साँप या सर्प, पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी
है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो
पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। इसके पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित
घड़ारियों की सहायता से चलता फिरता है। इसकी आँखों में पलकें नहीं होती, ये हमेशा खुली
रहती हैं। यह विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े
की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता
है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा
खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में साँपों
की कोई 2500-3000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार 10 सेण्टीमीटर
होता है जबकि अजगर नामक साँप 25
फिट तक लम्बा होता है साँप मेढक,छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों
को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है।
शीतरक्त
प्राणी:-सरीसृप वर्ग के अन्य सभी सदस्यों की तरह ही सर्प शीतरक्त का प्राणी है अर्थात् यह अपने शरीर का तापमान स्वंय नियंत्रित
नहीं कर सकता है। इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता
है। यह अपने शरीर के तापमान को बढ़ाने के लिए भोजन पर निर्भर नहीं है इसलिए अत्यन्त
कम भोजन मिलने पर भी यह जीवीत रहता है। कुछ साँपों को महीनों बाद-बाद भोजन मिलता है
तथा कुछ सर्प वर्ष में मात्र एक बार या दो बार ढेड़ सारा खाना खाकर जीवीत रहते हैं।
खाते समय साँप भोजन को चबाकर नहीं खाता है बल्कि पूरा का पूरा निकल जाता है। अधिकांश
सर्पों के जबड़े इनके सिर से भी बड़े शिकार को निगल सकने के लिए अनुकुलित होते हैं।
अफ्रीका का अजगर तो छोटी गाय आदि को भी नगल जाता है। विश्व का सबसे छोटा
साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि
द्वीपों में पाया जाता है वह केवल 10-12 सेंटीमीटर लंबा होता है। विश्व का सबसे लंबा
साँप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर) है, जो प्राय: 10 मीटर से भी अधिक लंबा तथा
120 किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है। यह दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता
है।
सर्पदंश:-जब कोई साँप किसी को काट
देता है तो इसे सर्पदंश या 'साँप का काटना' (snakebite) कहते हैं।
साँप के काटने से घाव हो सकता है और कभी-कभी विषाक्तता (envenomation) भी हो जाती है जिससे मृत्यु
तक सम्भव है। अधिकाश सर्प विषहीन होते हैं और कुछ विषैले होते हैं किन्तु अन्टार्कटिका
को छोड़कर सभी महाद्वीपों में जहरीले सांप पाये जाते हैं। साँप प्राय: अपने शिकार को
मारने के लिये काटते हैं किन्तु इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिये भी करते हैं। विषैले
जंतुओं के दंश में सर्पदंश सबसे अधिक भंयकर होता है। इसके दंश से कुछ ही मिनटों में
मृत्यु तक हो सकती है। समुद्री साँप साधारणतया विषैले होते हैं, पर वे शीघ्र काटते
नहीं। विषैले सर्प भी कई प्रकार के होते हैं। विषैले सांपों में नाग (कोब्रा), काला नाग, नागराज (किंग कोबरा), करैत, कोरल वाइपर, रसेल वाइपर,.ऐडर, डिस फालिडस, मॉवा (Dandraspis), वाइटिस गैवौनिका, रैटल स्नेक, क्राटेलस हॉरिडस आदि हैं। विषैले साँपों के विष एक से नहीं
होते। कुछ विष तंत्रिकातंत्र को आक्रांत करते हैं, कुछ रुधिर को और कुछ तंत्रिकातंत्र
और रुधिर दोनों को आक्रांत करते हैं।
बस्ती
के एक घर
में हैं सैकड़ों सांप:- बस्ती
के दुबौलिया थाना क्षेत्र के पिपरौली
गांव में खतरनाक कोबरा सांपों की अपनी एक अलग दुनिया है,जो अपनी दुनिया में चैन से
रहते हैं । बस्ती के पिरैला गांव में हक्कुल का परिवार रहता है। परिवार
में कुल 15 सदस्य हैं। हक्कुल और उनकी पत्नी के अलावा 6 बेटा, 2 पतोहू और 5 पोता
हैं। सभी लोग सांपों की भाषा पहचानने में माहिर हो चुके हैं। 58 साल के हक्कुल 4 चार
साल की उम्र से ही सांपों से खेलने लगे थे। हक्कुल को अब इतना तजुर्बा हो गया है कि
वह बिना सांप को देखे उसकी गंध से पहचान सकते हैं कि वह प्रजाति का है और कितना जहरीला
है। हक्कुल बचपन से ही सांपों के बीच
में रहते रहते पले बढ़े हैं। इनका कहना है कि बचपन से ही इन सांपो के साथ खेलते खेलते बड़े हुए हैं,
और धीरे-धीरे उन्हें लोगों ने सांप पकड़ने के लिए बुलाना शुरू किया। इनका कहना है कि पहले खपड़े के मकान में ये सांप सुरक्षित रहते थे, लेकिन
खपड़ों के मकान समाप्त होने की वजह से इनके रहने की कोई जगह नहीं बची है, इस वजह से
ये अब ज्यादा लोगों को काटते हैं, इनका कहना है कि इनका रहना जरूरी है क्योंकि सांप इंसान का आधा जीवन है। सांपो के संरक्षण के लिए हक्कुल 2009
से लड़ाई लड़ रहे हैं। राष्ट्रपती, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के यहां से जन सूचना
मांगी गई लेकिन आज तक कोई सूचना नहीं दी गई है, हक्कुल सरकार से इन सांपो को पालने
के लिए से मांग किया था लेकिन राष्ट्रपती और प्रधानमंत्री के यहां से कागज आया कि प्रतिदिन वन विभाग के कर्मचारी आकर सांपो को ले जाए,
वन विभाग इन सांपो को नहीं ले जाता, कहने के बाद भी कोई वन विभाग का कर्मचारी नहीं
आता, हक्कुल का कहना है कि इसके रजिस्ट्रेशन और एनजीओ के लिए लखनऊ वन विभाग के विशेषज्ञ
वासिफ जमशेद 21 हजार रूपए रजिस्ट्रेशन के लिए ले गए थे, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ,
इसलिए मै स्वंय सांप पकड़ कर वन विभाग को नहीं दूंगा। वन विभाग के कर्मचारी आकर सांप
पकड़ कर ले जाएं। हक्कुल ने सांपो
के संरक्षण के लिए बहुत अच्छा प्रयास किया, सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते लगाते रहे,
इनको कोई मदद नहीं मिली। हक्कुल ने सांपों को सुरक्षित रखने के लिए एक छोटा सा कमरा
बनाया है, जिसमें सांप सुरक्षित रहते हैं, सांपो को बाहर निकाला जाता है तो ये अपने
आप ही अपने घर में लौट जाते हैं। सांपों को खिलाने में हक्कुल को बहुत परेशानियों का
सामना करना पड़ रहै है, गरीबी की वजह से सांपो को खिलाने में दिक्कत होती है, लेकिन
मुर्गी की दुकानों से ये सांपों को खिलाने के लिए प्रतिदिन मांस का कटन लेकर आते है
और इन सांपों का पेट भरते हैं। हक्कुल ने सांपों के रखरखाव के लिए 2011 में सरकार से
जमींन मांग रहा था ,लेकिन हर्रैया तहसील के कर्मचारियों ने रुपये की मांग की जिससे
नाराज होकर सांपों को तहसील में छोड़ दिया था ।अक्सर लोगों
को सांपों से दूर भागते देखा होगा, लेकिन यहां एक परिवार है जो कि सांपों के झुंड के
बीच रहता है। यही नहीं, परिवार ने लेटर लिखकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से इन जहरीले
सांपों के रहने के लिए उचित स्थान की मांग की। PMO से लेटर भी आया और वन विभाग को
सांपों को उचित स्थान देने का निर्देष दिया गया, लेकिन विभाग ने उचित स्थान मुहैया
नहीं कराया। आखिरकार हक्कुल ने 2 साल पहले तहसील मे सांप छोड़ दिया था, फिर भी कोई
नतीजा नहीं निकला। फिलहाल, हक्कुल सभी सांपों को अपने घर में रखते हैं।
भूख मिटाने और ठंडी हवा का लुत्फ उठाने निकलते हैं नाग- सापों में नाग का नाम किसी से छिपा नहीं है। नाग सांप की पूजा देवता के तौर पर की जाती है। हक्कुल ने बताया, इस प्रजाति के सांप केवल घरों में मिलते हैं। यह घर से तभी निकलते हैं, जब उन्हें खाने की जरूरत होती है या फिर बहुत गर्मी में ठंडी हवा का लुत्फ उठाने के लिए। नाग को कहीं भी छोड़ दिया जाए वह वापस घर में ही जाएगा। उन्होंने बताया, सांपों से डरने की जरूरत नहीं। बस उनके रास्ते में अड़ंगा मत डालो, वो भी किसी इंसान के शरीर में अपना जहर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
500 से ज्यादा लोगों की बचाई जान- हक्कुल सांपों के ऐसे दोस्त हैं कि अगर किसी को सांप ने काट लिया, तो उसके जहर की काट रखते हैं। उनका दावा है कि उन्होंने बस्ती, संतकबीरनगर, नौगढ, टांडा, अंबेडकरनगर और अयोध्या के करीब 500 ऐसे लोगों को बचाया है, जिन्हें जहरीले सांपों ने काटा था। हक्कुल बचपन से ही सांपांे के बीच इतने घुल मिल चुके हैं कि कोई भी सांप हो वह उसकी भाषा समझते है। सांप कितना भी गुस्से में क्यों न हो अगर हक्कुल पहुंचे तो वह उसे मना ही लेते है।
भूख मिटाने और ठंडी हवा का लुत्फ उठाने निकलते हैं नाग- सापों में नाग का नाम किसी से छिपा नहीं है। नाग सांप की पूजा देवता के तौर पर की जाती है। हक्कुल ने बताया, इस प्रजाति के सांप केवल घरों में मिलते हैं। यह घर से तभी निकलते हैं, जब उन्हें खाने की जरूरत होती है या फिर बहुत गर्मी में ठंडी हवा का लुत्फ उठाने के लिए। नाग को कहीं भी छोड़ दिया जाए वह वापस घर में ही जाएगा। उन्होंने बताया, सांपों से डरने की जरूरत नहीं। बस उनके रास्ते में अड़ंगा मत डालो, वो भी किसी इंसान के शरीर में अपना जहर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
500 से ज्यादा लोगों की बचाई जान- हक्कुल सांपों के ऐसे दोस्त हैं कि अगर किसी को सांप ने काट लिया, तो उसके जहर की काट रखते हैं। उनका दावा है कि उन्होंने बस्ती, संतकबीरनगर, नौगढ, टांडा, अंबेडकरनगर और अयोध्या के करीब 500 ऐसे लोगों को बचाया है, जिन्हें जहरीले सांपों ने काटा था। हक्कुल बचपन से ही सांपांे के बीच इतने घुल मिल चुके हैं कि कोई भी सांप हो वह उसकी भाषा समझते है। सांप कितना भी गुस्से में क्यों न हो अगर हक्कुल पहुंचे तो वह उसे मना ही लेते है।
हक्कुल चाचा अब नहीं रहे -जिस सांप का नाम सुनकर
लोगों की सांस अटक जाती है, उसे काबू में करके महफूज घरौंदा दिलाने के दस्तकार हक्कुल
अब नहीं रहे। हक्कुल के न रहने की खबर सुनकर जहां अधिकांश लोग चौंक गए, वहीं हर कोई
यह जानकर हक्का-बक्का रह गया कि उनकी मौत की वजह सर्पदंश ही बनी। लाला पिपरौला में
परिवार सहित रहने वाले हक्कुल की सोमवार की दिनचर्या की शुरुआत भी रोज की तरह हुई।
घर वालों ने बताया कि वह सुबह रोजमर्रा के कामकाज में लगे थे कि अचानक उनके फोन की
घंटी बजी और साइकिल उठाकर बाहर निकलने लगे। पूछने पर घर वालों को बताया कि सांप निकलने
की सूचना पर जा रहे हैं, उसे सुरक्षित पकड़ कर कुछ देर बाद लौट आएंगे। बेटे ने बताया
कि कुछ समय बाद वह लौटे लेकिन न पास में सांप था और न वह सुरक्षित थे। घर के दरवाजे
पर पहुंचते ही तेज आवाज में बोले, मुझे सांप ने काट लिया। यह बोलने के साथ ही मय साइकिल
अचेत होकर गिर गए। आनन-फानन उन्हें कप्तानगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया,
जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉक्टर के मुताबिक हक्कुल की मौत अस्पताल पहुंचने
से करीब 20 मिनट पहले ही हो गई थी।डॉक्टर के मुंह से मौत जैसा भारी शब्द सुनते
ही अस्पताल में मौजूद घर के सदस्यों की चीख निकल गई तो शव घर पहुंचते ही पूरे परिवार
में कोहराम मच गया। आबादी के बीच जब जानकारी पहुंची तो सांपों से जुड़ी जानकारी में
माहिर शख्स की सर्पदंश से मौत सुनते ही तमाम लोगों ने उनके घर का रुख किया। कुछ देर
में घर पर खासी भीड़ जुट गई। हर कोई हैरान था कि जिसने जिंदगी का बड़ा हिस्सा सांपों
के बीच गुजारा, जहरीले से जहरीले सांपों को काबू किया, उसके अंत की वजह सांप ही बना।
दाहिने कान के पास डसा था ।
सांप का नस्ल रहस्य बना रहा -हक्कुल को डसने वाला सांप किस नस्ल का था, यह रहस्य बनकर रह गया।
खास टोटके के तहत वह सांप पकड़ने के लिए निकलते समय घर वालों को यह नहीं बताते थे कि
वह किस स्थान पर जा रहे हैं। इतना ही कहते थे कि अपने घरौंदे में एक और सांप बढ़ाने
के लिए जा रहे हैं। सोमवार को हक्कुल के साथ सर्पदंश की घटना कहां हुई और सांप किस
नस्ल का था, यह रात तक घर वालों को पता नहीं चल सका। हां इलाज की कोशिश के दौरान इतना
जरूर स्पष्ट हुआ कि सांप ने दाहिने कान के पास डसा था।
एनजीओ ने
कफन-दफन के लिए मदद दी - सर्पदंश से हक्कुल
की मौत की जानकारी पर एक एनजीओ की टीम उनके गांव में पहुंची। घर वालों को उनके कफन-दफन
के लिए 10 हजार रुपये दिए। साथ ही सांपों को सुरक्षित ठिकाना देने के आश्वासन के साथ
करीब 50 सांप अपने साथ ले गई। जाने से पहले हक्कुल की पत्नी रुखसाना, बेटे महबूब, मकसूद,
महमूद, मंजूर, मकबूल, अयूब और बेटी गौशिया व नफीसा को ढांढस बताते हुए परिवार को आर्थिक
मदद का भरोसा भी दिया। हम बस्ती के इस हस्ती
की आत्मा की शान्ति के लिए परवर दिगार से प्रार्थना करते हैं तथा उनके परिवार को इस
महान क्षति से उबरने की कामना करते है।
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