Tuesday, June 16, 2020

दुनिया चलती रहेगी डा. राधे श्याम द्विवेदी



रिटायरमेंट के बाद का बेतरतीब जीवन शैली,
कभी गांव कभी शहर की अस्थिर जिन्दगी,
बौद्धिक मन असमंजस में गोता लगाता है,
देखने में ऊपर से सब ठीक ठाक लगता है।

चैथेपन में वरिष्ठ नागरिक होने का दंश,
लाक डाउन में करौना महामारी का खौफ,
चार परिवारिक केरोनायोद्धाओं की नसीहतें,
सुन सुनकर मन भयाक्रान्त होता है।

नये मेहमान को संक्रमण बचाते रहने की तरकीब,
खाली समय में सभी के समयपास का खिलौना,
पलटने खिसकने खडा होने व चलने का सिलसिला,
सब कुछ जल्दी जल्दी आगे खिसकता जाता है।

अनेक जगहों पर अलग अलग गृहस्थियां,
कुशल क्षेम तो रोज का रोज होता रहता है,
समय पास के तरह तरह के अनुभवों में,
अपनी व्यथा और कथा नहीं कहा जाता है।

जब आधि व्याधि और जरा शरीर की पीड़ा,
से व्यथित मन अन्दर ही अन्दर तड़पता है,
प्रारब्ध को राजा दशरथ और बसुदेव की तरह,
अंगीकार करने के सिवा कुछ नहीं सूझता है।

योद्धाओं को फर्ज निभाने में व्यवधान ना पड़े,
कुछ पीड़ा भी अन्दर अन्दर ही सहा जाता है,
दुनिया में कब कहां क्या क्या हो रहा है,
इसी प्रत्याशा में जीवन जिया जाता है।

कभी न कभी संकट के बादल छटेंगे
आसमान साफ होगा उजाला आयेगा।
मानवता फिर पुराने रुपों में चलने लगेगी
हम रहें ना रहें दुनिया चलती रहेगी।


No comments:

Post a Comment