आदि काल से भारत के लोगों का नदियों के साथ बेहद आत्मीय रिश्ता रहा है और यह हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का एक अविभाज्य अंग रही है ।प्रदेश से होकर बहने वाली गंगा, यमुना, घाघरा और सरयू को मिलाकर बड़ी नदियों की संख्या 31 है। इनकी सैकड़ों छोटी और सहायक नदियां हैं जो प्रदेश के सिंचाई और विकास में योगदान दे रही हैं। अधिकांश लोग नदियों के जल को पवित्र और उपचारात्मक शक्ति से युक्त मानते हैं। वर्तमान समय में कई नदियों का प्रवाह बेहद कम हो गया है । कई सूखने के कगार पर पहुंच गई हैं। कई प्रदूषण से भरा गंदा नाला बन चुकी हैं। नई जल नीति में कहा गया है कि नदियों में अविरल धारा सुनिश्चित किए बगैर निर्मल धारा का होना असंभव है। इसमें नदियों का अधिकार अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिए सभी हितधारकों के बीच गहन विचार-विमर्श की गई है ताकि नदियों को समग्र कानूनी संरक्षण मिल सके। इस तरह नदियों को प्रवाह बनाए रखने, इधर-उधर घुमावदार मार्ग से होते हुए बहने और समुद्र से मिलन का अधिकार दिया जा सकेगा। अक्सर तटबंध तोड़कर रिहायशी इलाकों तक बाढ़ का पानी पहुंच जाता है। नदी या समुद्र की तरफ जाने वाले प्राकृतिक मार्गों के नष्ट होने से बाढ़ की समस्या और भी बढ़ जाती है। प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध होने से बाढ़ का पानी शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में हमारे घरों एवं कार्यस्थलों तक पहुंच जाता है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में उल्लिखित नदी नियमन क्षेत्रों का निर्धारण कर अधिसूचित कर देना चाहिए ताकि नदी-तटों एवं बाढ़ के मैदानों में विकास-जन्य हस्तक्षेपों को रोका जा सके। इस बात के ध्यान में रखकर देश के तीन भौगोलिक इलाकों- हिमालयी, वर्षा वाले क्षेत्र और तटीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब हम प्रकृति का संरक्षण करते हैं, तो बदले में हमें भी प्रकृति संरक्षण और सुरक्षा देती है। इस बात को हम अपने निजी जीवन में भी अनुभव करते हैं। यह बातें उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में रविवार को कहीं।
नदी जोड़ो योजना ने बदली तस्वीर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ों योजना की शुरुआत की थी। उत्तर प्रदेश की 19 नदियों को पुनर्जीवित करने का ब्लूप्रिट शासन द्वारा तैयार किया जा रहा है। मनरेगा के तहत नदियों को पुनर्जीवित करने के काम से जोड़ा जा रहा है। इस योजना में मीरजापुर सहित प्रदेश के 39 जिले शामिल हैं जहां से यह 19 नदियां गुजरती है। इस योजना में मीरजापुर सहित सोनभद्र, वाराणसी, भदोही, प्रयागराज, कानपुर व कानपुर देहात, बहराइच, गोंडा, बस्ती, औरैया, कन्नौज, लखनऊ, रायबरेली, सीतापुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, चित्रकूट, अयोध्या सहित कुल 39 जिले शामिल हैं। इस योजना के तहत इन जिलों के 189 विकास खंड व 1952 ग्राम पंचायतों को चिन्हित किया गया है। मनरेगा के तहत जिन नदियों को पुनर्जीवित किया जाना है उनकी कुल लंबाई 3600 किलोमीटर है। यह लंबाई गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली गंगा नदी की लंबाई दो हजार किमी से लगभग दोगुना है।
इन नदियों को बनाएंगे सदानीरा
2018 से नदियों के पुनरुद्धार का कार्य उत्तर प्रदेश सरकार करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साढ़े चार वर्षों में नदियों के संरक्षण की दिशा में बड़े पैमाने पर कार्य किया है। प्रदेश में विलुप्त हो चुकी 68 से अधिक नदियों को पुनर्जीवित किया गया है।
वर्ष 2018-19 में पुनर्जीवित हुई नदी:-
प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2018-19 मनरेगा के तहत विभिन्न नदियों के पुनरुद्धार का कार्य जा रहा है। छह नदी -अरिल नदी, मंदाकिनी नदी, कर्णावती नदी, वरुणा नदी, मोरवा नदी और गोमती नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। इन्हीं में से एक जालौन में विलुप्त हो चुकी नून नदी के पुनर्जीवित होने की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में की।
वित्तीय वर्ष 2019-20 में 26 जिलों के 19 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्व नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा नदी, नदियों को पुनर्जीवित किया गया है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में 36 जिलों की 25 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। टेढ़ी नदी, मनोरमा नदी, पांडु नदी, वरुणा नदी, ससुर खदेड़ी, सई नदी, गोमती नदी, अरिल नदी, मोरवा नदी, मंदाकिनी नदी, तमसा नदी, नाद नदी, कर्णावती नदी, बान नदी, सोत नदी, काली पूर्वी नदी, डाढ़ी नदी, ईशन नदी, बूढ़ी गंगा, कुंवर, कल्याणी, बेलन, सिरसा, किवाड़, ऊटगन को पुनर्जीवित किया गया है।
कर्णावती नदी में लबालब पानी
मीरजापुर जनपद में कर्णावती नदी को फिर से सदानीरा बनाने का प्रयास पिछले वर्ष शुरू किया गया। इस समय कर्णावती नदी में लबालब पानी बह रहा है।
सोन और वरुणा नदी में प्रवाहित हुआ जल
इसी तरह ही सोनभद्र जिले में सोन व वाराणसी जिलेकी वरुणा नदी में भी जल प्रबाहित किया जा रहा है।
अन्य अनेक नदियों की हालत सुधरी
उक्त नदियों के साथ ही सई, पांडु, मंदाकिनी, टेढ़ी, मनोरमा, ससुर खदेड़ी, अरेल, मोराव, तमसा, नाद, बाण, काली, दधि, इशान, बूढ़ी गंगा व गोमती नदी को योजना के तहत पुनर्जीवित किया जा रहा है।
टेढ़ी नदी
टेढ़ी नदी बहराइच के चित्तौरा से निकलकर गोण्डा में 192 लम्बी दूरी तय करते हुए सरयू नदी में मिल जाती है। यह गोण्डा के 7 ब्लाकों से होते हुए निकतली है जिसमें 66 ग्राम पंचायतें पड़ती हैं। टेढी नदी के जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 1317.87 लाख रूपए की धनराशि अवमुक्त की गई है।
मनवर नदी
उद्दालक ऋषि ने अपने यज्ञ स्थल पर सरस्वती नदी को प्रकट होने की इच्छा की थी। पुरानिक इनसाइक्लोपीडिया पृ. 48, 803 के अनुसार ऋषि के प्रभाव को देखते हुए सरस्वती नदी वहां प्रकट हुई थी। ऋषि ने मनोरमा नाम दिया था। यह भी कहा जाता है कि तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं। मनोरामा नदी तहसील हर्रिया, बस्ती से उत्तर-पश्चिम तक दक्षिण-पूर्वी दिशा में बह रही है। सरस्वती नदी को ब्रह्मा के चेहरे से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री भी कहा जाता है।उन्होंने ब्रहमाजी से अपना नाम पूछा तो ब्रह्मा जी ने बताया था- तुम्हारा नाम सरस्वती है। तुम तीन जगह रह सकती हो- 1. विद्वानों के जिह्वा के अग्रभाग पर तुम नृत्य करोगी। 2. पृथ्वी लोक में नदी के रुप समाज का कल्याण करोगी। 3. मेरे साथ निवास करोगी। सरस्वती ने इन शर्तों को स्वीकार कर लिया था। एक अन्य उल्लेख में आया है कि उद्दालक ऋषि के पुत्र नचिकेता ने मनवर नदी से थोड़ी दूर तारी परसोइया नामक स्थान पर ऋषियों एवं मनीषियों को नचिकेता पुराण सुनाया था। पुराणों में मनोरमा नदी को सरस्वती की सातवीं धारा भी कहा गया है। मूल सरस्वती अपने वास्तविक स्वरूप को खोकर विलुप्त हो चुकी हैं, परन्तु मनोरमा के रूप में आज भी हम लोगों को अपना स्वरूप दिखलाकर दर्शन कराती हैं। इसके नाम के बारे में यह जनश्रुति है कि जहां मन रमे वही मनोरमा होता है। जहां मन का मांगा वर मिले उसे ही मनवर कहा जाता है। चूंकि ऋषि के मन के संकल्प व इच्छा की पूर्ति करते हुए सरस्वती जी ने यहां अवतरण किया था। इसलिए उनका मनोरमा व मनवर नाम पूर्णतः उनके अवतरण की घटना की पुष्टि भी करता है। यह नदी बस्ती जिले की सीमा पर सीकरी जंगल के सहारे पूर्व दिशा में अनियमित धाराओं के रूप में बहती है। गोण्डा के चिगिना में नदी तट पर राजा देवी बक्स सिंह का बनवाया प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। गोण्डा परगना और मनकापुर परगना के बीच कुछ दूर यह पूर्व दिशा में बहने के बाद यह बस्ती जिले के परशुरामपुर विकास खण्ड के समीप बस्ती जिले में प्रंवेश करती है। इसके दोनों तरफ प्रायः जंगल व झाड़ियां उगी हुई हैं। बिंदिया नगर के पास इसमे मंद मंद बहने वाली चमनई नामक एक छोटी नदी मिल जाती है। यहां यह पूर्व के बजाय दक्षिण की ओर बहना शुरू कर देती है। जो मनकापुर और महादेवा परगना का सीमांकन भी करती है। इस मिलन स्थल से टिकरी जंगल के सहारे यह दक्षिण पश्चिम पर चलती है। यह नदी दलदली तथा गच के पौधों से युक्त रहा करती है। ये दोनो नदियां नबाबगंज उत्तरौला मार्ग को क्रास करती हैं जहां इन पर पक्के पुल बने है। इसकी एक अलग धारा छावनी होकर रामरेखा बनकर सरयू या घाघरा में मिलकर तिरोहित हो जाती है। और मूल धारा अमोढा परगना के बीचोबीच परशुरामपुर, हर्रैया, कप्तानगंज , बहादुरपुर एवं कुदरहा आदि विकासखण्डों तथा नगर पूर्व एवं पश्चिम नामक दो परगनाओं से होकर बहती हुई गुजरती है। यह हर्रैया तहसील के बाद बस्ती सदर तहसील के महुली के पश्चिम में लालगंज में पहुचकर कुवानो नदी में मिलकर तिरोहित हो जाती है। मनवर नदी जो कि 4 ब्लाकों से होते हुए निकलती है। इनके जीर्णोद्धार के लिए शासन द्वारा 711.45 लाख रूपए की धनराशि जारी की गई है। मनवर नदी के किनारे पडने वाली 41 ग्राम पंचायतों में 61 तालाबों का जीर्णोद्धार कराया गया।
नीम नदी
नीम नदी हापुड़ से लेकर बुलंदशहर में जिला प्रशासन का सहयोग मिलने से पुनर्जीवित हो रही है। नीम नदी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वर्षा से पहले नदी का चौड़ीकरण कार्य कराया जा रहा है। नदी की जमीन का चिह्नांकन करा नदी के दोनों के किनारों पर मनरेगा से ट्रेंच बनवाया जा रहा है।
सिरोही नदी
सोनभद्र में सदर विकास खण्ड के कुसम्हा गांव से निकली सिरोही नदी लगभग 10 किलोमीटर की परिक्रमा करने के बाद बेलन नदी में मिल जाती है. इस नदी का स्वरूप उस वक्त खत्म हो गया जब ब्रिटिश शासन काल 1912 ई. में धंधरौल बांध का निर्माण हुआ और 1916 ई. में घाघर नहर निकाली गई जिसके निर्माण के बाद सिरोही नदी का अस्तित्व ही खत्म हो गया और समय के साथ-साथ नदी ने भी अपना अस्तित्व खो दिया.
पृथ्वी पर गंगा को भगीरथ अपने (पूर्वजों) पितरों के उद्धार के लिए लाये थे तो वहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 105 वर्षों से अधिक समय पहले विलुप्त हो चुकी तथा अपने मूल स्वरूप को खो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित किया जा रहा है।घाघर मुख्य नहर से कुलावा देकर नदी में पानी छोड़ा गया जिसके बाद सिरोही नदी पुनर्जीवित हो गयी. दर्जनों गांवों का लगभग हजारों हेक्टेयर जमीन सिंचित होने के साथ ही भूगर्भ जल का स्तर बढ़ गया, इसके साथ ही धौबही गांव के कुल 9 तालाब नदी के पुनर्जीवित होने लबालब भर गए हैं।
बस्ती जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में
प्रशासन की उपेक्षा से जिले की 4 पौराणिक नदियों का अस्तित्व संकट में है। भीषण गर्मी का असर इन नदियों पर देखने को मिल रहा है। कभी लहराती-बलखाती बहने वाली ये नदियां आज अपनी पहचान बचाने को जूझ रही हैं। हर्रैया तहसील क्षेत्र की मनोरमा, रामरेखा और आमी सहित कठिनइयां नदी का बहाव कई स्थानों पर थम गया है, हालात ऐसे है कि अब इस नदियों का अस्तित्व भी खत्म होने को है।
नाले में तब्दील हुई रामरेखा नदी
अस्तित्व के लिए जूझ रही दूसरी नदी है रामरेखा। कभी इस नदी के जल से सीता जीने प्यास बुझाई थी, लेकिन आज अतिक्रमण की वजह से यह सिमटती जा रही है। साफ-सफाई के अभाव में नदी नाले में तबदील हो गई है। मान्यता है कि जनकपुर लौटते समय राम, सीता और लक्ष्मण ने इसी स्थान पर विश्राम किया था। माता सीता को प्यास लगने पर भगवान राम ने अपने बाण से रेखा खींच कर जल निकाला था, जिससे माता ने अपनी प्यास बुझाई थी। यहां से निकला जल आगे जाकर हर्रैया के पास मनवर नदी में मिला था। तभी से इसे रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है, रामरेखा नदी के तट पर बना रामजानकी मंदिर परिसर चौरासी कोसी परिक्रमा का प्रथम पड़ाव स्थल है। इतने महत्व के बाद भी रामरेखा नदी दुर्दशा झेल रही है।
रेत में परिवर्तित हुई कठिनइया नदी
मुंडेरवा थाना क्षेत्र में बहने वाली कठिनईया नदी आज अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है। सूखे की मार ने 80 किलोमीटर लंबी नदी को पूरी तरह से रेत में बदल दिया है। पानी के बजाय अब इस नदी में सिर्फ धूल और मिट्टी के सिल्क ही नजर आते हैं। खुद में पौराणिकता को समेटे यह नदी पहले लोगों के लिये कष्टहरणी नदी थी लेकिन आज सूखे की मार ने कठिनईया को जल विहीन कर दिया है। वैसे तो यह नदी सिद्वार्थनगर जिले से बहकर संतकबीर नगर जिले में कुआनो नदी में जाकर समाहित हो जाती है लेकिन इस प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया कि कठिनईया नदी अपने कठिन दौर से गुजरने को विवश हो गई।
कुवानो नदी
बलरामपुर के दक्षिणी छोर पर बहने वाली कुआनो नदी अपने आप में एक रहस्य है. इस नदी का कोई उद्गम स्थल नहीं है.
इसका उद्गम कोई पहाड़ ना होकर कुंवा है। इसे कूपवाहिनी भी कहते हैं। नदी की उत्पत्ति बहराइच जनपद में स्थित एक कुएं से हुई है, जिसके चलते इसका नाम कुआनों पड़ा। बहराइच जिले के पूर्वी निचले भाग में बसऊपुर गांव के पास एक सोते के रुप में इसका प्रवाह शुरु होता है. जो गोण्डा के बीचोबीच होकर रसूलपुर में बस्ती मण्डल को स्पर्श करती है। अपने उद्गम स्थल से लगभग 13 किमी तक नदी का स्वरूप नाले जैसा है। खुरगूपुर गांव से उत्तर गोंडा जनपद की सीमा में प्रवेश से 4 किमी इसका आकार नदी का हो जाता है। इस नदी के घाट सकरे व गहरे हैं। नदी का प्राचीन नाम कर्द भी बताया जाता है। यह नदी अपना पाट कभी नहीं बदलती। गोंडा जनपद के उत्तरी सीमा पर प्रवाहित होते हुए यह सिद्धार्थनगर व बस्ती जनपद में प्रवेश करती है। यह बस्ती पूर्व, बस्ती पश्चिम, नगर पश्चिम, नगर पूर्व, महुली पूर्व तथा महुली पश्चिम परगनों को पृथक भी करती है।कुवानों नदी तहसील बस्ती और भानपुर से बह रही है। गोरखपुर में यह घाघरा में विलीन होर स्वयं को समाप्त कर लेती है। कुवानों नदी से दूर दराज के इलाकों में नाव से सामान की ढुलाई भी होती थी। इसके दोनो ओर घने जंगल दिखाई पड़ते हैं. कंटीले बेंत के जंगलो से गुजरती हुई यह नदी अद्भुत दृश्य पैदा करती है.साल,सागौन के अतरिक्त दुर्लभ सिरस वृक्ष की प्रजाति यहां पाई जाती है. नदी के दोनो ओर झाडियों की लम्बी श्रंखला है जो दुर्लभ भी है. कुआनो नदी के कारण जैवविविधता की दृष्टि से यह इलाका काफी समृद्ध है. पूरब की दिशा में बढ़ते हुए कुआनो नदी बस्ती जिले की एक प्रमुख नदी बन जाती है और संतकबीर नगर में बूढी राप्ती में मिलकर घाघरा नदी में समा जाती है.
रवई नदी
बभनान कस्बे से पश्चिम बभनजोगिया के पास श्रवण पाकड़धाम से चलकर 57 किलोमीटर दूर चुवाड़े के बगल कुआनों नदी में मिलने वाली ऐतिहासिक रवई नदी है। वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र ने इस नदी को बचाने की दिशा में पहल की और सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पास कर धन निर्गत किया। शासन की मंशा के अनुरूप इसे गहरा कर वाटर लागिंग समाप्त करने तथा इसके पानी का प्रदूषण समाप्त कर दोनो किनारे सड़क बनाने का प्रस्ताव रहा है। जन श्रुतियों में रवई नदी श्रवण कुमार के अंधे माता पिता के आंसुओं से उत्पन्न हुई थी। पहले इसका नाम भी रोई नदी था जो बाद में परिवर्तित होकर रवई नदी नाम से जाना जाने लगा।
आमी नदी
अमी उत्तर पूर्वी सीमा पर बहती है।उत्तर में, अमी नदी, जिला बस्ती और सिद्धार्थ नगर की सीमाएं बनाती है। सांप्रदायिक एकता के प्रतीक सद्गुरू कबीर स्थली मगहर के पूरब आमी नदी बहती है। आमी नदी मगहर नगर के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन दायिनी का रूप मानी जाती है। सद्गुरू कबीर इसे अमिया कहकर पुकारते थे। कबीर दर्शन को आने वाले श्रद्धालु आमी का जल भी प्रसाद स्वरूप अपने साथ ले जाते है।आमी नदी का जल यहां आने वाले श्रद्धालु शिव मंदिर में चढाते हैं और पूजन अर्चन करते है। आमी नदी तट पर बने प्राचीन मस्जिद के सामने बनी बौलिया में वजू करने के बाद श्रढ़ालु नमाज अदा करने के साथ ही सद्गुरु कबीर की मजार पर फातिहा भी पढ़ते हैं। सिद्धार्थनगर के सिकोहरा ताल से निकलकर गोरखपुर जिले में राप्ती नदी में मिलने वाली 135 किलोमीटर लंबी आमी नदी प्रवाहित होती है।
मछोई - गोरया नदी
यह बस्ती जिले की एक छोटी नदी है। जो गर्मियों मे सूख जाती है। कहीं कहीं नदी के तलहटी में प्रकृति सोते होते हैं जो इसकी जीवंतता बनाए रखते हैं। कप्तानगंज के आगे यह चंदो ताल में समाहित हो जाती है और बस्ती कलवारी राजमार्ग पर झिरझिरवा पुल से आगे बहादुर पुर ब्लाक में गोरया नदी के रुप में प्रवाहित होती है। पूर्व में गोरया नदी जिला संत कबीर नगर की सीमा रेखा बनाती है और पूर्वी दिशा में तहसील बस्ती में बहती है।। गोरया कुछ दूरी पर जिले की पूर्वी सीमा को नियमित करती है। आगे चलकर यह मनोरमा नदी में और आगे लालगंज में कुवानों नदी में विलीन हो जाती है।
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