भारतीय ऋषि , संत तथा महात्माओं को किसी कालखण्ड में
बांधकर नहीं रखा जा सकता है। अपने योग तथा तप के बल पर वे शास्वत रहते थे और अपनी इच्छा
तथा लोक मंगल के लिए वे अपने काल खण्ड से इतर भी प्रकट होकर सत्य तथा धर्म की रक्षा
करते हुए देखे गये हैं। गुरु गोरखनाथ को 11वीं 12वीं शताव्दी का बताया जाता है। राहुल
सांकृत्यायन उन्हें 13वीं शताव्दी में मानते है। कबीरशाह 1398 से 1518 ई. तक की लम्बी
जीवनयात्रा की है। वही नानकदेव 15 अप्रैल 1469 से 22 सितम्बर 1539 तक अपनी जीवन लीला
की है। इनके बीच संवाद भी हुए है और वे एक दूसरे से प्रभावित भी रहें हैं। अभी हाल
ही में भारत के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने
मगहर में इन सन्तों का एक साथ जिक्र किया तो उनके आलोचकों ने इन संतो के कालखण्डों
के बारे में अनेक शंकायें तथा मोदी जी की आलोचना के अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया।
यह भारत की परम्परा नहीं रही है। जहां श्रद्धा व विश्वास होता है वहां तर्क या कुतर्क
की गुंजाइस नहीं होनी चाहिए और उन अभीष्ट विचारों व शिक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए जिसे
हमारे मनीषियों ने लोक कल्याण के लिए छोड़ गये है।
गोरख तलैया व कबीर धूनी:- संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर से करीब एक किमी दूर गोरखपुर व संतकबीर नगर सीमा पर राष्ट्रीय राजमार्ग आमी नदी के तट पर गोरख तलैया व कबीर धूनी है। यह स्थली संतकबीर दास, गुरु गोरक्षनाथ, नानक देव, संत रविदास व वैष्णव संत केशरदास के मिलन का साक्षी है। समाधि स्थल से एक किमी दूर पर योग साधना एवं संत साधना के मिलने ¨बदु के रूप में स्थित यह स्थान श्रमिक परंपरा का संगम है। यहां योग और संत साधना का अछ्वुत समन्वय स्थापित हुआ। विशाल भोज का आयोजन हुआ । जटाधारी, धुनीधारी, खड़ेसरी, चुंडिम, मुंडित, षष्ट दर्शन संतों का जमावड़ा हुआ। आमंत्रण पर आए महान योगी गुरु गोरखनाथ ने अपनी धुनि लगाई थी। सूखा व अकाल से झुलसती हुई भूमि को जल से अभि¨सचित करने के लिए संतकबीर ने यही पर तेज धूप में धुनि लगाई। आग जलती रही धुनि सुलगती रही। 119 वर्ष की अवस्था में कबीर धुनी, धुना और धुन, ताप, तप और तपन में तपते रहे। कबीर धूनी के पुजारी रामशरण दास ने बताया कि सूखा पड़ने पर संतकबीर दास 119 वर्ष की अवस्था में जौनपुर के नवाब बिजली खां की प्रार्थना पर काशी से यहां आए थे। यह क्षेत्र 12 वर्ष से अकालग्रस्त था। बारिश न होने से खेत-खलिहान सूखे थे। लोग दाने-दाने को तरस रहे थे। नवाब की प्रार्थना पर कबीर यहां आने को तैयार हुए। यहां पर गुरु गोरक्षनाथ, गुरुनानक देव, संत रविदास, वैष्णव संत केशरदास ने सत्संग किया था। अछ्वुत मिलन के बाद से यहां धूनि जल रही है। यहां भंडारा आदि करके प्रसाद वितरण हो रहा है। पास में गुरुद्वारा भी निर्मित हुआ। मगहर में होने वाले कार्यक्रम का शुभारंभ यहीं से होता है। यही बाद में कबीर धुनि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां मंदिर भी बना हुआ है।
गोरखनाथ हठयोग के आचार्य :-महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग के
एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों
ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों
को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। गोरखनाथ अथवा गोरक्षनाथ
एक 'नाथ योगी' थे। सिद्धों से सम्बद्ध सभी जनश्रुतियाँ इस बात पर एकमत हैं कि नाथ सम्प्रदाय
के आदि प्रवर्तक चार महायोगी हुए हैं। आदिनाथ स्वयं शिवही हैं। उनके दो शिष्य हुए,
जालंधरनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ या मच्छन्दरनाथ। जालंधरनाथ के शिष्य थे- 'कृष्णपाद' और
मत्स्येंन्द्रनाथ के 'गोरख' अथवा 'गोरक्ष' नाथ। इस प्रकार ये चार सिद्ध योगीश्वर नाथ
सम्प्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं। श्री मंछदरनाथ जी के
शिष्य गुरु गोरखनाथ जी को प्रायः धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग
जानते हैं . गुरु गोरखनाथ जी कबीर साहेब के समय में ही हुये और इनका
सिद्धी ज्ञान विलक्षण था |
नियमित शास्त्रार्थ हुआ करते थे :- उन दिनों काशी में प्रत्येक हफ़्ते विद्धानों की सभा होती थी और सभा के
नियमानुर चोटी के विद्धान आपस में शास्त्रार्थ करते थे और बाद में जीतने वाला
ग्यानी हारने वाले का तिलक चाट लेता था और जीतने वाला विजयी घोषित कर दिया जाता
था | उन दिनों
कबीर जी के नाममात्र के गुरु (ये रहस्य है कि रामानन्द कबीर जी के गुरु
कहलाते थे पर वास्तव में ये सत्य नहीं था ) रामानन्द जी का विद्धता में
बेहद बोलबाला था और गुरु गोरखनाथ ने उनसे शास्त्रार्थ किया | शास्त्रज्ञान और वैष्णव पद्धति का
आचरण करने वाले रामानन्द जी गुरु गोरखनाथ जी की सिद्धियों के आगे
नहीं टिक सके और गुरु गोरखनाथ जी ने उनका तिलक चाट लिया इससे
रामानन्द जी बेहद आहत हुये क्योंकि उनकी गिनती चोटी के विद्धानों में
होती थी | इस घटना
से उनका बेहद अपमान हुआ था |
कबीर गुरु की अनुमति से शास्त्रार्थ में भाग लिया :- कबीर जी उन दिनों रामानन्द के नये - नये
शिष्य बने थे और उनकी अपारशक्ति का किसी को बोध नहीं था | कबीर साहेब ने रामानन्द जी से
आग्रह किया कि वे अपने अखाङे की तरफ़ से गुर गोरखनाथ से ग्यानयुद्ध
करना चाहते हैं इस पर रामानन्द जी ने उनका बेहद उपहास किया | उनकी नजर में कबीर जी एक कपङे
बुनने वाले जुलाहा मात्र थे वो ज्ञान की बातें क्या
जाने .सभी ने उनकी बेहद खिल्ली उङाई लेकिन फ़िर भी कबीर जी ने
रामानन्द जी से बार बार आग्रह किया कि वे एक बार
उन्हे गुरु गोरखनाथ से ग्यानयुद्ध कर लेने दे | हारकर रामानन्द जी ने
उन्हें इजाजत दे दी | जब ज्ञान गोष्टी के लिए एकत्रित हुए तब कबीर साहेब भी अपने पूज्य
गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के साथ पहुँचे थे। एक उच्च आसन पर रामानन्द जी बैठे
उनके चरणों में बालक रूप में कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) बैठे थे। गोरख नाथ जी भी
एक उच्च आसन पर बैठे थे तथा अपना त्रिशूल अपने आसन के पास ही जमीन में गाड़ रखा
था। गोरख नाथ जी ने कहा कि रामानन्द मेरे से चर्चा करो। उसी समय बालक रूप (पूर्ण
ब्रह्म) कबीर जी ने कहा - नाथ जी पहले मेरे से चर्चा करें। पीछे मेरे गुरुदेव जी
से बात करना।
योगी गोरखनाथ प्रतापी, तासो तेज पृथ्वी कांपी।
काशी नगर में सो पग परहीं, रामानन्द से चर्चा करहीं।
चर्चा में गोरख जय पावै, कंठी तोरै तिलक छुड़ावै।
सत्य कबीर शिष्य जो भयऊ, यह वृतांत सो सुनि लयऊ।
गोरखनाथ के डर के मारे, वैरागी नहीं भेष सवारे।
तब कबीर आज्ञा अनुसारा, वैष्णव सकल स्वरूप संवारा।
सो सुधि गोरखनाथ जो पायौ, काशी नगर शीघ्र चल आयौ।
रामानन्द को खबर पठाई, चर्चा करो मेरे संग आई।
रामानन्द की पहली पौरी, सत्य कबीर बैठे तीस ठौरी।
कह कबीर सुन गोरखनाथा, चर्चा करो हमारे साथा।
प्रथम चर्चा करो संग मेरे, पीछे मेरे गुरु को टेरे।
बालक रूप कबीर निहारी, तब गोरख ताहि वचन उचारी।
काशी नगर में सो पग परहीं, रामानन्द से चर्चा करहीं।
चर्चा में गोरख जय पावै, कंठी तोरै तिलक छुड़ावै।
सत्य कबीर शिष्य जो भयऊ, यह वृतांत सो सुनि लयऊ।
गोरखनाथ के डर के मारे, वैरागी नहीं भेष सवारे।
तब कबीर आज्ञा अनुसारा, वैष्णव सकल स्वरूप संवारा।
सो सुधि गोरखनाथ जो पायौ, काशी नगर शीघ्र चल आयौ।
रामानन्द को खबर पठाई, चर्चा करो मेरे संग आई।
रामानन्द की पहली पौरी, सत्य कबीर बैठे तीस ठौरी।
कह कबीर सुन गोरखनाथा, चर्चा करो हमारे साथा।
प्रथम चर्चा करो संग मेरे, पीछे मेरे गुरु को टेरे।
बालक रूप कबीर निहारी, तब गोरख ताहि वचन उचारी।
इस
पर गोरख नाथ जी ने कहा तू बालक कबीर जी कब से योगी बन गया। कल जन्मा अर्थात् छोटी
आयु का बच्चा और चर्चा मेरे (गोरख नाथ के) साथ। तेरी क्या आयु है? और कब वैरागी
(संत) बन गए?
गोरखनाथ जी का प्रश्न:- कबके भए वैरागी कबीर जी, कबसे भए वैरागी।
कबीर जी का उत्तर:-
नाथ जी जब से भए वैरागी मेरी, आदि अंत सुधि लागी।।
धूंधूकार आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।
जब का तो हम योग उपासा, तब का फिरूं अकेला।।
धरती नहीं जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का टीका।
शिव शंकर से योगी, न थे जदका झोली शिका।।
द्वापर को हम करी फावड़ी, त्रोता को हम दंडा।
सतयुग मेरी फिरी दुहाई, कलियुग फिरौ नो खण्डा।।
गुरु के वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।।
धूंधूकार आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।
जब का तो हम योग उपासा, तब का फिरूं अकेला।।
धरती नहीं जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का टीका।
शिव शंकर से योगी, न थे जदका झोली शिका।।
द्वापर को हम करी फावड़ी, त्रोता को हम दंडा।
सतयुग मेरी फिरी दुहाई, कलियुग फिरौ नो खण्डा।।
गुरु के वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।।
साहेब कबीर जी ने गोरख नाथ जी को बताया हैं
कि मैं कब से वैरागी बना। साहेब कबीर ने उस समय वैष्णों संतों जैसा वेष बना रखा
था। जैसा श्री रामानन्द जी ने बाणा (वेष) बना रखा था। मस्तिक में चन्दन का टीका,
टोपी व झोली सिक्का एक फावड़ी (जो भजन करने के लिए लकड़ी की अंग्रेजी के अक्षर
‘‘T‘‘ के आकार की होती है) तथा एक डण्डा (लकड़ी का लट्ठा) साथ लिए हुए थे। ऊपर के
शब्द में कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जब कोई सृष्टि (काल सृष्टि) नहीं थी तथा न
सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर) अनामी लोक में था और कोई नहीं था। चूंकि साहेब कबीर
ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा फिर काल (ज्योति निरंजन-ब्रह्म) की सृष्टि भी
सतपुरुष ने रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती (पृथ्वी) भी नहीं थी तब से मेरी
टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ आदि सर्व प्राणियों के
शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा है अर्थात् मैं
(कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ। सतयुग-त्रोतायुग-द्वापर तथा कलियुग ये
चार युग तो मेरे सामने असंख्यों जा लिए। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हमने सतगुरु
वचन में रह कर अजर-अमर घर (सतलोक) पाया। इसलिए सर्व प्राणियों को तत्व (वास्तविक
ज्ञान) बताया है कि पूर्ण गुरु से उपदेश ले कर आजीवन गुरु वचन में चलते हुए पूर्ण
परमात्मा का ध्यान सुमरण करके उसी अजर-अमर सतलोक में जा कर जन्म-मरण रूपी अति
दुःखमयी संकट से बच सकते हो। इस बात को सुन कर गोरखनाथ जी ने पूछा हैं
कि
आपकी आयु तो बहुत छोटी है अर्थात् आप लगते तो हो बालक से।
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र
हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
श्री गोरखनाथ सिद्ध को सतगुरु कबीर साहेब अपनी आयु का विवरण देते हैं। असंख
युग प्रलय में गए। तब का मैं वर्तमान हूँ अर्थात् अमर हूँ। करोड़ों ब्रह्म (क्षर
पुरूष अर्थात् काल) भगवान मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म प्राप्त कर चुके हैं। एक
ब्रह्मा की आयु 100 (सौ) वर्ष की है। ब्रह्मा का एक दिन = 1000 (एक हजार) चतुर्युग
तथा इतनी ही रात्र। दिन-रात = 2000 (दो हजार) चतुर्युग।
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72 गुणा 14 =) 1008 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्र, परन्तु इस को एक हजार चतुर्युग ही मान कर चलते हैं।}
महीना = 30 गुणा 2000 = 60000 (साठ हजार) चतुर्युग। वर्ष = 12 गुणा 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार) चतुर्युग की।
ब्रह्मा जी की आयु - 720000 गुणा 100 = 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग की।
ब्रह्मा से सात गुणा विष्णु जी की आयु - 72000000 गुणा 7 = 504000000 (पचास करोड़ चालीस लाख) चतुर्युग की विष्णु की आयु है।
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु - 504000000 गुणा 7 = 3528000000 (तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख) चतुर्युग की शिव की आयु हुई।
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चतुर्युग का होता है। इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72 गुणा 14 =) 1008 चतुर्युग का होता है तथा इतनी ही रात्र, परन्तु इस को एक हजार चतुर्युग ही मान कर चलते हैं।}
महीना = 30 गुणा 2000 = 60000 (साठ हजार) चतुर्युग। वर्ष = 12 गुणा 60000 = 720000 (सात लाख बीस हजार) चतुर्युग की।
ब्रह्मा जी की आयु - 720000 गुणा 100 = 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग की।
ब्रह्मा से सात गुणा विष्णु जी की आयु - 72000000 गुणा 7 = 504000000 (पचास करोड़ चालीस लाख) चतुर्युग की विष्णु की आयु है।
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु - 504000000 गुणा 7 = 3528000000 (तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख) चतुर्युग की शिव की आयु हुई।
ऐसी
आयु वाले सत्तर हजार शिव भी मर जाते हैं तब एक ज्योति निरंजन (ब्रह्म) मरता है।
पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित किए समय पर एक ब्रह्मण्ड में महाप्रलय
होती है। यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु
होती है) एक युग होता है परब्रह्म का। परब्रह्म का एक दिन एक हजार युग का होता है
इतनी ही रात्राी होती है तीस दिन-रात का एक महिना तथा बारह महिनों का परब्रह्म का
एक वर्ष हुआ तथा सौ वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है।
ब्रह्म अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् होती है
परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के पश्चात् एक शंख बजता है सर्व ब्रह्मण्ड नष्ट हो
जाते हैं। केवल सतलोक व ऊपर तीनों लोक ही शेष रहते हैं। इस प्रकार कबीर परमात्मा
ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी आयु कम नहीं हुई है
अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष हूं। अन्य भगवान जिसका तुम आश्रय ले कर भक्ति कर
रहे हो वे नाशवान हैं। फिर आप अमर कैसे हो सकते हो?
अरबों तो ब्रह्मा गए, 49 कोटि
कन्हैया। सात कोटि शंभु गए, मोर एक नहीं पलैया।
अमर पुरुष कौन :- 343 करोड़ त्रिलोकिय ब्रह्मा मर जाते हैं, 49
करोड़ त्रिलोकिय विष्णु तथा 7 करोड़ त्रिलोकिय शिव मर जाते हैं तब एक ज्योति
निरंजन (काल-ब्रह्म) मरता है। जिसे गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 16 में क्षर
-पुरूष (नाशवान) भगवान कहा है इसे ब्रह्म भी कहते हैं तथा इसी श्लोक में जिसे अक्षर
पुरूष (अविनाशी) कहा है वह परब्रह्म है जिसे अक्षर पुरुष भी कहते हैं। अक्षर पुरुष
अर्थात् परब्रह्म भी नष्ट होता है। यह काल भी करोड़ों समाप्त हो जाएंगे। तब सर्व
अण्डों अर्थात् ब्रह्मण्डों का नाश होगा। केवल सतलोक व उससे ऊपर के लोक शेष
रहेगें। अचिंत, सत्यपुरूष के आदेश से सृष्टि रचेगा। यही क्षर पुरुष तथा अक्षर
पुरुष की सृष्टि पुनः प्रारम्भ होगी। जो गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा
है कि वह उत्तम पुरुष (पूर्ण परमात्मा) तो कोई और ही है जिसे अविनाशी परमात्मा नाम
से जाना जाता है। वह पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर सतपुरुष स्वयं कबीर साहेब है। केवल
सतपुरुष अजर-अमर परमात्मा है तथा उसी का सतलोक (सतधाम) अमर है जिसे अमर लोक भी
कहते हैं। वहाँ की भक्ति करके भक्त आत्मा पूर्ण मुक्त होती है। जिसका कभी मरण नहीं
होता। कबीर साहेब ने कहा कि यह उपलब्धि सत्यनाम के जाप से प्राप्त होती है जो उसके
मर्म भेदी गुरु से मिले तथा उसके बाद सारनाम मिले तथा साधक आजीवन मर्यादा में रहकर
तीनों मन्त्रों (ओम् तथा तत् जो सांकेतिक है तथा सत् भी सांकेतिक है) का जाप करे
तब सतलोक में वास तथा सतपुरुष प्राप्ति होती है। करोंड़ों नारद तथा मुहम्मद जैसी
पाक (पवित्र) आत्मा भी आकर (जन्म कर) जा (मर) चुके हैं, देवताओं की तो गिनती नहीं।
मानव शरीर धारी प्राणियों तथा जीवों का तो हिसाब क्या लगाया जा सकता है? मैं (कबीर
साहेब) न बूढ़ा न बालक, मैं तो जवान रूप में रहता हूँ जो ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक
है। यह तो मैं लीलामई शरीर में आपके समक्ष हूँ। कहै कबीर सुनों जी गोरख, मेरी आयु
(उम्र) यह है जो आपको ऊपर बताई है।
यह सुन कर श्री गोरखनाथ जी जमीन में गड़े लगभग 7 फूट ऊँचें त्रिशूल के
ऊपर के भाग पर अपनी सिद्धि शक्ति से उड़ कर बैठ गए और कहा
कि यदि आप इतने महान् हो तो मेरे बराबर में (जमीन से लगभग सात फूट) ऊँचा उठ कर
बातें करो। यह सुन कर कबीर साहेब बोले नाथ जी! ज्ञान गोष्टी के लिए आए हैं न कि
नाटक बाजी करने के लिए। आप नीचे आएं तथा सर्व भक्त समाज के सामने यथार्थ भक्ति
संदेश दें। श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि आपके पास कोई शक्ति नहीं है। आप तथा आपके
गुरुजी दुनियाँ को गुमराह कर रहे हो। आज तुम्हारी पोल खुलेगी। ऐसे हो तो आओ बराबर।
तब कबीर साहेब के बार-2 प्रार्थना करने पर भी नाथ जी बाज नहीं आए तो साहेब कबीर ने
अपनी पराशक्ति (पूर्ण सिद्धि) का प्रदर्शन किया। साहेब कबीर की जेब में एक कच्चे
धागे की रील (कुकड़ी) थी जिसमें लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट लम्बा धागा लिप्टा
(सिम्टा) हुआ था, को निकाला और धागे का एक सिरा (आखिरी छौर) पकड़ा और आकाश में
फैंक दिया। वह सारा धागा उस बंडल (कुकड़ी) से उधड़ कर सीधा खड़ा हो गया। साहेब
कबीर जमीन से आकाश में उड़े तथा लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट सीधे खड़े धागे के ऊपर
वाले सिरे पर बैठ कर कहा कि आओ नाथ जी! बराबर में बैठकर चर्चा करें। गोरखनाथ जी ने
ऊपर उड़ने की कोशिश की लेकिन उल्टा जमीन पर टिक गए।
पूर्ण
परमात्मा (पूर्णब्रह्म) के सामने सिद्धियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। जब गोरख नाथ जी
की कोई कोशिश सफल नहीं हुई, तब जान गए कि यह कोई मामूली भक्त या संत नहीं है। जरूर
कोई अवतार (ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से) है। तब साहेब कबीर से कहा कि हे परम
पुरुष! कृप्या नीचे आएँ और अपने दास पर दया करके अपना परिचय दें। आप कौन शक्ति हो?
किस लोक से आना हुआ है? तब कबीर साहेब नीचे आए और कहा कि -
अवधु अविगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।।टेक।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक ह्नै दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी।
जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
पांच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।।
अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।
ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।।
हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूं कबीर अविनासी।।
साहेब कबीर ने कहा कि हे अवधूत गोरखनाथ जी मैं तो
अविगत स्थान (जिसकी गति/भेद कोई नहीं जानता उस सतलोक) से आया हूँ। मैं तो स्वयं
शक्ति से बालक रूप बना कर काशी (बनारस) में एक लहर तारा तालाब में कमल के फूल पर
प्रकट हुआ हूँ। वहाँ पर नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति को मिला जो मुझे अपने घर ले
आया। मेरे कोई मात-पिता नहीं हैं। न ही कोई घर दासी (पत्नी) है और जो उस परमात्मा
का वास्तविक नाम है, वही कबीर नाम मेरा है। आपका ज्योति स्वरूप जिसे आप अलख निरंजन
(निराकार भगवान) कहते हो वह ब्रह्म भी मेरा ही जाप करता है। मैं सतनाम का जाप करने
वाले साधक को प्राप्त होता हूँ अर्थात् वहीं मेरे विषय में सही जानता है। हाड-चाम
तथा लहु रक्त से बना मेरा शरीर नहीं है। कबीर साहेब सतनाम की महिमा बताते हुए कहते
हैं कि मेरे मूल स्थान (सतलोक) में सतनाम के आधार से जाया जाता है। अन्य साधकों को
संकेत करते हुए प्रभु कबीर (कविर्देव) जी कह रहे हैं कि मैं उसी का जाप करता रहता
हूँ। इसी मन्त्रा (सतनाम) से सतलोक जाने योग्य होकर फिर सारनाम प्राप्ति करके
जन्म-मरण से पूर्ण छुटकारा मिलता है। यह तारन तरन पद (पूजा विधि) मैंने (कबीर
साहेब अविनाशी भगवान ने) आपको बताई है। इसे कोई नहीं जानता। गोरख नाथ जी को बताया
कि हे पुण्य आत्मा! आप काल क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) के जाल में ही हो। न जाने
कितनी बार आपके जन्म हो चुके हैं। कभी चैरासी लाख जूनियों में कष्ट पाया। आपकी चार
युगों की भक्ति को काल अब (कलियुग में) नष्ट कर देता यदि आप मेरी शरण में नहीं
आते।
यह
काल इक्कीस ब्रह्मण्डों का मालिक है। इसको शाप लगा है कि एक लाख मानव शरीर धारी
(देव व ऋषि भी) जीव प्रतिदिन खायेगा तथा सवा लाख मानव शरीरधारी प्राणियों को नित्य
उत्पन्न करेगा। इस प्रकार प्रतिदिन पच्चीस हजार बढ़ रहे हैं। उनको ठिकाने लगाए
रखने के लिए तथा कर्म भुगताने के लिए अपना कानून बना कर चैरासी लाख योनियाँ बना
रखी हैं। इन्हीं 25 हजार अधिक उत्पन्न जीवों के अन्य प्राणियों के शरीर में प्रवेश
करता है। जैसे खून में जीवाणु, वायु में जीवाणु आदि-2। इसकी पत्नी आदि माया
(प्रकृति देवी) है। इसी से काल (ब्रह्म/अलख निरंजन) ने (पत्नी-पति के संयोग से)
तीन पुत्रा ब्रह्मा-विष्णु-शिव उत्पन्न किए। इन तीनों को अपने सहयोगी बना कर
ब्रह्मा को शरीर बनाने का, विष्णु को पालन-पोषण का और शिव को संहार करने का कार्य
दे रखा है। इनसे प्रथम तप करवाता है फिर सिद्धियाँ भर देता है जिसके आधार पर इनसे
अपना उल्लु सीधा करता है और अंत में इन्हें (जब ये शक्ति रहित हो जाते हैं) भी मार
कर तप्त शिला पर भून कर खाता है तथा अन्य पुत्रा पूर्व ही उत्पन्न करके अचेत रखता
है उनको सचेत करके अपना उत्पति, स्थिति तथा संहार का कार्य करता है। ऐसे अपने काल
लोक को चला रहा है। इन सब से ऊपर पूर्ण परमात्मा है। उसका ही अवतार मुझ (कबीर
परमेश्वर) को जान।
गोरख नाथ के मन में विश्वास हो गया कि कोई
शक्ति है जो कुल का मालिक है। गोरख नाथ ने कहा कि मेरी एक शक्ति और देखो। यह कह कर
गंगा की ओर चल पड़ा। सर्व दर्शकों की भीड़ भी साथ ही चली। लगभग 500 फुट पर गंगा
नदी थी। उस में जा कर छलांग लगाते हुए कहा कि मुझे ढूंढ दो। फिर मैं (गोरखनाथ) आप
का शिष्य बन जाऊँगा। गोरखनाथ मछली बन गए। साहेब कबीर ने उसी मछली को पानी से बाहर
निकाल कर सबके सामने गोरखनाथ बना दिया। तब गोरखनाथ जी ने परमेश्वर कबीर जी को
पूर्ण परमात्मा स्वीकार किया और शिष्य बने।
Sir ye sab mithya hai
ReplyDeleteKabir sahb ki jiwani me vani me unhone gorkhnath ko guru btaya hai
आपके पास प्रूफ है
Deleteये सब कबीर पंथियों का रच हुआ सम्पूर्ण गप्प है जिसमे कोई सच्चाई नही है।
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