कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रृंखला है।
इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील स्थित हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण
नदियां - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि निकलतीं हैं । हिन्दू सनातन धर्म में
इसे अत्यन्त पवित्र माना गया है। इस तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते
हैं। बर्फ से आच्छादित कैलाश 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर
का एक पवित्र तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड भी कहा जाता हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण
प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय
के समय इसपर विजय प्राप्त की थी। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश
पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम
घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इसके अतिरिक्त
अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। जैन धर्म में
इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये
थे।
कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई
है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है।
इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह
स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व बताया गया है।
तिब्बती (लामा) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं।
कहा जाता है कि यहां दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प
का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति
मिल जाती है।
कैलाश-मानसरोवर जाने के भारत से अनेक मार्ग हैं किंतु
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख,
खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। यह भाग 544 किमी (338 मील)
लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई
है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ
यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक,
खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ
से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता
है। कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी
(25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊँचाई
पर है। इसके मध्य में पहले र्बाइं ओर मानसरोवर और र्दाइं ओर राक्षस ताल है। उत्तर की
ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा
समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास
चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ
था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचा स्थान है, जिनकी ऊँचाई 5,630 मीटर (18,471 फुट)
है। इसके निकट ही गौरीकुंड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के अनेक मठ
बने हुए हैं।यात्रा में सामान्य रूपसे दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व
ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति
होती है जिसे कैलास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं।
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा गया है। वहॉ बर्फ
ही बर्फ में भोले नाथ शंभू अंजान (ब्रह्म) तप में लीन शालीनता से, शांत ,निष्चल ,अघोर
धारण किये हुऐ एकांत तप में लीन रहते है। धर्म व शा्स्त्रों में उनका वर्णनं प्रमाण
है। शिव एक आकार है जो इस संपदा व प्राकृति के व हर जीव के आत्मा स्वरूपी ब्रह्म कहा
जाता है। शिव का अघोर रूप वैराग व गृहत्थका संभव संपूर्ण मेल है जिसे शिव व शक्ति कहते
है। कैलास पर्वत भगवान शिव एवं भगवान आदिनाथ के कारण ही संसार के सबसे पावन स्थानों
में है ।
विश्व की
धरोहर घोषित
भारत को कैलाश मानसरोवर के संरक्षण की दिशा में बड़ी
कामयाबी मिली है। यूनेस्को ने कैलाश मानसरोवर भू-क्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने
की दिशा में सहमति दी है और इसे अंतरिम सूची में भी शामिल किया है। भारत इस मांग को
दशकों से करता रहा है, जिसमें अब कामयाबी मिल पाई है। दशकों से जिस मांग को लेकर भारत
प्रयासरत था आखिरकार उसमें अब जाकर बड़ी कामयाबी मिल पायी है। असल में कैलाश मानसरोवर
जिसे हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान माना जाता है, इसके भू-क्षेत्र के संरक्षण की दिशा
में भारत की मांग पर यूनेस्को ने मुहर लगा दी है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा
दिलाने पर सहमति प्रदान करने के साथ ही अंतरिम सूची में भी शामिल कर लिया है। प्रस्ताव
के अनुसार अंतरराष्ट्रीय महत्व वाले इस क्षेत्र को प्राकृतिक के साथ ही सांस्कृतिक
श्रेणी की संरक्षित धरोहर का दर्जा मिल सकेगा।
पवित्र कैलाश मानसरोवर भूक्षेत्र भारत, चीन और नेपाल
की संयुक्त धरोहर है। इसे यूनेस्को संरक्षित विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए चीन
और नेपाल पहले ही अपने प्रस्ताव यूनेस्को भेज चुके थे। अब भारत ने भी इस दिशा में कदम
बढ़ाते हुए अपने हिस्से वाले 7120 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को यूनेस्को से प्रारंभिक
मंजूरी प्रदान करा दी है। इस तरह कुल 31 हजार 252 वर्ग किलोमीटर भाग यूनेस्को की अंतरिम
सूची में शामिल हो गया है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का यह प्रयास सराहनीय है।
भारत, चीन और नेपाल के साझा प्रयासों से कैलास भूक्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने
से इससे न सिर्फ समूचे भूक्षेत्र का विकास होगा, बल्कि कैलास मानसरोवर यात्रा भी बेहतर
सम्पन्न हो सकेगी।
मिल
सकती है ए एस आई को बहुत बड़ी जिम्मेदारी :- भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने न केवल भारतीय
स्तर के विश्व धरोहरों के संरक्षण का काम निभाया है अपितु विश्व स्तर के सुदूर अनेक
धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी भी बखूबी निभायी है।
ये धरोहर है-
1. भारत के पहाड़ी रेलवे
2. प्रमबानन मंदिर जावा
3.ता प्रोहम मंदिर कम्बोडिया 4.
अंकोरवाट का कम्बोडियाई विष्णु व अन्य बौद्ध मंदिर
5. अफगानिस्तान बामियान की बौद्ध प्रतिमांए आदि।
इसके अलावा विश्व के अनेक देशों में हिन्दू बौद्ध
व सिख मंदिरों की रक्षा व रख रखाव की जानकारी भी पुरातत्व सर्वेक्षण प्रदान करती है।.
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