आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आर्तिका’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है अरिष्ट, विपत्ति, आपत्ति, कष्ट, क्लेश । भगवान की आरती को ‘नीराजन’ भी कहते हैं । नीराजन का अर्थ है ‘विशेष रूप से प्रकाशित करना’ । इस प्रकार मात्र तीन अक्षरों की आरती अपने में विशाल अर्थ का बोध कराती है।
पंच महाभूतों की आरती
यह संसार पंच महाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है । आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है— पृथ्वी की सुगंध—कपूर से , जल की मधुर धारा—घी से , अग्नि—दीपक की लौ से और वायु—लौ का हिलने से और आकाश—घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि से पूरा होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है ।
मानव शरीर से भी आरती
मानव शरीर भी पंचमहाभूतों से बना है । मनुष्य अपने शरीर से भी ईश्वर की आरती कर सकता है । वह अपने देह का दीपक, जीवन का घी, प्राण की बाती, और आत्मा की लौ सजाकर भगवान के इशारे पर नाचना—यही आरती है । इस तरह की सच्ची आरती करने पर संसार का बंधन छूट जाता है और जीव को भगवान के दर्शन होने लगते हैं ।
आरती का विधि विधान
भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है । इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा भक्तजनों पर जल छोड़ दें । फिर मन से ही ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें । इस तरह भगवान की आरती उतारने का विधान है । घर के पूजागृह में एक बाती की ही आरती करनी चाहिए । जबकि मन्दिरों में 5, 7, 11, 21 या 31 बातियों से आरती की जाती है ।भगवान की शुद्ध घी में डुबोई बाती से आरती करनी चाहिए । पूजन चाहे छोटा (पंचोपचार) हो या बड़ा (षोडशोपचार), बिना आरती के पूर्ण नहीं माना जाता है ।
आरती करने व देखने का महत्व
जिस प्रकार आरती के दीपक की बाती ऊपर की ओर रहती है उसी प्रकार आरती देखने, करने व लेने से मनुष्य आध्यात्मिक दृष्टि से उच्चता प्राप्त करता है । जो भगवान विष्णु की आरती को नित्य देखता है या करता है, वह सात जन्म तक ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर अंत में मोक्ष पाता है । कपूर से भगवान की आरती करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है साथ ही मनुष्य के कुल का उद्धार हो जाता है और अंत में साधक भगवान अनंत में ही मिल जाता है । घी की बाती से जो मनुष्य भगवान की आरती उतारता है वह बहुत समय तक स्वर्गलोक में निवास करता है ।
गंगा आरती की तर्ज पर अन्य नदियों में आरती
हरिद्वार की तर्ज पर बाद में गंगा आरती का आयोजन ऋषिकेश, वाराणसी, प्रयाग और चित्रकूट में भी होने लगा। हरिद्वार की गंगा आरती को देखते हुए 1991 में वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर प्रारंभ हुई थी।हरिद्वार में हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। इसी विश्वप्रसिद्ध घाट पर कुंभ का मेला लगता है और यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती है। हरिद्वार की गंगा आरती जग प्रसिद्ध है। इस आरती का गवाह बनने सिर्फ भारतीय पर्यटक ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी भारी मात्रा में आते हैं। गंगा की पवित्र लहरों के घाट जिसे हरि की पौड़ी के नाम से जाना जाता वहां पर हर संध्या को आरती की जाती है जो गंगा मैया को समर्पित है।आरती देखकर ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने स्थल को अपनी रोशनी से जगमगा दिया हो। गंगा आरती के समय मेला सा लग जाता है। ठीक उसी तर्ज पर अब गंगा नदी से मिलने वाली 13 सहायक नदियों के घाटों पर भी ऐसा नजारा दिखाई देगा। इन दिनोंप्रमुख नदियों के घाटों की सूरत बदल जाएंगी । नमामि गंगे परियोजना से गंगा से मिलने वाली रामगंगा, बेतवा, घाघरा, सरयू, राप्ती, वरुणा, काली, यमुना, हिंडन, गर्गो, केन, गोमती और सई के किनारे घाटों की सूरत बदली जाएगी।
सरयू संध्या आरती – अयोध्या
अयोध्या में शताब्दियों से सरयू आरती हो रही है। देश और विदेशों में गंगा आरती को ही पहचान मिली हुई है। अब आरती के दौरान सरयू घाट की सफाई हो जाती है। साफ-सफाई से पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिलता है।
सरयू आरती को कई स्थलों पर कराया जाए
सरयू घाट - नयाघाट - लक्ष्मण घाट पापमोचन गुप्तार और अन्य अनेक घाटों पर प्रतीकात्मक आरती होती है। इस पवित्र नदी में स्नान कर आरती करने का बड़ा महत्व माना जाता हैं प्रत्येक दिन शाम ढलते ही सरयू नदी के घाटो पर घंटियो के आवाज के साथ शंखनाद का मनोरम दृश्य के साथ सरयू की भव्य आरती का अयोजन किया जाता हैं.आरती के दौरान जब सारे पंडित बड़े बड़े पीतल के दीयों के समूह को घुमाते है, हम एक अनोखे आध्यामिक भावना से ओतप्रोत हो जाते हैं। वहां बजते संगीत और भजन इस प्रभामंडल को चार चाँद लगा देते हैं। पानी में पड़ता दीयों का प्रतिबिंब टिमटिमाते सितारों की तरह मालूम पड़ता है। महाआरती की मधुर आवाज़ पूरे घाट में गूंजती हुई सुनाई पड़ती है।
सरयू तट के स्वर्गद्वार घाट पर 2013 से ही सरकारी सहयोग से नित्य 1051 बत्ती की सरयू आरती का क्रम संचालित है। प्रतिदिन शाम 6:30 बजे 1051 बत्ती की आरती की जाती है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा को 2100 बत्ती की आरती होती है।आरती के लिए पांच पुजारियों की नियुक्ति भी संस्थान द्वारा की गई है। अगर आप संध्याकालीन आरती का आनंद लेना चाहते हैं तो शाम के 6 बजे यहां पहुंच जाएं. हर घाट पर आपको घंटालों की गूंज और आरती के झूमते बड़े बड़े दीये नजर आ जाएंगे. आरती के इन मनभावन वक्त का आनंद तब और बढ़ जाता है जब आप नाव की सवारी करते हुए सरयू के बीच से उसे देखते हैं.नदियों के घाटों पर संध्या आरती भी २१वीं सदी का नवीन अनुष्ठान प्रतीत होता है। कुछ भी कहिये, हजारों की संख्या में नदी में तैरते, जलते हुए मिट्टी के दिए, यह एक अत्यंत ही मनोहार दृश्य होता है।
राम की पौड़ी के कारण लक्ष्मण और सहस्र धारा घाट की आरती उत्तम कोटि की सुख सुविधाओं और आकर्षण युक्त दिखाई देती है। सरयू के पुराने पुल के पूरब तरफ का विकास अच्छी तरह नही हुआ है। इसलिए सरयू नदी का समग्र लुक अच्छा नहीं दिखता है। थोड़ी सी जागरूकता थोड़ा सहयोग और थोड़ी सी प्रेरणा देकर इसे और अधिक जागरूक किया जा सकता है।
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