मेरे परम पूज्य बाबूजी स्वर्गीय शोभाराम दूबे का जन्म 15 जून 1929 ई. को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार का पालन पोषण तथा शिक्षा के लिए बाबूजी को उनके पिताजी पंडित मोहन प्यारे जी लखनऊ लेकर चले गये थे। जहां उन्होने 1945 में लखनऊ के क्वींस ऐग्लो संस्कृत हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उस समय ‘प्रथम श्रेणी’ से अंग्रेजी, गणित, इतिहास एवं प्रारम्भिक नागरिक शास्त्र आदि अनिवार्य विषयों तथा हिन्दी और संस्कृत एच्छिक विषयों से उत्तीर्ण की है। उन्होंने इन्टरमीडिएट परीक्षा 1947 में कामर्स ग्रुप से द्वितीय श्रेणी में अंग्रेजी, बुक कीपिंग एण्ड एकाउन्टेंसी, विजनेस मेथेड करेसपाण्डेंस, इलेमेन्टरी एकोनामिक्स एण्ड कामर्सियल ज्याग्रफी तथा स्टेनो- टाइपिंग विषयों से उत्तीर्ण किया था।
दादाजी पण्डित मोहनप्यारे द्विवेदी के शिक्षण तथा व्यवहार से प्रभावित सहकारिता विभाग के किसी अधिकारी ने गुरुदक्षिणा के रुप में बाबूजी को पहले कम उम्र के कारण अस्थाई रुप में तथा बादमें 18 साल की उम्र होने पर स्थाई रुप में सरकारी सेवा में लिपिक पद पर नियुक्ति दिलवा दिया था। बाद में बाबूजी ने विभागीय परीक्षा देकर लिपिक से आडीटर के पद पर अपनी नियुक्ति करा लिये थे।
बाबूजी अपने सिद्धान्त के बहुत ही पक्के थें उन्होने अनेक विभागीय अनियमितताओं को उजागर किया था । इसका कोप भाजन भी उन्हें बनना पड़ा था। प्रताड़ना स्वरूप उनकी उल्टी -सीधी पोस्टिंग दी जाती रही। टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल जो उस समय यूपी में था, की चढ़ाई करना पड़ा था।
फैजाबाद में सहकारिता विभाग का एक बहुत बड़ा घोटाला जिसमें कांग्रेसी नेता विश्वनाथ कपूर संलिप्त थे,बाबूजी के द्वारा ही उजागर हुआ था। अयोध्या का क्षेत्र फैजाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र के तहत तब आता था।1967 के चुनाव में अयोध्या अलग विधान सभा सीट बना था। जहां 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर जीतने में कामयाब रहे।1969 में आईएनसी के विश्वनाथ कपूर 19569 तथा उनके प्रतिद्वंदी बीकेडी के राम नारायण त्रिपाठी को 15652 मत मिले थे।उनके द्वारा हुए घोटाले का स्थानीय और फिर उच्च न्यायालय में विचारण हुवा था। जिला सहकारी बैंक फैजाबाद, जिसमें श्री विश्वनाथ कपूर, अधिवक्ता प्रबंध निदेशक थे और श्री जोखान सिंह कैशियर थे और एलन खान कार्यवाहक प्रबंधक थे और महराज बक्स सिंह सामग्री समय पर सहायक लेखाकार थे, राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित एक निगम है और , इसलिए उक्त आरोपी व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन हाई कोर्ट में स्टेटऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर और अन्य केस चला था। इसका निस्तारण 14 जनवरी 1980 को न्यायमूर्ति टी मिश्रा द्वारा हुवा था। इस संदर्भित प्रश्न का न्यायमूर्ति का उत्तर इस प्रकार रहा है- यूपी सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सहकारी समिति एक केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित निगम नहीं है ।इस उत्तर के साथ कागजात माननीय एकल न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने का आदेश पारित किया गया था।
इस प्रकार विभागीय घोटालों को प्रकाश में लाने पर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी श्री अवधेश चंद्र दुबे ने बाबू जी को लखनऊ में बुलाकर सिस्टम को सुधारने को छोड़ अपना कार्यकाल सामान्य रूप में बिताने की नसीहत दी थी।
बाबूजी का आडीटर के बाद सीनियर आडीटर के पद पर प्रोन्नति पा गये थे। सीनियर आडीटर के जिम्मे जिले की पूरी जिम्मेदारी होती थी। बाद में यह पद जिला लेखा परीक्षाधिकारी के रुप में राजपत्रित हो गया। कभी- कभी बाबूजी को दो- दो जिलों का प्रभार भी देखना पड़ता था। जब कोई अधिकारी अवकाश पर जाता था तो पास के अधिकारी के पास उस जिले का अतिरिक्त प्रभार भी संभालना पड़ता था। बहराइच में सेवा के दौरान 1975 में बाबूजी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से बी. ए. की उपधि प्राप्त की थी।
विभाग में अच्छी छवि होने के कारण बाबूजी को प्रतिनियुक्ति पर उ. प्र. राज्य परिवहन में भी कार्य करने का अवसर मिला था। ये क्षेत्रीय प्रबन्धक के कार्यालय में बैठते थे और उस मण्डल के आने वाले सभी कार्यालयों के लेखा का सम्पे्रेक्षण करते थे। उनकी नियुक्ति कानपुर के केन्द्रीय कार्यशाला में 23.12.1982 को हुआ था। यहां से वे औराई तथा इटावा के कार्यालयों के मामले भी देखा करते थे। अपनी सेवा का शेष समय बाबूजी ने राज्य परिवहन में पूरा किया था। 1985 में वह कानपुर से गोरखपुर कार्यालय में सम्बद्ध हो गये थे। यहां से वे आजमगढ़ के कार्यालय के मामले भी देखा करते थे। गोरखपुर कार्यालय से वे 30.06.1987 में सेवामुक्त हुए थे।
संयोग से उनके सेवामुक्त होने के पहले 12 मार्च 1987 को मैं बडौदा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अपना दायित्व निभाना शुरु कर दिया था। बाबूजी अपने पैतृक जन्मभूमि दुबौली दूबे पर कम तथा नेवासा वाले जगह मरवटिया पाण्डेय पर ज्यादा रहने लगे थे। मेरे बाबूजी घर पर कम समय दे पाते थे। हां, महीने में एक दो चक्कर जरुर लग जाता था। सेकण्ड सटरडे के साथ सनडे को वह जरुर घर आते थे। वे बाहर अकेले रहते थे। माता जी को बहुत कम अपने पास रख पाते थे , क्योकि घर पर नानाजी भी तो अकेले थे। हमें जब भी अपने पढ़ाई तथा बच्चे के पढ़ाई से समय मिलता मैं उनके आवास मरवटिया पाण्डेय यानी अपने ननिहाल स्वयं, पत्नी तथा बच्चे के साथ अवश्य जाता और वह बहुत ही प्रसन्न होते थे। हमारे आगरा में सरकारी सेवा के दौरान अपनी मातृ भूमि पर 17 जनवरी 2011को उन्होंने आखिरी सांसें ली थी और हमारे परिवार पर उनका शाया हमेशा हमेशा के लिए उठ गया। सोचा था कि जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हूंगा तो बाबूजी के साथ समय बिताउगां। उनके सुख दुख में भागी बनूंगा। पर ईश्वर ने एसा करने का अवसर नहीं दिया। हमें थोड़े-थोड़े समय के लिए उनके साथ रहने का अवसर ही मिल पाया। इस कारण जब मैं इस स्थिति में हुआ कि मेरे बच्चे अकेले मेरे देखरेख में रहने के लिए उपयुक्त हो गये तो मैं अपनी पत्नी को अपनी मांजी की सेवा के लिए घर पर कर दिया और अपने जिन्दगी के आखिरी के लगभग 8 साल मुझे अकेले बाहर गुजारना पड़ा है।
बाबू जी को परमधाम गए ग्यारह वर्ष व्यतीत हो गए।उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धा के प्रसून अर्पित करते हुए उनके शांतिमय पारलौकिक जीवन की परमपिता से प्रार्थना करता हूं।
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