“अवतार” से तात्पर्य है ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर उतरना। यह शुभ शब्द विशेषकर उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जो किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए “धरती” पर आते हैं। परमात्मा स्वयं अथवा उनके प्रतिनिधि “धरती पर अवतार” लेकर आगमन करते हैं। विशिष्ट कार्य पूरा हो जाने के बाद वे अपने मूलधाम या लोक वापस चले जाते हैं।
“धरती पर अवतार” के प्रकार
पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होते हैं। वे सशरीर आते हैं। सशरीर लौट जाते हैं। धरती पर लीला करने के लिए परमेश्वर दो प्रकार से प्रकट होते हैं।
1. पूर्ण परमात्मा का शिशु रूप में सरोवर में कमल के फूल पर प्रकट होना
प्रत्येक युग में पूर्ण परमात्मा शिशु रूप में वन में स्थित एक सरोवर में कमल के फूल पर प्रकट होते हैं। वहां से एक निःसन्तान दम्पति उन्हें वात्सल्य स्वरूप अपने साथ ले जाते हैं। बाल्यकाल से ही ज्ञान सर्जन की विशिष्ट लीला करते हुए बड़े होते हैं और समाज में आध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करते हैं। सरोवर के जल में कमल के फूल पर अवतरित होने के कारण परमेश्वर नारायण कहलाते हैं। नार का अर्थ जल और आयण का अर्थ आने वाला अर्थात् जल पर निवास करने वाला नारायण कहलाता है।
2.भक्त की इच्छा पूरा करने के लिए पंच भौतिक अवतार
इस श्रेणी में अनेक स्वरूप देखने को मिलते हैं ।
राम जनम के हेतु अनेका, परम विचित्र एक तें एका ।
1.परमात्मा के अवतार के कारण परमात्मा की इच्छा
परमात्मा के अवतार के कारण परमात्मा की इच्छा है। वह स्वयं अपनी इच्छा से प्रकट होते है। यह जीव जब जगत में आता है वह अपने पूर्व जन्म के कर्म ओर वासना के अनुसार शरीर लेकर आता है। परतु ईश्वर जगत में आते है तो किसी कर्म-वासना के अधीन होकर नहीं अपितु स्वेच्छा से आते है। जीव का कार्य निर्मित शरीर है जबकि परमात्मा निज इच्छा निर्मित है। परमात्मा के अवतार के कारण धर्म का रक्षण, अधर्म का विनाश ये तो साधारण कारण है। परमात्मा लीला करने के लिए तथा अपने भक्तों को परमानंद दान करने के लिए जगत में अवतार लेते है।
2 .ब्राह्मणों के शाप के कारण
भगवान शिव ने माता पार्वती को श्रीराम जन्म के जो प्रमुख कारण बताए हैं वह हमें पुराणों में मिलते हैं। एक किंवदंती के अनुसार ब्राह्मणों के शाप के कारण प्रतापभानु, अरिमर्दन और धर्मरूचि यह तीनों रावण, कुंभकर्ण और विभीषण बने। रावण ने अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार किया। एक बार तीनों भाईयों ने घोर तप किया। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा।
रावण बोला, ' हे प्रभु, हम वान और मनुष्य इन दो जातियों को छोड़कर किसी के मारे न मरे यह वरदान दीजिए। शिव जी ने बताया कि मैंने और ब्रह्मा ने मिलकर यह वरदान दिया। फिर कुंभकर्ण को देखकर भगवान सोच में पड़ गए कि यह विशालकाय प्राणी नित्य आहार लेगा तो पृथ्वी ही उजड़ जाएगी। तब मां सरस्वती ने उसकी बुद्धि फेरी और 6 माह की नींद का उसने वरदान मांग लिया। विभीषण ने प्रभु चरण में अनन्य और निष्काम प्रेम की अभिलाषा की। वर देकर ब्रह्मा जी चले गए।
3. धर्म की रक्षा और दुष्टों का संहार हेतु
जब इस धरती पर धर्म की हानि होगी, असुरों और अधर्मियों का अन्याय धरती पर बढ़ जाएगा. तब तब प्रभु अलग अलग रूपों में अवतार लेकर धरती पर आयेंगे, और सच्जनों और साधु संतों को उन अधर्मियों के अन्याय से मुक्ति दिलाएंगे. ये रामायण की वो चौपाई है, जिसमें सम्पूर्ण युगों और कालखंडों का सार है.
ये सच है हर युग में प्रभु ने अवतार लेकर धरती से अधर्मियों और अधर्म का अंत किया है. जीवन में बहुत सारे बदलाव होते हैं. ऐसे ही युगों में भी बदलाव होते हैं. हर युग में इस धरती पर पाप और पुण्य सामान रूप से रहे, और जब पापियों का अन्याय बहुत बढ़ जाता है, मनुष्य के लिए जीवन कठिन होते लगता है. तब तब प्रभु किसी न किसी रूप में धरती पर ज़रूर आये हैं. भगवान विष्णु ने कई अवतार लेकर असुरों का अंत किया. और उनके प्रमुख अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण के अवतार मुख्य माने जाते हैं. श्रीराम ने ज्यादा से ज्यादा स्वयं ही असुरों का अंत किया. और श्रीकृष्ण भी वही किया, और कई लोगों को अधर्म पर विजय प्राप्त करने का मार्ग सुझाया. तुलसी दास जी के अनुसार जब रावण के अत्याचार बढ़े और धर्म की हानि होने लगी तब भगवान शंकर कहते हैं :
जब जब होई धरम की हानि, बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
अर्थात् जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अभिमानी राक्षस प्रवृत्ति के लोग बढ़ने लगते हैं तब तब कृपानिधान प्रभु भांति- भांति के दिव्य शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं। वे असुरों को मारकर देवताओं को स्थापित करते हैं। अपने वेदों की मर्यादा की रक्षा करते हैं। यही श्रीराम जी के अवतार का सबसे बड़ा कारण है।
4..सो केवल भक्तन हित लागी
भगवान भक्तों के हित व धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। तुलसी दास रचित चौपाई में कहा गया है -
सो केवल भक्तन हित लागी ।दीन दयाल प्रणत अनुरागी।
जिनकी भृकुटि मात्र टेढ़ी होने से सृष्टि में प्रलय हो सकती है। उन्हें किसी को मारने के लिए धरती पर आने की जरूरत नहीं है। ये काम प्रभु वही से कर सकते हैं। पर शबरी, गिद्ध, अहिल्या आदि भक्तों को भी तो तारना व दर्शन देने के प्रभू धरती पर अवतरित हुए। इंसान को सत्कर्मों पर ही चलकर अपना जीवन बिताना चाहिए. अधर्म करने के बहुत से रास्ते हैं, जो हमारा पथ भ्रमित करते हैं. पर हमें हमेशा ये याद रखना चाहिए कि, ईश्वर हमें देख रहे हैं. संयम और धैर्य ही जीवन की सभी परेशानियों से हम सबको बाहर निकालते हैं. अन्याय और बुरे कर्म न तो मन को शांति देते हैं, और ना आत्मा को, हर तरह के रास्ते हमारे सामने आते ही हैं. पर उनपर चलने का और उन्हें चुनने का अधिकार हमारा ही होता है.
5. भक्त मनु शतरूपा की तपस्या से खुश होकर
स्वायम्भुवमनु और रानी सतरूपा ने अनेको वर्षों तक तपस्चर्या की उनके घर पुत्र के रूप में पधारने का प्रभु ने वरदान दिया । मनु महाराज और शतरूपा ने दशरथ कौशिल्या के रूप में जन्म लिये और इस प्रकार प्रभु श्रीराम होकर उनके घर पधारे।पहले माता कौशल्या को भगवान ने चतुर्भुजी स्वरूप में दर्शन दिए पर जब उन्होंने बाल रूप गोद में आने का आग्रह किया तो भगवान बाल रूप में उनकी गोद में आ गए। श्रीराम की बाल रूप की झांकी देख कर भक्त भी भाव विभोर हो गए।
6.नारद जी के शाप को सत्य करने के लिए
एक समय नारदजी ने आदि नारायण परमात्मा को शाप दिया था । वह शाप सत्य करने के लिए प्रभु पधारे थे। श्रीधर स्वामी भागवत के प्रखर टीकाकार हैं। जय विजय के प्रसंग के विषय में लिखते हैं कि परमात्मा की इच्छा हुई कि हमें रमण करना है,लीला करनी है। परमात्मा की प्रत्येक लीला जीव के कल्याण के लिए है और इसलिये जीव के कल्याण करने के लिये जीव के ऊपर कृपा करके भगवान लीला करते है।जहां काम नही क्रोध नही शोक नही लोभ नही रजोगुण तमोगुण नहीं। जहां केवल सतगुण है, वहीं बैकुंठ है।
राम के चित्र की पूजा नहीं की जाती है, लेकिन उनके चरित्र की पूजा होती है। यूं कहें कि उनके चरण की नहीं, उनके आचरण की पूजा होती है। समाज के बदलते परिवेश में आज के समाज में शैतान बनना आसान है। भगवान बनना और भी आसान है। लेकिन, इंसान बनना बहुत ही कठिन है। भगवान श्रीराम केवल इंसान बनने की प्ररेणा देते हैं। जीवन में मानवता का आ जाना ही रामकथा की सार्थकता है।आज व्यक्ति कहने को भले मानव हों, परंतु आंतरिक रूप से मानवता समाप्त होती जा रही है। संवेदना मरती जा रही है। उसी मानवता का पुन: स्थापना कर आपसी सौहार्द का विकास करने की जरूरत है। इसी प्रकार श्री कृष्ण के विचार आदर्श और उनकी लीलाओं की पूजा और मंचन किया जाता है। यही बात अन्य अंश या पूर्ण अवतार के चरित्र और विचारों पर भी लागू होता है।
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