माँ-बेटी का रिश्ता बहुत ही प्यारा रिश्ता होता है और हर माँ की चाह होती है कि उसकी बेटी ससुराल में खुश रहे। इसीलिए मां बेटी को प्रारंभ से ही अच्छे संस्कार देती है पर समय के साथ-साथ माताओं की इस सीख में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। पुराने समय में संयुक्त परिवार में अच्छे संस्कार नाना नानी दादा दादी मौसी बुवा छोटी बड़ी बहनें अपने व्यवहार से बहुत कुछ सिखा देती थीं।पर अब एकल परिवार में अपने पराए का बोध बहुत कुछ माहौल खराब कर देती है। आज अधिकतर घरों के टूटने की वजह लड़की के अभिभावकों का उसकी गृहस्थी में हस्तक्षेप और उनके द्वारा दी जाने वाली गलत शिक्षा है। ऐसे अनेक उदाहरण हम आप अपने आस-पास पा जाएंगे।
बेटी के लिए चिंता करना तो हर मां का फर्ज है। बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसके सुख-दुख में उसका साथ देना हर माता-पिता का कर्तव्य होता है।
यदि बेटी अपनी गृहस्थी में खुश है, उसे अपने पति-ससुराल वालों से कोई शिकायत नहीं तो मां का फर्ज यही है कि वह बेटी और उसके ससुराल वालों के रिश्ते को मजबूत बनाएं। उसे अच्छी सीख दें। उस रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएं। उसके गृहस्थी में बिल्कुल ना हस्तक्षेप करे। कम से कम बातें करे।और कुछ अनबन होने पर खुद संभलने का अवसर प्रदान करें। बेटी और ससुराल वालों के मध्य रिश्ते को सुधारने के लिए कुछ बातों का ध्यान देने वाली बातें निम्न हैं:_
१- विवाह के पश्चात् बेटी की आवश्यकता से अधिक देखभाल न करें। उसकी सहायता करें पर उन्हीं परिस्थितियों में, जब उसे अपने परिवार से सहायता न मिल रही हो। डिलीवरी के दौरान अधिकतर मांएं सोचती हैं कि उनकी बेटी की देखभाल ससुराल में सही तरह से नहीं हो पाएगी, इसलिए वे बेटी को मायके में डिलीवरी करवाने के लिए उकसाती हैं और बेटी अपने ससुराल वालों को छोड़ मायके पहुंच जाती है। उसे लगता है कि जो देखभाल उसकी मां करेगी, वह सास कहां कर पाएगी। ऐसा कतई न करें। जैसा ससुराल वाले चाहें, बेटी को वैसे ही करने को कहें। इससे आपकी बेटी और ससुराल वालों के मध्य प्यार व देखभाल की भावना बढ़ेगी, रिश्ते मजबूत होंगे।
२- विवाह के बाद बेटी को ससुराल में अपनी जगह बनाने में कुछ समय लगता है। उसे वह समय दीजिए। उसे बार-बार मायके आने पर जोर न दें। विवाह के पश्चात् उसका असली घर ससुराल है और बार-बार मायके आने से वह अपने घर, परिवार को नजर अदांज करती है। इससे उसके ससुराल वालों को परेशानी हो सकती है।
३- तोहफे हर किसी को अच्छे लगते हैं पर बहुत अधिक तोहफे देकर आप अपनी बेटी की आदतों को बिगाड़ सकती हैं। अगर ससुराल वाले आपकी बेटी के शौकों को पूरा नहीं कर सकते तो आप आर्थिक सहायता देने का कष्ट बिलकुल न करें। इससे आप उसकी ससुराल वालों को नीचा दिखा रही हैं।उसे अपने संसाधन मे जीने की आदत पड़ने दें।
४- बेटी के गृहस्थ जीवन में आप हस्तक्षेप न करें। अगर आप उसकी ससुराल वालों और अपने दामाद को कुछ कहना भी चाहते हैं तो आपका ढंग ऐसा हो कि उन्हें बुरा न लगे। इससे आपके और उनके संबंधों में खटास पड़ सकती है।
५- बेटी से मिलने उसके घर जाएं तो बेटी के कमरे में ही, उससे ही बात करने की बजाय उसके ससुराल वालों से ऐसा व्यवहार करें कि उन्हें ऐसा लगे कि आप सिर्फ अपनी बेटी से नहीं, उनसे भी मिलने आई हैं।
६-अगर आपका दामाद अपने परिवार वालों पर कोई खर्चा करता है तो अपनी बेटी को दामाद के इस खर्चे में कटौती करने के लिए न उकसाएं। जब आपकी बेटी अपने भाई-बहनों पर खर्च कर सकती है तो आपका दामाद अपने परिवार पर क्यों खर्च नहीं कर सकता।
७- ध्यान रहे, आप अपनी सीखों से अपनी बेटी की गृहस्थी को सुखमय भी बना सकती हैं और उजाड़ भी सकती हैं, इसलिए अपनी बेटी की सोच को बड़ा व सकारात्मक बनाने की कोशिश करें ताकि उसके ससुराल वाले उस पर नाज करें।
८-जो बेटी स्कारतमक सोच रख कर उचित तालमेल बिठा के रहेगी वह घर स्वर्ग सा होकर आदर्श बन जाता है।एक छोटी सी लापरवाही या बचकाना उन्माद बनी बनाई गृहस्थी को बिगाड़ सकती है।
९-यदि आप इस प्रकार कुछ छोटी छोटी बातों से बेटी के घर को स्वर्ग बनाने में कामयाब हो जाएगी और आपकी बेटी अपना घर छोड़ मायके आने का नाम ही नही लेगी।
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