अयोध्या में अनेक मंदिर भी राम सखा/राम सखी सम्प्रदाय से अपने को जोड़ रखे है। सनातन धर्म के मुख्यत पांच संप्रदाय माने जा सकते हैं- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय। वैष्णव संप्रदाय के उप संप्रदाय - वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि। राम सखा सम्प्रदाय 18वी संवत से प्रकाश में आया परन्तु सखी सम्प्रदाय तो सनातन काल से ही राम सखा राम सखी सीता सखी कृष्ण सखा कृष्ण सखी राधा सखी आदि विविध रुपों में पुराणों व भक्ति साहित्य में पाया जाता है। राम सखी मंदिर गोला घाट महंथ सिया राम शरण जी हैं। राम सखी मंदिर निकट लक्ष्मन घाट , राम सखी मंदिर रास कुज आदि इसी पथ के मंदिर हैं। यहां अष्ट राम तथा अष्ट जानकी जी सखियों के नाम को आत्मसात करती हुई अनेक मंदिरों की संरचना व अराधना हो रही है।
कनक भवन
अयोध्या का एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर सीता और राम के सोने के मुकुट पहने
प्रतिमाओं के लिए लोकप्रिय है. मुख्य मंदिर आतंरिक क्षेत्र में फैला हुआ है,
जिसमें रामजी का भव्य मंदिर स्थित है। यहां भगवान राम और उनके तीन
भाइयों के साथ देवी सीता की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार
राम विवाह के पश्चानत् माता कैकई के द्वारा सीता जी को कनक भवन मुंह दिखाई में
दिया गया था। जिसे भगवान राम तथा सीता जी ने अपना निज भवन बना लिया।
आठ सखियों के कुंज
मंदिर के गर्भगृह के पास ही शयन स्थान है
जहां भगवान राम शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। जिन पर
उनके चित्र स्थाापित किए गये है । सभी सखियाँ की भिन्न सेवायें हैं जो भगवान के
मनोरंजन तथा क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती थी उनके नाम इस प्रकार है। श्री चारुशीला
जी श्री क्षेमा जी, श्रीहेमा जी, श्रीवरारोहा जी, श्रीलक्ष्मणा जी, श्रीसुलोचना जी, श्रीपद्मगंधा जी तथा श्रीसुभगा जी
की भगवान के लिए सेवाएं भिन्न भिन्न है। ये आठों सखियां भगवान राम की सखियाँ कही
जाती हैं। भक्तों में जो अत्यन्त अन्तरंग प्रेमी-सखी-भावना भावित हृदय होते हैं वे
कनकभवन के ऊपर बने गुप्त शयनकुन्ज का भी दर्शन करने की इच्छा करते हैं परन्तु यह
शयनालय सबको नहीं दिखाया जाता। किन्हीं कारणों से अब यह आम जनता के दर्शनों के लिए
बन्द कर दिया गया है। भावना से-इस शयनकुन्ज में नित्य प्रति रात्रि में पुजारी
भगवान को शयन कराते हैं। दिव्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित मध्य में सुन्दर शय्या
बिछी है। उसमें बीच के कुन्ज में श्रृंगार सामग्रियाँ रक्खी हैं। उसी कुुन्ज में
शय्या पर भगवान शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। श्री
चारुशीला जी, श्री क्षेमा जी, श्री
हेमा जी, श्री वरारोहा जी, श्री
लक्ष्मणा जी, श्री सुलोचना जी, श्री
पद्मगंधा जी, श्री सुभगा जी । इन आठ सखियों के प्राचीन चित्र
बने हुए हैं। उन चित्रों की शोभा देखने ही योग्य है। अपनी अपनी सेवा में सभी
सखियाँ तत्पर दिखाई देती हैं। सभी सखियाँ की भिन्न-भिन्न सेवाएँ हैं। उस सेवा के
रहस्य सभी चित्रों के नीचे दोहों में लिखे हुए हैं। वे 8 दोहे इस प्रकार हैं-
श्री चारूशीला जी
प्रथम चारुशीला सुभग,
गान कला सुप्रबीन।
युगल केलि रचना रसिक,
रास रहिस रस लीन।। 1।।
अर्थात-श्री चारुशीलजी,
युगल सरकार की क्रीड़ा के लिये प्रबन्ध करती हैं। आप गान-कला की
आचार्य हैं। अखिल ब्रह्माण्ड के देवी-देवता, जो
गानविद्या-प्रिय हैं, गन्धर्व आदि उन सबकी अधिष्ठात्री देवी
आप हैं। सृष्टि के वाणी आदि कार्य सब आपके आधीन हैं। आप युगल सरकार के ‘विधान-रचना’ विभाग की प्रधानमंत्री हैं।
श्री सुभगा जी
सुभगा
सुभग शिरोमणि, सेज सुहाई सेव।
सियवल्लभ सुख सुरति,
रस, सकल जान सो भेव।। 2।।
अर्थात-ये युगल सरकार के वस्त्रादि की
सेवा करती हैं तथ अखिल ब्रह्माण्ड में वस्त्रों का प्रबन्ध,
स्वच्छता, आरोग्य आदि आपके आधीन हैं। आजकल के
हिसाब से आपको युगल सरकार के आरोग्य-विभाग की प्रधानमंत्री कह सकते हैं।
श्री वरारोह जी
सखी
वरारोह युगल भोजन
हरषि जमाय।
प्राण
प्राणनी प्राणपति, राखति प्राण
लगाय।। 3।।
अर्थात-ये सरकार की भोजनादि का सब प्रबन्ध
करती हैं। अखिल ब्रह्माण्ड में आप विश्व भरणपोषण की अधिष्ठात्री हैं। अन्नपूर्णां
अष्टसिद्धि नवोनिधि आदि आपके आधीन है। आपको प्रभु का ‘गृहसचिव’ कहना चाहिये।
श्री पद्मगंधा जी
सखी
पद्मगंधा सुभव भूषण
सेवित अंग।
सदा
विभूषित आप तन, युगल माधुरी
रंग।। 4।।
अर्थात-श्री पद्मगंधा जी को भूषण आदि की
सेवा मिली है। समस्त संसार का धन, कोष, कुबेर आदि आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”अर्थसचिव“
हैं।
श्री सुलोचना जी
अलि
सुलोचना चितवित, अंजन तिलक
संसार।
अंगराय
सिय लाल कर, जोवर लखि
शृंगार।। 5।।
अर्थात-श्री सुलोचना जी प्रभु का अंजन,
तिलक सब शृंगार सुचारू रूप से सजाती हैं। चंदनादि अंगराग की सेवा
करती हैं। इधर वे ही विश्व की शंृगार सामग्रियों की प्रबन्धकत्र्री हैं। यह प्रभु
की ‘प्रबन्धमंत्री’ कही जाती हैं।
श्री हेमा जी
हेमा
करि बीरी सादा, हंसि दम्पति
सुख देत।
सम्पति
राग सुराग की, बड़भागिनी उर
हेत।। 6।।
अर्थात-कनकभवन में ताम्बूल की सेवा तथा
अन्तरंग सेवाएँ भी आपके अधीन हैं। इधर जगत में आप शंृगाररस की उपासिकाओं की रक्षा
भी करती हैं। महिलाओं के सौभाग्य की चाबी आपके ही आधीन हैं। आप प्रभु की ”उत्सव-सचिव“ हैं।
श्री क्षेमा जी
क्षेमा
समस स्नान सम, वसन विचित्र
बनाय।
सुरुचि सुहावनि सुखद ऋतु,
पिय प्यारी पहिराय।। 7।।
अर्थात-श्री कनकभवन सरकार को स्नान कराना,
ऋतु के अनुसार जल-विहार, उबटन आदि की सेवा
करती हैं। इधर ब्रह्माण्ड का समस्त जलतत्व आपके आधीन रहता है। इन्द्र-वरुण आपके
आधीन हैं। आप प्रभु की ”जल-सचिव“ हैं।
श्री लक्ष्मणा जी
लक्ष्मण
मन लक्ष गुण
पुष्प विभूषण साज।
विहंसि बिहंसि पहिरावतीं,
सियवल्लभ महाराज।। 8।।
अर्थात-‘कनकभवन’
में नित्य धाम में यह प्रिया प्रियतम की फूलमाला पुष्पभूषण की सेवा
करती हैं और जगत् में समस्त वन-उपवन, पशु, पक्षी आपकी रक्षा में रहते हैं। सूर्य चन्द्र आपके आधीन हैं। आप प्रभु की ”वनस्पति एवं कला-सचिव“ कही गयी हैं।
इस प्रकार इन आठों सखियों की जो महिमा
जानकर इनकी उपासना करता है वह समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है।
श्री सीताजी की सखियां
इनके अतिरिक्त आठ सखियाँ और हैं जो श्री
सीताजी की अष्टसखी कही जाती हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी,
श्री प्रसाद जी, श्री विमला जी, मदनकला जी, श्री विश्वमोहिनी, श्री
उर्मिला जी , श्री चम्पाकला जी, श्री
रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग कहा जाता है। ये श्री
किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में लवलीन रहती हैं।
आनन्द-विभोर की लीलाओं में, मान आदि में तथा उत्सवों में
निमग्न रहते हुए दम्पति को विविध प्रकार से सुख प्रदान करती हैं। मान्यता है कि
किशोरी जी प्रतिदिन श्रीराम को उनके भक्तों अर्थात भक्तमाल की कथा सुनातीं है। इसी
भावना के तहत भक्तमाल की पुस्तक भी रखी रहती है।
रंगमहल
अयोध्या ;-
अयोध्या के रामकोट मोहल्ले में राम जन्म
भूमि के निकट भव्य रंग महल मन्दिर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि जब सीता माँ
विवाहोपरांत अयोध्या की धरती पर आयीं. तब कौशल्या माँ को सीता माँ का स्वरुप इतना
अच्छा लगा कि उन्होंने रंग महल सीता जी को मुँह दिखाई में दिया। विवाह के बाद
भगवान श्री राम कुछ 4 महीने इसी स्थान पर रहे।
और यहाँ सब लोगों ने मिलकर होली खेली थी। तभी से इस स्थान का नाम रंगमहल हुआ। सखी
सम्प्रदाय का मंदिर होने से इस स्थान का महत्व अत्यंत वृहद हो जाता है और दर्शनीय
हो जाता है यहाँ नित्य भगवान राम को शयन करते समय पुजारी सखी का रूप धारण करती हैं,
भगवान को सुलाने के लिए ये सखियाँ लोरी सुनाती हैं, और उनके साथ रास करती हैं।
पृथक राम सखा सम्प्रदाय का
उद्भव ;-
श्रीमद् सखेंद्र जी महाराज (संभवतः
निध्याचार्य जी महराज) का जन्म विक्रमसंवत के आखिरी चरण चैत्र शुक्ल में राम नवमी
को जयपुर में एक सुसंस्कृत गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने श्री वशिष्ठ
मुनि से गुरु दीक्षा प्राप्त की। गलिता के आचार्य ने उन्हें रामसखा की उपाधि दी
थी। वे दक्षिण के उडीपि कर्नाटक में गये जहां बड़ी तनमयता से गुरु की सेवा की
थी।उनका निवास नृत्य राघव कुंज के नाम से प्रसिद्व हुआ था । सखेंद्र जी महाराज को
जब लगा कि भगवान राम ने उन्हें अपने छोटे भाई के रूप में स्वीकार कर लिया है। उसी
क्षण महाराज जी ने घर छोड़ दिया और विराट वैष्णव बन गए।उन्होंने सत्यता का मार्ग
खोजना शुरू कर दिया। वह अपने गुरु जी के साथ रहे और भगवान और उनके स्नेह को
प्राप्त करने का कौशल सीखा। इस समय तक महाराज जी जयपुर में ही थे,
लेकिन उनकी जन्मस्थली होने के कारण वे जयपुर छोड़कर अयोध्या पुरी चले
गए। अयोध्या में गुरुजी के आवास का नाम नृत्य राघव कुंज के नाम से प्रसिद्व हुआ
था। अयोध्या आकर उन्होंने सरयू नदी के तट के अलावा एक पर्णकुटी में भगवान को याद
करने के लिए जीवन बिताया। महाराज जी को उन सभी भौतिक चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं
थी, जो वे करना चाहते थे, वे अपने
भगवान के बारे में अधिक जानते हैं और दुनिया में और कुछ भी उनके लिए मायने नहीं
रखता था। जब वह ध्यान और प्रार्थना में व्यस्त थे कुछ और महात्मा उससे प्रभावित
हुए उनके वास्तविकता का परीक्षण करना चाहे। वह उनसे बोले यदि भगवान राम अपने धनुष
वाण के साथ प्रकट हो तो मानेगे कि महात्मा जी उनके सच्चे सेवक है। महात्माओं के
सुनने के बाद महराज जी चुप हो गये और इसका उत्तर नहीं दिये। किन्तु रामजी ने इसे
नहीं छोड़ा । इसके कुछ देर के बाद रामजी प्रकट हुए और सिद्व किये महराज जी सच्चे
भक्त है। यह महात्माओं के लिए एक पाठ था। वे अपने करनी के लिए दुखी हुए। वह उन्हें
महराज जी के सामने धनुष वाण के साथ लेकर देखने
व मुस्कराने को महराज जी के आर्शाबाद को मानने लगे।
अयोध्या में
श्रावण कुंज नृत्य राघव कुंज , सियाराम केलि कुंज
चार शिला कुंज तथा राम सखा बगिया आदि पाच प्रमुख मंदिर इस सम्प्रदाय के हैं।
श्रावण कुंज अयोध्या के नया घाट पर स्थित है। मान्यता के अनुसार गोस्वामी तुलसी
दास जी ने यही रामचरित मानस के बालकंड की रचना की थी। नृत्य राघव कुंज मणिराम
छावनी के निकट बासुदेव घाट स्थित है। राम सखा बगिया रानी बाग में एक विस्तृत भूभाग
में स्थित है। नृत्य राघव कुंज बासुदेवघाट अयोध्या एक प्राचीन मंदिर है। यह राम
सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। सियावर केलि कुंज नागेश्वरनाथ मंदिर के पीछे
स्थित है। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। चार शिला कुंज जानकी घाट
अयोध्या में स्थित है। यह राम सखा सम्प्रदाय का पुराना मंदिर है। राम सखा मंदिर
रानी बाग अयोध्या के वर्तमान महन्थ श्री अवध किशोर मिश्र ने मंदिर की परम्परा के
बारे में बताया कि अयोध्या के कुल पाच मंदिर एक ही महन्थ जी के संरक्षण में पूजा अर्चनाकरते आ रहें थे। प्रथम गुरु श्रीमद् राम सखेन्द्र जू महराज थे। द्वितीय का
नाम उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। तृतीय महराज श्री शील निधि जू महराज थे। चतुर्थ
श्री अवध शरण जू महराज तथा पंचम श्री रामभुवन शरण जू महराज रहे। षष्टम श्री कामता
शरण जू महराज तथा सप्तम श्री रामेश्वर शरण जू महराज रहे। अष्टम महराज के रुप में
वर्तमान महन्थ श्री अवध किशोर शरण जी है।इस परम्परा में मुस्लिम धर्म से सनातन
धर्म में आये दो सन्तों ने कुछ समय तक इस परम्परा के प्रधान की ीाूमिका निभाई थी।
इनके नाम श्री शीलनिधि महराज तथा श्री सुशील निधि महराज रहा। राम सखेन्दु जू महराज
से लेकर कामता शरण महराज तक की परम्परा अखिल भारतीय स्तर पर प्रायः मिलती जुलती है
। प्रतीत होता है कि अयोध्या मैहर चित्रकूट पुष्कर उडुपि तथा सतना आदि के सभी
मंदिर एक ही परम्रा व नियंत्रण के अधीन दीर्घ समय तक रहे। बाद में सुविध तथा
दुर्गमता के कारण सभी स्वतंत्र नियंत्रण मे चले गये।
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