( होशदारखान, आजमखान,
मुगलखान और इस्लामखान की मुगलकालीन हवेलियों के अवशेंषों
के संरक्षण के साथ ताज हेरिटेज
कारीडोर का पर्यावरणीय विकास )
उक्त चारों हवेलियों की स्मृति को समेटने वाला ‘रीक्लेम्ड
एरिया आफ ताज हेरिटेज कारीडोर’ की निगरानी माननीय सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है इसलिए
विना पूरी औपचारिकता के इस बाग के संरक्षण और विकास का कार्य शुरु कर दिया गया है।
यह धरोहरें न केवल ताज का दीदार कराएंगी, बल्कि ताज और मुगलिया सत्ता से जुड़े इतिहास
से भी रूबरू कराएंगी। इसे ‘री-क्लेम्ड एरिया आफ ताज हेरिटेज कारीडोर’ नाम
दिया गया है। यह मुगलकाल की हवेली
होशदार खान, हवेली आजम खान, हवेली मुगल खान और हवेली इस्लाम खान की जगह पर प्रस्तावित
है। इन चारों हवेलियों का उल्लेख आस्ट्रियाई इतिहासकार ईवा कोच की पुस्तक और राजा जय
सिंह के पुराने नक्शे में मिलता है। जिस प्रकार यमुना तट के चार अन्य स्मारक खान ए दुर्रान
की हवेली, आगा खां की हवेली, हाथीखाना का स्वतंत्र रुप से तथा होशदारखान, आजमखान, मुगलखान
और इस्लामखान हवेलियों की री-क्लेम्ड
एरिया की जगह पर प्रस्तावित ताज हेरिटेज कारीडोर संरक्षित किया जा रहा हैं,
उसी प्रकार हाथीघाट के प्राचीन एतिहासिक जनाना घाट के अवशेष को संरक्षित करते हुए पूरे
40 हेक्टेयर भूभाग को अधिग्रहण कर विकसित किया जा सकता है। उक्त 4 हवेलियों
के स्वामियों का परिचय, मनसब तथा ओहदे को उपलब्ध साक्ष्यों
के आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है।
होशदार खान की हवेली :- होशदार खान मीर होशदार मुल्तान खान का पुत्र था। यह शाहजहां के उत्तरवर्ती
दिनों में शाही सेवा में आया था।यह हमेशा औरंगजेब के पक्ष में रहा ।बाद के दिनों में
वह वड़ी तेजी से उन्नति किया था।1633 में उये 4000 जाट/ 3000 सवार का मनसब मिला था।
पहले उसे दिल्ली का गवर्नर बनाया गया। बादमें आकरा का। दो वर्श बाद उसे आसपास क्षेत्र
का फौजदार कानून व्यवस्था का प्रभारी समादेष्टा नियंत्रक बनाया गया। औरंगजेब उसकी अच्छी
सेवा तथा धार्मिक सिद्धान्तों का समर्थक था।इस कारण 1672 तक उसे आगरा का गवर्नर बनाये
रख गया। फिर उसका स्थानान्तरण बुहरानपुर कर दिया गया जहां एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु
हो गयी। अपने शासन के दिनों में उसने अच्छी भूमिका निभाई थी।औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद
आजम के समय उसने कला का अच्छा विकास किया था। अपने आगरा कार्यकाल के दौरान उसने उद्यान
सहित एक हवेली का निर्माण कराया था। तब उसका मनसब 1000 ओर बढ़ गया था। महावत खां ओर
आजम खा के हवेलियों के बीच उसकी हवेली थी जो अब पूर्णत5 विलुप्त हो चुकी है। ताज महल
के बगल खाने आलम उसके पश्चिम असलत खान और फिर महावत खान की हवेलिया थीं।महावत से और
पश्चिम होशदार की हवेली थी।
आजम खां की हवेली :- पूर्व में होशदार तथा पश्चिम में मुगलखान
की हवेली के बीच आजम खान की हवेली थी। इसका मुल नाम मिर्जा बकीर था।आजम खान नाम इसे
उनाधि में मिला था। इसकी एक उपाधि इरादत खान भी था।यह मूलतः ईरान का निवासी था जो जहांगीर
के समय मुगल दरबार में आया था। उसने जहांगीर के साले आसफ खा से घनिष्टता बना रखा था।
आसफ खां के निवेदन पर शाहजहां के शुरुवाती दिनों में उसे मीर बक्शी (मनसब की बृद्धि
का प्रभारी) तथा दीवान- ए-कुल (वित मंत्री)
बनाया गया था। 1623- 30 में आजम खां को डेकन का गवर्नर बनाकर भेजा गया था। 1631 में
बादशाह शाहजहां ने डेकन की चढ़ाई किया था। उस समय आजम खां ने धरुर का किला अपने नियंत्रण
में किया था। वह 1631-32 में बंगाल का सफल गवर्नर रहा। वह 1637 में गुजरात तथा
1646- 47 में विहार का गवर्नर रहा। 1649 में जौनपुर में उसकी मृत्यु हुई थी। उस समय
वह 6000 जाट,/ 6000 सवार का मनसब रख रहा था। उसकी अन्तिम नियुक्ति काश्मीर में हुई
थी। वह वहां की सर्दी को बरदास्त नहीं कर सका था। उसमें विलक्षण प्रतिभा थी। वह वित्तीय
मामलों में बड़ा सख्त था। विण्डसर कैसल के बादशाहनामा की चित्रकला में हाथियों को लड़ते
हुए दिखाया गया है। उसकी पृष्ठभूमि में एक मोड़ है। उसके दांयें तरफ एक सफेद भवन चित्रित
है। इसे ही आजम खां की हवेली बताई जाती है। 1789 में थामस डेनियल के चित्र में इस्लाम
खान की हवेली के पास आजम खां की हवेली दिखाई गयी है। इस भवन के अवशेष कम्पनी ड्राइंग में (जो ताज संग्रहालय
में लगी है) दर्शायी गयी है। जयपुर के मानचित्र में आस पास की संरचनाओं से यह हवेली
एवं बाग काफी लम्बा और चैड़ा दिखाया गया है।
मुगलखान की हवेली:- मुगलखान
अकबर के पोषक भाई कोका का पुत्र था। वह जहांगीर तथा शाहजहां के प्रारम्भिक दिनों में
शाही दरबार की सेवा किया था। उसे काबुल का किलेदार (समादेष्टा) बनाया गया था। डेकन
के राज्यारोहण के दौरान उसे खाने दौरा से सम्बद्ध किया गया था। उसने उदगिर के किले
के विजय में भी भाग लिया था जहां उसे किलेदार बनाया गया था। 1652-53 में उसे 3000 जाट/
2000 सवार का मनसब मिला हुआ था। उसे थत्ता का गवर्नर बनाया गया था। कान्धार की चढ़ाई
में वह शाहजहां के विरुद्ध होकर दारा के पक्ष में चला गया था। शाही सेवा से हटाने का
निर्णय उसे सूचित किया गया और शाहजहां के काल के अन्त में उसे 1500 रुपये के वार्षिक
भत्ता दिया जाने लगा। वह संगीत तथा शिकार का प्रेमी था। वह संगीतकारों तथा गायकों का
हिमायती था। मुगलखान की हवेली रुमी खान की हवेली के पूर्व तथा आजम खां की हवेली के
पश्चिम में छोटे आकार में स्थित था।
इस्लामखान की हवेली :- डेकन के निजामुल मुल्क का मुकर्रब खां उर्फ रूस्तम खां एक शाही उमरा था जो शाहजहां
के शासनकाल में अपनी अच्छी अपनी जगह बना लिया था। उसने आगरा के यमुना तट पर 1635 में
अपने लिए एक हवेली बनवाया था। शाहजहां के
23वें शासन वर्ष 1651-52 में उसे फिरोज जंग की उपाधि दिया गया था। वह दारा के
पक्ष में चला गया था। इसलिए औरंगजेब उसे कम पसन्द करता था। दारा की सिपारिश पर
1657-58 में उसे काबुल का गवर्नर बनाकर शाश हजारी बनाकर 500 आदमी तथा इसका 2 या 3 गुना
अश्वारोहीका दर्जा भी मिल गया था। 1658 में उसने दारा के पक्ष में जाकर सामूगढ़ की लड़ाई
लड़ी थी और वहां बुरी तरह घायल हो जाने के बाद उसकी मौत हो गई थी।
औरंगजेब ने इस्लाम खान की इस हवेली को उससे
जप्तकर उसे खूब सुन्दरता से सजवा दिया था। उसने यमुना तट की इस्लाम खान की इस निशानी
को अपने विश्वस्त मुकर्रब रूस्तम हुसेन अली पासा उर्फ वजीर इस्लाम खां रूमी को दिलवा दिया था। यह अली पासा
का बेटा था। यह बसरा का गवर्नर भी था। 12 वर्ष तक कुशल शासन करने के बाद तुर्की के
सुल्तान ने इसे भारत के मैत्री स्वरुप एक मेसोपोटामियाई घोड़े के साथ भारत भेजा गया
था। यह 1669 में शाहजहांनाबाद दिल्ली पहुंचा था। बादशाह ने इसकी अगवानी कराई थी। उसने
बादशाह को 20,00 रुपये तथा 10 घोडे भेंट किये थे। उसे पंचहजारी मनसब तथा इस्लाम खां
की उपाधि प्रदान किया था। उसे शाही आवास तक आने जाने के लिए नौका भी दिया गया था। उसके
पुत्र अली बेग को खान की उपाधि हजारी तथा 500 अश्व का मनसब दिया गया था। कुछ समय बाद हुसेन शाह रुमी को मालवा का गवर्नर
बनाकर आगरा से दूर बैठवा दिया था। वहीं वह अपने पत्नी व बच्चों के साथ स्थाई रुप से
रहने लगा था। रुमी उज्जैन में अपने लिए घर बनवाकर आगरा की यह हवेली छोड़ दिया था।
1677 ई. में वी बीजापुर के बहलोल व उसके बेटें
आदिल शाह के बीच युद्ध लड़ा था। जब युद्ध शुरु हुआ एक मैगजीन का टुकड़ा नीचे आया
और जिस पर रुमी बैठा था वह हाथी भड़क कर दुश्मन के पाले में जा घुसा। उसका रस्सा ढ़ीला
हो गया और हुसेन रुमी व उसका वेटा नीचे गिर कर घटना स्थल पर ही मर गये।
आगरा की यह हवेली अंग्रेजो के जमाने तक
भव्य स्वरूप में रही थी। अठारह सौ सत्तावन में कनिंधम ने इस हवेली को संरक्षित करने
का निर्देश अपने अधीनस्थों को दिया था परन्तु एसा हो नहीं पाया था। सन अठारह सौ बहत्तर
में कार्लाइल ने आगरा का सर्वेक्षण करते समय इस हवेली के अस्तित्व को स्वीकार किया था। सन अठारह सौ नवासी में जब थामस
डेनियल ने यमुना तट के मकानातों की पेंटिंग बनाई थी तो इस हवेली को अपनी पेंटिंग में
दर्शायी थी। बाद में आगरा में भीषण अकाल पड़ा और रूमी की हवेली को तोड़ना पड़ा। अकाल सहायता
के लिए आगरा किला के किनारे स्ट्रण्ड रोड के बनने से रुमी की हवेली तहस से नहस हो गई
थी। अकाल राहत में काम कराकर नई सड़क बनवाई गई थी। इस स्थान पर मैकडोनाल्ड पार्क बनवाकर
यह भव्य धरोहर नष्ट कर दिया गया। उन्नीस सौ एक में क्वीन विक्टोरिया की मृत्यु होने
पर उनकी स्मृति में इस पार्क में लार्ड कर्जन ने उनकी मूर्ति बनवायी थी। इसकी सजावट
के लिए आयरलैण्ड से अष्टधातु की सील मछलियां मंगवाकर इस पार्क में लगवाई गयी थी। आगरा
के लोगों द्वारा अब इसे विक्टोरिया पार्क कहा जाने लगा था। उन्नीस सौ चैसठ में सांसद
अचल सिंह ने यहां पर मोतीनेहरू की मूर्ति लगवाकर शाहजहांपार्क का नाम दिया था। तब से
यह इसी नाम से जाना जाता है। इस समय क्वीन विक्टोरिया की मूर्ति इस पार्क से हटवाकर
पुलिस लाइन में रखवा दिया गया था। साथ ही पुलिस की आफिस व आवास में इन सील मूर्तियों
को ठीक से सजवा दिया गया था। बाद में राज्य सरकार के इस उद्यान में एक जलाशय भी खुदवाया
गया। इसमें सौलानियों के आकर्षण हेतु बोट भी डलवाया गया था। पार्क में प्रवेश टिकट
लगवाकर जनता को भटकाया गया। वर्तमान में आगरा किला और ताज महल के मध्य यह एक आर्कषक
पार्क स्थित है। यह स्मारक अपना कितने बार स्वरूप बदला है। इसका इतिहास बहुत ही रोचक
रहा है। अब यह ‘रीक्लेम्ड एरिया आफ ताज हेरिटेज कारीडोर’
के अन्तर्गत आ गया है।
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