पांच सितारा एक
बहुत वरिष्ठ सैन्य रैंक है, जो 1944 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित हुआ
था, जिसमें पांच सितारा प्रतीक चिन्ह थे । यह रैंक सबसे वरिष्ठ सैन्य कमांडर को प्रदान
किया जाता रहा है। नाटो के
"मानक रैंक स्केल" के भीतर यह कोड -10 के द्वारा निर्दिष्ट किया गया है। सभी
सशस्त्र बलों के पास ऐसी कोई रैंक नहीं है। "पांच सितारा रैंकों"
के वास्तविक प्रतीक के रूप में पांच सितारों को शामिल किया जाता है। आमतौर पर,
पांच सितारा अधिकारी सेना के जनरल का पद
फ्लीट के एडमिरल , फील्ड मार्शल , वायु सेना के मार्शल , वायु सेना के जनरल ,
और कई अन्य इसी तरह नामित बहुत वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का का रैंक हैं।
पांच सितारा रैंक
बेहद वरिष्ठ होते हैं-आमतौर पर सर्वोच्च रैंक को शामिल किया जाता है। एक सक्रिय रैंक के रूप में इसकी
इसकी
स्थिति अल्पसंख्यक देश में ही होती है । यह आमतौर पर युद्ध समय के दौरान
केवल बहुत कम अधिकारियों द्वारा आयोजित की जाती है। शांति के समय, यह आम तौर पर केवल मानद रैंक के रूप
में आयोजित किया जाता है। पांच सितारा अधिकारियों की
दुर्लभता और वरिष्ठता के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका में भी अधिक वरिष्ठ पदों
को अपनाया गया है। भारतीय सैन्य इतिहास में बीसवीं सदी में अत्यधिक वरिष्ठ पदों के लिए भारतीय सेना के फील्ड मार्शल के.एम. करीपप्पा और सैम माणेकशॉ और वायु सेना के मार्शल
अर्जन सिंह को इस सम्मान से नवाजा जा चुका है।
मार्शल अर्जन सिंह :- इंडियन एयरफोर्स
(आईएएफ) के मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पाकिस्तान के फैसलाबाद
में हुआ था. उनके पिता ब्रिटिश सेना में लांस दफादार थे. 1939 में जब अर्जन सिंह
19 साल के थे तब उनका चयन पायलट ट्रेनिंग के लिए हुआ.1944 में अर्जन सिंह को
स्क्वॉड्रन लीडर बनाया गया. उन्होंने अराकान कैंपेन के दौरान जपानियों के खिलाफ
टीम का नेतृत्व किया. आजादी के बाद 15 अगस्त, 1947 को सिंह को दिल्ली के लाल किले
के ऊपर से 100 IAF एयरक्राफ्ट्स के फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व करने का मौका मिला. 1949 में अर्जन सिंह ने एयर ऑफिसर कमांडिंग ऑफ ऑपरेशनल
कमांड का जिम्मा संभाला. इसे ही बाद में वेस्टर्न एयर कमांड कहा गया. अर्जन
सिंह 1964 से लेकर 1969 तक पूरे पांच साल भारतीय वायुसेना के अध्यक्ष रहे. अर्जन
सिंह इकलौते ऐसे वायुसेनाध्यक्ष हैं, जिनका कार्यकाल पांच साल का रहा.
सेंकड वर्ल्ड वॉर
के दौरान बर्मा के अराकान प्रांत में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए distinguished
flying cross से नवाजा गया. अर्जन सिंह को 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वायु
सेना की शानदार सफलता का कर्णधार माना जाता है. पाकिस्तान के खिलाफ 1965 की लड़ाई
में पहली बार जब एयरफोर्स ने जंग हिस्सा लिया तो अर्जन सिंह उसके चीफ थे. उनके
नेतृत्व में ही एयरफोर्स ने घंटे भरे के भीतर पाकिस्तानी फौज पर हमला बोला था.
अर्जन सिंह को
2002 में एयरफोर्स का पहला और इकलौता मार्शल बनाया गया. वे एयरफोर्स के पहले फाइव
स्टार रैंक अधिकारी बने. 1965 की जंग में उनके योगदान के लिए भारत ने उन्हें इस
सम्मान से नवाजा था. उन्हें 1965 में ही पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया.
अर्जन सिंह 1 अगस्त, 1964 से 15 जुलाई, 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे.
अर्जन सिंह ने
भारतीय वायुसेना को ताकतवर बनाने में अहम भूमिका अदा की. उन्होंने अपने काबिल
नेतृत्व से भारतीय वायुसेना को दुनिया की चौथी बड़ी वायुसेना बनाया. अर्जन सिंह ने
दिल्ली के पास मौजूद अपने फार्म को बेचकर 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए. ये
ट्रस्ट सेवानिवृत्त एयरफोर्स कर्मियों के कल्याण के लिए बनाया गया था. अर्जन सिंह
दिसंबर 1989 से दिसंबर 1990 तक दिल्ली के उपराज्यपाल भी रहे थे.
वायुसेना में अकेले ऐसे ऑफिसर:-वायुसेना में अर्जन सिंह अकेले ऐसे ऑफिसर थे जिन्हें
फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक दी गई. उनके अलावा फील्ड मार्शल के. एम.
करियप्पा और फील्ड मार्शल सैम मानेक शा को इस सम्मान से नवाजा जा चुका है। भारतीय
सैन्य इतिहास के नायक रहे सिंह ने 1965 की लड़ाई में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व
किया था. पाकिस्तान ने 1965 में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया जिसमें उसने अखनूर
शहर को निशाना बनाया. तब सिंह ने साहस, प्रतिबद्धता और पेशेवर दक्षता के साथ
भारतीय वायु सेना का नेतृत्व किया।
भारतीय शस्त्र बल में अर्जन सिंह के बाद पांच सितारा रैंक में कोई भी अधिकारी
दाखिल नही हुआ। उनकी सम्पूर्ण शिक्षा मोंटगोमरी (जो कि अब सहिवाल दक्षिणी पंजाब, पाकिस्तान
है) से हुई. इसके बाद सन 1938 में उनका दाखिला क्रेन्वेल के आरएएफ कॉलेज में हुआ जहां
सन 1939 में उन्हें साधिकार पायलट ऑफिसर के रूप में नियुक्ति मिली।
1970 में
भारतीय वायुसेना से रिटायर हुए अर्जन सिंह को सम्मान में भारत सरकार ने जनवरी 2002
में उन्हें वायुसेना का मार्शल रैंक दिया था.मार्शल रैंक फ़ील्ड मार्शल के बराबर
होता है जो केवल थल सेना के अफ़सरों को दिया जाता रहा था. के.एम. करियप्पा और सेम
मानेकशॉ दो ऐसे थल सेना के जनरल थे जिन्हें फ़ील्ड मार्शल बनाया गया था.
अर्जन
सिंह वायु सेना और ग़ैर थल सेना के ऐसे पहले अफ़सर थे जिन्हें मार्शल का रैंक दिया
गया था. 15 अप्रैल 1919 में पंजाब के लायलपुर में जन्मे अर्जन सिंह ने अपनी
प्रारंभिक शित्रा मॉन्टेगोमेरी स्कूस से पूरी की थी. 19 साल की उम्र में रॉयल
एयरफ़ोर्स कॉलेज क्रानवेल में एंपायल पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए उन्हें चुना गया
था. 1944 में स्क्वॉड्रन लीडर के रूप में उन्हें पदोन्नति दी गई और उन्होंने बर्मा
में अराकन अभियान के दौरान जापानी सेना के ख़िलाफ़ अपने हवाई दस्ते का नेतृत्व
किया. इसके लिए उन्हें ब्रिटिश सेना का प्रतिष्ठित फ्लाइंग क्रॉस पुरस्कार से
नवाज़ा गया.
देश
जब 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ तब अर्जन सिंह को 100 भारतीय वायु सेना के उन
विमानों का नेतृत्व करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई जो दिल्ली और लाल किले के ऊपर से
गुज़रे थे. 1 अगस्त 1964 को 45 साल की उम्र में वह भारतीय वायु सेना के प्रमुख बने
और अर्जन सिंह ऐसे पहले वायु सेना प्रमुख थे जिन्होंने चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ यानी
प्रमुख रहते हुए भी वो विमान उड़ाते रहे और अपनी फ्लाइंग कैटिगरी को बरकार रखा. उन्होंने
अपने कार्यकाल में 60 तरह के विमान उड़ाए जिनमें विश्वयुद्ध 2 के वक्त के बाइप्लेन
से ले कर नैट्स और वैम्पायर प्लेन शामिल हैं.
युद्ध
में भारतीय वायु सेना की भूमिका को देखते हुए चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ के पद को बढ़ाकर
एयर चीफ़ मार्शल कर दिया गया और वह वायु सेना के पहले एयर चीफ़ मार्शल नियुक्त
हुए. 44 साल की सेवा के बाद अगस्त 1969 में अर्जन सिंह मात्र 50 साल की उम्र में
भारतीय वायु सेना के प्रमुख पद से रिटायर हो गए.भारतीय वायु सेना को अपनी सेवाएं
देने के लिए उनको देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा
चुका है.
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