इस समय संसद से सड़क तक नागरिकता
संशोधन विधेयक, 2019 को लेकर कोहराम मचा
हुआ है। गैर-भाजपा शासित राज्यों में इस कानून पर विरोध के सुर और मुखर हो गए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि विरोध के पीछे का सच क्या है? क्या
इस कानून ने देश के संविधान का अतिक्रमण किया है? आखिर राज्यों के विरोध का औचित्य क्या है? क्या उनका विरोध संवैधानिक है?
हम उन संविधान के अनुच्छेयदों पर प्रकाश डालेंगे जो चर्चा
में नहीं रहे, जिनका वास्ता संसद के अधिकार और नागरिकता से
जुड़ा है। राज्य सरकारों का विरोध कितना जायज है? क्या सच में केंद्र सरकार ने संवैधानिक अधिकारों का
अतिक्रमण किया है?
राज्यों का विरोध नाजायज
और असंवैधानिक
हमारे देश की प्रणाली एकल नागरिकता
का सिद्धांत लागू होता है। यह राज्यो का विषय क्षेत्र नहीं है। राज्य सरकारों को
इस पर कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए इस पर उनका विरोध भी असंवैधानिक
है।
नागरिकता पर संसद
सर्वोच्च
संविधान का अनुच्छेरद 11 संसद को यह अधिकार देता है कि ससंद नागरिकता पर कानून बना सके। इस
प्रावधान के अनुसार, संसद के पास यह अधिकार है कि वह
नागरिकता को रेगुलेट कर सकती है। यानी संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता की
पात्रता तय करे। सर्वोच्च सदन को यह
अधिकार है कि वह तय करे कि किसको नागरिकता मिलेगी और कब मिलेगी। कोई विदेशी किन
परिस्थितियों में देश की नागरिकता हासिल
कर सकता है। इन सारी बातों पर कानून बनाने का हक सिर्फ संसद को है। यह विषय यूनियन
लिस्ट का हिस्सा है नागरिकता इसके अलावा
संविधान में उल्लेरख तीन सूचियों में नागरिकता से जुड़ा मामला यूनियन लिस्ट का
हिस्सा है। नागरिकता से जुड़ा मामला यूनियन
लिस्टा के 17वें स्थान पर है। यह राज्य सूची या समवर्ती सूची
का हिस्सा नहीं है। इसलिए नागरिकता पर कानून बनाने के अधिकार सिर्फ और सिर्फ संसद
को ही है। इसलिए राज्य सरकारों का विरोध उचित नहीं है। यह संवैधानिक नहीं है।
राज्यों का यह विरोध केवल राजनीतिक
स्वार्थ के लिए ही है।
नागरिकता पर मौन नहीं है
संविधान
नागरिकता के मसले पर संवधिान मौन
नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 5 में
बाकयादा नागरिकता के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसके तहत यह बताया
गया है भारत का नागरिक कौन होगा। इसमें यह प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति भारत
में जन्मां हो या जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा हो। अगर कोई व्यक्ति
संविधान लागू होने से पहले कम से कम पांच वर्षों तक भारत में रहा हो या तो भारत का
नागरिक हो, वही देश का मूल नागरिक होगा।
विपक्ष ने अनुच्छेद 14 को बनाया अधार
इस कानून के खिलाफ विपक्ष अनुच्छेद 14 को आधार बनाकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। अनुच्छेद 14 के तहत भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या
विधियों के समान सरंक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार देश के नागरिकों के
साथ अन्य लोगों पर भी लागू होता है। सरकार के पास भी अपने कानून के पक्ष में
पर्याप्त और शक्तिशाली तर्क है। केंद्र सरकार नागरिकता के तर्कसंगत वर्गीकरण के
आधार पर इसे जायज ठहरा सकती है। सरकार यह हवाला दे सकती है कि देश में गैर कानूनी
ढंग से रह रहे लोगों के लिए यह कानून जरूरी है। इसकी आड़ में कई अवांछित तत्व भी
देश में शरण ले सकते हैं, आदि-आदि।
अनुच्छेद 10 पर उठाए सवाल
विपक्ष इस कानून के विरोध में संविधान के
अनुच्छेद 10 और 14 की दुहाई दे रहा है। आखिर क्यो है अनुच्छेद 10 ? संविधान
का अनुच्छेऔद 10 नागरिकता का अधिकार देता है। अब सवाल उठता
है कि क्यों इस कानून से लोगों की नागरिकता को खतरा उत्पन्न हो गया है ? लेकिन इस कानून में नागरिकता खत्म किए जाने की बात नहीं है। इस नए कानून
में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कहता है कि अगर आप आज
नागरिक हैं तो कल से नागरिक नहीं माने जाएंगे। नया नागरिकता संशोधन बिल सीधे तौर
पर इस अनुच्छेद 10 का उल्लंघन नहीं करता है।
धरना,
प्रदर्शन हिंसक ना हो
धरना, प्रदर्शन
और आंदोलन किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं. लेकिन
लोकतंत्र ने अपनी आवाज उठाने के जो अधिकार हमें मिला हैं. उसमें हिंसा की कोई जगह
नहीं है. आज देश भर में नागरिकता कानून के बहाने प्रदर्शनों के नाम पर हिंसा की जा
रही है . पुलिस पर पत्थर बरसाए जा रहे हैं, बसों को जलाया जा
रहा है,रेल की लाइने उखाड़ी जा रही है। सार्वजनिक संपत्ति को
नुकसान पहुंचाया जा रहा है और शहरों को बंधक बनाने की कोशिश हो रही है।फिर भी कई लोग
इसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देकर इसका समर्थन कर रहे हैं। पूरे देश में एन आर
सी और नागरिकता संशोधन कानून विरोध के नाम पर गुंडागर्दी हो रही है, अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उपद्रवियों के निशाने पर भारत की
सरकार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार है। भारत के 90
करोड़ वोटर्स ने अभी 6 महीने पहले ही इस सरकार को चुना है.
ऐसे में एसे विरोध को कैसे जायज ठहराया जा सकता है।
गुण्डागर्दी बन्द हो
दिल्ली में जो लोग हिंसा कर रहे थे
उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे।ं .सवाल ये है कि अगर इनका विरोध अभिव्यक्ति
की आजादी है तो फिर इन्हें अपने चेहरे ढकने की जरूरत क्या है ?
नागरिकता संशोधन कानून का विरोध सिर्फ दिल्ली की जामिया मिलिया
इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्र नहीं कर रहे हैं बल्कि इसमें उनका साथ देश भर की
कुछ विश्वविद्यालयों के तथाकथित छात्र व विपक्षी दलों के युवा संगठनों के गुण्डे
भी दे रहे हैं । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नदवा कॉलेज में भी छात्रों ने
पुलिस पर पथराव किया और कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश की है। वराणसी एम्मस
तथा आजमगढ में भी प्रदर्शन व गुण्डागर्दी हुई है।
शहर मोहल्ला ना बनें
जिस तरह हर शहर में एक मोहल्ला या
इलाका ऐसा होता है जहां पुलिस भी जाने से डरती है। ठीक उसी तरह ये छात्र देश भर के
विश्वविद्यालयों को भी वैसा ही मोहल्ला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हर शहर के कुछ
इलाके ऐसे होते हैं..जहां कानून व्यवस्था का राज नहीं चलता। वहां सिर्फ एक खास
समुदाय का कब्जा होता है। कोई भी सरकार उस मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने से बचती
रहती है। इन मोहल्लों में कुछ विशेष लोगों की गुंडागर्दी चलती है और अगर इस इलाके
में कोई फंस गया तो फिर पुलिस भी मदद नहीं कर पाती है। कुछ छात्र.. कॉलेजों और
विश्वविद्यालयों को भी ऐसा ही मोहल्ला बनाना चाहते है,जहां मीडिया नहीं घुस सकता,पुलिस नहीं घुस सकती और
नियम कायदों के पालन का तो..सवाल ही पैदा नहीं होता। पश्चिम बंगाल की राजधानी
कोलकाता में भी एन आर सी और नागरिकता कानून के विरोध में प्रायः रोज रैली व
पदयात्रायें निकाली जा रही हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद इस
रैली का नेतृत्व करती रहती हैं। भारत सरकार इनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाता है।.इस
दौरान आम लोगों की दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है।.कोलकाता की सड़कों पर जाम लग
जाता है। बसें रोक दी जाती हैं।. विरोध प्रदर्शन के नाम पर एक शहर को बंधक बना
लिया जाता है। पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर में भी विरोध प्रदर्शनों के नाम पर
वाहनों में तोडफोड़ की गई और यहां तक कि एक ऐम्बुलेंस को भी निशाना बनाया गया।
वाराणसी में भी नेशनल स्टूडेंट यूनियन आफ इण्डिया के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन
किया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गयी है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी
जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ एकता दिखाने के
लिए विरोध प्रदर्शन किया है। लेकिन इस दौरान कुछ लोगों ने छात्रों द्वारा की जा
रही हिंसा का भी विरोध किया और हिंसक छात्रों के खिलाफ नारेबाजी की। पर यह असरदार
नहीं हो सका।
राजनीति को दूर रखें
दिल्ली के इंडिया गेट पर कांग्रेस
महासचिव प्रियंका वाड्रा ने भी धरना दिया था और इस धरने में कांग्रेस के कई बड़े
नेता शामिल हुए थे। हम कह सकते है कि आज हमारे देश में दिल्ली से लेकर कोलकाता और
हैदराबाद से लेकर लखनऊ तक राजनीति की नई दुकानें खुल गई हैं और राजनीतिक दल इन
दुकानों के जरिए दूषित विचारों की कैम्पस प्लेसमेंट कर रहे हैं। इन हिंसक
प्रदर्शनों को हमारे देश का टुकड़े टुकड़े गैंग और इस गैंग को समर्थन करने वाले लोग
जिस तरह से कानूनी मान्यता दे रहे हैं...वो बहुत खतरनाक बनता जा रहा है। इस पर
तुरन्त लगाम लगायी जानी चाहिए।
प्रदर्शन अभिव्यक्ति की
आजादी नही
दिल्ली में हो रहे विरोध प्रदर्शनों
की वजह से कई मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिए गए.थे।इसके अलावा दिल्ली की कई मुख्य
सड़कों पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया था। फिर भी प्रदर्शनकारी इसे अभिव्यक्ति की
आजादी बताते रहे ।. एनआरसी और नागरिकता संशोधन को लेकर कई दिन देश की राजधानी
दिल्ली और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। दिल्ली के जामिया
नगर और फ्रेन्डस कालोनी में सरकारी बसों में आग लगा दी गई।कई वाहन भी जला दिए गए
और पुलिस पर पत्थरबाजी भी की गई।जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी का दावा है
कि इन प्रदर्शनों में यूनिवर्सिटी के छात्र शामिल नहीं थे. और फर्जी आई कार्डस के
सहारे कुछ असामाजिक तत्व जामिया को बदनाम कर रहे हैं। इस यूनिवर्सिटी के वाइस
चांसलर का दावा है कि कैंपस में ऐसे 750 फर्जी
आई कार्डस पाए गए हैं। दूषित विचारों को किसी पहचान पत्र की जरूरत नहीं होती...ऐसे
विचार और संस्कार खुद ब खुद सामने आ जाते हैं। ऐसा ही विगत दिवस भी हुआ जब जी
न्यूज की टीम इन प्रदर्शनों की कवरेज के लिए दिल्ली पुलिस के मुख्यायलय पहुंची थी।
मीडिया पर हमला जायज
नहीं
जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी
और जे एनयूू के छात्रों ने जी न्यूज की टीम के साथ बदलसलूकी की थी। उनके कैमरे
छीनने की कोशिश की गई और जी न्यूज के खिलाफ नारेबाजी भी की गई। सिर्फ दिल्ली में
ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी विरोध प्रदर्शन
हुए. ये प्रदर्शन भी बिल्कुल उसी सोची समझी तरीके से हुए। जिस तरह से आजकल देश में
हो रहा हैं.। यानी शांति से अपनी बात कहने की जगह..पुलिस पर पथराव किया गया और
हिंसा का सहारा लिया गया। देश भर में हो रहे इन प्रदर्शनों.और इसके पीछे छिपी हुई
राजनीति हैं।
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