Friday, March 6, 2020

पण्डित गौरी नाथ शर्मा बस्ती के छन्दकार(17) डा. राधेश्याम द्विवेदी नवीन


डा. मुनिलाल उपाध्याय सरस जी कृतबस्ती के छन्दकारदो खण्डों में प्रकाशित हुआ है। इसके प्रकाशित अंशों के आधार पर बस्ती के साहित्याकाश में अनेक नक्षत्र दिखलाई पड़ते हैं। डा. मुनिलाल उपाध्याय सरसजी लगभग 250 वर्षों का साहित्यिक इतिहास अपने 5 प्रमुख अध्यायों में समेटने का प्रयास किया है। इसमें लगभग एक शतक कवियों का विवरण एकत्रकर प्रस्तुत किया गया है। प्रथम आदिचरण में 14 द्वितीय मध्य चरण में 11 सुकवियों का सपरिचय काव्यात्मक इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है। इसे पीताम्बर लछिराम चरण कहा गया है। केवल आचार्य लछिराम भट्ट का विवरण पूर्व प्रकाशित शोधगंगा नामक एक प्रबन्ध में कुछ शब्दों में व्यक्त मिलता है। एसे में सरस जी ने इन 14 कवियों के बारे में बहुत ही आधार भूत सूचनायें एकत्र कर अपने शोध प्रवंध में तथा उसके अंश स्वरुप दो लघु आकार के पुस्तकों में प्रकाशित कराकर एक प्रकार की अद्भुत मशाल प्रस्तुत किया है। कापियों और डायिरियों के धूल फांकते इन साहित्यकारों के इतिवृत्त को सरस जी ने अमर बनादिया है.
                                shiv puran के लिए इमेज नतीजे

इसी श्रृंखला में पण्डित गौरी नाथ शर्मा का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है। इनका जन्म बस्ती जिले के हर्रैया तहसील के हर्रैया विकासखण्ड के नाथपुर पाण्डेय नामक गांव में कार्तिक कृष्ण चतुर्थी संवत 1918 विक्रमी तदनुसार 1861 ई. में हुआ है। ये त्रिफला विन्दुवारी पाण्डेय थे। उनके पिता का नाम पंडित नयन सुखराम शर्मा था। नाथपुर पाण्डेय गांव भीटी मिश्र ग्राम पंचायत में आता है। इसका पोस्ट आफिस चोरखरी पिन 272155 है। भीटी मिश्र पंचायत के प्रधान अजय कुमार है। यह हर्रैया से 16 किमी. तथा बस्ती किमी की दूरी पर बसा है इस गांव का भौगोलिक क्षेत्रफल 177.9 हेक्टेयर तथा 2011 में जनसंख्या 1660 है। इस गांव में 248 घर हैं। पण्डित गौरी नाथ शर्मा का एकमात्र शिवपुराण नामक महाकाव्य मिलता है। जिसमें उन्होने अपने वंश वृक्ष तथा ग्रंथ प्रणयन का काल आदि भी दर्शाया है। आश्रय ग्रंथों में महा शिव पुराण स्कन्द पुराण नन्दी पुराण दुर्वासा पुराण कालिका पुराण लिंग पुराण तथा ब्रहमाण्ड पुराणादि को आधार बनाया गया है। इसका रचना काल बैशाख कृष्ण त्रयोदसी सं 1947 से प्रारम्भ होकर संवत 1952 में पूर्ण हुआ है। 1261 पृष्ठो वाला यह दो खण्डों का महाकावय है। यह प्रथम बार हरि प्रसाद भागीरथ द्वारा बम्बई में 1958 विक्रमी में प्रकाशित हुआ है। अवधी भाषा में लिखित यह काव्य राम चरित मानस की परम्परानुसार दोहा चैपाई शैली में लिखा गया है। इसमें कुल 11 सर्ग है। प्रत्येक सर्ग के प्रारम्भ में संस्कृत भाषा में मंगलाचरण प्रस्तुत है। शिव पुराण के सम्बंध में डा. राम गोपाल शर्मा  दिनेश ने लिखा है हिन्दी शिव काव्य परम्परा में गौरी शंकर शर्मा का यह महाकाव्य के क्रम में पहला स्थान पाता है। उससे पूर्व रीतिकाल तक हमें शिव सम्बंधी कोई महाकाव्य नहीं मिलता है। डा. राम गोपाल शर्मा  दिनेश शिव पुराण की भाषा के विषय में लिखते हैं - शिव पुराण की भाषा साहित्यिक अवधी है, किन्तु उसमें ब्रज , खड़ी बोली तथा अन्य कई बोलियों के शब्दों का यत्र तत्र मिश्रण मिलता है। डा. सरस जी ने उललेख किया है कि शब्द चयन में सरलता और स्वाभाविकता है। कहीं कही तत्सम शब्दों को छन्द योजना को शुद्ध करने के उद्देश्य से भाव को मनमाने तोड़ मरोड़ भी दिया गया है। उपमा उत्प्रेत्क्षा यमक अनुप्रास  आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। सोरठा मोटल  तोमर छप्पय हरिगीतिका आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है।
 डा. मुनिलाल उपाध्याय सरस जी बस्ती के छन्दकार नामक अपने शोध ग्रंथ में शर्मा जी का जीवन परिचय तथा उनके  एकमात्र ग्रंथ ‘’शिवपुराण’’ की समीक्षा की है। साथ ही इसकी राम चरित मानस के प्रसंगों का तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया है। अन्य पुराणों की तरह इसे भी वक्ता व श्रोता शैली से विकसित किया गया है। साथ ही शिव तत्वों को यथा समय बीच बीच में पिरोया गया है। सृष्टि की रचना रुद्रावतार अर्धनारीश्वर  मनु शतरुपा नारद मोह कैलास वर्णन कुबेर का वर्णन शिव अभिषेक आदि पर भी सामग्री पिरोयी गयी है। शिव कथायें महात्म्य ब्रत उपवास तथा अन्य कर्मकाण्डों को भी जगह दी गयी है। कहीं कहीं तो राम चरित मानस का इतना निकट का सम्बन्ध देखा गया है कि इसमें विभेद करने में भी कठिनाई होती है। प्रकृति चित्रण मानवीय सौन्दर्य चित्रण युग परिवेश का चित्रण बहुत ही विचित्र व मार्मिक बन पड़ा है। इस काव्य में सर्वत्र भक्ति की प्रधानता और लोक मंगल की तलाश है। लौकिक व अलौकिक पात्रों के चयन में लोकप़क्ष को अधिक प्रधानता दी गयी है। शिव से सम्बंधित सौकड़ों कथायें इस काव्य में व्यक्त की गयी है। भाषा का प्रवाह पूर्ण होने के साथ साथ कथ्य के अनुकूल है। छन्द सुगम है तथा कथा का स्पष्टीकरण श्रोता और वक्ता के माध्यम से होने के कारण लोक मंगल के अधिक सन्निकट है।शिव पुराण के कुछ मार्मिक प्रसंग इस प्रकार हैं। इस प्रकार हैं।
मैं अति प्रेम विकल महतारी।
धीरज कीन्ह कुसमय विचारी ।
पुनि पुनि मिलति परति महि चरना।
परम प्रेम कछु जाइ ना बरना
सब नारिन मिलि भेंट भवानी।
जाइ जननि उर पुनि लपटानी।।
पार्वती बिदाई इस प्रकार हैं --
अति प्रीति में गिरजा तबै निज मातु चरननि पै परी ।
मुरझाई तन की सुधि नहीं विह्वल भई अति तेहि घरी।
उर लाइ लीन्हीं मातु पुनि पुनि मिलति करुनाकरि महा।
कहि जात नहिं सो प्रेम मोसन धीर भागन मुद दहा।।

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