तत्कालीन परिस्थिति :- राजपूतों
के आगमन से पहले बस्ती - गोरखपुर जिले में हिंदुओं का राज्य था। यह क्षेत्र स्थानीय हिंदू और हिंदू राजाओं के अधीन था। इन शासको
द्वारा भार, थारू, दोमे और दोमेकातर जैसे आदिवासी जनजातियों को अपने अधीन कर उनके सामान्य
परम्पराओ को खत्म कर दिया गया। इन शासक हिंदुओं में भूमिहार ब्राह्मण, सर्वरिया ब्राह्मण
और विसेन शामिल थे। भूमिहार ,सरवरिया, ब्राह्मण तथा सूर्यवंशी , चन्द्रवंशी सरनत कल्हन
व विसेनवंशी क्षत्रिय राजा हुये। बाद के मुस्लिम आक्रममाकारियों के दबाव के कारण इन
प्राचीन शासित क्षेत्र को अवध में तथा वाद में उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में मिला
लिया गया। 13वीं सदी के मध्य में श्रीनेत्र पहला नवागंतुक था जो इस क्षेत्र मे आकर
राज्य स्थापित किया था। जिनका प्रमुख चंद्रसेन पूर्वी बस्ती से दोम्कातर को निष्कासित
किया था। लगभग1375 ई में शाहज सिंह और तेज सिंह दो भइयों का अभ्युदय होता है जो मुस्लिम
आक्रमणकारियों के साथ-साथ चले।
कल्हण राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास
(नेविल : बस्ती गजेटियर 1907 पृ. 93) बस्ती
मंडल में कल्हण राजाओं के आने का एक क्रमबद्ध इतिहास मिलता है। गोण्डा परगना का खुरासा
का राज्य एक शक्तिशाली राज्य बना तथा डोमिनों के बड़े भाग पर अधिकार किया । इस वंश का
अन्तिम शासक अचल सिंह था। इसकी मृत्यु 1544 ई. में हुई थी। अचल सिंह की कहां तक आराजी
थी यह कहना मुश्किल है। यह निश्चित है कि वह बस्ती तक फैले हुए थे। गोंडा प्रांत के
कल्हण राजपूत स्वयं परगना बस्ती में स्थापित हुए थे। वह अपने राज्य का बहुत अच्छा पूर्वी
भाग अपने भाई या भतीजे पृथीदेव सिंह को दे दिये थे। इन्हीं के उत्तराधिकारी बस्ती के
राजा हुए थे। अचल सिंह का पुत्र रसूलपुर घौस और बभनीपार का राजा बना। उसके उत्तराधिकारी
अनेक पीढ़ी तक एक बड़े भूभाग पर शासक रहे। वर्तमान सि़द्धार्थ नगर के चन्दापार नामक गांव
में जो बांसी पूरब परगने में आता था यहां शोहरत
सिंह इसी वंश के राजा थे जिन्होने शोहरतगढ़ बसाया था। इनके पास 49 गांव थे। इसी प्रकार
इसी जिले के बांसी पश्चिम परगने के चैखड़ा गांव में इसी वंश के राज की रियासत थी। इनके
पास 20 गांव थे।
बांसी
के राजा राम सिंह के द्वारा बस्ती के राजा केसरी सिंह की हत्या किये जाने तक एक बड़े
भूभाग के स्वामी रहे। केसरी सिंह की हत्या के बाद एक शिशु छत्तरपाल जीवित रहा। यह बभनीपार
का राजा बना था। केसरी सिंह का भाई अनूप सिंह बांसी के राजा की अनुकम्पा पर राजा बना
और उनके वंशज अभी भी चैकड़ा शाहपुर तथा अवैनिया में बसे।
16वीं
शताव्दी में कल्हण राजाओंकी एक शाखा बस्ती आयी और 17वीं शताब्दी में बस्ती उनके अधीन
हो गया था। बस्ती का महल छेड़छाड़ से परे था। यद्यपि यहां के राजा के पास बड़ा भूभाग नहीं
था। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय बस्ती राज घराने का रू. 4,722 राजस्व था। अनेक संख्या
में पारितोषिक उन लागों को दिये गये जो ब्रिटिश सरकार को स्वतंत्रता आन्दोलन को दबाने
में मदद किये थे। बस्ती रानी के प्रतिनिधि को
रू.1000 की भूमि दान में दी गई।
बांसी
के राजा ने कल्हण राजा से विवाद किया तथा राजा केसरी सिंह को मारकर पूरे रसूलपुर घौस
को अपने नियंत्रण व राज्य में मिला लिया। 9 सितम्बर 1722 ई. को जब सआदत खां अवध का
नबाब एवं गोरखपुर का फौजदार बना तब बड़ा परिवर्तन आया। उसने बहुत कम समय में अपने को
समायोजित करते हुए नये तरीके अपनाये तथा अपनी ताकत के बल से स्वतंत्र व विजित अनियंत्रित
राजवंशों को एक में मिलाया। इस समय सरनेत राजा बांसी व रसूलपुर में, बुटवल के चैहान
राजा विनायकपुर में, कल्हण राजा बस्ती में, कायस्थ राजा अमोढ़ा में, गौतम राजा नगर में,
सूर्यवंशी राजा महुली में तथा मगहर नबाब के डिप्टी के अधीन रहा जिसे मुस्लिम सौनिक
किले के संरक्षण से संभाल रहे थे।
सआदत
खां के समय सितम्बर 1722 ई. में बस्ती राज का राजा जय सिंह बना। वह बहुत दिनों तक जीवित
रहा। उसके बाद उसका पौत्र पृथ्वीपाल उत्तराधिकारी बना। उसके पुत्र राजा जयपाल बस्ती
के राजा बने। इस समय यह राज्य अंग्रजों को स्थानान्तरित हुआ था। इसके बाद राजा शिवबक्स
सिंह राजा बने। इसके बाद राजा इन्द्र दमन सिंह बने। ये जवानी में ही दिवंगत हो गये
तो राज्य की सम्पत्ति उनके शिशु पुत्र शीतला बक्श में निहित हुई। इस राज्य का देखरेख
इन्द्र दमन की विधवा के अधीन था। यह स्वतंत्रता संग्राम की अवधि तक इस राज्य की संरक्षिका
थी। अंग्रेजों द्वारा इन्हें अमोढ़ा के बड़े भूभाग को छीनकर देकर सम्मानित किया गया ।
स्वतंत्रता आन्दोलन बस्ती के महुआ डाबर में 5 जून 1857 को राजविद्रोह भड़का। जो टुकड़ी
बस्ती में थी उसे विद्रोह का सामना करना पड़ा और खजाना लूट लिया गया। यूरोपीय रेजीडेंट
को कोई क्षति पहुंचाये बिना यह कार्य हुआ ।
बाद मे उस रेजिडेंट और उसके प्रतिनिधि को रानी बस्ती द्वारा संरक्षण दिया गया उन्हें
अपने घर में शरण लेकर रखा गया था। जब और खतरा
बढ़ा तो उन्हें गोरखपुर सुरक्षित पहुंचा दिया गया। रानी की इस संवेदना के कार्य ने अंग्रेजों
को और अधिक मजबूत कर दिया।

राजघराने
की अगली कड़ी के रुप में राजा लक्ष्मेश्वर सिंह का नाम आता है। इनका जन्म 18 अप्रैल
1954 में हुआ था। वे 1991 ईं में 310 बस्ती सदर विधान सभा के जनता दल के सदस्य के रुप में निर्वाचित हुए थे।
उन्हें 31.82 प्रतिशत मत मिले थे। उनके प्रतिद्वन्दी भाजपा के विजय सेन सिंह को मात्र
28.9 प्रतिशत मत मिले थे। उनका देहावसान 14 जनवरी 2005 को हुआ था। उनकी पत्नी श्रीमती
आसमा सिंह 1978 वैच की आइ्र आर एस अधिकारी थी। वह 2007 08 में पूर्वोत्तर रेलवे की डी आर एम थीं। उनके एक पुत्र एश्वर्य राज सिंह
व एक पुत्री थी। राजा साहब का खेल से बहुत लगाव था। उनकी स्मृति में राजा लक्ष्मेश्वर
सिंह मामोरियल सिटी इन्टरनेशनल स्कूल तथा राजा लक्ष्मेश्वर सिंह मामोरियल स्टेट जूनियर
बैडमिंटन प्रतियोगिता 2006 से ही आयोजित की जा रही है। राजा लक्ष्मेश्वर सिंह सेवा
संस्थान भी उनके परिजनों द्वारा समाज सेवा के लिए स्थापित किया गया था।
अगली
कड़ी के रुप में राजा ऐश्वर्य राज सिंह का नाम आता है। वह अमेरिका में टाटा कन्सलटेन्सी
में अभियन्ता के रुप में कार्यरत थे। 11 साल की नौकरी करके वे अपने स्वदेश आकर राजनीति
की सेवाकरने लगे। वर्तमान में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय लोकदल के वे महामंत्री है।
रानी तलाश कुंवरि को रोकने को बुलाई थी नौसेना।
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