यद्यपि सरकार संवैधानिक तरीके से एसा
नहीं कर सकती है। पर व्यवहारिक रुप से इस नियम को अपनाने में बर्तमान नरेन्द्र
मोदीजी की सरकार विफल रही है और इसके विरुद्ध अनेक कानूनी जनों ने माननीय सर्वोच्च
न्यायालय में याचिका लगा रखी है। एक तरफ देश में नरेन्द्र मोदी जी की सरकार को
अल्पसंख्यकों के हितों की अनदेखी करने वाली सरकार कहकर सी ए ए के बहाने पूरे देश
में विरोध किया जा रहा है । दूसरी ओर विपक्षियों द्वारा प्रायोजित जनता मोदी जी के
अल्पसंख्यकों के हितो पर विशेष ध्यान देने वाली कृत्यों को भी नजरन्दाज करती जा
रही है। परिणाम स्वरुप मोदी जी के अपने ही लोग सरकार के इस अवैधानिक कृत्य की ओर
माननीय सर्वेच्च न्यायालय का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। नरेंद्र मोदीजी की सरकार ने
पिछले बजट में 4700 करोड़ रुपये
अल्पसंख्यकों की कल्याणकारी योजनाओं के लिए दिए थे। इसे भेदभाव पूर्ण बताते हुए
उत्तर प्रदेश के रहने वाले छह लोगों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
गई। अब इस याचिका पर केंद्र सरकार 4 हफ्ते में नोटिस का जवाब
देगी। याचिकाकर्ताओं में लखनऊ के रहने वाले नीरज शंकर सक्सेना, आगरा निवासी मनीष शर्मा, आगरा के ही रहने वाले उमेश
रावत, अरुण कुमार सिंह, शिशुपाल बघेल,
गाजियाबाद निवासी सौरभ सिंह शामिल हैं। इस मामले में याचिकाकर्ताओं
की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन हैं जबकि 20 जनवरी 2020 को हरि शंकर जैन ने इस मामले को लेकर कोर्ट में बहस की थी।
वकील विष्णु शंकर जैन कहते हैं,
‘इसमें मुख्य मुद्दा यह है कि नैशनल माइनॉरिटी कमिशन ऐक्ट 1992 की वैधता को चुनौती दी गई है। हमारा कहना है कि केंद्र सरकार हो या राज्य
सरकार (फिलहाल सेंट्रल गवर्नमेंट को पार्टी बनाया है) या गवर्नमेंट मशीनरी किसी भी
तरह के धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार नहीं दे सकती है। संविधान के आर्टिकल 29 और 30 में यह उनका खुद का अधिकार है कि वे अपने
संस्थान, संस्कृति की रक्षा करें और आगे ले जाएं। यह सरकार
का कर्तव्य नहीं है कि उनके प्रटेक्शन के लिए पैसा खर्च करे।’
प्रसिद्ध कानूनविद विष्णु शंकर जैन
का कहना है- “सरकार जो 4,700 करोड़ रुपये खर्च कर रही है, यह आर्टिकल 27 का उल्लंघन है क्योंकि करदाताओं के पैसे से आप किसी भी धार्मिक
अल्पसंख्यकों को लाभ नहीं दे सकते हैं।” हिंदू फ्रंट फॉर
जस्टिस के अध्यक्ष और वकील हरि शंकर जैन आगे कहते हैं, ‘केंद्र
सरकार ने 4700 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है कि हम इससे
अल्पसंख्यकों के लिए काम करेंगे। जैसे कि अल्पसंख्यकों को विदेश जाना है, पढ़ाई करना है, इनके लिए स्कॉलरशिप की तर्ज पर मदद
मुहैया कराएंगे। वक्फ प्रॉपर्टी को यदि बनवाना चाहते हैं तो ब्याजमुक्त लोन देंगे।
यदि मुस्लिम महिलाएं स्किल डिवेलपमेंट चाहती हैं तो उनकी भी आर्थिक सहायता की
जाएगी। इन सभी योजनाओं पर 4700 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।’
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ऐक्ट के
तहत आने वाली कल्याणकारी योजनाओं में 14
स्कीम शामिल हैं। इन सभी का जिक्र याचिका में किया गया है। इन योजनाओं में से
ज्यादातर मुसलमानों के लिए हैं। स्कीम का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि
इस लाभकारी योजनाओं का लाभ एक खास समुदाय को मिल रहा है जबकि ऐसी ही स्थिति से
गुजर रहे दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को इन लाभों से वंचित रहना पड़ रहा है।
कानूनविद हरि शंकर जैन, अध्यक्ष हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस का
कहना है -“भेदभाव इस वजह से भी है क्योंकि यदि वक्फ
प्रॉपर्टी है तो उसके लिए विशेष प्रावधान है लेकिन हिंदू प्रॉपर्टी पर इसका लाभ
नहीं मिलेगा।”श्री जैन कहते हैं, ‘इसे
कुछ यूं भी समझा जा सकता है कि अल्पसंख्यक वर्ग की पांच या छह लाख रुपये आमदनी
होगी तो उन्हें योजना का लाभ दिया जाएगा। ऐसे में जब हिंदुओं की 5-6 लाख रुपये आमदनी है तो उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा। उदाहरण के तौर पर
मैं खान हूं और आप दुबे हैं, मेरी आमदनी साल में 5 लाख रुपये है तो मेरा लड़का वजीफे का हकदार होगा लेकिन आपकी आमदनी 4 लाख रुपये है लेकिन आपके बेटे को इसका लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि आप हिंदू
हैं।’
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