था। ताजमहल की बेमिसाल खूबसूरती ने इसे दुनिया के सात अजूबों में से एक बना दिया है।यह मकबरा मुगल, फारसी, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का एक अद्भुत मिश्रण है। इसमें ऊंची मीनारें, बड़े मेहराब के आकार के द्वार, सुंदर उद्यान, रत्न जड़ित दीवारें और देखने लायक कई अन्य अद्भुत चीजें हैं।

स्थान : धर्मपुरी, ताजगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:30 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 1,100/ व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 540/व्यक्ति।

2. आगरा किला (1983)

आगरा का किला, जिसे आगरा का लाल किला भी कहा जाता है, वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है। मुगल बादशाह अकबर ने 1573 में यमुना नदी के दाहिने किनारे पर इस किले का निर्माण करवाया था। बलुआ पत्थर से बना यह किला 1638 तक शाही निवास स्थान था।किला परिसर में कई शानदार संरचनात्मक उत्कृष्ट कृतियाँ भी हैं जैसे जहाँगीर महल, खास महल, दीवान-ए-खास, दीवान-ए- आम, शीश महल, नगीना मस्जिद, मोती मस्जिद, आदि।

स्थान: आगरा किला, रकाबगंज, आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ प्रति व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/ प्रति व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 90/व्यक्ति।

3. अजंता गुफाएँ (1983)

प्राचीन बौद्ध अजंता गुफाएँ भी भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल कुछ पहले स्थानों में से एक है। यह सुंदर नक्काशीदार स्मारकों, मूर्तियों, भित्तिचित्रों और चित्रों द्वारा चिह्नित है। यहाँ 31 गुफाएँ हैं जिनमें कई प्रतिष्ठित चैपल और मठ हैं। आप यहाँ चट्टानों पर बने आश्चर्यजनक डिज़ाइन, मूर्तियाँ और आकृतियाँ भी देख सकते हैं, साथ ही दीवारों पर भगवान बुद्ध के पिछले जन्मों और पुनर्जन्मों को दर्शाने वाली कई पेंटिंग भी हैं।

स्थान : जलगांव, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; सोमवार को बंद रहता है 

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 10/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

4. एलोरा गुफाएँ (1983)

एलोरा की गुफाओं में 600-700 ई. में निर्मित ऐतिहासिक स्मारकों की एक श्रृंखला है। परिसर में 100 से ज़्यादा गुफाएँ हैं, और इनमें से 34 तक पहुँचा जा सकता है।इन 34 गुफाओं में से 17 हिंदू धर्म, 12 बौद्ध धर्म और शेष 5 जैन धर्म से संबंधित हैं। ये सभी भारत की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाते हैं। आपको इस परिसर के अंदर बड़ी-बड़ी विजय मीनारें, हाथियों की मूर्तियाँ, मंदिर, मूर्तियां, पेंटिंग आदि देखने को मिलेंगी।

स्थान : एलोरा, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय:जून से मार्च। 

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; प्रत्येक मंगलवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

5. सूर्य मंदिर (1984)

सूर्य मंदिर, जिसे ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, एक शानदार कलिंग वास्तुकला और भारत में एक विश्व धरोहर स्थल है, जो पुरी से 35 किमी दूर स्थित है। इसे भगवान सूर्य के पत्थर से बने रथ के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसे सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। इसमें भगवान सूर्य की तीन मूर्तियाँ हैं, जिन्हें इस तरह से रखा गया है कि सुबह, दोपहर और शाम को सूर्य की किरणें सबसे पहले उन पर पड़ती हैं।

स्थान : कोणार्क, पुरी, ओडिशा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति । तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

6. महाबलीपुरम में स्मारक (1984)

पल्लव शासकों ने 7वीं-8वीं शताब्दी में कोरोमंडल तट के पास इन स्मारकों का निर्माण करवाया था। यहाँ लगभग 40 छोटे से लेकर बड़े स्मारक हैं, जिनमें मंडप, रॉक रिलीफ़, हिंदू मंदिर और रथ शामिल हैं। कई रॉक-कट स्मारकों में से, गंगा का अवतरण प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह एक खुली हवा में बना स्मारक है जो भारत की समृद्ध स्थापत्य शैली को दर्शाता है।

स्थान : मछुआरा कॉलोनी, महाबलीपुरम, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह के 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

7. गोवा के चर्च और कॉन्वेंट (1986)

आप इस साइट पर कई स्मारक देख सकते हैं जो भव्य पुर्तगाली मैनरिस्ट और बारोक वास्तुकला शैलियों को प्रदर्शित करते हैं। बेसिलिका डो बॉम जीसस, सेंट फ्रांसिस का चर्च और कॉन्वेंट, इग्रेजा डी साओ फ्रांसिस्को डी असिस, चर्च ऑफ अवर लेडी ऑफ द रोज़री और सेंट ऑगस्टीन का चर्च पुर्तगाली उपनिवेशों की इन भव्य राजसी कृतियों में से कुछ हैं।

स्थान : पुराना गोवा।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

परिचालन समय : सप्ताह के सातों दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : कोई शुल्क नहीं।

8. हम्पी में स्मारकों का समूह (1986)

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शक्ति- शाली विजयनगर साम्राज्य के अवशेष के रूप में 1,600 से अधिक संरचनाएं शामिल हैं। हम्पी में स्थित मंदिर, किले, हॉल, प्रवेश द्वार, संग्रहालय आदि आपको भारत की भव्य स्थापत्य शैली के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगे। इन प्रभावशाली स्मारकों में विट्ठल मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, हरिहर महल, हजारा राम मंदिर, रानी का स्नानघर, हम्पी बाज़ार, लोटस महल और संग्रहालय शामिल हैं।

स्थान : विजयनगर जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

परिचालन समय : मंदिर सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुले रहते हैं; तथापि, संग्रहालय सुबह 10 बजे से खुलते हैं।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

9. फतेहपुर सीकरी (1986)

सम्राट अकबर द्वारा निर्मित फतेहपुर सीकरी सबसे खूबसूरत इंडो-इस्लामिक कृतियों में से एक है और भारत में सबसे प्रमुख यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। सम्राट ने इस वास्तुकला को शेख सलीम चिश्ती, एक सूफी संत को श्रद्धांजलि के रूप में बनाने का आदेश दिया था। फतेहपुर सीकरी की लंबी दीवारों के भीतर, आपको पंच महल, सलीम चिश्ती का मकबरा, जामा मस्जिद, जोधाबाई का महल और बुलंद दरवाज़ा सहित अन्य उल्लेखनीय संरचनाएँ मिलेंगी।

स्थान : आगरा, उत्तर प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम ।6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 20/व्यक्ति।

10. खजुराहो स्मारक समूह (1986)

खजुराहो स्मारक समूह भारत की समृद्ध नागर शैली की वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियों को प्रदर्शित करता है। इसमें चंदेल वंश के शासनकाल के दौरान निर्मित कई प्राचीन हिंदू और जैन मंदिर हैं। वर्तमान में, आप 85 मंदिरों में से केवल 20 को ही देख सकते हैं, और बाकी समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं। इन मंदिरों और स्मारकों की पहचान दीवारों पर उकेरी गई कामुक मूर्तियों और मूर्तियों से भी है।

स्थान : छतरपुर, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक, सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति और बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति। संग्रहालयों का भ्रमण करने और शो देखने के लिए आपको अतिरिक्त भुगतान करना होगा।

11. पत्तदकल में स्मारकों का समूह (1987)

पट्टाडकल में आप नौ खूबसूरती से डिजाइन किए गए हिंदू मंदिर देख सकते हैं, जिनमें मल्लिकार्जुन मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, संगमेश्वर मंदिर, गलगनाथ मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, पापनाथ मंदिर आदि शामिल हैं। इस स्थल पर जैन नारायण मंदिर भी है। लगभग 7-8वीं शताब्दी में चालुक्य शासन के दौरान निर्मित, इन स्मारकों में द्रविड़, प्रसाद, विमान, नागर और रेखा शैलियों का बेहतरीन मिश्रण देखने को मिलता है।

स्थान : बागलकोट जिला, कर्नाटक।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

12. एलीफेंटा गुफाएं (1987)

प्राचीन एलीफेंटा गुफाएँ, जिन्हें घारापुरीची लेनी भी कहा जाता है, में गुफाओं की दो श्रृंखलाएँ हैं। इनमें से पाँच गुफाओं में चट्टानों को काटकर बनाई गई हिंदू मूर्तियाँ और मूर्तियाँ हैं, जबकि दो में 5वीं-8वीं शताब्दी में बनी बौद्ध वास्तुकला की झलक मिलती है। ये संरचनाएँ भारत में धार्मिक सहिष्णुता के गौरवशाली इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं।

स्थान : घारापुरी, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक, प्रत्येक सोमवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

13. महान जीवित चोल मंदिर (1987, 2004)

यह दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में फैले भगवान शिव को समर्पित तीन मंदिरों का संग्रह है। ये हैं दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर, गंगईकोंडा चोलपुरम में बृहदीश्वर मंदिर और तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर।चोल शासनकाल के दौरान भारत की शानदार वास्तुकला और कलात्मक उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए इन मंदिरों को 1987 में भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।

स्थान : तीनों मंदिरों के स्थान इस प्रकार हैं: 1.ऐरावतेश्वर मंदिर : दारासुरम, कुंभकोणम, तमिलनाडु ।

2.गंगईकोंडा चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर : जयनकोंडाम, तमिलनाडु । 

और 3.तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर : बालागणपति नगर, तमिलनाडु।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 8:30 बजे से रात 9:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

14. कुतुब मीनार और उसके स्मारक (1993)

कुतुब मीनार और इसके स्मारक 13वीं शताब्दी में निर्मित इस्लामी वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण हैं। यह लाल बलुआ पत्थर से बना एक टॉवर है, जिसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है। इस ऊंचे टॉवर के अलावा, पूरे परिसर में अन्य शानदार ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं, जिनमें अलाई-दरवाज़ा, कुव्वत उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई मीनार, लौह स्तंभ, अंत्येष्टि भवन आदि शामिल हैं।

स्थान : महरौली, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

15. हुमायूं का मकबरा (1993)

मुगल बादशाह हुमायूं की विधवा पत्नी बिगा बेगम ने अपने प्रिय पति की याद में प्रतिष्ठित फ़ारसी शैली का मकबरा बनवाया था। भारत में यह यूनेस्को विरासत स्थल सबसे अच्छी तरह से संरक्षित मुगल मकबरों में से एक है।इसके अलावा, मकबरे के परिसर में चार आकर्षक फ़ारसी शैली के बगीचे हैं। परिसर में अन्य शाही वंशजों की कब्रें भी हैं, जिनमें महारानी बीगा बेगम, दारा शिकोह, हमीदा बेगम और अन्य शामिल हैं।

स्थान : मथुरा रोड, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 30/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 30/व्यक्ति।

16. साँची में बौद्ध स्मारक (1989)

सांची के बौद्ध स्मारक सबसे पुराने पत्थर से बने स्थापत्यों में से एक हैं, जिनका निर्माण 200-100 ईसा पूर्व में हुआ था। वास्तव में, इस स्थल का केंद्र बिंदु, महान सांची स्तूप, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की एक संरचना है। इसमें 36 मीटर व्यास और 16 मीटर की ऊँचाई वाला एक बड़ा गुंबद है।इसके अलावा, आप इस परिसर में कई चट्टान-नक्काशीदार महल, मठ, मंदिर और अखंड स्तंभ देख सकते हैं। अपने उच्च धार्मिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को विरासत स्थलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

स्थान : सांची टाउन, रायसेन, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:30 बजे से शाम 6:30 बजे तक; सप्ताह में 7 दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 40 /व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 40/व्यक्ति।

17. भारत के पर्वतीय रेलवे (1999, 2005, 2008)

पर्वतीय रेलवे शानदार इंजीनियरिंग समाधान हैं जो भारत के पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्याओं को आसान बनाते हैं। इसके लिए, दार्जिलिंग रेलवे 1999 में भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला पहला पर्वतीय रेलवे बन गया। बाद में, यूनेस्को ने भी क्रमशः 2005 और 2008 में नीलगिरि और कालका-शिमला रेलवे को विरासत पर्वतीय रेलवे की सूची में मान्यता दी।

स्थान : यह दार्जिलिंग, नीलगिरि और कालका-शिमला रेलमार्ग पर उपलब्ध है।

अन्वेषण के लिए आदर्श समय : 

परिचालन के घंटे : स्टेशन हर समय खुले रहते हैं।

प्रवेश शुल्क : ट्रेन की सवारी करने के लिए आपको टिकट की बुकिंग कीमत चुकानी होगी और कीमत आपकी यात्रा की दूरी पर निर्भर करती है।

18. महाबोधि मंदिर परिसर (2002)

सम्राट अशोक ने बोधगया में इस बौद्ध मंदिर परिसर का निर्माण करवाया था, जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह बौद्धों के लिए पवित्र मंदिरों में से एक है। मंदिर परिसर में 5 हेक्टेयर क्षेत्र में कई धार्मिक संरचनाएँ हैं, जिनमें 50 मीटर ऊँचा वज्रासन, पूजनीय बोधि वृक्ष, कमल का तालाब और कई स्तूप शामिल हैं।

स्थान : बोधगया, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अप्रैल से मई और नवंबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 5:00 बजे से शाम 9:00 बजे तक; सप्ताह के हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

19. भीमबेटका के शैलाश्रय (2003)

भीमबेटका के शैलाश्रय भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस स्थल पर मेसोलिथिक युग के पाँच प्राकृतिक शैलाश्रय हैं। इन शैलाश्रयों की दीवारों पर, आप एशियाई पाषाण युग की कलाकृतियाँ और नक्काशी देख सकते हैं, जो उस काल के लोगों की जीवनशैली और गतिविधियों का एक मोटा चित्र प्रस्तुत करती हैं।

स्थान : रायसेन जिला, मध्य प्रदेश।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 7:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; सप्ताह में हर दिन खुलता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 25/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति।

20. चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क (2004)

भारत में स्थित इस यूनेस्को स्थल में पावागढ़ पहाड़ी से लेकर चंपानेर शहर तक फैले लम्बे क्षेत्र में फैले किलों और अन्य वास्तुकला की एक श्रृंखला मौजूद है।किलों के अलावा, इस स्थल पर किले, बावड़ियाँ, महल, मंदिर, मकबरे, मस्जिद, आवासीय परिसर और कृषि क्षेत्र जैसी वास्तुकला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। इसके अलावा, पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित कालिका माता मंदिर देश के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है।

स्थान : पंचमहल जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से फरवरी।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

21. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (2004)

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस एक ऐतिहासिक और व्यस्त रेलवे स्टेशन है जिसे इसकी बेजोड़ वास्तुकला सुंदरता के लिए भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। यह ब्रिटिशवास्तुकार फ्रेडरिक विलियम द्वारा डिजाइन की गई शानदार विक्टोरियन गोथिक वास्तुकला में से एक है। बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से निर्मित इस इमारत का बाहरी हिस्सा आकर्षक है। अंदर भी बेहतरीन इतालवी संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है।

स्थान: फोर्ट, मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : 24x7 खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

22. लाल किला परिसर दिल्ली (2007)

लाल किला या लाल किला, जिसे बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था, मुगल शाही परिवार के लिए प्रमुख आवासीय स्थान के रूप में कार्य करता था। यह एक राजसी लाल बलुआ पत्थर का किला महल है जो भारतीय, फ़ारसी और तैमूरिद वास्तुकला शैलियों का एक आदर्श मिश्रण प्रदर्शित करता है। आप इस परिसर के भीतर दीवान-ए-ख़ास, दीवान-ए-आम, लाहौरी गेट, दिल्ली गेट आदि जैसी अन्य ऐतिहासिक संरचनाएँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नेताजी सुभाष मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक।

प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 500/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

23. जंतर मंतर जयपुर (2010)

जंतर-मंतर विश्व की सबसे बड़ी खगोलीय वेधशालाओं में से एक है, जिसमें स्मार्ट उपकरण और संरचनाएं हैं। सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित यह वेधशाला इस तरह से बनाई गई है कि आप नंगी आँखों से आकाशीय पिंडों का अवलोकन कर सकते हैं। 19 बड़े खगोलीयउपकरणों के अलावा, इसमें दुनिया की सबसे बड़ी धूपघड़ी भी है। इस वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण इसे भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में स्थान मिला है।

स्थान : गंगोरी बाज़ार, जयपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 4:30 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 50/व्यक्ति।

24. राजस्थान के पहाड़ी किले (2013)

2013 में, यूनेस्को ने अरावली पर्वतमाला में छह राजसी पहाड़ी किलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। इनमें आमेर किला, चित्तौड़गढ़ किला, गागरोन किला, रणथंभौर किला, जैसलमेर किला और कुंभलगढ़ किला शामिल हैं। विभिन्न राजपूत शासकों ने अपनी सुरक्षा बढ़ाने और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए 5वीं-18वीं शताब्दी के दौरान इन किलों का निर्माण किया था।

स्थान : इन छह पहाड़ी किलों का स्थान निम्नलिखित है- 

1.आमेर किला : देवीसिंहपुरा, आमेर, जयपुर।

2.चित्तौड़गढ़ किला : चित्तौड़गढ़, राजस्थान।

3.गागरोन किला : झालावाड़, राजस्थान।

4.रणथंभौर किला : सवाई माधोपुर, राजस्थान।

5.जैसलमेर किला : गोपा चोक, किला कोठरी पारा रोड, जैसलमेर, राजस्थान।

6.कुम्भलगढ़ किला : राजसमंद जिला, कुम्भलगढ़, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय: अक्टूबर से मार्च।

परिचालन समय: इन छह पहाड़ी किलों के खुलने/बंद होने का समय इस प्रकार है- 

आमेर किला : सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक।

चित्तौड़गढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

गागरोन किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

रणथंभौर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

जैसलमेर किला : सुबह 6:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक।

कुंभलगढ़ किला : सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

प्रवेश शुल्क : इन छह पहाड़ी किलों के लिए प्रवेश शुल्क निम्नलिखित हैं- 

आमेर किला : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹500/ व्यक्ति।

चित्तौड़गढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹ 10/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹100/ व्यक्ति।

गागरोन किला : निःशुल्क।

रणथंभौर किला : वयस्कों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति और बच्चों के लिए ₹ 10/व्यक्ति।

जैसलमेर किला : भारतीयों के लिए 

₹50/व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹250/व्यक्ति।

कुंभलगढ़ किला : भारतीयों के लिए ₹10/ व्यक्ति और विदेशियों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति।

25. रानी-की-वाव (2014)

रानी की बावड़ी या रानी की वाव सरस्वती नदी के तट पर बनी एक मनमोहक भूमिगत वास्तुकला है। यह जल भंडारण प्रणाली के रूप में काम करती थी। यह एक बड़ी संरचना है जिसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई क्रमशः 64 मीटर, 20 मीटर और 27 मीटर है। इस उल्टे मंदिर जैसी बावड़ी की दीवारों पर भगवान विष्णु, अप्सराओं और योगिनियों सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं।

स्थान : पाटन, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 35/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 550/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 35/व्यक्ति।

26. नालंदा महाविहार (2016)

नालंदा महाविहार एक विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय था जो चीन, कोरिया, तिब्बत, मध्य एशिया आदि से विद्वानों को आकर्षित करता था। नालंदा महावीर के पुरातात्विक अवशेषों से पता चला है कि इसने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से शुरू होकर 800 से अधिक वर्षों तक शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन किया। वर्तमान में, आप यहां विहारों, स्तूपों, मंदिरों आदि के खंडहर देख सकते हैं जो इस प्राचीन शिक्षा केंद्र की शोभा बढ़ाते थे।

स्थान : नालंदा जिला, बिहार।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 15/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 15/व्यक्ति।

27. कैपिटल कॉम्प्लेक्स (ली कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य) चंडीगढ़ (2016)

ले कोर्बुसिए, एक कुशल वास्तुकार, ने दुनिया भर में कई शानदार आधुनिक भवन परिसरों का निर्माण किया है। यूनेस्को ने इन सभी को सामूहिक रूप से विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है।100 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर बना कैपिटल कॉम्प्लेक्स भारत में ऐसी ही एक ऐतिहासिक वास्तुकला रचना है। इस पूरे कॉम्प्लेक्स में 3 बड़ी इमारतें, एक शहीद स्मारक, एक ओपन-हैंड स्मारक, एक ज्यामितीय पहाड़ी, एक छाया का टॉवर और एक रॉक गार्डन है।

स्थान : सेक्टर 1, चंडीगढ़।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

28. ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद (2017)

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद, भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने वाला पहला भारतीय शहर है। इसकी सल्तनत वास्तुकला, मस्जिदें, हिंदू/जैन मंदिर, द्वार और दीवारें इसे सांस्कृतिक रूप से संपन्न शहर बनाती हैं। विभिन्न धर्मों की मस्जिदें और मंदिर भी इस शहर में धार्मिक सह-अस्तित्व के इतिहास को दर्शाते हैं।

स्थान : अहमदाबाद, गुजरात

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से फरवरी।

29. मुंबई के गॉथिक-विक्टोरियन और आर्ट-डेको एनसेंबल्स (2018)

इन इमारतों में कई आर्ट-डेको और नव-गॉथिक शैली में डिज़ाइन की गई सार्वजनिक इमारतें शामिल हैं। ये सभी इमारतें मुंबई के फोर्ट एरिया में ओवल मैदान के आसपास स्थित हैं।इस मैदान के पूर्वी हिस्से में आपको गोथिक वास्तुकला देखने को मिलेगी, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय, एलफिंस्टन कॉलेज और डेविड सैसून लाइब्रेरी शामिल हैं। दूसरी तरफ आर्ट-डेको वास्तुकला है, जिसमें विभिन्न आवासीय इमारतें शामिल हैं।

स्थान : मुंबई, महाराष्ट्र।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से मार्च।

30. जयपुर सिटी (2019)

जयपुर या गुलाबी शहर, अपने सांस्कृतिक महत्व और शाही विरासत के कारण भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल हो गया है। इस शहर का सार मुख्य रूप से इसकी राजसी वास्तुकला से भरा हुआ है जिसमें उल्लेखनीय हवेलियाँ, शाही स्थान और अम्बर किला, सिटी पैलेस, जंतर मंतर आदि जैसे किले शामिल हैं।

स्थान : राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

31. धोलावीरा (2021)

धोलावीरा प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का 5वां सबसे बड़ा हड़प्पा शहर है। धोलावीरा का विशाल 22 हेक्टेयर क्षेत्र शहरी बस्तियों के खंडहर ढांचों से घिरा हुआ है।धोलावीरा में मौजूद अवशेषों, जिनमें सड़कें, कुएं, प्रवेशद्वार आदि शामिल हैं, से आपको यह अंदाजा लग सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग किस तरह अपना जीवन व्यतीत करते थे।

स्थान : खादिरबेट, कच्छ जिला, गुजरात।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : ₹ 5/व्यक्ति

32. काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर (2021)

यह एक मनमोहक बलुआ पत्थर का मंदिर है जिसका निर्माण 1273 में काकतीय राजवंश के शासन के दौरान हुआ था। रुद्रेश्वर मंदिर वेसर स्थापत्य शैली में निर्मित एक अनुकरणीय संरचना है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर, आप 6 फीट लंबे आसन पर 9 फीट लंबा शिवलिंग रख सकते हैं।

स्थान : रामप्पा, मुलुगु, तेलंगाना।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मार्च।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : निःशुल्क।

33.शान्ति निकेतन 2023

शान्तिनिकेतन 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में देवेन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित एक आश्रम है। बाद में इसे विश्व-भारती विश्वविद्यालय के लिए विश्वविद्यालय कस्बे के रूप में विकसित किया गया। शांति निकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। शांति निकेतन में ही कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने विश्वभारती की स्थापना की थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले 12 वर्षों में इसे विकासित किया है और अब यह यूनेस्को की सूची में है।

34.होयसल मंदिर समूह कर्नाटक 2023

होसयल के पवित्र मंदिर समूह बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा में स्थित है। इस राजवंश को कला और साहित्य के संरक्षक माना जाता है। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI करता है। भगवान शिव को समर्पित होयसल मंदिर का निर्माण 1150 ईस्वी में होयसल राजा द्वारा काले शिष्ट पत्थर से बनवाया गया था।ये मंदिर न केवल वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं, बल्कि होयसल राजवंश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के भंडार भी हैं। होयसल पेंटिंग को कभी-कभी हाइब्रिड या वेसर भी कहा जाता है क्योंकि उनकी असाधारण शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ और न ही नागा है, बल्कि कहीं भी बीच की दिखती है। होयसल वास्तुकला मध्य भारत में प्रचलित भूमिजा शैली, उत्तरी एवं पश्चिमी भारत की साझी और कल्याणीचालुक्यों द्वारा चुनी गई कर्नाटक द्रविड़ शैली के विशिष्ट मिश्रण के लिए जानी जाती है। इसमें कई मंदिर हैं जो एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में हैं और एक जटिल डिजाइन वाले तार के आकार में बनाए गए हैं। ये सोपस्टोन से बने हैं जो परम प्राकृतिक पत्थर हैं, कलाकारों को कलाकृतियों से तराशने में निपुण थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिरों की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

35.असम का चराईदेव मोईदाम’ 2024

असम के मोइदम्स को सांस्कृतिक श्रेणी का यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ है। लगभग सात सौ साल पुराने मोइदाम ईंट, पत्थर के खोखले तहखाना हैं और इनमें राजाओं और राजघरानों के अवशेष हैं। चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ई. तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की। उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव था, जहाँ ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी। यह पवित्र स्थल, जिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता है, ऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किये गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे। सदियों से, चराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा है, जहाँ ताई-अहोम राज- घरानों की दिवंगत आत्माएँ परलोक में चली जाती थीं। ताई-अहोम के राजा दिव्य थे, जिसके कारण एक अनूठी अंत्येष्टि परंपरा की स्थापना हुई।राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने के लिए मोईदाम या गुंबददार टीलों का निर्माण की परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया गया और समय के साथ वास्तुकला की तकनीकें विकसित होती रही। शाही दाह संस्कार से जुड़ी रस्में बहुत भव्यता के साथ आयोजित की जाती थीं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती थीं। प्रत्येक गुंबददार कक्ष के बीचों बीच एक उठा हुआ भाग है, जहाँ शव को रखा जाता था। मृतक द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुएं, जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी, हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार, वस्त्र (केवल लुक-खा-खुन कबीले से) को उनके राजा के साथ दफनाया दिया जाता था।मोईदाम में विशेष गुंबददार कक्ष होता है, जो प्रायः दो मंजिला होते हैं, जिन तक मेहराबदार मार्गों से पहुंचा जा सकता है। कक्षों में बीच में उभरे स्थान बने हुए थे, जहाँ मृतकों को उनके शाही चिह्नों, हथियारों और निजी सामानों के साथ दफनाया जाता था। इन टीलों के निर्माण में ईंटों, मिट्टी और वनस्पतियों की परतों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यहां का परिदृश्य सुन्दर पहाड़ियों में बदल गया।

भारत में प्राकृतिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

निम्नलिखित स्थल भारत के यूनेस्को विरासत स्थलों में उनकी प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरणीय महत्व के आधार पर सूचीबद्ध हैं, जिन्हें समावेशन के वर्ष के अनुसार क्रमबद्ध किया गया है:- 

36. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (1985)

ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर स्थित काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक समृद्ध प्राकृतिक स्थल है जो 430 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस राष्ट्रीय उद्यान में विविध वनस्पतियाँ, जीव-जंतु, जंगल, नदियाँ, झीलें आदि हैं।यहाँ का एक सींग वाला गैंडा यहाँ का एक विशेष आकर्षण है जो दुनिया भर से पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा, आप यहाँ बाघ, दलदली हिरण, हाथी, भैंस, ऊदबिलाव, गंगा डॉल्फ़िन आदि के साथ-साथ पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ भी देख सकते हैं।

स्थान : नागांव और गोलाघाट जिले, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य के घंटे : 24 घंटे।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 100/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 650/व्यक्ति तथा बिम्सटेक और सार्क देशों के पर्यटकों के लिए ₹ 100/व्यक्ति।

37. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (1985)

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान एक पक्षी-दर्शन स्थल है जिसने भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में अपना स्थान बनाया है। आप यहाँ 350 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, 380 विभिन्न प्रकार के पौधे और विभिन्न प्रकार की मछलियाँ और स्तनधारी देख सकते हैं। सर्दियों के दौरान, यह क्षेत्र अफ़गानिस्तान, सर्बिया, चीन और अन्य पड़ोसी देशों से प्रवासी पक्षियों का स्वागत करता है।

स्थान : भरतपुर, राजस्थान।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अगस्त से फरवरी।

परिचालन समय : गर्मियों में यह सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है, और सर्दियों में यह क्रमशः सुबह 6:30 बजे और शाम 5:00 बजे खुलता और बंद होता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 250/व्यक्ति।

38. मानस वन्यजीव अभयारण्य (1985)

यह हिमालय की तलहटी में स्थित भारत का एक प्रतिष्ठित वन्यजीव अभयारण्य और बायोस्फीयर रिजर्व है। हरे-भरे जंगल के बीच, आप एक सींग वाले गैंडे, भौंकने वाले हिरण, छत वाले कछुए, तेंदुए आदि जैसे जानवर पा सकते हैं। यहाँ पिग्मी हॉग, असम छत वाला कछुआ, गोल्डन लंगूर, हिस्पिड हरे और लाल पांडा जैसे कई स्थानिक जानवर भी हैं।

स्थान : बरंगाबारी ग्याति, बक्सा जिला, असम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : नवंबर से अप्रैल।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : आधे दिन की यात्रा के लिए, भारतीयों और विदेशियों को क्रमशः ₹ 50/व्यक्ति और ₹ 500/व्यक्ति का भुगतान करना होगा; और पूरे दिन की यात्रा के लिए, टिकट की कीमतें क्रमशः ₹ 200/व्यक्ति और ₹ 2000/व्यक्ति हैं।

39. सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (1987)

सुंदरबन में बड़े मैंग्रोव वन और दलदली भूमि शामिल हैं, जहाँ कई जानवर और 170 से ज़्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के प्रमुख आकर्षणों में से एक प्रतिष्ठित रॉयल बंगाल टाइगर है, जो भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसके अलावा, आप यहां खारे पानी के मगरमच्छ, चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, गंगा डॉल्फिन, राजा केकड़े और उड़ने वाली लोमड़ियों जैसे जानवर देख सकते हैं।

स्थान : दक्षिण 24 परगना जिला, पश्चिम बंगाल।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

परिचालन के घंटे : इस राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों के लिए परिचालन के घंटे निम्नानुसार हैं:

सोमवार से शुक्रवार : सुबह 8:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

शनिवार : सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक।

रविवार : बंद रहेगा।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 60/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/ व्यक्ति।

40. नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1988, 2005)

630 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने मनमोहक जंगल और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। आप यहाँ रंग-बिरंगी तितलियाँ, पेड़-पौधे और फूल सहित कुछ अनोखे वनस्पति और जीव-जंतु देख सकते हैं।

इसके अलावा, 87 वर्ग किलोमीटर चौड़ी फूलों की घाटी आपको डेज़ी, ऑर्किड आदि जैसे खिलते अल्पाइन फूलों के मनोरम दृश्य दिखा सकती है।

स्थान : चमोली जिला, उत्तराखंड।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मई से अक्टूबर।

कार्य समय : सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : इन पार्कों के लिए प्रवेश शुल्क इस प्रकार हैं:

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 150/व्यक्ति।

फूलों की घाटी : भारतीयों के लिए ₹ 150/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 600/व्यक्ति।

41. पश्चिमी घाट (2012)

पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला में कई आरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य हैं। लगभग 1,60,000 वर्ग किलोमीटर के बड़े क्षेत्र में, पश्चिमी घाट एक जैव विविधता हॉटस्पॉट भी है, जिसमें स्तनधारियों, उभयचरों, पक्षियों, कीड़ों, मछलियों, फूल और गैर-फूल वाले पौधों आदि की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसमें वनस्पतियों और जीवों की 320 से अधिक लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी हैं।

स्थान : केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : अक्टूबर से मार्च।

42. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (2014)

लगभग 1171 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ और जीव-जंतु हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान के अल्पाइन घास के मैदानों में आपको 30 से ज़्यादा विभिन्न प्रजाति के जानवर, 375 तरह की वनस्पतियाँ और 180 तरह के पक्षी देखने को मिलेंगे।दुर्लभ जानवरों में कस्तूरी मृग, हिमालयी भूरा भालू, नीली भेड़, हिम तेंदुआ और हिमालयी ताहर आदि कुछ ही हैं।

स्थान : शमशी, हिमाचल प्रदेश,।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : मार्च से नवंबर तक।

कार्य समय : सुबह 10:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक; प्रतिदिन खुला रहता है

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 50/व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 200/व्यक्ति; भारतीय और विदेशी छात्र क्रमशः ₹ 30/व्यक्ति और ₹ 100/व्यक्ति की दर से प्रवेश टिकट ले सकते हैं।

भारत में मिश्रित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का एकमात्र मिश्रित यूनेस्को विरासत स्थल है। इस जगह के बारे में आपको जो कुछ भी जानना चाहिए, वह यहाँ है:

43. कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (2016)

यह भारत का एक उच्च ऊंचाई वाला राष्ट्रीय उद्यान है, जो हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के ऊबड़-खाबड़ भूभाग में स्थित है। इसके अलावा, कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान दुर्लभ वनस्पतियों और जीवों के निवास स्थान के रूप में लोकप्रिय है। इस पार्क में पाए जाने वाले विभिन्न जानवरों में सुस्त भालू, तेंदुआ, लाल पांडा, कस्तूरी मृग, हिमालयी नीली भेड़, रसेल वाइपर, हरा कबूतर, हिम कबूतर आदि बहुत लोकप्रिय हैं। लगभग 550 पक्षी प्रजातियों के साथ, यह पक्षी-दर्शन के लिए एक स्वर्ग के रूप में भी कार्य करता है।

स्थान : साक्योंग, उत्तरी सिक्किम।

भ्रमण के लिए आदर्श समय : सितम्बर से मध्य अक्टूबर; मार्च से मई।

कार्य समय : सुबह 6:00 बजे से शाम । 5:00 बजे तक; रविवार को छोड़कर हर दिन खुला रहता है।

प्रवेश शुल्क : भारतीयों के लिए ₹ 350/ व्यक्ति, विदेशियों के लिए ₹ 560/ व्यक्ति; भारतीय छात्र ₹ 80/व्यक्ति पर टिकट बुक कर सकते हैं।

        आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321; वॉर्ड्सऐप नम्बर +919412300183)





  


      

Friday, November 15, 2024

विश्व के प्रमुख अक्षरधाम मंदिर :: आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


हिंदू-सनातन धर्म के संस्कार और परंपराएं 

हिंदू या सनातन धर्म से उत्पन्नित अनेक पंथ संप्रदाय, परंपराएं, आंदोलन और संप्रदाय हिंदू धर्म के भीतर फल फूल रहे हैं। यह धर्म एक या एक से अधिक देवी-देवताओं पर केंद्रित परंपराएं और उप-परंपराएं भी रखता है। हिंदू धर्म की सभी विचारधारा या संप्रदाय वेद से निकले हुए हैं। वेदों में ईश्वर, परमेश्वर या ब्रह्म को ही सर्वोच्च शक्ति माना गया है। सदाशिव, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, काली आदि सभी उस सर्वोच्च शक्ति का ही ध्यान करते हैं। सभी संप्रदाय मूल में उसी सर्वोच्च शक्ति के बारे में बताते हैं। 33 कोटि के विशाल देवी-देवताओं वाले अद्भुत देश भारत में सनातन धर्म से उत्पन्न अनेक पंथ और सम्प्रदाय पुष्पित और पल्लवित हो रहे हैं। कुछ तो सनातन परम्परा के पोषक हैं तो कुछ सनातन के के शाश्वत मूल्यों का उपहास करते हुए और उन्हीं की उर्वरा शक्तियों का दोहन करते हुए अपना अलग ही भूमंडल बनाने और अपने पंथ और सम्प्रदाय को श्रेष्ठ बनाने में लगे हुए हैं। इनका दायरा एक देश से होते हुए अखिल ब्रह्मांड के देशों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा हुआ है।   इनके नाम इस प्रकार हैं - दत्तात्रेय संप्रदाय, सौर संप्रदाय, पांचरात्र मत, वैरागी, दास, रामानंद-रामावत संप्रदाय, वल्लभाचार्य का रुद्र या पुष्टिमार्ग, निम्बार्काचार्य का सनक संप्रदाय, आनंदतीर्थ का ब्रह्मा संप्रदाय, माध्व, राधावल्लभ, सखी सम्प्रदाय, चैतन्य गौड़ीय, वैखानस संप्रदाय, रामसनेही संप्रदाय, कामड़िया पंथ, नामदेव का वारकरी संप्रदाय, पंचसखा संप्रदाय, राम सखा सम्प्रदाय, अंकधारी, तेन्कलै, वडकलै, प्रणामी संप्रदाय अथवा परिणामी संप्रदाय, दामोदरिया, निजानंद संप्रदाय- कृष्ण प्रणामी संप्रदाय, उद्धव संप्रदाय- स्वामीनारायण, एक शरण समाज, श्रीसंप्रदाय, मणिपुरी वैष्णव, प्रार्थना समाज, रामानुज का श्रीवैष्णव, रामदास का परमार्थ निकेतन आदि।

स्वामीनारायण सम्प्रदाय

भारतीय संस्कृति से प्रेरित उनकी सुंदर वास्तुकला के लिए स्वामीनारायण अक्षरधाम के हिंदू मंदिरों के बारे में हम सभी जानते हैं। ये मंदिर पूजा के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध हैं। ये मंदिर देवताओं की सुंदर मूर्तियों, प्रार्थना कक्षों, शाकाहारी रसोई, हरे-भरे बगीचों और आध्यात्मिकता पर प्रौद्योगिकी से लैस डिजिटल शो के साथ विशाल परिसर वाले होते हैं।

     स्वामी नारायण सम्प्रदाय 18वीं सदी के योगी स्वामीनारायण को समर्पित पूर्व उल्लिखित प्रकार का एक पंथ हैं। जो वैष्णव धर्म के भगवान श्रीविष्णु,श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्रों लीलाओं और परंपराओं का अनुकरण करते हुए अपना अलग औरा बनाने में लगा हुआ है। अन्य मतावलंबियों की भांति स्वामी नारायण की शिक्षाओं का आज भी देश के अधिकांश हिस्सों में पालन किया जाता है। स्वामीनारायण उद्धव सम्प्रदाय के गुरु स्वामी रामानंद के शिष्य थे और उनकी शिक्षाओं से बहुत प्रभावित होकर उन्होंने अपने पृथक सिद्धांतों की स्थापना की। उन्होंने अपने गुरु स्वामी रामानंद की शिक्षाओं पर स्वामीनारायण संप्रदाय की नींव रखी। उनके अनुयायी मानते हैं कि मोक्ष के बाद उनकी आत्मा अक्षरधाम जाती है। उन्होंने प्रारंभ में तो केवल 6 मंदिरों का निर्माण कराया और उनकी शिक्षाओं पर शिक्षापत्री नामक पुस्तक लिखी। उनका योगदान मुख्यतः इस प्रकार रहा - 

(1) शिक्षा और सती प्रथा के उन्मूलन सहित महिलाओं के अधिकारों की वकालत की।

(2) अनुसूचित जाति की महिलाओं का उत्थान।

(3) गरीबों के लिए खुले आश्रय गृह।

(4) जाति व्यवस्था का पूरी तरह से विरोध किया।

(5) यज्ञ समारोहों के दौरान पशु बलि का विरोध किया।

(6) समाज में शांति लाने का प्रयास किया।

उत्तराधिकार की दो विचारधाराएं :- 

इस पंथ में बाद में दो विचारधाराएं विकसित हुई। एक में संस्थापक आचार्य ने इस पंथ की सारी गतिविधियों क्रिया- कलापों और स्वामित्व को अपने उत्तरजीवी वंशधरों के आधीन किया , तो दूसरी विचारधारा गुरु-शिष्य की पुरातन भारतीय परम्परा का अनुसरण किया। दोनो आर्थिक और वैचारिक रूप में काफी विकसित हो गए हैं। 

अक्षरधाम” किन्हीं मामलों में प्रथम वंशीय कुलीन परम्परा से आगे बढ़ गई। फलस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में "देवताओं के निवास" या अनेक अक्षरधाम मंदिरों का निर्माण किया गया। भारत देश में अक्षरधाम मंदिर बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) का हिस्सा रहे हैं। अक्षरधाम मंदिर का प्रबंधन स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा किया जाता रहा है। अक्षरधाम मंदिर की बनावट बहुत ही भव्य होती है। मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ होती है।


महंत स्वामी महाराज काअतुल्य प्रयास  

1933 में गुजरात के आनंद से आए एक गुजराती परिवार जबलपुर के रसल चौक में रहने लगा था। इसी परिवार में विनु भाई नाम के एक बच्चे का जन्म हुआ था। विनु भाई की शुरूआती शिक्षा-दीक्षा जबलपुर के क्राइस्टचर्च स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से हुई थी।अध्यात्म में गहरी रुचि रखने वाले विनु भाई का मन ज्यादा दिनों तक स्कूल में नहीं लगा और वे स्वामीनारायण संस्था के साथ जुड़ गए थे। उन्होंने संन्यास ले लिया। उनका नाम महंत स्वामी महाराज रखा गया। वे इस स्वामी नारायण  परम्परा के छठे और वर्तमान आध्यात्मिक गुरु हैं। उनके नेतृत्व में अक्षरधाम मंदिरों का विस्तार भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हुआ है।

विश्व भर में 1,100 अक्षरधाम मंदिर

इस समय पूरे विश्वभर में लगभग 1,100 अक्षरधाम मंदिर हैं। अक्षरधाम मंदिर, स्वामीनारायण के लिए समर्पित हैं, जिन्हें भक्तों द्वारा भगवान कृष्ण का अवतार माना गया है। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि मंदिर के परिसर में कक्षाएं, प्रदर्शनी केंद्र और बच्चों के लिए खेल के मैदान आदि भी बनाए गए हैं। अतः यह मंदिर केवल धार्मिक कार्यों तक ही सीमित नहीं रह गया है। लंदन, शिकागो, अटलांटा सिडनी, ऑकलैंड, नैरोबी, टोरंटो, लॉस एंजेलिस और अबू धाबी जैसे मुस्लिम देश में भी अक्षरधाम के बड़े- बड़े मंदिर बनते जा रहे हैं।  

भारत और विश्व के प्रमुख अक्षरधाम मंदिर :- 

इनमें से 12 मंदिरों का निर्माण भगवान स्वामीनारायण को समर्पित भारत देश में किया गया था। दो विदेशों में स्थित अक्षर धाम मन्दिर का विवरण उपलब्ध है।

ये 14 मंदिर निम्नवत हैं-

1.गांधीनगर  का अक्षरधाम मंदिर

इस अक्षरधाम मंदिर समारोह की आधारशिला 14 दिसंबर 1979 को प्रधान स्वामी ने रखी थी और मंदिर की नींव 1981में बनकर तैयार हुई। स्वामीनारायण अक्षरधाम गुजरात राज्य की राजधानी गांधीनगर में स्थित है। यह योगीजी महाराज द्वारा स्वामीनारायण के चौथे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी और प्रधान स्वामी महाराज द्वारा निर्मित एक बड़ा हिंदू मंदिर परिसर है। स्वामीनारायण हिंदू धर्म के बीएपीएस संप्रदाय के अनुसार स्वामीनारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी हैं । यह परिसर 13 वर्षों में बनाया गया था और यह स्वामीनारायण और उनके जीवन और शिक्षाओं के लिए एक श्रद्धांजलि है। 23 एकड़ के परिसर में केंद्र में अक्षरधाम मंदिर है, जो राजस्थान के 6,000 मीट्रिकटन गुलाबी बलुआ पत्थर से बनाया गया है। गुजरात के गांधीनगर में स्थित अक्षरधाम मंदिर, स्वामीनारायण सम्प्रदाय द्वारा बनाया गया है। यह सबसे बड़ा अक्षरधाम मंदिर है।

2.दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर

भारत के सबसे प्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिरों में से एक है. यह मंदिर, नोएडा की सीमा के पास है. यह मंदिर, पारंपरिक और आधुनिक हिंदू संस्कृति, आध्यात्मिकता, और वास्तुकला को दर्शाता है। यह मन्दिर एक अनोखा सांस्कृतिक तीर्थ है। इसे ज्योतिर्धर भगवान स्वामिनारायण की पुण्य स्मृति में बनवाया गया है। इसके मुख्य देव भगवान स्वामीनारायण है। यह परिसर 100 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। दुनिया का सबसे विशाल हिंदू मन्दिर परिसर होने के नाते 26 दिसम्बर 2007 को यह गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स में शामिल किया गया है।

3. जयपुर में अक्षरधाम मंदिर 

स्वामीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाने वाला, राजस्थान के जयपुर में स्थित अक्षरधाम मंदिर भगवान नारायण या भगवान विष्णु को समर्पित है और अपनी शानदार वास्तुकला और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। हालाँकि इसका निर्माण अपेक्षाकृत हाल ही में हुआ है, लेकिन यहाँ के बगीचे और नज़ारे पर्यटकों और भक्तों को यहाँ आकर्षित करते हैं। यह हिंदू संस्कृति और क्षेत्र में इसके विकास की झलक प्रदान करता है। परिसर में एक शानदार मंदिर है जो अच्छी तरह से बनाए गए भू-भाग वाले बगीचों से घिरा हुआ है। जयपुर शहर के केंद्र में स्थित, अक्षरधाम मंदिर इस क्षेत्र के सबसे पवित्र और सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण बोचासनवासी श्री अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण द्वारा संस्था, स्वामीनारायण संप्रदाय के तहत किया गया था। जयपुर का अक्षरधाम मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जबकि अन्य मंदिर अन्य हिंदू देवताओं को समर्पित हैं लेकिन सभी मंदिरों को संबंधित क्षेत्रों में अक्षरधाम मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर या स्वामीनारायण अक्षरधाम के रूप में जाना जाता है। जयपुर में अक्षरधाम मंदिर कोई प्राचीन मंदिर नहीं है और इसे 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत के बीच बनाया गया था। यह पूजा स्थल नर नारायण देव गादी के अंतर्गत आता है जो संप्रदाय बनाने वाली दो आवश्यक सीटों में से एक है। मुख्यालय अहमदाबाद (श्री स्वामीनारायण मंदिर) में स्थित है। 

4.महाराष्ट्र के पुणे में अक्षरधाम मंदिर 

BAPS स्वामी नारायण मंदिर का पुणे में एक सुखद स्थान है। यह घाटी में बंगलौर-मुंबई राजमार्ग की ओर स्थित है, जो शांतिपूर्ण पहाड़ियों से घिरा हुआ है। मंदिर बहुत बड़ा है और इसमें ज़्यादातर हिंदू देवी-देवता स्थापित हैं। यहाँ आपको स्वामी नारायण की संस्कृति की खूबसूरती देखने को मिलेगी। इसे स्वामीनारायण संस्था के संतों के आशीर्वाद और धूमधाम से खोला गया था। जयपुर, राजस्थान से गुलाबी पत्थर से बनी खूबसूरत वास्तुकला और नक्काशी देखने के लिए यहाँ ज़रूर जाएँ। इसमें 2 मंज़िलें हैं, ऊपरी मंज़िल पर स्वामी नारायण भगवान की प्रतिमा है और निचली मंज़िल पर नीलकंठ वर्णी है जहाँ कोई अभिषेक कर सकता है। हरे-भरे बगीचों के साथ खूबसूरती से तैयार किया गया संगमरमर का मंदिर अपनी खूबसूरती से चार चाँद लगाता है। परिसर में कई छतरियाँ (मंडप) हैं और दर्शन के बाद यहाँ कुछ जगहें हैं जहाँ आराम किया जा सकता है।यह बहुत बड़े क्षेत्र में बना है और भारत में बेहतरीन वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा है और शाम को हर कुछ मिनट के बाद रंग बदलते रहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिसर में पर्याप्त पार्किंग स्थान है। शौचालय और पीने के पानी की बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं। खेलने के विकल्पों के साथ एक किड्स ज़ोन है। यह वरिष्ठ नागरिकों के अनुकूल है। व्हीलचेयर किराए पर उपलब्ध हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक लिफ्ट भी है, ताकि वे पहली मंजिल पर भी दर्शन कर सकें। यहाँ एक फ़ूड कोर्ट भी है जहाँ आइसक्रीम, सैंडविच, स्नैक्स और जूस जैसे कई तरह के खाद्य पदार्थ मिलते हैं।

5. सिकंदराबाद में अक्षरधाम  1-35-560, भेल कॉलोनी रोड,आनंद टॉकीज के पीछे, अर्जुन नगर, रसूलपुरा, सिकंदराबाद, तेलंगाना में बहुत अच्छा और बड़ा स्वामी नारायण मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में परम ब्रह्म भगवान श्री स्वामी नारायण और अक्षर ब्रह्म श्री गुनातितानन्द स्वामी और श्री घनश्याम महाराज की मूर्तियां स्थापित है। यहां शौचालय और जूता स्टैंड निःशुल्क उपलब्ध है। आप कैमरा और मोबाइल फोन के साथ जा सकते हैं। परिवार के सदस्यों और बच्चों के लिए बहुत आकर्षक और साफ़ सुथरी जगह है ।यह विमान नगर सिकंदराबाद के पास स्थित है। यहां का सबसे साफ-सुथरा मेट्रो स्टेशन स्वर्ग के समान है।

6. कोलकाता अक्षरधाम मंदिर 

बीपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर,भासा 14 नंबर, डायमंड हार्बर रोड, जिला 24 परगना(दक्षिण),कोलकाता,पश्चिमबंगाल में  स्थित है। मंदिर का निर्माण और रखरखाव स्वामीनारायण ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। यह नई दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर की एक प्रतिकृति है। परिसर बहुत बड़ा है। एक बड़ा बगीचा है। फव्वारों के साथ साथ मंदिर के अंदर का वातावरण बहुत शांतिपूर्ण है। मुख्य गर्भगृह दो मंजिल ऊंचा है। मंदिर संगमरमर, बलुआ पत्थर और लाल पत्थर से बना हुआ है। ऊपरी मंजिल में विभिन्न देवताओं की मूर्तियाँ हैं,जबकि निचले स्तर पर स्वामीनारायण की एक सोने की मूर्ति है जिसे कांच के कक्ष में रखा गया है। इस हिस्से में जाने के लिए श्रद्धालुओं को 50 रुपये प्रवेश शुल्क के रूप में खर्च करने होते हैं। परिसर के अंदर एक विशाल पार्किंग स्थान है। प्रेमवती नामक एक बड़ा फूड कोर्ट है जहाँ बहुत मामूली शुल्क पर भोजन उपलब्ध रहता है। साथ ही एक स्टोर भी है जहाँ कुछ उपहार और कॉस्मेटिक आइटम उपलब्ध हैं।

7. इंदौर अक्षर धाम मन्दिर

यह मंदिर खंडवा रोड निकट आई ई टी ब्लॉक दाव तक्षशिला परिसर इंदौर में स्थित है। इस मंदिर में परमब्रह्म भगवान श्री स्वामीनारायण और अक्षरब्रह्म श्री गुणातीतानंद स्वामी, भगवान श्री कृष्ण और श्री राधाजी, श्री गुरु परम्परा की मूर्तियां इसकी प्रमुख मूर्तियां हैं। यह स्वामीनारायण सम्प्रदाय में माननेवाले लोगो के लिए हिन्दू धर्मस्थल है । यह स्वछ सुंदर मंदिर है। यहाँ पर प्रभु हनुमान और गणपति बप्पा की भी भव्य मूर्तियां बनी हुई हैं। इस मन्दिर को विशेषताएं :- 

1. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड  में दर्ज , विश्व के सबसे बड़े व्यापक हिंदू मंदिर के रूप में अक्षरधाम के लिए रिकॉर्ड प्रस्तुत किया गया था।

2. पवित्र झील के किनारे 108 गौमुख (गायों के चेहरे) हैं, जो 108 हिंदू देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।

3. प्रेमवती आहारगृह या प्रेमवती फूड कोर्ट में परिसर के चारों ओर घूमने के बाद श्रद्धालु अपनी भूख को संतुष्ट करने में सक्षम होता है। यहां महाराष्ट्र की अजंता और एलोरा गुफाओं और एक आयुर्वेदिक बाजार पर आधारित एक शाकाहारी रेस्तरां है।

8.अक्षरधाम मन्दिर ,नागपुर

स्वामीनारायण मंदिर या अक्षरधाम मंदिर नागपुर में रिंग रोड पर स्थित है। नवनिर्मित मंदिर में एक विशाल रसोई, पार्किंग, एक रेस्तरां और बच्चों के खेलने का क्षेत्र है। इसकी प्रभावशाली रोशनी और सजावट के कारण शाम 4 बजे के बाद मंदिर में जाने की सलाह दी जाती है। मंदिर दो मंजिलों में फैला हुआ है और इसकी वास्तुकला अद्भुत है। इस विशाल मंदिर में बच्चों के लिए एक बड़ा रसोईघर, एक रेस्तरां और खेलने की जगह है। इसकी आकर्षक वास्तुकला रात में प्रभावशाली प्रकाश व्यवस्था के साथ जीवंत हो उठती है। 

 9. अक्षर धाम मन्दिर बंगलौर 

यह 33/24 द्वितीय मेन रोड, कॉर्ड रोड, वीरबाई भवन के सामने तथा बी ए पी एस स्वामी नारायण मंदिर के पीछे, राजाजी नगर इंडस्ट्रियल टाऊन राजाजी नगर बेंगलूर कर्नाटक में स्थित है। 2003 में, परम पूज्य प्रमुख स्वामी महाराज ने बेंगलुरु में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर की प्रतिष्ठा की थी । पास में उच्चकोटि का यात्री निवास और स्वामीनारायण जी का मंदिर भी स्थित है।

10.अक्षरधाम मन्दिर विशाखापटनम 

आंध्र प्रदेश के बंदरगाह शहर विशाखा पत्तनम में प्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर बना हुआ है। अक्षरधाम मंदिर अपनी भव्यता और अद्भुत वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। पोर्ट सिटी के बाहरी इलाके में आध्यात्मिक रूप से उपासना करने के लिए मंदिर स्थापित किया है। इस कदम का उद्देश्य राज्य में मंदिर पर्यटन को अगले स्तर तक प्पहुंचाना है।

11.बनारस का अक्षरधाम मंदिर

यह अक्षर धाम मन्दिर वाराणसी के गाय घाट रोड, ओवरहेड टैंक के पास, मछोदरी, घासी टोला, वाराणसी में स्थित है। यह हिंदू धर्म के भगवान स्वामी नारायण को समर्पित है। यह वर्तमान समय का एक सुंदर वास्तुशिल्प नमूना है। यह हिंदू धर्म के भगवान स्वामी नारायण को समर्पित है। इसे गुजरात और दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है । यह गुजराती लोगों की उपस्थिति के कारण विशेष रूप से आकर्षक है जो अपने अनुष्ठानों और पूजा परंपराओं के माध्यम से इसकी परंपराओं को समृद्ध करते हैं। प्राचीन हिंदू देवताओं की तरह कई अवसरों पर भगवान स्वामीनारायण को सोने, हीरे और रत्नों के आभूषणों से सजाया जाता है।

वास्तुकला व मंदिर में स्थापित मूर्तियां 

स्वामीनारायण मंदिरों में, अन्य हिंदू मंदिरों की तरह, केंद्रीय मंदिर के चारों ओर पैदल मार्ग होते हैं ताकि उपासकों को मंदिर की परिक्रमा करने की अनुमति मिल सके, जिसे अक्सर डिजाइन और जड़े हुए संगमरमर से सजाया जाता है। मुख्य तीर्थ क्षेत्र रेलिंग द्वारा विभाजित है। रेलिंग का एक किनारा महिलाओं के लिए आरक्षित है, क्योंकि स्वामीनारायण ने कहा था कि भगवान पर पूर्ण ध्यान केंद्रित करने के लिए पुरुषों और महिलाओं को मंदिरों में अलग-अलग किया जाना चाहिए। पुरुष एक निश्चित संख्या में साष्टांग प्रणाम करते हैं । पुरुष वर्ग के सामने आम तौर पर तपस्वियों और विशेष मेहमानों के लिए एक छोटा सा क्षेत्र आरक्षित होता है। केंद्रीय छवियों के स्वरूप और प्रकृति में बहुत विविधता है, जिसके सामने सोने या चांदी से बने दरवाजे हैं जो दर्शन के दौरान खुलते हैं । स्वामीनारायण ने निम्नलिखित छह मंदिरों के निर्माण का आदेश दिया और नरनारायण , लक्ष्मीनारायण , राधा कृष्ण , राधा रमण , रेवती बलदेवजी जैसे विभिन्न देवताओं की छवियां स्थापित कीं। 

12.अक्षरधाम मंदिर जबलपुर 

जबलपुर के रसल चौक के पास एक मकान को अक्षरधाम मंदिरों का संचालन करने वाली स्वामीनारायण संस्था ने खरीदा है। उन्होंने पुराने मकान को तोड़कर एक भव्य मंदिर बनाया। इन मंदिरों का निर्माण कराने वाले स्वामी महाराज जो इस संस्था के प्रमुख थे, उनका जन्म जबलपुर के रसल चौक के उसी घर में हुआ था। महंत स्वामी महाराज का जन्म जिस जगह पर हुआ था, रसल चौक में अब इस जगह पर एक भव्य मंदिर बनाया गया है।

13.अमेरिका न्यूजर्सी का अक्षरधाम मन्दिर 

अमेरिका की धरती पर यह मंदिर त्रिवेणी संगम है। भारतीय संस्कृति, भारतीय कला और भारतीय अध्यात्म का त्रिवेणी संगम। यह अक्षरधाम सिर्फ पत्थर से बना एक मंदिर नहीं है, बल्कि विदेशी धरती पर भारतीय परंपरा की धरोहर है। स्वामी महाराज ने विदेशी धरती पर महामंदिर अक्षरधाम बनाने का निर्णय लिया था, वह पूरा हो गया है।  प्रमुख स्वामी ने 2012 में अक्षरधाम की वास्तुकला को अंतिम रूप दिया और 2014 में रॉबिन्सविले में इसका भूमिपूजन किया था । मंदिर को बनाने का काम साल 2015- 23 तक चला। मंदिर बनाने में 12,500 स्वयंसेवकों ने काम किया। अमेरिका में लंबे समय तक ठंड रहती है। बर्फबारी भी होती रहती है। इन सबके बीच स्वयं सेवकों ने दिन-रात काम किया। यह मंदिर कला, अध्यात्म और संस्कृति का त्रिगुण संगम है।

नृत्यकला: अक्षरधाम को हजारों साल पुराने वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो बीच में बेल्ट पर भरतनाट्यम मुद्रा बनी हुई है। भरतऋषि ने नाट्यशास्त्र के कई श्लोक लिखे हैं, उन्हीं का अध्ययन करके इसे बनाया गया है। 

संगीतकला: भारत में शास्त्रीय संगीत की एक लंबी परंपरा रही है। गायन-वादन प्रमुख है। यंत्र तीन तरह के होते हैं। पवन वाद्ययंत्र, ठोस वाद्ययंत्र और तार वाले वाद्ययंत्र। पुराणों में सरस्वती के विपंची वीणा धारण करने और श्रीकृष्ण के बांसुरी बजाती हुई तस्वीरें मिलती हैं। इस तरह से हमें दो या तीन संगीत उपकरण देखने को मिलते हैं, लेकिन आज भारत में लगभग 700 म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट हैं। इनमें से 150 वाद्य यंत्रों की कला आकृति को पत्थर पर बनाया गया है।

संस्कृति:- यह मंदिर अपने आप में भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक है, लेकिन पत्थर का मंदिर बनाना और इसमें आस्था का दिखना, दोनों में फर्क है। अक्षरधाम के बीच के मध्य मार्ग को वैदिक पथ कहा जाता है। किसी मंदिर में ऐसा पहली बार हुआ है, जहां वेदों के चार रूप मिलते हैं।

अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन:

185 एकड़ में बना; 12 साल में तैयार हुआ; 12,500 लोगों ने किया श्रमदान। इस अक्षरधाम मंदिर को बनाने का काम 2011 में शुरू हुआ था, जो अब पूरा हुआ है।इस अक्षरधाम मंदिर को बनाने का काम 2011 में शुरू हुआ था, जो अब पूरा हुआ है।मंदिर की दीवारों और छत की मूर्तिकला अति सुंदर है।खदान से पत्थर निकालकर यहां लाना आसान नहीं था। मंदिर में 2 लाख घन फीट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया यहां कई देशों के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। जैसे बल्गेरियाई पत्थर, तुर्की का चूना पत्थर, ग्रीस का संगमरमर, चीन का ग्रेनाइट और भारत का बलुआ पत्थर। सभी पत्थरों को तराशने के लिए राजस्थान और वहां से न्यू जर्सी भेजा गया, लेकिन इन पत्थरों में लोगों की आस्था का कंपन जरूर महसूस किया जा सकता है।

14.अबू धाबी में अक्षरधाम मंदिर

दिल्ली के अक्षरधाम से लेकर अमेरिका के न्यूजर्सी में के अक्षरधाम मंदिर तक यह मंदिर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। अक्षरधाम मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और भव्यता के लिए जाना जाता है। हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में अबू धाबी में एक भव्य अक्षरधाम मंदिर बनकर तैयार हुआ है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 14 फरवरी 2024 को किया । अक्षरधाम मंदिर वहां का पहला हिंदू मंदिर तो है ही साथ ही यह मंदिर अरबी और भारतीय संस्कृति की एकता का भी प्रतीक है। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इसमें साथ 10,000 लोग पूजा-पाठ कर सकेंगे। साथ ही इस मंदिर में सात शिखर बनाए गए हैं, जो अरब के सात अमीरात का प्रतिनिधित्व करते हैं।मंदिर में बनाई गई नक्काशियों के लिए उपयोग की गई शिलाएं इटली के साथ-साथ राजस्थान के भरतपुर जिले से भी लाई गई हैं। मंदिर में बनाई गई मूर्तियां रामायण, महाभारत, भगवद गीता और शिव पुराण की कहानियों से प्रेरित हैं। इन मंदिरों में शिखर वेंकटेश्वर, जगन्नाथ और अयप्पा आदि देवता विराजमान हैं। मध्य खंड में स्वामी नारायण के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई है।अक्षरधाम मंदिर का डिजाइन वैदिक वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इसके साथ ही मंदिर में बनाए गए 'डोम ऑफ हार्मनी' में पांच प्राकृतिक तत्व - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। इतना ही नहीं, मंदिर के परिसर में घोड़ों और ऊंटों आदि की कई नक्काशी भी की गई है, जो संयुक्त अरब अमीरात की पहचान है। इसके साथ ही मंदिर में कुल 96 स्तंभ बनाए गए हैं। इस मंदिर की कई मूर्तियां और नक्काशी भारत के कुशल कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं, जिन्हें अबू धाबी भेजा गया। 

     आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। 

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