महर्षि वशिष्ठ के प्रसिद्ध मंदिर और आश्रम( भगवत प्रसंग - 4)
आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी
वसिष्ठ के छः मुख्य आश्रम थे।वशिष्ठ आश्रम/ गुफा ऋषिकेश (उत्तराखंड), वशिष्ठ आश्रम (गुवाहाटी), वशिष्ठ आश्रम गोमुख, वशिष्ठ आश्रम माउंट आबू (राजस्थान) में स्थित है।
1.
मनाली हिमाचल प्रदेश :-
पहला हिमाचल प्रदेश के मनाली से करीब चार किलोमीटर दूर लेह राजमार्ग पर स्थित है वशिष्ठ नाम का है। महर्षि वशिष्ठ मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के वशिष्ठ गांव में है। इस गांव का नाम महर्षि वशिष्ठ के नाम पर ही रखा गया है। यह गांव अपने दामन में पौराणिक स्मृतियां छुपाये हुए है। महर्षि वशिष्ठ ने इसी स्थान पर बैठकर तपस्या किये थे । कालान्तर में यह स्थल उन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। ऋषि का यहां भव्य प्राचीन मन्दिर बना है। वशिष्ठ पहुंच कर ऐसा लगता है मानो सौन्दर्य, धर्म, पर्यटन, परम्पराएं, आधुनिकता, ग्रामीण शैली व उपभोक्तावादी चमक-दमक आपस में एक हो रहे हैं।
ऋषि वशिष्ठ मंदिर मनाली
वशिष्ठ गांव की यात्रा के दौरान आप ऋषि वशिष्ठ मंदिर का दीदार भी कर सकते हैं। यहां भगवान राम और ऋषि विशिष्ठ के दो मंदिर हैं। माना जाता है कि यह वही स्थान है, जहां पर ऋषि वशिष्ठ ने तप किया था। वशिष्ठ मंदिर 4000 साल से अधिक पुराना है। मंदिर के अंदर धोती पहने ऋषि की एक काले पत्थर की मूर्ति स्थित है। वशिष्ठ मंदिर को लकड़ी पर उत्कृष्ट और सुंदर नक्काशी से सजाया गया है इसके अलावा मंदिर का इंटीरियर अद्रभूत पेंटिंग के साथ अलंकृत हैं। इस स्थान पर प्राचीन देवालय और बावड़ी के कुछ अवशेष भी आपको आकर्षित करते हैं। यह मध्य युगीन मंदिरों की स्थापत्य कला की विशेषताओं का लिये हुए हैं। यहाँ स्थित देवालय भी अवलोकनीय है। यह निर्माण ‘काठकुणी’ शैली का परिचायक है। इस देशज शैली में बिना गारे की शुष्क चिनाई और देवदार की धरणियों का प्रयोग हुआ है। अतीत में इस क्षेत्र के वन देवतरू (देवदार) से भरे पड़े थे। अत: देवालय एवं स्थानीय लोगों के आवास गृहों में देवदार का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। यहां पर एक अन्य मंदिर भी स्थित है जिसको राम मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर परिसर में गर्म पानी का प्राकृतिक स्त्रोत भी है। दर्शन से पहले श्रद्धालु यहां स्नान करते हैं। गर्म पानी में ठंड में भी यहां श्रद्धालु नहाते हैं। प्राकृतिक स्त्रोत को लेकर लोगों की मान्यता है कि इसमें नहाने से चर्म रोगों की समस्या दूर हो जाती है।
2.
माउंट आबू राजस्थान :-
महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में उन्होंने अपने भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ पढ़ाई की थी। भगवान श्रीराम से जुड़े कई प्रमाण यहां आज भी मौजूद हैं। यहां पहुंचने के लिए 450 सीढ़ियों से नीचे उतरना होता है, यहां साढ़े पांच हजार साल पुराना मंदिर है। इस स्थान की ऊंचाई समुद्रतल से 1206 मीटर यानी 3970 फीट है। भगवान राम के यहां आने के कई सबूत मौजूद हैं। अर्धकाशी कहलाने वाली इस नगरी में भगवान राम की पाठशाला है। इसके साथ ही उनकी लीला से जुड़े कई अन्य स्थल भी हैं।
महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में प्राचीन रामकुंड स्थित है। इस रामकुंड का वर्णन स्कंद पुराण में भी आता है। यहां भगवान राम रोज सुबह स्नान किया करते थे। बाद में यह रामकुंड के नाम से जाना जाता है। इस कुंड के बारे में खास बात ये है कि इसका पानी लोग आज भी पीते हैं। रामकुंड के पानी के बारे में ये माना जाता है कि ये कई रोगों से मुक्ति दिलाने वाला और मानसिक शांति देने वाला है। रामकुंड का जल विदेशी भी ले जाते हैं। स्थानीय लोगों की इस कुंड और उसके जल के प्रति गहरी आस्था है। लोग इसे भगवान राम का प्रसाद मानते हैं। रामकुंड का पानी कभी भी खराब नहीं होता है, इसलिए जो श्रद्धालु यहां आते हैं वे इसके जल को आदर के साथ अपने साथ जरूर ले जाते हैं और गंगा जल की तरह इसे पूजा में रखते हैं।
गोमुख वशिष्ठ आश्रम
पूर्व में आश्रम के लिए दुर्गम पहाड़ों के मध्य से पैदल, घोड़े, खच्चरों के जरिए आवागमन होता था। १५८९ ईस्वी में दुर्गम पहाड़ों को काटकर २५०५ सीढिय़ां बनाईं गई, उसी दौरान आश्रम के समीप जलस्रोत पर ऋषि की गो कामधेनू की पुत्री नंदिनी की याद में गोमुख बनाया जिससे इसका नाम गोमुख वशिष्ठ आश्रम पड़ा।
माउंटआबू का गौमुख और वशिष्ठ आश्रम देश ही नहीं विश्व में अपना अलग स्थान रखता है। यह आज भी शिक्षा का केंद्र है, जहां देश-विदेश से बच्चे यहां पढ़ने आते हैं। श्रीराम के बाद यहां आज भी शिक्षा का बहुत अच्छा माहौल है। भगवान श्रीराम के लिए रामचरित मानस में तुलसीदासजी ने लिखा है- गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई, मतलब भगवान श्रीराम ने बहुत कम समय में सभी विद्याएं सीख ली थीं। आज भी यह स्थान और यहां शिक्षा का वातावरण होना गौरव की बात है। राजस्थान के पुष्कर में यज्ञ कराकर उन्होने अनेक क्षत्रियों की उत्पत्ति किया था।
3.
अयोध्या आश्रम:-
हिमाचल स्थित आश्रम से वे कोशल राज्य में आये थे जहां उन्होंने अपना एक आश्रम और बनाया था। वे ईक्ष्वाकु वंश के राजगुरु बने थे। ऋग्वेद के 7 वें अध्याय में ये बताया गया है कि सर्वप्रथम महर्षि वशिष्ठ ने अपना आश्रम सिंधु नदी के किनारे बसाया था। बाद में इन्होने गंगा और सरयू के किनारे भी अपने आश्रम की स्थापना की।ऋषि वशिष्ठ ने सरयू नदी के किनारे गुरुकुल की स्थापना की थी। जहां पर हजारों राजकुमार और अन्य सामान्य छात्र गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त करते थे। यही पर राम, लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न ने भी शिक्षा अर्जित किया था।
अयोध्या के थाना राम जन्मभूमि से कुछ दूरी पर स्थित इस प्राचीन मंदिर का महत्व अद्भुत है । रामायण अनुसार अयोध्या में 40 एकड़ की ज़मीन पर महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था। जो आज के समय में सिर्फ एक चौथाई हिस्सा ही रह गया है। आश्रम में एक कुआँ है जहां से सरयु नदी निकलती है।
एक समय अयोध्या में सूखा पड़ गया. राजा इक्ष्वाकू ने महर्षि वशिष्ठ से कहा कि आप ही इसका कुछ उपाय निकालिए. तब महर्षि वशिष्ठ ने विशेष यज्ञ किया और यज्ञ के संपन्न होते ही सरयू नदी आश्रम के कुएँ से बहने लगी. आज के समय में सरयू नदी को वाशिष्ठी और इक्श्वाकी के नाम से भी जाना जाता है.
ऐसा कहा जाता है की आश्रम के अन्दर का कुआँ नदी से जुड़ा हुआ है. जो यात्री तीर्थ यात्रा के लिए जाते है वे यहाँ पर इस कुएँ को देखने के लिए भी आते है. महर्षि वशिष्ठ के इस आश्रम को एक संपन्न तीर्थ स्थल माना जाता है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह कहा जाता है की मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ से इस स्थान पर शिक्षा ग्रहण की थी इसी कारण इस प्राचीन मंदिर में वर्ष के 12 महीने श्रद्धालुओं की भीड़ जमा रहती है । वहीं गुरु पूर्णिमा के मौके पर इस प्राचीन मंदिर में
एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है जिस में शामिल होने देश के कोने कोने से भक्त श्रद्धालु अयोध्या पहुंचते हैं । ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान पर स्थापित गुरु वशिष्ट की प्रतिमा का दर्शन पूजन करने से व्यक्ति को ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है । वहीँ इस मंदिर परिसर में मौजूद पवित्र कुंड के जल से स्नान और आचमन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है जिसके चलते बड़ी संख्या में भक्त और श्रद्धालु इस प्राचीन मंदिर में दर्शन करने के साथ इस कुण्ड के जल को प्रसाद केरूप में ग्रहण करते हैं ।
प्रसिद्ध वशिष्ठ कुंड मंदिर में गुरु वशिष्ठ के आश्रय में शिक्षा ग्रहण करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भाई लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न की सुंदर प्रतिमा बेहद मनोहारी है और भगवान की प्रतिमा का दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में लोग इस मंदिर परिसर में आते हैं। इस मंदिर में एक खास बात यह भी है इस संगमरमर से बने इस विशाल मंदिर के पिछले हिस्से में उन सभी गुरुओं की प्रतिमा स्थापित है जिन से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने शिक्षा और दीक्षा ली थी इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा भी श्रद्धालुओं के विशेष आकर्षण का केंद्र है । हर वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु वशिष्ट के इस आश्रम पर एक वृहद मेले का आयोजन होता है जिस में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग अयोध्या पहुंचते हैं ।
श्री वशिष्ठ कुंड के विषय मे यह भी पौराणिक मान्यता है कि यह मान्यता है कि भगवान तथा पार्वती जी को श्री वसिष्ठ कुंड के बारे में बताया कि समस्त पापो को नाश करने वाला सुंदर वसिष्ठ कुंड जहाँ पर श्री अरुंधती के साथ तप तपस्वी श्री वशिष्ठ जी कामधेनु की सेवा और सत्कार करते हैं श्री वामदेव जी भी यही वास करते हैं इसी कारण वसिष्ठ कुंड में विधि विधान से स्नान और अन्न वस्त्र दान करके श्री वसिष्ठ जी और श्री वामदेव, अरुंधती की पूजा करनी चाहिये इसकुंड में शास्त्र सम्मत स्नान करने के मनुष्य वशिष्ठ जी के तरह प्रखर ज्ञानवान तथा शक्तिवान होता है। यहाँ पर भगवान विष्णु का पूजन से समस्त पापो का नाश होने से आत्मा शुद्ध होती हैं तथा श्री विष्णु लोक में स्थान मिलता है। यहाँ वर्ष में एक बार भादौ शुक्ल पंचमी एवं आषाढ़ी पूर्णिमा में ये सभी धार्मिक अनुष्ठान को करना शुभ होता है।
4.
गुवाहाटी असम:-
असम के गुवाहाटी में महर्षि वशिष्ठ को समर्पित एक भव्य मंदिर
वशिष्ठ मंदिर भारत के असम राज्य में गुवाहाटी नगर के दिसपुर उपनगर में स्थित एक हिन्दू मंदिर और आश्रम है। यह आश्रम गुवाहाटी शहर से दक्षिण में असम-मेघालय सीमा के करीब स्थित है और गुवाहाटी का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
मान्यता है कि इस शिव को समर्पित मंदिर की स्थापना वैदिक काल में महऋषि वशिष्ठ ने करी थी और यहाँ उनका आश्रम था। यह मेघालय की सीमा के समीप है। यहाँ से कई जलधाराएँ आती हैं जिनके किनारे यह मंदिर व आश्रम स्थित है और जो यहाँ से आगे वशिष्ठ नदी और बाहिनी नदी के रूप में नगर की ओर बहती हैं।
5.
वशिष्ठ गुफा शिवपुरी:-
उत्तराखंड के ऋषिकेश से लगभग 18 किलोमीटर दूर शिवपुरी गंगा के किनारे वशिष्ठ गुफा है। इसे स्थानीय निवासी वशिष्ठ का शीतकालीन निवास मानते हैं। यह गुफा ध्यान के लिये एक प्रमुख स्थान है और यह गूलर के पेड़ो के बीच स्थित है।नज़दीक ही अरुंधति गुफा और शिव मंदिर है। जिसमे भगवान शिव की कई प्राचीन मूर्तियाँ स्थापित हैं।.
6.
अरट्टुपुझा मंदिर केरल,:-
चेरपू दक्षिण भारत में केरल राज्य में त्रिशूर जिले में स्थित अरट्टुपुझा मंदिर के मुख्य देवता भी महर्षि वशिष्ठ ही हैं।
किंवदंतियों के अनुसार, इस मंदिर की प्राचीनता 3000 साल पहले की है। देवमाला मंदिर सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध वार्षिक की मेजबानी कर दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि अरत्तुपुझा मंदिर के देवता हैं।
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