Wednesday, December 2, 2020

डॉ राजेंद्र प्रसाद का कुल गाँव

जन्म दिवस के अवसर पर : कुआगांव डा. राजेन्द्र प्रसाद का मूल कुलगांव

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद का बस्ती जिले से भी सम्बन्ध देखा गया है। उनका जन्म 3 दिसम्बर, 1884 को बिहार के जिला सिवान के एक गाँव जीरादेई में  हुआ था। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति 26 जनवरी 1950 को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। 28 फरवरी, 1963 को उनका देहान्त हुआ था।

 कुलगांव: कुआगाव

बाबू राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वज मूलरूप से कुआँगाँव, अमोढ़ा ( बस्ती-उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। यह गांव हर्रैया तहसील के  विक्रमजोत विकासखण्ड में अभी भी स्थित है। कुआं गांव एक गांव पंचायत भी है। यह बस्ती जिला मुख्यालय से 40 किमी. की दूरी पर यह बसा है। यहां से विक्रमजोत की दूरी मात्र 3 किमी. है। लखनऊ से यहां की दूरी 165 किमी है। यहां का पोस्ट आफिस अमोढ़ा 272127 है। इसके पास 1 किमी. की दूरी पर चैगढ़वा, सवेरा लाला,खारचा, पूरे सुखराम तथा हियारुपुर आदि गांव बसे हुए हैं। इसके पूरब में हर्रैया, उत्तर में परशुरामपुर पश्चिम में पूरा बाजार तथा दक्षिण में फैजाबाद का माया वाजार विकास खण्ड स्थित है। यह एक कायस्थ परिवार वाला गाॅव था। कुछ कायस्थ परिवार इस स्थान को छोड़ कर बलिया जा बसे थे। कुछ परिवारों को बलिया भी रास नहीं आया इसलिये वे वहाँ से बिहार के पूर्ववर्ती जिला सारन तथा वर्तमान जिला सीवान के एक गाँव जीरादेई में जा बसे। इस समय यह एक विकास खण्ड मुख्यालय भी है। इनके परिवारों में कुछ शिक्षित लोग भी थे। इन्हीं परिवारों में राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वजों का परिवार भी था। जीरादेई के पास ही एक छोटी सी रियासत थी - हथुआ। चूँकि राजेन्द्र बाबू के दादा पढ़े-लिखे थे, अतः उन्हें हथुआ रियासत की दीवानी मिल गई। पच्चीस-तीस सालों तक वे उस रियासत के दीवान रहे। उन्होंने स्वयं भी कुछ जमीन खरीद ली थी। राजेन्द्र बाबू के पिता महादेव सहाय इस जमींदारी की देखभाल करते थे। राजेन्द्र बाबू के चाचा जगदेव सहाय भी घर पर ही रहकर जमींदारी का काम देखते थे। अपने पाँच भाई-बहनों में वे सबसे छोटे थे इसलिए पूरे परिवार में सबके प्यारे थे।

उनके चाचा के चूँकि कोई संतान नहीं थी इसलिए वे राजेन्द्र प्रसाद को अपने पुत्र की भाँति ही समझते थे। दादा, पिता और चाचा के लाड़-प्यार में ही राजेन्द्र बाबू का पालन-पोषण हुआ। दादी और माँ का भी उन पर पूर्ण प्रेम बरसता था। बचपन में राजेन्द्र बाबू जल्दी सो जाते थे और सुबह जल्दी उठ जाते थे। उठते ही माँ को भी जगा दिया करते और फिर उन्हें सोने ही नहीं देते थे। अतएव माँ भी उन्हें प्रभाती के साथ-साथ रामायण महाभारत की कहानियाँ और भजन कीर्तन आदि रोजाना सुनाती थीं।

बस्ती जिले के वर्तमान पीढ़ी के लोगों को बाबू राजेन्द्र प्रसाद के पूर्वजों का बस्ती का मूल निवासी होने की बात नहीं मालूम होगी। जनपद व मण्डल बस्ती तथा उत्तर प्रदेश के सभी निवासियों के इस महान नेता से जुड़ने का गर्व है। बाबूजी की गौरव गाथा निरन्तर दिन दूनी रात चौगुनी प्रसारित होती रहे।

 

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