Monday, July 10, 2023

भानु सप्तमी को सूर्य पूजा की सनातन परम्परा आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

        सनातन मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान सूर्य की प्रथम किरण माघ मास की सप्तमी को पृथ्वी पर आई थी। इसलिए इसे सूर्यदेव का जन्म दिवस भी मानते हैं। इस व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस सप्तमी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करता है और सूर्यदेव का व्रत रखता है वह पाप मुक्त होकर उत्तम लोक में स्थान पाता है।
साल के हरेक सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है। इस तिथि में जातक को सूर्य का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है।सूर्य ग्रह की शुभता को प्राप्त करने के लिए ये तिथि बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।इस तिथि में सूर्य देव का पूजन और उनके निमित्त व्रत का पालन करने से जातक को जीवन में सफलता और सम्मान की प्राप्ति होती है।
        सनातन धर्म में पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भानु सप्तमी का व्रत रखा जाता है. इसे रथ सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, भानु सप्तमी और आरोग्य सप्तमी भी कहते हैं। सूर्य देव की उपासना करने से कुंडली में सूर्य मजबूत होता है। कुंडली में सूर्य मजबूत होने से करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। साथ ही आय, आयु, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिष भी मनचाही नौकरी पाने के लिए सूर्य उपासना की सलाह देते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं। धर्म शास्त्रों में निहित है कि रथ सप्तमी के दिन सूर्य का प्रादुर्भाव हुआ है। भानु सप्तमी के व्रत का धार्मिक और पौराणिक महत्व बताया गया है. भानु सप्तमी का दिन सूर्य देव की पूजा-अर्चना और उपासना के लिए खास होता है. भानु सप्तमी को रथ सप्तमी के नाम से भी जाना जाात है. यह व्रत करने से जातक को कई रोग दोष से मुक्ति मिलती है।
भानु सप्तमी का महत्व :-
भानु सप्तमी का दिन सूर्य देव की उपासना करने के लिए उचित होता है. कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत करने के लिए भानु सप्तमी का व्रत किया जाता है. कुंडली में सूर्य के मजबूत होने से व्यक्ति को करियर और कारोबार में सफलता मिलती है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह व्रत करने से मनचाही नौकरी की भी इच्छा पूरी होती है।
भानु सप्तमी पूजा विधि :-
 ब्रह्म बेला में उठें और सूर्य देव को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने के बाद स्नान कर साफ कपड़े पहनें.अब घर की साफ-सफाई करें और नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करें।ऐसा संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
 सुबह सूर्योदय के समय सूर्य देवता को प्रणाम करें और व्रत का संकल्प लें। बहते जल में काले तिल प्रवाहित करना शुभ माना जाता है.भानु सप्तमी पर जल में चावल, काले तिल, रोली और दूर्वा डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।सूर्य को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें जाप करें --

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते
अनुकम्पय मां देवी गृहाणा‌र्घ्यं दिवाकर
ॐ भूर्भुवः स्वःतत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


नोट:-
( 30 जुलाई 1956 सोमवार तदनुसार सावन कृष्णा सतमी संवत 2013 विक्रमी मेरी वास्तविक जन्म तिथि रही है। पर सरकारी अभिलेख में यह 27 जून 1957 दर्ज है। इस कारण इस सतामी को 67 वर्ष की आयु पूर्ण करने और शेष समय में ईश्वर आराधना के संकल्प साथ प्रभु के चरणो में लगाने की कामना करता हूं।)




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