परोपकारी सेवा प्रकल्प :- 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। इसी के आनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा देशभर में चलाये जा रहे सेवा कार्यों का एक संख्यात्मक आलेख तथा उल्लेखनीय आयामों का शब्दचित्र पुणे स्थित सेवा वर्धिनी के सहयोग से 1995 में प्रथम बार एक देशव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर प्रस्तुत किया गया था। राष्ट्रीय सेवा भारती के साथ-साथ वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिन्दु परिषद, भारत विकास परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, दीनदयाल शोध संस्थान, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि संगठनों के द्वारा प्रेरित अलग-अलग सेवा संस्थाओं के सेवा कार्यों को भी इस में संकलित किया जाता है। भारतीय विद्यार्थी परिषद, शिक्षा भारती, एकल विद्यालय, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना इसी क्रम का परिणाम है।
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का गठन : - ‘वनवासी’ वन्य जाति आदिकाल से वनों में वास करते चले आ रहे हैं। आरण्यक एवं उपनिषद साहित्य इन्हीं के जीते जागते प्रमाण बनें हैं। वनवासियों के अपने रीति-रिवाज हैं, परम्परायें और रहन सहन होते हैं। वे बड़े ही सरल चित्त प्राणी होते हैं। वर्तमान समय में भारत में लगभग 11 करोड़ हिन्दुस्तानी पर्वतों बनो व वनवासी के रुप में रहते हैं। महाराष्ट्र के स्वयंसेवक ‘रमाकांत केशव देशपांडे’ यानी ‘बाळासाहब देशपांडे को पूर्व मध्य प्रदेश तथा वर्तमान छत्तीसगढ़ में रहनेवाले जशपूर के वनवासी क्षेत्र में काम करने के निर्देश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सर संघ चालक गुरुजी ने दिया था। इसीलिए बाळासाहब देशपांडे और मोरूभाऊ केतकर ने ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ के विभिन्न प्रकल्प शुरू किये। इन वनवासी बांधवों के पास अनेक विधि की कलाएँ थीं। कुछ लोग मिट्टी के बेहतरीन बर्तन बनाया करते थे। कुछ लोग बढ़िया चित्रकार थे। यदि अवसर मिला और मार्गदर्शन प्राप्त हो सका, तो ये वनवासी बांधव आसानी से अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं, इस बात का यकीन बाळासाहब को हो गया था। उन्होंने उस दिशा में प्रयास शुरू कर दिया था। बच्चों को एकल विद्यालय फाउंडेशन मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करा रहा है। यहां बुनियादी शिक्षा ही नहीं दी जाती बल्कि समाज के उपेक्षित वर्गो को स्वास्थ्य, विकास और स्वरोजगार संबंधी शिक्षा भी दी जाती है। भारत के वनवासी एवं पिछड़े क्षेत्रों में इस समय 25,000 से अधिक एकल विद्यालय चल रहे हैं। ग्रामीण भारत के उत्थान में शिक्षा के महत्व को समझने वाले हजारों संगठन इसमें सहयोग दे रहे हैं। आश्रम वनवासियों के विकास के लिये सुदूर जनजातीय गांवों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये तरह-तरह के कार्यक्रम चलाता रहता है। पूरे भारत में इसकी बहुत सारी शाखाएँ हैं। इसका मुख्यालय जमशेदपुर (झारखण्ड में है। इसका ध्येय वाक्य है “तू मैं -एक रक्त” तथा “नगरवासी, ग्रामवासी, वनवासी हम सभी हैं भारतवासी।“
वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना
:- वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना सन् 1952 में बालासाहेब देशपाण्डे ने की थी। छत्तीसगढ़ के जशपुर नगर में स्व. देशपांडे जी ने 1952 में एक आवासीय विद्यालय से इसे प्रारम्भ किया था। 1952 से 1977 तक यह कार्य जशपुर तक ही सीमित था। 1977 में कल्याण आश्रम की रजत जयंती मनाई गई थी। इसके बाद कल्याण आश्रम को 1978 में अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया गया। स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार छात्रावास, विद्यालय, बालवाड़ी आदि प्रकल्प प्रारम्भ किए गए। यह सारा कार्य आर्थिक दृष्टि से समाज पर आधारित है। समाज ही इन प्रकल्पों का आर्थिक व्यय वहन करता है। कल्याण आश्रम का कार्य वनवासी समाज की अस्मिता-जागरण के लिए प्रारम्भ हुआ था। उनमें स्वधर्म के प्रति स्वाभिमान का भाव जाग्रत हो और उनकी परम्परा व विश्वास के भारतीय संस्कृति के साथ एकरूप होने और राष्ट्र के साथ एकात्मता का उन्हें अनुभव हो, यह भी कल्याण आश्रम का उद्देश्य है। नगरवासियों और वनवासियों के बीच समरसता भी इसका उद्देश्य है। आश्रम की स्थापना होकर 65 साल की कालावधि बीत चुकी है। इस कालखंड में आश्रम के काम ने बहुत तेज रफ्तार पकड़ ली है । आज ‘वनवासी कल्याण आश्रम’का कार्य देश के विभिन्न राज्यों में शुरू है। झारखंड, छत्तीसगड, मध्य प्रदेश, बिहार इन राज्यों में माओवादियों के विपरीत कारनामों के साथ ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ का पुनीत कार्य भी उत्तम सफलता के साथ चल रहा है।
हॉस्टेलों का खोला जाना
:- वनवासी छात्रों के लिए हॉस्टेल की जरूरत थी। उनके लिए छात्रवास का निर्माण किया गया। शुरू शुरू में केवल 13 छात्र आए। लेकिन धीरे धीरे छात्रों की संख्या बढ़ती गयी। इन छात्रों का विभिन्न स्कूलों में दाखिला कराने का काम ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ के द्वारा किया जाने लगा। वनवासी क्षेत्र के वीरपुरुषों की कथाएँ बताकर वनवासी बांधवों में स्वाभिमान एवं आत्मविश्वा्स जागृत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य हाथ में लिया गया। ‘सह्याद्री का शेर’ के नाम से जाने जानेवाले राघोजी भांग्रे, नाग्या कातकरी, बिरसा मुंडा, गोंड रानी दुर्गावती, भागोजी नाईक इनके साथ साथ, वनक्षेत्र में औषधियों पर अनुसंधान करनेवाले आवारे गुरुजी इन सबकी जानकारी वनवासी क्षेत्र के बांधवों को आग्रहपूर्वक दी जाने लगी। स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता, व्यसनमुक्ति, शिक्षा का महत्त्व ये सारीं बातें वनवासी बांधवों में अंकुरित होने लगीं। पढ़ाई करनेवालें वनवासी क्षेत्र के बच्चें अपने माँबाप की गलत रहनेवाली बातों का विरोध करने लगे।
आगरा महानगर शाखा का वार्षिक उत्सव
:- वनवासी कल्याण आश्रम आगरा महानगर शाखा का वार्षिक उत्सव 17 दिसम्बर 2017 को सायं 4 बजे, सूरसदन प्रेक्षागृह में सम्पन्न हुआ है। मंच पर महानगर अध्यक्ष श्री संतोष गुप्ता, महानगर उपाध्यक्ष श्री स्वदेशजी विकल, तथा श्री महताब सिंह, के साथ अन्य विशिष्ट अतिथि व वक्ता मौजूद
थे। कार्यक्रम की शुरुवात मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के दीप प्रज्जवन तथा बालिकाओं के द्वीपगीत के साथ हुआ। आगरा के छात्रावास की वालिकायें गणेश वन्दना व नृत्य प्रस्तुतकर कार्यक्रम में समा बांध दिया। आगरा महानगर इकाई के महामंत्री श्री महेश सिकरवार ने वरष 2017 का वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया है। नवीन मंधरानी वनवासी कन्या छात्रावास की बालिकाओं ने योग का अद्भुत प्रदर्शन किया है। आज के कार्यक्रम का अध्यक्षीय भाषण आगरा के ख्यातिप्राप्त चिकित्सक एवं समाज सेवी डा. रवि सब्बरवाल ने दिया। उन्होने अपने उद्बोधन में विनम्रता तथा भारतीय संस्कार का जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके उपरान्त रुद्रपुर उत्तराखण्ड की बनवासी वालिकाओं ने उत्तराखण्ड का नृत्य प्रस्तुत किया है। मुख्य अतथि के रुप में प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं चिकत्सक तथा उत्तराखण्ड सरकार के मुख्यमंत्री के सलाहकार डा. नवीन बलूनी ने वनवासी कार्यक्रमों की सार्थकता, निष्ठा और लगन की सराहना की। रुद्रपुर उत्तराखण्ड की बनवासी वालिकाओं ने शिव स्तुति के साथ नृत्य प्रस्तुत करके प्रेक्षागृह में बैठे विशाल जनमानस को आहलादित कर दिया। इसके उपरान्त वनवासी बालिकाओं ने समवेत स्वर मे श्रीमद्भगवत गीता के 12वें अध्याय का वाचन कर दिव्य अनुभूति का अनुभव कराया। आगरा की बनवासी बालिकाओं ने महिषासुर मर्दिनी नृत्य के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का अभिनय किया। पूर्वोत्तर के प्रहरी नामक नृत्य नटिका के माध्यम से बालिकाओं ने लोगों का मन जीत लिया गया। सभी नृत्य व संगीत कार्यक्रमों की पृष्ठभूमि प्राकृतिक व धामिक स्थलों के साथ प्रस्तुत करने से अद्भुत छटा देखते ही बनता था। आज के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री प्रमोद पेटकर ने कहा कि हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करके समाज से कट से गये हैं। अज्ञानता वस हम बनवासी समाज को मुख्य धारा में जोड़ने की बात कहकर हम उनके निष्ठा और कार्यों का उपहास उड़ाते हैं। विशेष सानिध्य के रुपमें रायपुर छत्तीसगढ़ से पधारे पं. श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज ने झाारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ अंचल में श्रीराम तथा श्री हनुनान जी की भक्ति का विशेष उल्लेख किया। उस क्षेत्र में अपने द्वारा किये गये कार्यों का व्योरा प्रस्तुत करते हुए पंडितजी ने लोगों में स्वयं पात्रता उत्पन्न करने की बात कही। हनुमान शबरी तथा निषादराज स्वयं भगवान के पास नही गये थे अपितु भगवान अपने भक्तों की सुध लेते हुए स्वयं वहां जाकर उनको दर्शन तथा आर्शीवाद दिये थे। श्रीरामजी ने बनवासी जीवन अपनाकर ही अपने अवतार को सार्थक किया था। वनवासी आश्रम के बच्चे ने “कोटि कोटि कंठों ने गाया मां गौरवगान है,एक रहे हैं एक रहेंगे भारत की सन्तान हैं।“ गीत समवेत स्वरों में गायन किया। आगरा महानगर वनवासी आश्रम के अध्यक्ष श्री संतोष गुप्ता जी ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन श्री राजकुमार गुप्ता जी ने किया। कार्यक्रम के अन्त में बन्देमातरम राष्ट्रगीत प्रस्तुत किया गया।
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