Wednesday, April 26, 2017

आगरा में इसाई समाज और रोमन कैथोलिक सेमेटरी - डा. राधेश्याम द्विवेदी


आगरा एक विश्वजनित शहर रहा है। यहां यूरोप के देश - ब्रिटेन, डच, फ्रेंच, पुर्तगाली, इटेलियन, जमैन, फ्लेमिश तथा स्विस आदि देशों के इसाई प्रचारक तथा व्यवसाई बड़ी संख्या में आने लगे थे। 1562 में यहां आर्मेनियाई बस्ती और चर्च बन गया था। मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हई आरमेनियाई था। हरम की महिला डाक्टर जुलियाना भी आरमेनियाई थी। इसकी शादी अकबर ने नवारे ( फ्रांस ) के डी. बारबन जीन फिलिप से किया था। अब्दुल हई की पुत्री का पुत्र मिर्जा जुलकरनैन , जिसने इस्लाम धर्म अपना लिया था, जहांगीर और शाहजहां के दरबार का एक प्रमुख दरवारी था। इसने 1621 में आगरा में जेसुएट कालेज की स्थापना किया था। यह संभल का गवर्नर था तथा इसे मुगल ईसाइयों का जनक कहा गया है। मिर्जा उदरदानी साहसी, बीर, कवि एवं धु्रपद गायक था। इसका मकबरा सेंट पीटर कालेज परिसर में है। दयालबाग के आगे पोइया घाट पर 6 अन्य आरमंनियाइयों के मकबरे बने हुए हैं। इन लोगों ने नाई की मण्डी में मन्टोला मोहल्ला को बसाया था। 1676 . में पीटर टवारीज प्रथम मिशनरी हुबली से आगरा आया था। इसने ही बंगाल में धार्मिक व्यवसायिक गतिविधियों को चलाने की अनुमति प्राप्त किया था। 1578 में बंगाल से सत्गांव से फ्रैंसिस जूलियन पेरोरा तथा एन्टोनियो केनरल की मिशनरी आगरा में धर्म तथा व्यापार फैलाने की अनुमति के लिए आया था।
आगरा में इसाई मिशनरी:-1602 में आगरा में प्रथम इसाई मिशनरी स्थापित हुई थी। इंग्लैंड का सौदागर जान मिल्डनहाल राजदूत का रूप धारण कर 1603 में व्यापार की अनुमति के लिए आगरा आया था, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली और जहांगीर के समय में 1614 में आगरा में ही मर गया था। उसका स्मारक आर. सी. सेमेटरी में बना है। 1604 में आगरा में अकबरी चर्च बन गया था जो बाद में सेंट मेरी चर्च के रूप में पुनर्नामित हुआ था।1621 में आगरा में इसाई स्कूल खुल गया था। सिकन्दर लोदी द्वारा निर्मित वारादरी को मरियम जमानी के मकबरे के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था।  इसमें तथा इसके पास ही इसाइयों ने अपना केन्द्र वना लिया था। इस मकबरे का कुछ भाग  इसाइयों के नियंत्रण में गया था।
आगरा मुगलों की राजधानी रही। ईस्ट इण्डिया कम्पनी कलकत्ता को अपनी राजधानी प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बना रखा था। बंगाल प्रसीडेन्सी से ही आगरा का प्रशासन ब्रिटिस काल में संचालित होता था। बाद में असुविधा होने पर पहले आगरा प्राविंस फिर इसको नार्थ वेस्टर्न प्राविंस के रूप में एक प्रशासनिक इकाई बनाई गई। पोस्ट आफिस ,विश्वविद्यालय, रेलवे तथा न्यायपालिका आदि अनेक विभाग कलकत्ता से अलग करके ही आगरा में बनाये गये थे। दोनों शहरों के निवासियों के बीच सामाजिक, व्यापारिक तथा प्रशासनिक कारणों से मेल जोल तथा आना जाना भी ज्यादा हो गया था। इसी क्रम में अंग्रेजों का आगरा से जुड़ना हुआ था। यहां इसाई धर्म का प्रचार प्रसार तथा गैर इसाइयों का धर्मान्तरण की प्रक्रिया बहुत पहले से ही चली रही है। 1810 . में कलकत्ता में ओल्ड मिशन चर्च हुआ करता था। इसके अन्तर्गत आगरा की मिशनरी तथा चर्च आती थी। इसाई धर्म गुरू डेविड ब्राउन ने उत्तर भारत में 10 मिशन मुख्यालय बना रखे थे। 1808 में थामसन आगरा आया था जिसने यहां के मेडिकल क्षेत्र में बहुत काम किया है। संयोग से इसका पुत्र बाद में 1843-53 तक आगरा स्थित नार्थ वेस्टर्न प्रांविसेज का गवर्नर बना था। इस प्रकार तत्समय दोनों शहरों के मध्य भावनात्मक सम्बन्ध बन गया था। 1811 में अब्दुल मसीह आगरा आकर 1813 से क्रिस्चियन सोसायटी का काम संभाल ही लिया था। आगरा में 1818 में नेटिव स्कूल खुल गया था। अब्दुल मसीह के कटरे में 1837 में एक गिरजाघर बनवाया गया था। कटरे के अतिरिक्त पास की जमीन को लोकल कमेटी से खरीदकर एक स्कूल भवन बनवाया गया था।

अकबरी ( सेंट मेरी ) तथा नया गिरजाघर रोमन कैथालिक कैथीड्राल कम्पाउन्ड सेमेटरी बनी हुई है। इसमें पुरानी धार्मिक जनों की कबे्रं अभिलेख सहित बनी है। आगरा में एक विशाल ओल्ड कैथोलिक या रोमन कैथोलिक सेमेटरी बना हुआ है। यह भारत सरकार द्वारा संरक्षित तथा अच्छी स्थिति में है। यहां 17वीं, 18वीं और 19वीं सदी कीे विशिष्टजनों की कब्रे बनी हुई है।

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