चुनरी मनोरथ वैष्णव धर्म की एक परम्परागत
पूजन प्रक्रिया
डा. राधेश्याम द्विवेदी
चुनरी मनोरथ श्रीकृष्ण
को प्रसन्न करने तथा उनकी पूजा करने की एक विधा है। पौराणिक विवरण के अनुसार गोप गोपिकायें
अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए इस प्रयोग का सहारा लेते रहे हैं। इसे ना केवल
मां यमुना अपितु देश विदेश के किसी भी सरिता जलाशय या जल स्रोत के सहारे सम्पन्न किया
जा सकता है। वैज्ञानिक रुप में यदि देखें तो जल संरक्षण जल शुद्धीकरण तथा प्राकृतिक
जल स्रातों की पुन: स्थापना में भी यह प्रक्रिया सहायक सिद्ध होती है। इस प्रक्रिया
जनता अपने आराध्य को प्रसन्न करने के साथ उससे भावनात्मक रूप से जुड़कर एक सकारात्मक
समाज की अवधारण को साकार भी करती है। गंगा यमुना नर्मदा तथा देश के प्रमुख नदियों
, उनके उद्गम श्रोतों तथा तीर्थ स्थानों पर यह बड़ी श्रद्धा व विश्वास के साथ परम्परागत
तरीके से मनाया जाता है। यमुना महारानी भगवान श्री कृष्ण की शाश्वत संगीनी है एवं ब्रज में
वह भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं की साक्षी है। गंगा यमुना या किसी देवी मां के श्रृगार
के सारे सामान चुनरी के साथ भेंट किये जाते हैं। उसे यातो नदी में प्रवाहित कर दिया
जाता है अथवा प्रसाद स्वरुप गरीबों में वितरित कर दिया जाता है। नदी के एक छोर से दूसरे
छोर तक चुनरी या साड़ी से ढ़क दिया जाता है। इसके लिए नाव का सहारा लिया जाता है। जहां
नाव की व्यवस्था नहीं हो पाती है वहां तैराक अपने हाथ में चुनरी या साड़ी को लेकर तैर
कर दूसरे पार जाते हैं। इसे सपोर्ट देने के लिए दूसरे भक्त उनके पीछे पीछे लगते जाते
हैं। इस प्रकार एक भव्य व दिव्य छटा देखने को मिलती है। आज नगरीय संस्कृति में इस प्रकार
के आयोजन बड़े ही दुर्लभ होते हैं। चुनरी मनोरथ
में दिव्य मंत्रोच्चारण के साथ यमुना महारानी का पूजन किया
जाता है । इसके पश्चात् यमुना भक्तों द्वारा यमुना महारानी को चुनरी ओढा कर
चुनरी मनोरथ मनाया गया। यमुना पूजन एवं चुनरी मनोरथ कार्यक्रम के पश्चात् यमुना महारानी
को 56 भोग अर्पित किया जाता है एवं भक्तों द्वारा छप्पन भोग की आरती कर मनोकामना मांगी जाती है। श्रीमदभागवत
पुराण में भी इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है।
श्री यमुनाजी के चुनरी मनोरथ
महोत्सव
का महत्व :- श्री मद़्भागवत के गोपी गीत में श्री यमुनाजी का विशेष महत्व रहा है
जब ठाकुरजी ने यह देखा कि गोपियों में अहम् भाव आगया है और वें यह सोचने लगी है कि
हम तो श्री कृष्ण की सहचरी है तो ठाकुरजी ने ऐक अद्भुत लीला रची कि श्री स्वामिनीजी
को साथ लेकर अन्तर ध्यान हो गये,तो गोपियाँ विरह विदग्ध जड चेतन सभी से श्री कृष्ण
के विषय में पूछने लगी। यह उनका विलाप ही गोपी गीत के रुप में जाना जाता है। जब गोपियाँ
पूछ-पूछकर थक गई और कुंजवन में विचरती हुई किलान्त हो गई तो ऐक गोपी ने दुसरी से कहा-'
अरी!चलो वह सामने यमुना बह रही है। उन्ही से पिया प्रियतम का पता पुछे तो वहाँ गोपियो
का क्रन्दन सुन कर श्री यमुना माँ द्रवीभूत हो गई । उनके (गोपियों)के इस करुणामय स्वरूप
को देख कर श्री यमुना जी की विनती से ही पीताम्बर की और से श्री ठाकुर जी प्रगट हो
गये और गोपियों को श्री यमुनाजी की कृपा से ही पुन:संयोग सुख का लाभ मिला। तब गोपियों
ने श्री यमुनाजी को चुनरी चढाई। तभी से वैष्णवों में चुनरी मनोरथ प्रचलन प्रारंम्भ
हुआ। अतएव यह कहा जा सकता है जिसने भी
यमुना मैया के समक्ष समर्पण किया है उसके सकल मनोरथ सिद्ध हुऐ है,क्योंकि यमुनाजी ठाकुरजी
की ह्रदयेश्वरी है।
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