Thursday, December 2, 2021

भागवत प्रसंग (20) चतु:श्लोकी भागवत

भागवत पुराण हिंदुओं के 18 पुराण में से एक है। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है। इस पुराण में भगवान श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में वर्णित किया गया है।
इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है।भागवत पुराण 12 स्कंद /खंडों के इस ग्रंथ में 335 अध्याय तथा 18 हजार श्लोक हैं। इसके 10वें अध्याय में श्रीकृष्ण का जीवन सार कुछ इस प्रकार वर्णित है क यह समस्त प्राणियों के लिए सांसारिक जीवन जीते हुए ज्ञान तथा मुक्ति का मार्ग दिखाता है।
आपके पास इतना समय नहीं है कि पूरी भागवत का पाठ कर सकें और आप इसका पाठ करना चाहते हैं।तो अब परेशान मत होइये। ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।
पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। आइये जानते हैं कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है।
॥चतु:श्लोकी भागवत॥
निम्नलिखित चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है।यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है।पुराणों के मुताबिक,ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था।इनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलता है॥

श्लोक- 1
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम।।
अर्थ- सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टी न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूं। यह सब सृष्टीरूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टी, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूं।
श्लोक-2
ऋतेSर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम:।।
अर्थ- जो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता, उसे आत्मा की माया समझो। जैसे (वस्तु का) प्रतिबिम्ब अथवा अंधकार (छाया) होता है।
श्लोक-3
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥
अर्थ- जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूं।
श्लोक-4
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥
अर्थ- आत्मतत्त्व को जानने की इच्छा रखनेवाले के लिए इतना ही जानने योग्य है की अन्वय (सृष्टी) अथवा व्यतिरेक (प्रलय) क्रम में जो तत्त्व सर्वत्र एवं सर्वदा रहता है, वही आत्मतत्व है।

यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्॥5॥
अर्थ-जैसे पाँच महाभूत उच्चावच भौतिक पदार्थों में कार्य और कारण भाव से प्रविष्ट और अप्रविष्ट रहते हैं, उसी प्रकार मैं इन भौतिक पदार्थों में प्रविष्ट और अप्रविष्ट भी रहता हूँ (इस प्रकार मेरी सत्ता है)।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन:।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा॥6॥
अर्थ-आत्मा के तत्त्व जिज्ञासु के लिए इतना ही जिज्ञास्य है,जो अन्वयव्यतिरेक सर्वत्र और सर्वदा रहे वही आत्मा है।
एतन्मत् समातिष्ठ परमेण समाधिना।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित्॥7॥
अर्थ-चित्त की परम एकाग्रता से इस मत का अनुष्ठान करें,कल्प की विविध सृष्टियों में आपको कभी भी कर्तापन का अभिमान न होगा॥
॥इति श्रीमद्भागवते महापुराणेsष्टादशसाहस्त्रयां संहितायां वैयासिक्यां द्वितीयस्कन्धे भगवद् ब्रह्मसंवादे चतु:श्लोकी भागवतं समाप्तम्। 
                           भजन
॥छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
[एक गोपी दूसरी गोपी को क्या कहती है?]

छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए,
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सर पे मुकुट,काँधे काली कमरिया,
मीठी मीठी बांसुरी बजावे साँवरीया,बजावे साँवरीया।
काले से घुँघरारे बाल,आज मेरे घर आ गए।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए॥
घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

नन्हा गोपाल मेरे मन को लुभाये,मन को लुभाये,
यमुना किनारे खड़ा गईया चराये, गईया चराये।
संग में हैं ग्वाल और बाल,आज मेरे घर आ गए हैं,
संग में हैं गोपी ग्वाल बाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
घर आ गए मेरे, घर आ गए मेरे,घर आ गए।
दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥

सब सखियों का जीवन खिवैया,जीवन खिवैया,
बृज वासियों का बंशी बजैया,बंशी बजैया।
सबसे निराली है चाल,सबसे निराली है चाल,
आज मेरे घर आ गए,घर आ गए मेरे,घर आ गए मेरे।
घर आ गए,दर्शन से हो गई निहाल,आज मेरे घर आ गए॥
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं।
छोटे से नन्द जी के लाल,आज मेरे घर आ गए हैं। 

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