पवन देवता द्वारा एक शापित अंजनी अप्सरा के बच्चे हनुमान ने एक बच्चे के रूप में, ऊपर उड़ने और सूर्य को पकड़ने की कोशिश की थी जिसे उसने फल समझ खाना चाहा था। जब हनुमान के मुख में सूर्य समा जाने और अंधेरा होने का डर हुआ तो देवताओं के राजा इंद्र ने हनुमान के जबड़े (हनु) पर वज्र से प्रहार किया और उनकी ठुड्ढी विकृत हो गई तो लोगों हनुमान नाम दिया। हनुमान शिव जी के अंशावतार और स्वमेव जगत के अधिष्ठाता रामजी के समकक्षी भी हैं। वे रामजी के वे सारे कार्य ततक्षण किए जिसे मर्यादा पालन करने के कारण मानव रूप धारी रामजी नहीं कर सकते थे।
हनु के चौथे जन्म दिन के अवसर पर कुछ तस्वीरें शेयर कर रहा हूं। 5 अगस्त 2019
हनुमान जी के प्रसाद स्वरूप बालक हनु का संसार में आना
श्रावण /अगस्त 2019 का महीना था। देश में कुछ विशेष घटित होने वाला था। सैनिकों की छुट्टियां निरस्त हो रही थीं। सैनिकों का आवागमन बढ़ गया था। सभी लोग क्या होने वाला है के जिज्ञासा से युक्त थे।भारत सरकार ने भारतीय संविधान में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके अस्थाई 35 ए अनुच्छेद और धारा 370 के अस्थाई प्रावधान को बहुमत के आधार पर दूर कर दिया।कुछ अवसर और संकीर्ण शक्तियां बिदबिदाने लगीं।कुछ को अंदर तो कुछ बाहर फड़फड़ाने लगे।
इसी उपापोह और राष्ट्र को नवीन स्वरूप दिए जाने के अद्भुत क्षण की स्थिति में हनुमान जी ने अपने आशीष अंश को हमारे परिवार में भेजा।
जन्माष्टमी के अवसर पर
हम लोगों ने उन्हें मंगलवार दिन पैदा होने के कारण हनु नाम दिया। ये श्रावण शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और 6 अगस्त 2019 की तारीख थी।
चाचू के शादी के अवसर पर
हमारे परिवार और चौबे जी के परिवार ने दिन रात पूरी निगरानी रखकर इस बालक का यथोचित पालन पोषण किया।
वह विद्यालय जाना भी शुरू कर दिया है।
आज बालक के तीसरी वर्ष गांठ और चौथे जन्म दिन के अवसर पर हनुमान जी के कुछ नामों को समावेश करते हुए हनुमान बाहुक की कुछ चयनित पंक्तियां उद्धृत कर रहा हूं।
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जै हनुमान जयति बल-सागर।
सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले।
बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता।
शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा।
दुख पावत जन केहि अपराधा॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल।
ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ।
सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै।
ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की।
हनुमत रक्षा करै प्रान की।।
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यह बजरंग बाण जो जापैं ।
ताते भूत-प्रेत सब कापैं ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा ।
ताके तन नहिं रहै कलेसा ।।
दोहा : -
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल सुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।
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