उपेक्षित खानाबदोश जातियों के दो प्रमुख वर्ग:- उपेक्षित
खानाबदोश जातियों को 2 वर्गा में बाँट सकते हैं -
1. धुमक्कड.-व्यवसायी जातियाँ :-
गडोलिया लुहार, बालदिया एवं बनजारा गाड़ोलिया आदि। लुहार मूलत: लुहार नामक शिल्पी जाति
की एक शाखा रहे हैं। इनका कार्य मुख्यत: लौह-धातु के कृषि उपकरणों का निर्माण रहा है।
ये लोग पारिवारिक समूहों में बैलगाड़ियाँ पर देशाटन करते रहते थे। एक ही समूह के लोग
अन्तर्समूह विवाह नहीं करते थे। कन्याओं की कमी के कारण वधू-मूल्य लेने की प्रथा का
प्रचलन था। बनजारा जाति, मेवाड़ के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में बालदिया (बैल रखने वाले)
भी कहलाते थे। इनमें हैवासी, गवारिया और नट नामक तीन उपजाति भेंद थे। 18वीं शताब्दी
के बाद इस जाति का आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती गई परिणामत: इन्होने दूसरे व्यवसाय
तथा असमाजिक कार्यों में अपने आप को संलग्न कर लिया।
2.अपराधकर्मी तथा लोकानुरंजनी जातियाँ -
कंजर, सांसी, थोरी, बावरी तथा कालबेलिया, नट, रखत, मेर आदि। अपराधकर्मी तथा लोकानुरंजनी
जातियों के विवाह सम्बन्ध अन्तर्जाति समूह में होते थे। रक्त सम्बन्धों के अतिरिक्त
इन में कोई विवाह प्रतिबंध नहीं था। कंजर जाति का परम्परागत व्यवसाय मीणा तथा चारण
जाति की वंशावली विरुद गायकी था। कालबेलिया जाति सांप का खेल दिरवाता था तथा आटा पीसने
की चक्का तथा खरल-बट्टा बनाने का कार्य करता था। वागरिया झाड़ू, चटाई आदि बनाने का लघु
उद्योग कर जीविका चलाते थे। सरगड़ा जाति गाने-बजाने तथा रावल लोग रमत (नाटक) द्वारा
मनोरंजन का काम करते थे। नट खेल-तमाश दिखाकर अपना पेट पालता था।
खानाबदोश जनजातियों का कोई
एक सा निश्चित पहचान नहीं:-
खानाबदोश जनजातियों को आज तक इस देश में कोई पहचान नहीं मिल सकी है। इन जनजातियों की संख्या देश में लगभग 10 करोड़ है लेकिन इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं है। ये लोग खुले मैदान, मंदिर अथवा रलवे लाइनों के किनारे रहते हैं। इन लोगों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय विमुक्त घुमंतू एवं अर्धघुमंतू जनजाति आयोग का गठन किया है। यह आयोग देश भर में घूम कर इन जनजातियों के बार में जानकारी जुटाता है। देश में पांच सौ से अधिक खानाबदोश जनजातियां हैं। 260 से अधिक जनजातियों से आयोग मिल चुका है। आजादी से पहले इन्हें जन्मना अपराधी मानते हुए क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया गया था। इस एक्ट को आजादी के बाद खत्म किया गया लेकिन इन जनजातियों के लिए कुछ नहीं किया गया। इन्हें मतदान का भी अधिकार नहीं है। ये विशुद्ध भारतीय संस्कृति के लोग हैं और कलाओं के सहारे जीवन यापन करते हैं। आजादी के बाद कई तरह के कानून बनाकर इनकी कलाएं इनसे छीन ली गई हैं और ये भोजन जुटाने के लिए भीख मांगने अथवा चोरी करने के लिए विवश हैं। वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम जसे कानूनों के कारण ये लोग जानवरों के खेल भी नहीं दिखा पाते हैं।
1.बंजारा या 'खानाबदोश' :- मानवों का यह ऐसा समुदाय है जो एक ही स्थान पर बसकर जीवन-यापन करने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर निरन्तर भ्रमणशील रहता है। कई बंजारा समाजों ने बड़े-बड़े साम्राज्य तक स्थापित करने में सफलता पायी।खानाबदोश मानवसमाज का वह समुदाय जो अपने रहने का स्थान बराबर बदलता रहता है। साधारणत: खानाबदोश कबीलों और जातियों का अपना क्षेत्र होता है जिसमें वे आवश्यकतानुसार घूमते फिरते रहते हैं। आम तौर से उनका स्थान
परिवर्तन खाद्य की उपलब्घि पर निर्भर करता है। शिकारी खानाबदोश आखेट की खोज में निरंतर घूमते रहते हैं, परंतु पशुपालक खानाबदोश मौसम के अनुसार अपने पशुदलों को लेकर घास और चरागाह की खोज में घूमते रहते हैं। अपनी प्रारंभिक सांस्कृतिक अवस्था में मनुष्य खानाबदोश रहा होगा। यह दशा आखेट युग और पशुपालन युग तक रही होगी। कृषि की जानकारी के साथ मनुष्य ने स्थायी जीवन सीखा। कुछ कबीले जो अभी भी शिकारी या पशुपालक हैं, खानाबदोश जीवन व्यतीत करते हैं। शिकारी खानाबदोश का सामाजिक जीवन अधिकतर छोटे-छोटे पारिवारिक समूहों में संगठित होता है। इसका कारण स्पष्टत: यह है कि जंगलों में इतना शिकार या कंद-मूल-फल नहीं मिल सकता कि बड़े समुदाय का भरण पोषण हो सके। सरगुजा (मध्य प्रदेश) के पहाड़ी कोरवा, 25-30 व्यक्तियों के छोटे छोटे समुदायों में रहते हैं और ऐसा प्रत्येक समुदाय पाँच छह वर्गमील जंगल पर अधिकार किए रहता है। कोचीन के कादार, लंका के बेद्दा, उत्तरी ध्रुव के एस्कीमो, मध्य आस्ट्रेलिया के अरूंटा, अफ्रीका के बुशमैन और ब्राजील के जंगली आदिवासी सभी छोटे-छोटे दलों में संगठित हैं।
2. पशुपालक खानाबदोश:- इस दल का आकार बहुत बड़ा होता है। अरब के बद्दू, मध्य एशिया के खिरगिज और मंगोल, उत्तरी अमेरिका के एलगोफिन, अफ्रीका के नुरम और मसाई, ये सभी खानाबदोश सैकड़ों की संख्या में दल बनाकर रहते और घूमते हैं। ये अपने पालतू पशु ऊँट, खच्चर, घोड़ा, गाय-बैल या भैंसे लिए चरागाह और पानी की तलाश में घूमते है और किसी भी स्थान पर एक मौसम से अधिक नहीं टिकते। इनका जीवन सब प्रकार से इस मौसमी परिवर्तन के अनुकूल हो जाता है। पशु इनका मुख्य धन है। पशुओं की देखभाल पुरूष करते हैं, स्त्रियाँ गृह कार्य संभालती और बागवानी करती हैं। ऐसे समुदायों में स्त्रियों का स्थान नीचा समझा जाता है। शिकारी खानाबदोशों की भाँति ही इनका राजनीतिक जीवन गणतांत्रिक होता है, परंतु उनमें बड़े बूढ़ों को विशेष मान्यता प्राप्त होती है।
3. अपराधोपजीवी खानाबदोश कबीले और जन-जातियाँ :-भारत में अनेक खानाबदोश कबीले और जातियाँ हैं। इनमें से कई अपराधोपजीवी हैं जो चोरी और ठगी जैसे अपराधों द्वारा जीवनयापन करते रहे हैं। आसानी से धन प्राप्त करने के अवसर की खोज में और पुलिस के भय से ये लोग खानाबदोश रहे हैं। ऐसी जातियों में मुख्य हबूड़ा, कंजर, भाँट, संसिया, नट, बागड़ी यनादि, कालबेलिया आदि हैं। कुछ अन्य जातियाँ है, जो पशुपालक है या दस्तकारी का काम करती हैं, जैसे उत्तरी-पश्चिमी भारत में गूजर, या राजस्थान में गाडूड़िया लोहार। अनेक पशुपालक खानाबदोशों ने दुर्दम सैनिक संगठन बनाए हैं। इतिहासप्रसिद्ध मंगोल, गोल्डेन होर्ड, मंचू और तुर्क खानाबदोश ही थे, जिन्होंने मध्ययुग में एशिया और यूरोप में विस्तृत साम्राज्यों की स्थापना की। अफ्रीका के जूलू और मसाई भी इसके उदाहरण हैं।[
4. घूमंतू लुटेरों कच्छा-बनियानधारी :-इस गिरोह के लुटेरे पहले लाठी तथा सरिया से लोगों की पिटाई करते हैं और इसके बाद लूट लेते हैं। वे बच्चों,बुजुर्गों एवं महिलाएं की भी बर्बर पिटाई से नहीं चूकते हैं, जिससे इलाके में भय एवं आतंक का माहौल है। इन गिरोहों में जिन जनजातियों के लोग शामिल हैं, उनमें सांसी, हिबडे, भाट, नट, बावरिया, पावदी, बेडिया आदि प्रमुख हैं। इन जातियों के लोग प्रदेश के शाहजहांपुर, बदायूं, एटा, मुजफ्फरनगर तथा हरियाणा के यमुनानगर और झिंझाना के अलग-अलग हिस्सों में टोली बनाकर मजदूरी, व्यापार तथा पशु व्यवसायी के रूप में जाते हैं और वारदात कर फरार हो जाते हैं।आमतौर पर घटना को अंजाम देने के दौरान यह गिरोह फायरिंग कर दहशत फैलाने से परहेज करता है, लेकिन वह पिटाई करने से बाज नहीं आता। शायद ही कोई घटना ऐसी हो जिसमें लूटपाट के दौरान गिरोह के सदस्यों ने पिटाई न की हो।
5. बावरिया गिरोह:- यह बेरहम और खतरनाक किस्म का है। ये तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जैसे इलाकों में डकैती डालते हैं। विरोध करने पर सरिया से पिटाई करते है। गर्भवती महिलाएं और नाबालिग लड़कियों से घटना के दौरान रेप की वारदात को भी अंजाम देते हैं। बाबरिया जनजाति का यह गैंग पारंपरिक अपराधी है और देश के एक छोर से दूसरे छोर तक संगीन वारदातों को अंजाम देता है। बावरिया एक विशेष जनजाति का नाम है. इस समुदाय के लोग खानाबदोश जीवन जीते हैं. यह जनजाति तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पहले चित्तौड़गढ़ से विस्थापित हो गई थी. इस समुदाय का मूल मुख्य रूप से भरतपुर (राजस्थान) के पास है. इसके बाद ये लोग देशभर में फैल गए. इस जनजाति के लोगों का मुख्य काम ही लूटपाट की वारदात को अंजाम देना हैं. बावरिया जनजाति ब्रिटिशकाल से ही लूटपाट में संलिप्त थी, इसीलिए इन्हें अपराध संलिप्त जातियों की श्रेणी में रखा गया था. ये जनजाति लूटपाट, चोरी, अवैध शराब की बिक्री जैसे काम करती थी लेकिन हाल ही में इन्होंने गैंगरेप जैसी वारदातों को भी अंजाम दिया है.
गिरोह में
प्रचलित प्रमुख टोटके :-इस जानजाति के लोग धर्म-आस्था में काफी विश्वास करते हैं. हर वारदात से पहले वे अपनी कुलदेवी की पूजा करतें हैं. इनके वारदात को अंजाम देने का दिन भी काफी धार्मिक और अंधविश्वासी रुप से चुना जाता है. इन्हें एक बकरा बताता है कि लूट करनी है या नहीं. इस गिरोह के लोग एक बकरे को अपनी कुलदेवी की मूर्ती के सामने खड़ा कर देते हैं. अगर वह मूर्ती के करीब जाता है तो गिरोह उस दिन वारदात करता है और अगर वह बकरा मूर्ती की तरफ नहीं जाता तो उस दिन को अपशकुन मानते हुए ये किसी भी वारदात को अंजाम नहीं देते. वारदात को अंजाम देने से इस गिरोह के सदस्य अपने पूरे शरीर पर तेल मलते हैं. ताकि पकड़े जाने पर फिसलन की वजह से आसानी से बच निकलें. यह गिरोह जब भी लूट को अंजाम देता है तो सिर्फ नगदी और गहने ही लूटता है बाकी किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाता. यह जनजाति धीरे-धीरे अपराध की दुनिया में आगे बढ़ गई है. साथ ही पारंपरिक टोटके भी पूर्व की भांति जारी हैं। इसके तहत वारदात करने के लिए सम संख्या में जाते हैं। साथ ही अपने देवता की पूजा करते हैं, सिर का बाल उखाड़कर टोटके करते हैं और वारदात के बाद शराब पीकर जश्न मनाते हैं।
गिरोह में
प्रचलित प्रमुख हथियार :- हथियार के तौर पर सरिया व हैंड पंप के हत्थे आदि का यूज करने वाला यह गिरोह अब पिस्टल व तमंचे का यूज कर रहा है। साथ ही पहले ट्रकों, टेंपो आदि में सवार होकर वारदात करने जाते थे और घरेलू सामान भी लूटते थे। अब ये कार में भी वारदात करने जाते हैं। साथ ही लूट में फोकस कैश और जूलरी पर अधिक होता है। सामान्यतः
आवादी के किनारे अथवा एकान्त में बसे घर इनके शिकार बनते हैं ये समूह में होते हैं तथा रात को या दोपहर में अपना
अपराध करते हैं।
हैवानियत नहीं बदली:- ट्रेंड में बदलाव के बावजूद इनकी हैवानियत में बदलाव नहीं आया है। परिवार को पीट-पीटकर ये मरणासन्न कर देते हैं। महिलाओं के साथ रेप तक की वारदात कर देते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं, ताकि उनके जाने के बाद जल्दी से कोई पुलिस को सूचना देने वाला न रहे। आमतौर पर घटना को अंजाम देने के दौरान यह गिरोह पिटाई करने से बाज नहीं आता। शायद ही कोई घटना ऐसी हो जिसमें लूटपाट के दौरान गिरोह के सदस्यों ने पिटाई न की हो। वर्तमान लोकतांत्रिक युग में इस वर्ग के कल्याण के लिए सरकारी प्रयास किये जाने चाहिए। इनके आवास, शिक्षा, चिकित्सा तथा रोजगार का स्थाई निदान भी ढ़ूढा जाना चाहिए। भारतीय गणतंत्र के नागरिक के रुप में इनका उपयोग अच्छे परिप्रेक्ष्य में किया जाना चाहिए।
Bahut hi galat Jankari Di Hai Bawaria jaati ke bare mein bahut galat likha hai yah Jati aisi Nahin Hai Radheshyam Dwivedi is post ko Hata le nahi to SC ST act ke tahat andar Jayega Kisi Ki jaati bhavnao ko mat bhatkav
ReplyDeleteBhai ye history ki sachhai hai
DeleteKbhi inke sikar nhi hue. Hoge tb pta chlega.
DeleteGalt h ji
ReplyDeleteBahut hi galat jankari Di gai hai bavariya cast mein rap jaisa Shabd aaya hi kahan se ye baate kisi ki jaati Dharm Ko bhadkana hai bavariya jaati ne Desh ke liye vishesh yogdan diya hai aur bawariya jaati ne Dharm ki raksha ke liye apna balidan Diya hai ese kisi ki bhavnaon ko mat bhadkaon bawaria jati AK ek Rajputi cast hai jo Chittorgarh se nikali thi iska Karan Vishesh hai hi apni bahan betiyon ki raksha ke liye is jaati ne Ghar mein rahana tyag diya tha iske upar kuchh achcha nahin likh sakte to please Bura bhi mat likho please ho sake to yah jankari delete ki jaaye aur nai jankari Vishesh prakar se banaa kar Dali jaaye jisse bavariya jaati ko bhi Desh mein sarvoch sthan Mil sake ke Jay Jay Rajputana Jay maa Bhawani
ReplyDeleteहम बावरिया समाज अंग्रेजों का सताया हुआ समाज है इस समाज में मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी अंग्रेजों ने इस समाज को क्रिमिनल बना दिया इसका फायदा कांग्रेस सरकार ने भी लिया इस समाज में दिक्कत यह है किस को पढ़ने लिखने नहीं दिया संविधान की जानकारी नहीं होने दी यह समाज देशभक्त समाज है घुमंतू प्रमुख समाज है बंजारा समाज और बावरिया समाज देश की सेवा में आगे रहते थे अब भारत संघ में मोदी जी की सरकार आई है जो इस समाज के विकास के लिए कुछ योजना बना रही है
ReplyDeleteकविता राठौड़ बवाना विधानसभा क्षेत्र दिल्ली बीजेपी
9818801999
Ok ji...
DeleteGood
DeleteAjit Chauhan
9718059922
Babariya Jaty ek kamjor warg jaty h.
ReplyDeleteJo cum Padey Likhi jati h..
Babriya or bavriya me bhut antr hai
DeleteBabariya Jaty per galat eljaam Lage huwe h ....
ReplyDeleteBawariya jati ek din fir se desh ko aage badane mein sahayta karegi jaise ki pahle ki thi, wo to akal ke doran aur mugal shashan & british shashan ke doran inhe badnam kar diya
ReplyDeleteये क्या बकवास लिखा है ऐसा कुछ नही है रेप जैसे दुश्करम को बावरिया जाती के मत्थे मंड रहे हो जबकि बावरिया जाती म तो बलात्कार जैसा कोई नाम ही नही है इस जाती मे तो नारी को बहुत सम्मान दिया जाता है क्योंकि यह जाती पूजा ही देवी माँ शेरा वाली माँ की करता है और माता की पूजा हिंदू धर्मनुसार एक क्षत्रिय नियमानुसार किया जाता है क्योंकि यह जाती इतिहास मे रामायण मे भी इनका प्रमाण है महाभारत, मौर्य वंश के और भारत मे हुए सभी युद्धों मे शामिल प्रमुख सेना का कार्यभार संभाला है और भारत मे गोरीला Attack, पुराने समय मे गुलेल और अन्य काफी ऐसे अथियार और नीतियां के जरिये भारत को विदेशी आक्रमण से बचाया था यह तक की महान एलेक्सजेंडर भी भारत मे इन्ही से हार कर वापिस लोट गया था क्योंकि यही वह कबीला था जिसने सिकंदर को जंगलो मे अपनी गोर्रिला टेकनीक् से पराजित किया था
ReplyDeleteक्षत्रिय और देशभक्त होने के बावजूद इन्हे आज चोर लुटेरे बोल रहे है
जब एक युद्ध हाेने के बाद इन्होंने अपना रुख जंगलों की तरफ कर लिया ताकि मुस्लिम से अपनी बहन बेटी अपनी इज्जत को बचा सके और कई सालों के लिए जंगलो मे विलुप्त हो गए और वही इन्होंने अपना जीवन यापन के लिए शिकार करने लगे और शिकारी भी कहलाये और फिर अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलनों मे भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया इसके प्रमाण श्री सरदारा बावरिया जोकि भगत सिग के साथ जेल मे बंध हुए और श्री धन सिंह बावरिया जो की महात्मा गांधी जी के हर सम्मेलन मे शामिल हुए जिसका प्रमाण उनके फोटो और कुछ लिखित लस्तावेज है जिसपर खुद गाँधी जी और लाल बहादुर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के हस्ताक्षर है
दुर्भाग्यवश बाबा भीमराव अंबेडकर जी ने भी संविधान के किसी भी पन्ने में बावरिया जाति का जिक्र नहीं किया । जिस कारण अब तक संसद में इनकी तरफ से कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं पहुंच पाया। जो की इनकी मांग सरकार के सामने रख सके और इनको विकास की और लेजा सके आजादी के इतने सालों बाद भी यह जाती सरकार की नजरो से विलुप्त है और अंग्रेजो द्वारा रहे अपराधी घोषित किये जाने के बाद रहे आज तक अपराधी ही माना जाता रहा है जबकि यह क्षत्रिय जिसका प्रमाण इनके इतिहास और इनकी पूजा विधि से लगाया जा सकता है जो एक सैनिक अपनी शहीद होने से पूर्व अपने जान की फिक्र किये बिना जो अपने जहन मे सोचता है और अपने देवताओ को या करता है ठीक वैसे ही पुराने समय मे जो सैनिक देवी देवताओ की पूजा करते है युद्ध से पहले वही पूजन शैली बावरिया जाती आज तक नही भूलि है और अपने क्षत्रिय धर्म की परंपरा को आगे बढ़ा रही है ।
तू सला कोई पढ़ा लिखा वाबरिया लगता है
Deleteअभी दो तीन महीने पहले मेरे गांव ऐसा ही गिरोह ने एक घर मे डकैती करी थी
तीन वाबरिया को गांव वालों ने पीट पीट कर मार डाला
और दो को हमारे गांव के रिटायर्ड कर्नल साहब के बेटे ने अपनी कार्बाइन से भूंज दिया था
और ऐसा इसलिये की हमारे गांव में कोई धन दौलत लूट ले लोग बर्दाश्त कर लेते है लेकिन इज्जत पर हाथ डाल दे खेत घर बेच देते है खून की नदियां बह जाती है
इन ववरियो ने भी वही गलती कर दी डकैती के दौरान एक महिला के इज्जत लूट लिया था
इनके तो घर की महिलाओं ने इनके लाश भी अपने साथ नही के जा पायी
सब के सब एक ही परिवार के थे इनके घर के महिलायों ने जैसा पुलिस को बताया था
Padhna Likhna Koi galat baat hai kya Upar Se Tu Gali dekar baat kar raha hai sali Teri bahan ke sath rape kiya tha kya Jo Bavaria jaati se Itni Nafrat karta hai
DeleteCrime to har jati ke log karte hai.lekin unki jati nhi likhi jati.sare bawaria jati ke log galt nhi hai.pure bawria samaj ko gali dena galt hai.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है
ReplyDeleteइनका मुख्य कार्य क्या है इनको सरकार ने लुटेरा क्यों बताया है और इनके ही ऊपर इल्जाम क्यों लगते है ओम्मा कौन था जो मद्रास में लूट करता था ???????
ReplyDeleteBawria jati bahut garib hai .sarkar inki bhalai ke liye koi bhi karye nahi karti.police to inko loote leti.inki baato par koi vishwas nahi karta.
ReplyDeletehttps://youtu.be/6RiWGx7chjk
ReplyDelete