फतेहपुरसीकरी का
सामान्य परिचय
:- अकबर आगरा और
फतेहपुर सीकरी दोनों जगहों के काम में व्यक्तीगत रुचि लेता था। उसे राज संभालने के
लिये दिल्ली कई स्थानों से दूर लगा और ये प्रतीत हुआ कि इससे प्रशासन में समस्या आ
सकती है। अतः उसने निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को आगरा के निकट फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य
के लगभग मध्य में थी। 1572 में अकबर ने आगरा से 36 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी में
किलेनुमा महल का निर्माण आरम्भ किया। यह आठ वर्षां में पूरा हुआ। एक पुराने बसे ग्राम
सीकरी पर अकबर ने नया शहर बनवाया जिसे अपनी जीत यानि फतह की खुशी में फतेहाबाद या फतेहपुर
नाम दिया गया। जल्दी ही इसे पूरे वर्तमान नाम फतेहपुर सीकरी से बुलाया जाने लगा। यहां
के अधिकांश निर्माण उन 14 वर्षों के ही हैं, जिनमें अकबर ने यहां निवास किया। शहर में
शाही उद्यान, आरामगाहें, सामंतों व दरबारियों के लिये आवास तथा बच्चों के लिये मदरसे
बनवाये गए। संत शेख सलीम चिश्ती के सम्मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की नींव रखी।
कुछ वर्षों के अंदर सुयोजनाबद्ध प्रशासनिक, आवासीय और धार्मिक भवन अस्तित्व में आए।इस
क़िले के भीतर पंचमहल, जामा मस्जिद, बुलंद दरवाज़ा, शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्कारख़ाना, टकसाल, कारख़ाना, ख़ज़ाना, हकीम का घर, दीवान-ए-आम,
मरियम का निवास, जोधाबाई का महल, बीरबल का निवास आदि बनवाये गए। पहाड़ी पर बसे इस महल
में एक बड़ी कृत्रिम झील भी थी। फतेहपुर सीकरी का सबसे प्रभावशाली वहाँ की मस्जिद तथा
बुलन्द दरवाजा है। वैज्ञानिक पद्धतियों के समावेश के कारण
फतेहपुर सीकरी को एक व्यवस्थित नगर-योजना के अनुसार, विकसित रूप से बसाया गया था। सभी
इमारतें लाल बलुए पत्थर से समतल पद्धति पर निर्मित परिसरों में खम्भे/स्तंभों, अलंकारिक
महराबों, ताड़ों, छज्जों, झरोखों और छतरियों के प्रयोग से युक्त हैं । भारतीय कला से
प्रभावित कुछ इमारतें मन्दिर सी लगती है। स्थानीय कारीगरों के साथ मालवा, राजस्थान
और गुजरात से बुलाये गये शिल्पकारों ने भी अपना योगदान दिया। फलतः फतेहपुर सीकरी की
कला, सीकरी की कला न होकर सम्पूर्ण भारत की कला के रूप में पहचानी जाने लगी। यह कला
रचनात्मक, बहुमुखी और समन्वित भारतीय शैली, देश की मिलीजुली संस्कृति की देन है। 14 वर्ष तक
सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपुयक्त नहीं है। अत: सन्
1584 में पुन: राजधानी आगरा बनाई गई। राजधानी
के हटते ही फ़तेहपुर सीकरी का ह्रास होने लगा।
आजकल वह एक छोटा सा क़स्बा रह गया है।
फतेहपुर
सीकरी के दक्षिणी परिसर के स्मारक :- फतेहपुर
सीकरी के दक्षिणी परिसर में वर्तमान कस्बे से लेकर दूर दूर तक के शहरी दीवालों तक का
भूभाग कभी हवेलियों बगीचों मंडपों अस्तबलों कारवां सरायों और बाजारों के रुप में विखरा
हुआ था। इनमें कुछ तो खत्म हो चुकी हैं और कुछ अभी भी अस्तित्व में दिखती नजर आती हैं।
इनमें राजा टोडरमल की बारादरी, बहाउद्दीन की मस्जिद और मकबरा , मिढ़ाकुर की मस्जिद,
ईदगाह एवं सेमेटरी, जोताना में आयशा बीबी और जिबा बीबी की कब्रे, शेख मूसा का मकबरा
तथा शेख इब्राहिम का मकबरा व मस्जिद प्रमुख हैं।
शेख इब्राहिम का मकबरा
व मस्जिद:-
तेरह मोरी बांध से बांयी तरफ लगभग दो किमी की दूरी पर रसूलपुर गांव पड़ता हैं।जो प्रागैतिहासिक
शैल चित्रों के आश्रय के लिए प्रसिद्ध है। शेख सलीम चिस्ती के भतीजे तथा आगरा के गवर्नर
के बेटे शेख इब्राहिम की मृत्यु 1591 ई. में हुई थी। इनका यह प्लास्टर किया हुआ गुम्बददार
मकबरा है जो देखने में अति सुन्दर है। शेख इब्राहिम ने इसे अपने जीवन काल में ही बनवा
लिया था। इस मकबरे के साथ एक पा्रंगण है जिसके प्रत्येक कोने में एक एक बुर्जी बनी
हुई है तथा पास ही में एक मस्जिद बनी हुई है। परिसर के मध्य में शेख इब्राहिम का वर्गाकार
मकबरा बना हुआ है जो बेतरतीब अनगढ़े पत्थरों की चिनाई करके बनाया गया है। इस पर प्लास्टर
भी किया हुआ है। यह एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ हैं। इस मकबरे के दक्षिणी मेहराब के आस पास एक सादा चाप
स्कन्द वाला पट्टिका है। इस मकबरे के ऊपर गुम्बद बना हुआ है जो पंचमुखी बगली डाटों
के सहारे खड़ा हुआ है। इसके गुम्बद के छत पर ज्यामितीय डिजाइनों में चित्रकारी की गयी
है। इस मस्जिद पर नश्क चरित्र वाला कलीमा लिखा हुआ है।
No comments:
Post a Comment